कविता स्वच्छता अभियान December 19, 2024 / December 19, 2024 by नन्द किशोर पौरुष | Leave a Comment प्रतिदिन उज्वल राखिये, अपने गृह के पासअगर गंदिगी जो रहे, तो व्याधि करेगी वासव्याधि करेगी वास, चित्त में चैन न पाओगेहकीम – डॉक्टर – वैद्यों पर धन खूब लुटाओगेकह पौरुष (मोदी) समझाए, सुनो ओ मूरख बन्देरहोगे सदा बीमार अगर जो रहते हो गंदे देश स्वच्छ बनाने को हो जाओ तैयारस्वच्छ भारत का करें सपना हम […] Read more » स्वच्छता अभियान
कविता वो बात नहीं आ पाती है December 19, 2024 / December 19, 2024 by डॉ राजपाल शर्मा 'राज' | Leave a Comment सुंदर सुमनों की क्यारी मेंफूलों की इस फुलवारी मेंएक मधुर महक मंडराती हैयौवन की याद दिलाती हैयूं लगे की भंवरे बहकेंगेये फूल सदा ही महकेंगे पेड़ों पर पंछी रहते हैंक्या मधुर शब्द ये कहते हैंयहां मधु कामिनी खिलती हैकलियों से शबनम मिलती हैकब कहां कुमुदिनी सोती हैजब निशा चांदनी होती है हर फूल ये बात […] Read more »
कविता मां की प्रतीक्षा December 19, 2024 / December 19, 2024 by डॉ राजपाल शर्मा 'राज' | Leave a Comment एक पेड़ चिड़िया का डेरानव तृण निर्मित नया बसेरादो जीवन थे एक नीड़ मेंसाथ खुशी में साथ पीड़ मेंउषा रश्मियों में जो गातेजीवन कलरव आनन्द पातेहुई कनक की कनक सी बालीपुष्प पिरोए इक इक डाली ऋतुराज में तन मन महकेऔर नीड़ में चुजे चहकेछोटे, नाजुक, मणी रत्न सेचिड़िया पाले बड़े यत्न सेलाख बार आती और […] Read more » मां की प्रतीक्षा
लेख भारतीय स्कूली शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता। December 18, 2024 / December 18, 2024 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment विभिन्न शैक्षिक सुधारों और नीतियों के बावजूद, भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली को बहुआयामी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली में महत्त्वपूर्ण बदलाव हुए हैं, जो लंबे समय तक चलने वाले शैक्षणिक पथ और सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक कौशल के बीच की खाई के कारण चुनौतियों का सामना कर […] Read more » The need for radical change in the Indian school education system. भारतीय स्कूली शिक्षा प्रणाली
लेख समर्थ लोग निर्बल लोगों को स्नेह-सहयोग दें December 18, 2024 / December 18, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment अन्तर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस- 20 दिसम्बर 2024 पर विशेष -ः ललित गर्ग:- लोगों के बीच एकजुटता के महत्व को बताने, गरीबी पर अंकुश लगाने, दुनिया भर में गरीबी उन्मूलन के लिए नए रास्तों की तलाश करने, विकासशील देशों में मानव और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने, शांति एवं सौहार्दपूर्ण जीवन को संभव बनाने, सरकारों को अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर अपनी […] Read more » अन्तर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस
