लेख लाभार्थियों तक क्यों नहीं पहुंचती योजनाएं? March 7, 2024 / March 7, 2024 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment मुकेश मेघवालउदयपुर, राजस्थान देश में केंद्र हो या फिर राज्य सरकार, सभी नागरिकों के हितों में कई योजनाएं चला रही है. कुछ योजनाएं केंद्र द्वारा संचालित होती हैं तो कुछ योजनाएं राज्य सरकार भी अपने स्तर पर लागू करती हैं. लेकिन सभी का अंतिम उद्देश्य समाज में गरीब, पिछड़े, आर्थिक रूप से कमज़ोर और हाशिये […] Read more »
महत्वपूर्ण लेख महिला-जगत लेख डिजिटल कौशल से सशक्त बनती महिलाएं March 7, 2024 / March 7, 2024 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष लेख सैयद तैय्यबा कौसरपुंछ, जम्मू वर्तमान युग यदि महिलाओं का युग कहा जाए तो गलत नहीं होगा. इस युग में महिलाओं ने हर क्षेत्र में खुद को साबित किया है. उन्होंने जीवन के सभी पहलुओं में हर संभव तरीके से अपनी योग्यता साबित की है. डिजिटल विकास ने महिला सशक्तिकरण […] Read more » Women empowered with digital skills अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सशक्त बनती महिलाएं
लेख खुद की हत्या करना जैसा है धूम्रपान का आदी होना March 7, 2024 / March 7, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment धूम्रपान निषेध दिवस -13 मार्च, 2024– ललित गर्ग – हर साल मार्च महीने के दूसरे बुधवार को धूम्रपान निषेध दिवस यानी नो स्मोकिंग डे मनाया जाता है। धूम्रपान के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को बताने और धूम्रपान छोड़ने के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। इस साल धूम्रपान […] Read more » धूम्रपान का आदी
लेख समाज कितनी स्वतंत्र हैं आधुनिक महिलाएं? March 6, 2024 / March 6, 2024 by लक्ष्मी अग्रवाल | Leave a Comment आज चारों तरफ शोर मचा हुआ है कि आज की महिला किसी भी मामले में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। जीवन व समाज के हर क्षेत्र में वह पुरुषों में भी बढ़कर प्रदर्शन कर रही हैं। आज उन्हें सब ओर से स्वतंत्रता मिली हुई है। उन पर किसी तरह की रोक-टोक पाबंदी नहीं है, वह पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। लेकिन क्या वाकई ऐसा है? क्या जिस आजादी का ढिंढोरा हम पीट रहे हैं, वह सच में महिलाओं को मिली हुई है। महिलाओं के विकास की ओर बढ़ते कदम तथा बदले रूप-रंग को देखकर ऊपर से सबको भ्रम हो रहा है कि आधुनिक महिलाएं पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। वो जैसा चाहती हैं, वैसा ही करती हैं। उन्होंने अपने जीवनशैली अपनी इच्छानुसार बनाई हुई है। जीवन के हर क्षेत्र में मिल रही कामयाबी इस बात की गवाह है कि अब हमारा समाज पुरुष प्रधान नहीं रहा। आधी आबादी को उसके हिस्से के अधिकार मिल रहे हैं। पर क्या सच में आधी आबादी को वह मिला है, जिसकी वह हकदार है या फिर सागर में से कुछ बूंदें उन्हें देकर बहला दिया गया है कि ताकि वे आगे अपने किसी अधिकार की लड़ाई न लड़ सकें। आज हमारा समाज बहुत आगे बढ़ चुका है, काफी विकसित हो चुका है, इसमें दो राय नहीं है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि आधुनिक महिलाएं आज भी अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं। हम यदि अपनी समाज व्यवस्था पर एक विहंगम दृष्टि डालें तो हम पाएंगे