कविता नकली कान्हा August 17, 2025 / August 25, 2025 by डॉ राजपाल शर्मा 'राज' | Leave a Comment जन्माष्टमी का पर्वबड़ी धूमधाम से मनाया गया,बाज़ार से पीताम्बर मंगवाया गया।जो बच्चे डरते हैं छिपकली से,उन्होंने भी कान्हा बनाया गया।सिर पर मुकुट पहना, कर बांसुरी दी गई,इस अद्भुत छवि की खूब सेल्फ़ी ली गई। बालिकाएँ राधा बन गई थीं,बड़ी ही मोहक लग रही थीं।रूप तो नयनाभिराम था,पर सब बाज़ार का ही तो सामान था।बच्चों को […] Read more » नकली कान्हा
लेख डायरेक्ट एक्शन डे (16अगस्त,1946) मुस्लिम लीगियों द्वारा “सीधी कार्यवाही” का अखिल भारतीय कार्यक्रम August 16, 2025 / August 23, 2025 by विनोद कुमार सर्वोदय | Leave a Comment (मुस्लिम लीग ने अपनी पाकिस्तान की मांग मनवाने के लिए ‘डायरेक्ट ऐक्शन’ का ऐलान कर उसके लिए 16 अगस्त, 1946 की तारीख निश्चित कर दी थी। तत्सम्बन्धी जारी किये गये गुप्त परिपत्र का अनुवाद यहां प्रस्तुत है। तदनुसार मुसलमानों ने देश भर में जो हत्याकांड रचे, उनमें कलकत्ता और नोआखाली के हिन्दू-संहार भीषणतम ये। अकेले […] Read more » Direct Action Day (16 August 1946): All India programme of "direct action" by the Muslim Leaguers डायरेक्ट एक्शन डे
कविता सुदर्शनचक्रधारी श्री कृष्ण की आवश्यकता अनुभव करता देश August 16, 2025 / August 23, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment जन्माष्टमी पर्व की आप सभी के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं। श्री कृष्ण जी भारतीय सनातन के पुरोधा योद्धा महापुरुष रहे हैं। जिन लोगों ने उन्हें केवल राधा के संग नचाने का कार्य किया है या “छलिया का भेष बनाकर श्याम चूड़ी बेचने आया” या गोपिकाओं के वस्त्र चुराने वाला दिखाया है या माखन चोर दिखाया है, […] Read more » सुदर्शनचक्रधारी श्री कृष्ण की आवश्यकता
लेख शहर, कुत्ते और हमारी ज़िम्मेदारी August 16, 2025 / August 16, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment “पॉटी उठाना शर्म नहीं, संस्कार है, शहर की सड़कों पर पॉटी नहीं, जिम्मेदारी चाहिए” भारत में पालतू कुत्तों की संख्या 2023 में लगभग 3.2 करोड़ आंकी गई, और यह हर साल 12-15% की दर से बढ़ रही है। लेकिन साफ़-सफ़ाई और सार्वजनिक शिष्टाचार पर आधारित पालतू नीति केवल गिने-चुने शहरों में ही लागू है। विश्व […] Read more » Cities dogs and our responsibility कुत्ते और हमारी ज़िम्मेदारी
कविता भारत की माटी का सौ सौ बार हम करते अभिनंदन August 16, 2025 / August 16, 2025 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकवतन से प्यार करनेवाले शब्दकार को नमन!वतन से प्यार करनेवाले भारतीय संस्कार को नमन!वतन पर न्योछावर अमर दिलवर दिलदार को नमन!हम रहें ना रहें वतन सलामत रहेवतन पर मरने मिटने वाले विचार को नमन!चंद्रशेखर आजाद को नमन!भगत सिंह को श्रद्धा सुमन!अमर सेनानी सुभाषचंद्र बोस की जोश को नमन!हरिसिंह नलवा,जस्सासिंह की जवांदानी को नमन!असफाक […] Read more » We salute the soil of India a hundred times भारत की माटी का सौ सौ बार हम करते अभिनंदन