खान-पान लेख समाज कुपोषण आज भी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है December 18, 2024 / December 18, 2024 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सुनील कुमार महला आधुनिक युग में हमारी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन आए हैं और आज हमारी खान-पान की आदतों में बहुत बदलाव हो चुके हैं। खान-पान भी समय पर नहीं किया जा रहा है, आधुनिक शहरी, भागम-भाग भरी जीवनशैली के साथ देर रात को खाना आज जैसे फैशन हो चुका है। दिन में भी न ब्रेकफास्ट का कोई समय है और न ही लंच का। आजकल तो ब्रेकफास्ट और लंच दोनों के स्थान पर ब्रंच का कंसेप्ट भी भारतीय संस्कृति में जन्म ले चुका है। आज मनुष्य अपने शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरी का सेवन करता है और उस अनुरूप शारीरिक व्यायाम,कसरत, मेहनत आज आदमी नहीं करता। कहना ग़लत नहीं होगा कि अत्यधिक प्रसंस्कृत(डिब्बा बंद) भोजन, उच्च चीनी वाले खाद्य पदार्थ और पेय, तथा उच्च मात्रा में संतृप्त वसा वाले खाद्य पदार्थ आज मनुष्य में अधिक वजन का कारण बन रहें हैं। आनुवंशिकी मोटापे का एक मजबूत घटक है. चीनी-मीठे, उच्च वसा वाले इंजीनियर्ड जंक फूड्स, फास्ट फूड, हमारी भोजन की असमय करने की आदतें, वेस्टर्न कल्चर(पाश्चात्य संस्कृति) के बहुत से आहार, तथा बहुत बार विभिन्न पर्यावरणीय कारक भी मोटापा लाते हैं। वास्तव में मोटापा (ओबैसिटी) वो स्थिति होती है. जब अत्यधिक शारीरिक वसा शरीर पर इस सीमा तक एकत्रित हो जाती है कि वो स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है। यहां तक कि यह आयु संभावना को भी घटा सकता है, मनुष्य की बीएमआई(शरीर द्रव्यमान सूचक) को प्रभावित कर सकता है। सच तो यह है कि मोटापा बहुत से रोगों से जुड़ा हुआ है, जैसे हृदय रोग(हार्टअटैक) , मधुमेह(डायबिटीज), निद्रा कालीन श्वास समस्या, कई प्रकार के कैंसर आदि आदि। सच तो यह है कि आज मोटापा दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। यह बहुत ही चिंतनीय है कि आज दुनिया में हर आठवां व्यक्ति मोटापे का शिकार है। क्या यह बहुत चिंताजनक नहीं है कि तीन दशकों में मोटापे (ओबैसिटी) की समस्या में चार गुना से भी अधिक इजाफा हुआ है। आज बड़े बुजुर्गों से लेकर महिलाओं, बच्चों को शामिल करते हुए सभी उम्र के लोगों में मोटापे की समस्या बढ़ रही है। आज शहरों में वज़न कंट्रोल करने के लिए अनेक जिम खुले हैं लेकिन हमारी जीवनशैली ऐसी हो चुकी है कि मोटापा कम होने का नाम तक नहीं ले रहा है। हम अपनी संस्कृति को छोड़कर वेस्टर्न कल्चर को आज अपना रहे हैं और आज हमारी भोजन पद्धति में जो बदलाव आए हैं, वे मोटापे के प्रमुख कारण हैं। आज क्रोनिक बीमारियों का कारण कुछ और नहीं बल्कि शरीर का मोटापा ही तो है। मोटापे के संदर्भ में द लैंसेट जर्नल का अध्ययन चौंकाने वाला है। जानकारी देना चाहूंगा कि द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित विश्लेषण के अनुसार, दुनिया भर में मोटापे से ग्रस्त बच्चों, किशोरों और वयस्कों की कुल संख्या एक बिलियन (एक अरब) से अधिक हो गई है। शोधकर्ताओं ने यह बात कही है कि, साल 1990 के बाद से कम वजन वाले लोगों की घटती व्यापकता के साथ अधिकांश देशों में मोटापा के शिकार लोगों की संख्या काफी बढ़ी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अन्य सहयोगियों के साथ इस वैश्विक डेटा के विश्लेषण में अनुमान लगाया है कि दुनिया भर के बच्चों-किशोरों में साल 1990 की तुलना में 2023 में, यानी तीन दशकों में मोटापे की दर चार गुना बढ़ गई है। सबसे बड़ी बात तो यह है यह चलन लगभग सभी देशों में देखा गया है। वयस्क आबादी में, महिलाओं में मोटापे की दर दोगुनी और पुरुषों में लगभग तीन गुना से अधिक हो गई। अध्ययन के अनुसार साल 2022 में 159 मिलियन (15.9 करोड़) बच्चे-किशोर और 879 मिलियन (87.9 करोड़) वयस्क मोटापे के शिकार पाए गए हैं। अध्ययन में यह पाया गया