कि आज भी उनकी आजादी अधूरी ही है। सामाजिक व्यवस्था- कहने को तो हमारा समाज काफी उन्नत और जागरूक हुआ है और आधी आबादी भी अपना जीवन अपने ढंग से जी रही है। लेकिन फिर भी आज भी शादी के बाद एक बेटी को ही अपना घर छोड़कर जाना पड़ता है, पुरुष आज भी उसी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। जब हम आजाद हैं तथा स्त्री और पुरुष दोनों को बराबरी का अधिकार दिया गया है तो फिर क्यों हमेशा एक लड़की या एक औरत को ही अपना सब कुछ छोडऩा पड़ता है? फिर वह शिक्षित हो या अशिक्षित इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे ही अपना सब कुछ छोडऩा पड़ता है। शादी के बाद एक लड़की अपना घर, माता-पिता, भाई-बहन यहां तक कि अपनी पढ़ाई, अपना भविष्य भी वह अपने ससुराल वालों के लिए छोड़ देती है। वह हर सांचे में खुद को ढाल लेती है। वह शादी के बाद अपने ससुराल वालों के रंग-ढंग में रच-बस जाती है और वह ये सब अपने परिवार की खुशी के लिए करती है। आज का समाज इतना आगे निकल चुका है, परंतु फिर भी आधी आबादी के मामले में हमारा समाज क्यों पुराने रिवाजों को ही मानता है? क्यों हमारी सामाजिक व्यवस्था में स्त्रियों के लिए बनाए गए रिवाजों में कोई परिवर्तन नहीं हुए? आज भी अगर किसी स्त्री के साथ कोई शर्मनाक घटना घटती है तो उसमें दोष स्त्री को ही दिया जाता है। उसी के चाल-चलन व चरित्र पर ही उंगली उठती है। हर बात में उनके ऊपर पाबंदी लगाई जाती है। उनकी जीवनशैली में हस्तक्षेप व रोक-टोक की जाती है। क्यों यह सब स्त्री को ही झेलना पड़ता है और फिर भी हम कहते हैं कि हमने औरतों को पूरी आजादी व उनके हक दिए हुए हैं। ऐसे में ऊपर तौर पर स्वतंत्र दिखने वाली इन महिलाओं को कैसे पूर्णत: स्वतंत्र माना जा सकता है। महिलाओं की इस स्वतंत्रता में भी तो आखिरकार उसकी परतंत्रता ही छिपी हुई है। कहने को तो हमारा देश प्रत्येक क्षेत्र में विकास की ओर उन्मुख है तथा कई क्षेत्रों में तो हमने आशातीत कामयाबी हासिल भी कर ली है। विश्व के कई देशों ने इस बात को स्वीकार किया है कि राष्ट्र के विकास से संबंधित कई मुद्दों को महिलाएं बेहतर समझ सकती हैं। हमारे देश की तथा विदेशी राजनीतिज्ञ महिलाओं ने अपनी प्रतिभा से इस बात को सिद्ध भी किया है। लेकिन फिर भी छोटे से लेकर बड़े स्तर पर महिलाओं की योगयता को कम ही आंका जाता है। माना हमारे देश में अन्य देशों के मुकाबले महिलाओं को मतदान का अधिकार काफी पहले ही मिल गया था, लेकिन उसका स्वतंत्र प्रयोग करने की सामथ्र्य उसमें आज भी नहीं है। आज भी वह अपने परिवार, पिता या पति की इच्छानुसार ही मतदान करती है। यदि वह ऐसा न करे तो उनके आपसी रिश्तों में दरार आ जाती है। अपने परिवार में सौहार्द, शांति व प्रेम बनाए रखने के लिए वह खुशी-खुशी अपने इस अधिकार को भी त्याग देती है। इस तरह सभी क्षेत्रों में उन्हें मिली आजादी पर कोई न कोई प्रत्यक्ष व परोक्ष प्रतिबंध लगा ही हुआ है, उन्हें आगे बढऩे के पर्याप्त अवसर नहीं उपलब्ध कराए जाते, तो ऐसे में किस मुंह से कहें कि आधुनिक महिलाएं पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। किसी भी देश के विकास में वहां की शिक्षित महिला का बहुत बड़ा योगदान होता है। एक शिक्षित महिला न केवल स्वयं को बल्कि अपने पूरे परिवार को शिक्षित करती है। इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं के शिक्षा स्तर