लेख परम्परागत संस्कृत अध्ययन की अनिवार्यता ही लौटाएगी देववाणी का पुरातन गौरव August 15, 2025 / August 15, 2025 by सुशील कुमार नवीन | Leave a Comment परम्परागत अध्ययन से ही संस्कृत का लौटेगा गौरव सुशील कुमार ‘नवीन’ चाणक्य नीति का एक प्रसिद्ध श्लोक है जो आज के समय में देववाणी संस्कृत पर सटीक बैठता है। कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम्। लोग तब तक दूसरों की प्रशंसा करते हैं जब तक उनका काम नहीं निकल जाता। एक बार जब उनका काम हो जाता है, तो वे उन लोगों को भूल जाते हैं, जिन्होंने उनकी मदद की थी। यह एक सामान्य स्वभाव है, नदी पार के बाद नौका की कोई पूछ नहीं होती है। संस्कृत के साथ भी कुछ ऐसा ही है। कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें संस्कृत से कुछ न लिया गया हो। संस्कृत को दिया किसी ने भी नहीं। संस्कृत देव भाषा है। संस्कृति का आधार है। वेदों, उपनिषदों, और पुराणों जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों की जननी है। भारतीय संस्कृति, दर्शन और साहित्य का भंडार है। आदि वाक्यों से पिछले एक सप्ताह संस्कृत का खूब गुणगान किया गया। विभिन्न मंत्रियों, क्रिकेटरों ,बॉलीवुड यहां तक प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आदि तक ने संस्कृत की महत्ता को वर्तमान समय के लिए आवश्यक बताते हुए इसे आत्मसात करने का आह्वान किया। पर वास्तव में क्या आज संस्कृत का हमारे जीवन में वह स्थान है जिसकी वो बाकायदा अधिकार है। सवाल है कि कहने भर से क्या संस्कृत अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर लेगी। जवाब होगा, नहीं। जिस भाषा का गौरवमयी स्वर्णिम अतीत रहा हो, आज वह जिस गति से धरातल की ओर बढ़ रही है। वह भाषा विशेषज्ञों के साथ-साथ आमजन के लिए भी कम चिंता का विषय नहीं है। संस्कृत की वर्तमान स्थिति का जिम्मेदार कौन है, इस पर चिंतन समय की जरूरत है। भारत में प्रतिवर्ष श्रावणी पूर्णिमा के पावन अवसर को संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है। इससे पहले के तीन दिन और बाद के तीन दिनों को मिलाकर संस्कृत सप्ताह का नाम दिया गया है। इस बार यह आयोजन 6 अगस्त से 12 अगस्त तक रहा। 9 अगस्त को विश्व संस्कृत दिवस भी मनाया गया। यह दिन संस्कृत भाषा के महत्व को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है, जिसे भारत की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक माना जाता है। श्रावणी पूर्णिमा अर्थात् रक्षाबन्धन ऋषियों के स्मरण तथा पूजा और समर्पण का पर्व माना गया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि ऋषि ही संस्कृत साहित्य के आदि स्रोत हैं इसलिए श्रावणी पूर्णिमा को ऋषि पर्व और संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाना सार्थक भी है। इस अवसर पर हर वर्ष की तरह राज्य तथा जिला स्तरों पर संस्कृत दिवस आयोजित गए। संस्कृत कवि सम्मेलन, लेखक गोष्ठी, भाषण तथा श्लोकोच्चारण प्रतियोगिताओं आदि का भी व्यापक स्तर पर आयोजन हुआ। ध्यान देने योग्य बात यह है कि क्या संस्कृत सप्ताह मात्र संस्कृत संस्थानों और संगठनों का सामान्य कार्यक्रम होकर ही होकर रहना चाहिए? क्या संस्कृत के प्रति हमारी जिम्मेदारी नहीं है ? आज जब बात संस्कार की हो, संस्कृति की हो