कि पिछले तीन दशकों में वयस्कों में मोटापा दोगुना से अधिक हो गया है। वहीं 5 से 19 साल के बच्चों और किशोरों में यह समस्या चार गुना बढ़ गई है। इतना ही नहीं, अध्ययन में यह भी सामने आया कि 2022-23 में 43 फीसद वयस्क अधिक वजन वाले थे। इस अध्ययन के अनुसार 1990 से 2022 तक विश्व में सामान्य से कम वजन वाले बच्चों और किशोरों की संख्या में कमी आई है। इतना ही नहीं, यह स्टडी बताती है कि दुनिया भर में समान अवधि में सामान्य से कम वजन से जूझ रहे वयस्कों का अनुपात आधे से भी कम हो गया है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि यह अध्ययन कुपोषण के विभिन्न रूपों संबंधी वैश्विक रूझानों की विस्तृत तस्वीर प्रस्तुत करता है। यहां यह भी कहना ग़लत नहीं होगा कि आज दुनिया के ग़रीब इलाकों, हिस्सों में करोड़ों लोग आज भी कुपोषण से पीड़ित हैं। बहरहाल, पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि रिसर्चर ने इस अध्ययन के लिए 190 से अधिक देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच वर्ष या उससे अधिक उम्र के 22 करोड़ से अधिक लोगों के वजन और लंबाई(बीएमआई) का विश्लेषण किया, जिसमें सामने आया है कि सामान्य से कम वजन वाली लड़कियों का अनुपात वर्ष 1990 में 10.3 फीसद से गिरकर 2023 में 8.2 फीसद हो गया और लड़कों का अनुपात 16.7 फीसद से गिरकर 10.8 फीसद हो गया है।अध्ययन में यह भी पाया गया कि कुपोषण की दर भी कई जगहों पर विशेषकर दक्षिण- पूर्व एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है। Read more » malnutrition Malnutrition is still a public health challenge
पर्यावरण लेख अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में भारत गढ़ रहा नये प्रतिमान December 17, 2024 / December 17, 2024 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सुनील कुमार महला आत्मनिर्भर भारत अभियान या आत्मनिर्भर भारत अभियान आज नए भारत का नया विजन है। 12 मई 2020 को, भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र से आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत करने का आह्वान किया था और आज भारत विभिन्न क्षेत्रों में स्वयं को स्थापित करने की दिशा में लगातार […] Read more » India is creating new paradigms in the renewable energy sector. अक्षय ऊर्जा
आर्थिकी लेख सार्थक पहल भारत में दान करने की प्रथा से गरीब वर्ग का होता है कल्याण December 17, 2024 / December 17, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के संस्कारों में दान दक्षिणा की प्रथा का अलग ही महत्व है। भारत में विभिन्न त्यौहारों एवं महापुरुषों के जन्म दिवस पर मठों मंदिरों, गुरुद्वारों एवं अन्य पूजा स्थलों पर समाज के सम्पन्न नागरिकों द्वारा दान करने की प्रथा अति प्राचीन एवं सामान्य प्रक्रिया है। गरीब वर्ग की मदद करना ईश्वर की सबसे बड़ी सेवा माना जाता है। समाज में आपस में मिल बांटकर खाने पीने की प्रथा भी भारत में ही पाई जाती है और यह प्रथा भारतीय समाज में बहुत आम है। परिवार में आई किसी भी खुशी की घटना को समाज में विभिन्न वर्गों के बीच आपस में बांटने की प्रथा भी भारत में ही पाई जाती है। इस उपलक्ष में कई बार तो बहुत बड़े स्तर पर सामाजिक एवं धार्मिक आयोजन भी किए जाते हैं। जैसे जन्म दिवस मनाना, परिवार में शादी के समारोह के पश्चात समाज में नाते रिश्तेदारों, दोस्तों एवं मिलने वालों को विशेष आयोजनों में आमंत्रित करना, आदि