में काफी सुधार हुआ है लेकिन फिर भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। माना दो दशक पहले की तुलना में आज की महिलाएं शिक्षा के प्रति कहीं ज्यादा जागरूक हैं। महिलाओं में शिक्षा का स्तर बढऩे से उनकी सोचने व समझने की क्षमता का विकास हुआ है लेकिन यह स्थिति शहरी महिलाओं की है। जबकि आज भी हमारे देश का ज्यादातर हिस्सा गांवों में बसता है। इन इलाकों में देश की ६० फीसदी महिलाएं रहती हैं, जिन्हें विकाास की परिभाषा तक मालूम नहीं है। शिक्षा के नाम पर इन महिलाओं में शायद कुछ ही कॉलेज क्या, स्कूल तक पहुंची हों। क्या विकासशी भारत की ये महिलाएं सच में आजाद हैं जिन्हें दो वक्त का खाना बनाने और घर के सदस्यों की देखभाल करने के अलावा और कुछ भी पता नहीं है। भारत के दूर-दराज के इलाकों की बात तो बहुत दूर है शहरी क्षेत्रों में भी लड़कियों को उच्च शिक्षा के लिए काफी पापड़ बेलने पड़ते हैं। शहरी क्षेत्रों में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो कि शिक्षा के मामले में बेटे व बेटियों में फर्क करते हैं। बेटों के लिए ऊंचे सपने देखते हैं तथा उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बड़े-बड़े स्कूलों में पढ़ाने के लिए जी-जान लगा देते हैं। जबकि लड़कियों को किसी भी सरकारी स्कूल में पढऩे के लिए भेज देते हैं, उन्हें इस बात से कोई सरोकार तक नहीं होता कि वहां पढ़ाई ठीक से हो रही है या नहीं। वे तो बस स्कूल में दाखिला कराकर ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं। शहरी क्षेत्रों में चाहे महिलाएं कितनी ही आत्मनिर्भर दिखती हों लेकिन सच्चाई तो यह है कि शिक्षा, मान्यताओ, सोच व सामाजिक बंधनों के स्तर पर आज तक उन्हें आजादी नहीं मिल पाई है। माना देश निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होता जा रहा है। जहां महिलाओं को भी रोजगार के अवसर मिल रहे हैं लेकिन अब भी महिलाओं को उतने अधिकार नहीं मिल पाए हैं, जिनकी वह वास्तविक हकदार हैं। सामाजिक रूप से हम अभी भी काफी पिछड़े हुए हैं। आज भी देश में सिर्फ १३ फीसदी महिलाएं ही काम करती हैं उनमें भी ज्यादातर मामलों में वही स्त्रियां काम करती हैं, जिनकी पारिवारिक आय काफी कम हो। इनमें भी ज्यादातर महिलाएं निजी क्षेत्रों में काम करती हैं जहां आए दिन उनके अधिकारों का हनन होता है। किसी न किसी रूप में उनकी स्वतंत्रता बाधित होती है, आए दिन उन्हें किसी न किसी रूप में अपने स्त्री होने की कीमत चुकानी पड़ती है। यह देखने में आता है कि जिन राज्यों की आर्थिक स्थिति अच्छी है वहां पर महिलाओं के नौकरी या घर से बाहर काम करने का प्रतिशत भी कम है। कुल मिलाकर अब भी सामाजिक बंधनों के कारण महिलाएं चाहकर भी अपना योगदान आर्थिक विकास में नहीं दे पा रही हैं। हम चाहें कितनी भी आर्थिक आजादी की बातें कर लें पर जब तक महिलाओं के विकास व आजादी को लेकर खुलापन नहीं आएगा तब तक आर्थिक आजादी अधूरी नजर आती है। ऊपरी तौर पर देखने को मिलता है कि बड़े शहरों की महिलाओं को पूरी आजादी है। वह हर क्षेत्र में अपना कॅरियर बना रही हैं। लेकिन सच्चाई तो यह है कि निजी क्षेत्रों में महिलाएं केवल उनकी ब्रांड एम्बेसडर है। ब्रांड एम्बेसडर के रूप में उन्हें शोहरत तो मिल रही है लेकिन उनकी स्वतंत्रता की कीमत पर। ब्रांड एम्बेसडर बनी इन महिलाओं की निजी जिंदगी तक इनके मालिकों द्वारा