तो क्या संस्कृत को नजर अंदाज कर सकते हैं। संस्कृत सभी की है और सभी को संस्कृत सीखना या संस्कृत के लिये कार्य करना आवश्यक है। संस्कृत की जो वर्तमान में स्थिति है उसके जिम्मेदार राजनेताओं के साथ-साथ हम सब संस्कृत की रोटी खाने वाले भी हैं। हमने सिर्फ अपने समय के बारे में सोचा है। जैसा है, जो है बस उसी को सिरोधार्य कर संस्कृत सेवा की इतिश्री कर ली। जो संस्कृत विद्वान है उन्हें अपनी विद्वता पर इतराने से फुर्सत नहीं। जो सामान्य है उन्हें इससे आगे बढ़ना नहीं। यही वजह है कि संस्कृत समय के साथ अपने आपको बरकरार नहीं रख पा रही। एक समय था जब संस्कृत की रोजगार प्रतिशतता सौ फीसदी थी। गुरुकुल, संस्कृत महाविद्यालयों में दाखिलों के लिए होड़ बनी रहती थी। आज हालत यह है कि दाखिलों के अभाव में गुरुकुल बंद होते जा रहे हैं। जो शेष है या तो उन्होंने समय के साथ आधुनिकता का समावेश कर लिया है या फिर कर्मकांड ज्योतिष प्रशिक्षण तक अपने आपको सीमित कर लिया है। जब सामान्य संस्कृत की पढ़ाई से ही शिक्षक, व्याख्याता आदि की नौकरी प्राप्त होने की योग्यता प्राप्त हो रही है तो क्यों फिर तपस्वियों जैसे रहकर विशारद, शास्त्री, आचार्य, विद्यावारिधि, विद्यावाचास्पति की उपाधियां प्राप्त कर जीवन के कीमती 10 वर्ष खराब करें। सामान्य व्याकरण से काम चलता हो तो क्यों अष्टाध्यायी, महाभाष्य, कौमुदी त्रय लघु सिद्धांत,मध्य सिद्धांत, वैयाकरण सिद्धांत पढ़कर सोशल मीडिया पर व्यतीत होने वाला समय क्यों गंवाएं। महाकाव्य रामायण, महाभारत, भगवतगीता, मेघदूत, कुमारसंभव, कादंबरी, काव्य शास्त्र, अलंकार शास्त्र, चरक संहिता सरीखे बहुमूल्य ग्रन्थ के हिंदी सार से काम चलता हो तो क्यों संस्कृत के गूढ़ अर्थों के लिए अमरकोश, निरुक्त, अभिधानचिंतामणि, शब्दकल्पद्रुम् ,वाचस्पत्यम्, जैसे ग्रंथों से माथापच्ची की जाए। ऐसी स्थिति में संस्कृत को फिर से गौरवान्वित करना है तो इसके पठन-पाठन, अध्ययन-अध्यापन में परंपरागत शिक्षण, पाठ्यक्रम को फिर से अपनाना होगा। सामान्य पाठ्यक्रम की अपेक्षा रोजगारों के अवसरों में परम्परागत संस्कृत पढ़ने की अनिवार्यता को लागू करना होगा। अन्यथा शास्त्री, आचार्य, विद्यावारिधि, विद्यावाचास्पति जैसी उपाधियां, स्नातक, परास्नातक, पीएचडी, डी.लिट में हो गुम होकर रह जाएंगी। संस्कृत के प्रति रोजगारों में परम्परागत संस्कृत पठन की अनिवार्यता बढ़ेगी तो प्राचीन गुरुकुलीय पद्धति को भी संबल मिलेगा। गुरुकुल लौटेंगे तो प्राचीन संस्कृति, संस्कार बचे रहेंगे, जो आज के समय के लिए बहुत ही आवश्यक है। प्राचीन ग्रन्थ हितोपदेश की यह सूक्ति इस बात को और दृढ़ करेगी यही उम्मीद है – अंगीकृतं सुकृतिनः परिपालयन्ति अर्थ है कि सज्जन व्यक्ति जिस बात को स्वीकार कर लेते हैं, उसका पालन करते हैं, या पुण्यात्मा जिस बात को स्वीकार करते हैं, उसे निभाते हैं। Read more » Only the necessity of studying traditional Sanskrit will restore the ancient glory of Devvani संस्कृत अध्ययन की अनिवार्यता