बहुत ही सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत के विभिन्न मठों, मंदिरों, गुरुद्वारों एवं अन्य पूजा स्थलों पर प्रतिदिन 10 करोड़ से अधिक नागरिकों को प्रसादी के रूप में भोजन वितरित किया जाता है। साथ ही, पूरी दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है, जिसमें निवासरत नागरिक, चाहे वह कितना भी गरीब से गरीब क्यों न हो, अपनी कमाई में से कुछ राशि का दान तो जरूर करता है। भारतीय शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि हिंदू सनातन संस्कृति के अनुरूप, महर्षि दधीच ने तो, देवताओं को असुरों पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से, अपने शरीर को ही दान में दे दिया था, जिसे इतिहास में उच्चत्तम बलिदान की संज्ञा भी दी जाती है। आज के युग में जब अर्थ को अत्यधिक महत्व प्रदान किया जा रहा है, तब अधिक से अधिक धनराशि का दान करना ही शुभ कार्य माना जा रहा है। इस दृष्टि से वैश्विक स्तर पर नजर डालने पर ध्यान में आता है कि दुनिया में सबसे बड़े दानदाता के रूप में आज भारत के टाटा उद्योग समूह के श्री रतन टाटा का नाम सबसे ऊपर उभर कर सामने आता है। इस सूची में टाटा समूह के संस्थापक श्री जमशेदजी टाटा का नाम भी बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है, जिन्होंने अपने जीवन में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में 8.29 लाख करोड़ रुपए की राशि का महादान किया था। इसी प्रकार, श्री रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ने वर्ष 2021 तक 8.59 लाख करोड़ रुपए की राशि का महादान किया था। आप अपनी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा गरीब वर्ग की सहायतार्थ दान में दे देते थे। श्री रतन टाटा केवल भारत स्थित संस्थानों को ही दान नहीं देते थे बल्कि वैश्विक स्तर पर समाज की भलाई के लिए कार्य कर रहे संस्थानों को भी दान की राशि उपलब्ध कराते थे। आपने वर्ष 2008 के महामंदी के दौरान अमेरिका स्थित कार्नेल विश्वविद्यालय को 5 करोड़ अमेरिकी डॉलर का दान प्रदान किया था। श्री रतन टाटा ने आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे छात्रों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जे. एन. टाटा एंडाउमेंट, सर रतन टाटा स्कॉलर्शिप एवं टाटा स्कॉलर्शिप की स्थापना कर दी थी। श्री रतन टाटा चूंकि अपनी कमाई का बहुत बड़ा भाग दान में दे देते थे, अतः उनका नाम कभी भी अमीरों की सूची में बहुत ऊपर उठकर नहीं आ पाया। इस सूची में आप सदैव नीचे ही बने रहे। श्री रतन टाटा जी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन काल में इतनी बड़ी राशि का दान किया था कि आज विश्व के 2766 अरबपतियों के पास इतनी सम्पत्ति भी नहीं है। यूं तो टाटा समूह ने भारत राष्ट्र के निर्माण में बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, परंतु कोरोना महामारी के खंडकाल में श्री रतन टाटा के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। जिस समय पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा था, उस समय श्री रतन टाटा ने न केवल भारत बल्कि विश्व के कई अन्य देशों को भी आर्थिक सहायता के साथ साथ वेंटिलेटर, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किट, मास्क और दस्ताने आदि सामग्री उपलब्ध कराई। श्री रतन टाटा के निर्देशन में टाटा समूह ने इस खंडकाल में 1000 से अधिक वेंटिलेटर और रेस्पिरेटर, 4 लाख पीपीई किट, 35 