संचालित होती है। ऐसे में आर्थिक रूप से स्वतंत्र होकर भी ये महिलाएं वास्तविक रूप से परतंत्र ही हैं। आज हमारे देश में महिलाओं की आजादी को लेकर जो सबसे बड़ा प्रश्न खड़ा हुआ है वह है महिलाओं की सुरक्षा को लेकर। आज हमारे देश में महिलाएं घर में ही सुरक्षित नहीं हैं। जीवन के हर मोड़ पर उनके जीवन पर खतरा मंडरा रहा है। कहीं वो अपनों का शिकार बनती है तो कहीं अनजाने लोगों का। पुलिस रिकॉर्ड में महिलाओं के खिलाफ भारत में अपराधों का उच्च स्तर दिखाई पड़ता है। भारत के जनजातीय समाज में अन्य सभी जातीय समूहों की तुलना में पुरुषों का लिंगानुपात कम है। कई विशेषज्ञों ने माना है कि भारत में पुरुषों का उच्च स्तरीय लिंगानुपात कन्या शिशु हत्या और लिंग परीक्षण संबंधी गर्भपातों के लिए जिम्मेदार है। बेटे की चाह रखने वाले माता-पिता कन्या को जन्म से पहले ही इस दुनिया में आने से रोक देते हैं। जन्म से पहले अनचाही कन्या संतान से छुटकारा पाने के लिए इन परीक्षणों का उपयोग करने की घटनाओं के कारण बच्चे के लिंग निर्धारण में इस्तेमाल किए जा सकने वाले सभी चिकित्सकीय परीक्षणों पर भारत में प्रतिबंध लगा दिया गया है लेकिन बावजूद इसके कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध नहीं रुक रहे हैं। इसके अलावा हमारे यहां दहेज परंपरा भी विद्यमान है, जिसकी वजह से कई महिलाओं का जीवन तो नर्क से भी बदतर हो गया है। दहेज परंपरा का दुरुपयोग लिंग-चयनात्मक गर्भपातों और कन्या शिशु हत्याओं के लिए मुख्य कारणों में से एक रहा है। घरेलू हिंसा भी हमारे समाज में काफी प्रचलित हैं, जहां हमारे देश की अबलाएं चुपचान पुरुष सत्तात्मक वातावरण के तहत बेरहम पुरुषों के अत्याचार सहने को विवश हैं। घरेलू हिंसा की घटनाएं निम्न स्तरीय सामाजिक-आर्थिक वर्गों में अधिक होती हैं। कई मामलों में तो दहेज प्रथा भी घरेलू हिंसा के मामलों को बढ़ावा देता है। जहां आज के आधुनिक युग में भी हमारी बेटियां या हमारे समाज की औरतें चुपचाप इतने अत्याचार सहने को विवश हैं तो ऐसे में कैसे कहा जा सकता है कि हमारे देश की आधुनिक महिलाएं स्वतंत्र हैं। क्या उनके ऊपर हो रहे ये अत्याचार किसी भी तरह से उनकी स्वतंत्रता की कहानी बयां करते हैं। हमारे देश को तो 15 अगस्त 1947 को आजादी मिल गई थी लेकिन हमारे देश की महिलाओं को आज भी आजादी का इंतजार है। उन्हें इंतजार है उस दिन का जब वह अपने घर और अपने आसपास की सभी जगहों पर सुरक्षित रह सकेंगी। उन्हें इंतजार है उस कल का जब पुुरुष उन्हें भी मनुष्य समझकर उनकी भावनाओं से खेलने व उन पर अत्याचार करने की बजाय उनको सम्मान देगा। भले ही हम महिलाओं को अधिकार संपन्न व आधुनिक बनाने की कितनी ही बात कर लें पर सच्चाई तो यह है कि आज भी हमारे देश के अधिकांश भारतीय परिवारों में महिलाओं को उनके नाम पर कोई भी संपत्ति नहीं मिलती है और उन्हें पैतृक संपत्ति का हिस्सा भी नहीं मिलता। महिलाओं की सुरक्षा के कानूनों के कमजोर कार्यान्वयन के कारण उन्हें आज भी जमीन और संपत्ति में अपना अधिकार नहीं मिल पाता। वास्तव में जब जमीन और संपत्ति के अधिकारों की बात आती है तो कुछ कानून महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं। १९५६ के दशक के मध्य के हिन्दू पर्सनल लॉ (हिंदू, बौद्ध, सिखों और जैनों पर लिए लागू) ने महिलाओं को विरासत का अधिकार दिया। हालांकि बेटों को पैतृक संपत्ति में एक