लेख हवा-पानी की आज़ादी के बिना आज़ादी अधूरी August 15, 2025 / August 15, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग – देश एवं दुनिया के सामने स्वच्छ जल एवं बढ़ते प्रदूषण की समस्या गंभीर से गंभीरतर होती जा रही है। शुद्ध हवा एवं पीने के स्वच्छ जल की निरन्तर घटती मात्रा को लेकर बड़े खतरे खड़े हैं। धरती पर जीवन के लिये जल एवं हवा सबसे जरूरी वस्तु है, जल एवं हवा […] Read more » हवा-पानी की आज़ादी के बिना आज़ादी अधूरी
लेख विधि-कानून सड़क के कुत्तों को डॉग शेल्टर होम में रखने के सुप्रीम आदेश के व्यवहारिक मायने दिलचस्प August 15, 2025 / August 15, 2025 by कमलेश पांडेय | Leave a Comment कमलेश पांडेय माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने गत सोमवार को दिल्ली-एनसीआर के इलाकों से सड़क के कुत्तों को पकड़ने और उन्हें डॉग शेल्टर में रखने का निर्देश दिया है, उसके व्यवहारिक मायने दिलचस्प हैं जबकि कतिपय नेताओं व पशु प्रेमियों ने इस सुप्रीम आदेश की सड़क छाप मुखालफत शुरू कर दी है। देखा जाए तो यह […] Read more » डॉग शेल्टर होम
लेख स्वाधीनता संघर्ष के कुछ महत्वपूर्ण नारे August 15, 2025 / August 23, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment इस लेख में हम ऐसी कुछ पंक्तियों या नारों का उल्लेख करना चाहते हैं जो हमारे स्वातंत्रय समर की रीढ़ बन गये थे, और जिन्होंने अपने अगले-पिछले सभी स्वतंत्रता सैनानियों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व किया था या उन्हें प्रेरित करते हुए मां भारती की सेवा में समर्पित कर दिया था।इन दिव्य और देशभक्त महान विभूतियों […] Read more » Some important slogans of freedom struggle
कविता तू दयानंद का वीर सिपाही …. August 13, 2025 / August 13, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment यदि रगों में तेरे लहू नहींतो जीने का क्या अर्थ हुआ ?यदि देशहित कुछ किया नहींतो जीवन तेरा व्यर्थ हुआ।है मातृभूमि का ऋण तुझ परउसको भी चुकाना है तुझको,यदि आतंकी खेती करता रहातो समझो बेड़ा गर्क हुआ।। तू राम की सेना का सैनिकआजाद हिंद का नायक है,तू दयानंद का वीर सिपाहीभगवा ध्वज का वाहक है।योगीराज […] Read more » तू दयानंद का वीर सिपाही ….
लेख टूटी छतों और दीवारों के बीच कैसे पलेगी शिक्षा की नींव? August 12, 2025 / August 12, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment जर्जर स्कूल, खतरे में भविष्य भारत में लाखों सरकारी विद्यालय जर्जर हालत में हैं। टूटी छतें, दरारों वाली दीवारें, पानी व शौचालय का अभाव—ये बच्चों की सुरक्षा और पढ़ाई दोनों पर खतरा हैं। पिछले नौ वर्षों में 89 हज़ार सरकारी स्कूल बंद हुए, जिससे शिक्षा में अमीर-गरीब की खाई और गहरी हुई। शिक्षा का अधिकार […] Read more » शिक्षा की नींव
लेख स्वतंत्रता का अधूरा आलाप August 12, 2025 / August 12, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment “आज़ादी केवल तिथि नहीं, एक निरंतर संघर्ष है। यह सिर्फ़ झंडा फहराने का अधिकार नहीं, बल्कि हर नागरिक को समान अवसर और सम्मान देने की जिम्मेदारी है। जब तक यह जिम्मेदारी पूरी नहीं होती, हमारी स्वतंत्रता अधूरी है।” — डॉ. प्रियंका सौरभ 15 अगस्त 1947 को हमने विदेशी शासन की बेड़ियों को तोड़ दिया था। […] Read more » Incomplete dialogue of freedom स्वतंत्रता