स्वतंत्र हिस्सेदारी मिलती थी जबकि बेटियों को अपने पिता से प्राप्त संपत्ति के आधार पर हिस्सेदारी दी जाती थी। इसलिए एक पिता अपनी बेटी को पैतृक संपत्ति में अपने हिस्से को छोड़कर उसे अपनी संपत्ति से प्रभावी ढंग से वंचित कर सकता था लेकिन बेटे को अपने स्वयं के अधिकार से अपनी हिस्सेदारी प्राप्त होती थी। इसके अतिरिक्त विवाहित बेटियों को, भले ही वह वैवाहिक उत्पीडऩ का सामना क्यों ना कर रही हों उसे पैतृक संपत्ति में कोई आवासीय अधिकार नहीं मिलता था। २००५ में हिंदू कानूनों में संशोधन के बाद महिलाओं को अब पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने के प्रावधान तो कर दिए गए हैं लेकिन फिर भी आज भी हमारे देश की महिलाएं अपने इस अधिकार के लिए भी जूझ रही हैं। विवाह के बाद संबंध विच्छेद की स्थिति में भी स्त्री को अपना हक लेने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ता है। आज भी वह आसानी से न पिता से और न पति से अपने अधिकार प्राप्त नहीं कर सकती। आज के युग में भी महिलाओं की डगर काफी कठिन है। जहां हर कदम पर हमारे पुरुष प्रधान समाज की प्रताडऩा का उसे शिकार होना पड़ता है। हर बार पुरुष के अहं के आगे महिलाओं की आवाज व अधिकारों को बड़ी आसानी से कुचल दिया जाता है और वह चुपचाप अपने साथ दोहराई जाने वाली कहानी को सदियों से सहती आई है और न जाने कब तक सहती रहेगी। आधुनिक महिलाओं की आजादी सिर्फ हमारे देश के संविधान के पृष्ठों में दर्ज होकर रह गई है। व्यावहारिक स्तर पर देखें तो वह आजादी आज भी महिलाओं से कोसों दूर है। महिलाओं को स्वतंत्र मानना केवल उनके साथ एक छलावा प्रपंच है, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। हिंदुस्तान की मां, बहन, बेटी, बहू और पत्नी भले ही आधुनिक हो गई हो पर स्वतंत्र नहीं हुई है, वह आज भी परतंत्रता की बेडिय़ों में ही जकड़ी हुई है। लेखक परिचय लक्ष्मी अग्रवाल Read more » कितनी स्वतंत्र हैं आधुनिक महिलाएं?
लेख पशुधन बना आमदनी का साधन March 5, 2024 / March 5, 2024 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment अंजलीबीकानेर, राजस्थान देश के ग्रामीण क्षेत्रों में आय का सबसे सशक्त माध्यम कृषि है. देश की आधी से अधिक ग्रामीण आबादी कृषि पर निर्भर करती है. इसके बाद जिस व्यवसाय पर ग्रामीण सबसे अधिक निर्भर करते हैं वह है पशुपालन. बड़ी संख्या में ग्रामीण भेड़, बकरी और मुर्गी पालन कर इससे आय प्राप्त करते हैं. […] Read more » पशुधन बना आमदनी का साधन
लेख राम युग से अमृतकाल तक भारतीय नारी March 5, 2024 / March 5, 2024 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ स्त्री सभी स्वरूप में भारतीय ज्ञान परम्परा के अनुसार वन्दनीय, पूजनीय और अनुकरणीय मानी गई है। शास्त्रों में उल्लेखित सभी आधारों पर स्त्री के पूजन या सम्मान को सर्वोपरि रखा गया है, शक्ति स्वरूपा की आराधना को पर्वाधिराज के रूप में स्वीकार किया गया है। उसी स्त्री को दिए वचनों की अनुपालना के लिए राघवेंद्र को […] Read more » Indian women from Ram era to Amritkal राम युग से अमृतकाल तक भारतीय नारी
लेख शिव लोक कल्याणकारी हैं तो संकट विनाशक भी March 5, 2024 / March 5, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment महाशिवरात्रि-08 फरवरी 2024 पर विशेष-ः ललित गर्ग :- सम्पूर्ण ब्रह्मांड शिव के अंदर समाया हुआ है। जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे जब कुछ न होगा तब भी शिव ही होंगे। शिव को महाकाल कहा जाता है, अर्थात समय। शिव अपने इस स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करते हैं। इसी स्वरूप द्वारा […] Read more » महाशिवरात्रि-08 फरवरी
लेख भारत की सुपरमॉम – सुषमा March 5, 2024 / March 5, 2024 by हर्षित चौरसिया | Leave a Comment हर्षित चौरसिया “जिस दिन मेरे नेता (अटल) ने सदन से इस्तीफा दिया उस दिन ही रामराज्य की भूमिका तैयार हो गई थी” – सुषमा स्वराज का यह भाषण आज सच होता दिखता है। छोटा कद, सिल्क की साड़ी, माथे पर बड़ी बिंदी, और हाफ जैकेट में सजी सुषमा जी, जब भाषण देती थीं, तो उनके […] Read more » Supermom of India – Sushma swaraj
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख महाशिवरात्रि का सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक महत्व March 5, 2024 / March 5, 2024 by डॉ. सौरभ मालवीय | Leave a Comment -डॉ. सौरभ मालवीय पर्व एवं त्योहार भारतीय संस्कृति की पहचान हैं। ये केवल हर्ष एवं उल्लास का माध्यम नहीं हैं, अपितु यह भारतीय संस्कृति के संवाहक भी हैं। इनके माध्यम से ही हमें अपनी गौरवशाली प्राचीन संस्कृति के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है। महाशिवरात्रि भी संस्कृति के संवाहक का ऐसा ही एक बड़ा त्योहार […] Read more » Cultural and scientific importance of Mahashivratri महाशिवरात्रि
लेख विविधा विदेशी सैलानियों की सुरक्षा का उभरता सवाल ? March 4, 2024 / March 4, 2024 by प्रभुनाथ शुक्ल | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ल भारत घूमने आए विदेशी सैलानियों की सुरक्षा का सवाल हमारे सामने यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा है। विदेशी सैलानियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं जहाँ हमें कटघरे में खड़ा करती हैं वहीं दूसरी उनसे मारपीट, लूट और अधिक पैसे वसूलने की घटनाएं भी आम हैं।हमारे […] Read more » विदेशी सैलानियों की सुरक्षा
लेख व्यंग्य गोबर दोबारा मानव जाति का अन्नदाता और प्राणदाता बन सकेगा ? March 4, 2024 / March 4, 2024 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment गोबर की आत्मकथा- आत्माराम यादव पीव मैं गोबर हॅू, आज अपनी आत्मकथा सुनाना चाहता हॅॅू। मुझ गोबर के पिता का नाम जठरानलानन्द है और श्रीमती सुरभी अर्थात गाय मेरी माता हैं। मेरे जन्मस्थान का नाम लेने से दिन-भर अन्न-जल के दर्शन न होंगे, इसलिए नहीं बताऊँगा। हाँ, मैं इस बात से पूर्णतः आश्वस्त हॅू कि […] Read more » Will cow dung again become the provider of food and life to mankind? गोबर की आत्मकथा
महिला-जगत लेख समाज क्यों महिलाएं अपने अधिकारों के लिए आज भी संघर्ष कर रही हैं? March 4, 2024 / March 4, 2024 by डॉ नीलम महेन्द्रा | Leave a Comment ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में मानव के रूप में जन्म लेना एक दुर्लभ सौभाग्य की बात होती है। और जब वो जन्म एक स्त्री के रूप में मिलता है तो वो परमसौभाग्य का विषय होता है। क्योंकि स्त्री ईश्वर की सबसे खूबसूरत कलाकृति है जिसे उसने सृजन करने की पात्रता दी है। सनातन संस्कृति के […] Read more » Why are women still fighting for their rights