लाख मास्क और दास्ताने और 3.50 लाख परीक्षण किट चीन, दक्षिणी कोरिया आदि देशों से भी आयात के भारत में उपलब्ध कराए थे। श्री रतन टाटा के पूर्वज पारसी समुदाय से थे और ईरान से आकर भारत में रच बस गए थे। श्री रतन टाटा ने न केवल भारतीय हिंदू सनातन संस्कृति के संस्कारों को अपने जीवन में उतारा, बल्कि इन संस्कारों का अपने पूरे जीवनकाल में अक्षरश: अनुपालन भी किया। इन्हीं संस्कारों के चलते श्री रतन टाटा को आज पूरे विश्व में सबसे बड़े दानदाता के रूप में जाना जा रहा है। टाटा समूह का वर्णन तो यहां केवल उदाहरण के रूप में किया जा रहा है। अन्यथा, भारत में ऐसे कई औद्योगिक घराने हैं जिन्होंने अपनी पूरी संपत्ति को ही ट्रस्ट के माध्यम से समाज के उत्थान एवं समाज की भलाई के लिए दान में दे दिया है। प्राचीन भारत में यह कार्य राजा महाराजाओं द्वारा किया जाता रहा हैं। हिंदू सनातन संस्कृति के विभिन्न शास्त्रों में यह वर्णन मिलता है कि ईश्वर ने जिसको सम्पन्न बनाया है, उसे समाज में गरीब वर्ग की भलाई के लिए कार्य करना चाहिए। यह सहायता गरीब वर्ग को सीधे ही उपलब्ध कराई जा सकती है अथवा ट्रस्ट की स्थापना कर भी गरीब वर्ग की मदद की जा सकती है। वर्तमान में तो निगमित सामाजिक दायित्व (सी एस आर – कोरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी) के सम्बंध में कानून की बना दिया गया है। जिन कम्पनियों की सम्पत्ति 500 करोड़ रुपए से अधिक है अथवा जिन कम्पनियों का वार्षिक व्यापार 1000 करोड़ रुपए से अधिक है अथवा जिन कम्पनियों का वार्षिक शुद्ध लाभ 5 करोड़ से अधिक है, उन्हें इस कानून के अंतर्गत अपने वार्षिक शुद्ध लाभ के दो प्रतिशत की राशि का उपयोग समाज की भलाई के लिए चलाई जा रही परियोजनाओं पर खर्च करना आवश्यक होता है। इन विभिन्न मदों पर खर्च की जाने वाली राशि का प्रतिवर्ष अंकेक्षण भी कराना होता है, ताकि यह जानकारी प्राप्त की जा सके राशि का सदुपयोग समाज की भलाई के लिए किया गया है एवं इस राशि का किसी भी प्रकार से दुरुपयोग नहीं हुआ है। भारत में गरीब वर्ग/परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने में समाज में सम्पन्न वर्ग द्वारा किए जाने वाले दान आदि की राशि से भी बहुत मदद मिलती है। निगमित सामाजिक दायित्व (सी एस आर) योजना के अंतर्गत चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का सीधा लाभ भी समाज के गरीब वर्ग को ही मिलता है। अतः विश्व में शायद भारत ही एक ऐसा देश है जहां सरकार एवं समाज मिलकर गरीब वर्ग की भलाई हेतु कार्य करते हुए दिखाई देते हैं। इसीलिए ही अब यह कहा जा रहा है कि हिंदू सनातन संस्कृति का विस्तार यदि वैश्विक स्तर पर होता है तो, इससे पूरे विश्व का ही कल्याण हो सकता है एवं बहुत सम्भव है कि वैश्विक स्तर पर गरीबी का नाश होकर चहुं ओर खुशहाली फैलती दिखाई दे। प्रहलाद सबनानी Read more » The practice of donating in India brings welfare to the poor class. गरीब वर्ग का कल्याण
लेख पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति की ओर बढ़ते कदम, रिश्तों में ला रहे बदलाव । December 16, 2024 / December 16, 2024 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सुनील कुमार महला हाल ही में बेंगलुरु के ए.आई. इंजीनियर द्वारा की गई आत्महत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह विडंबना ही है कि आज हम पदार्थवादी होकर पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति का अनुशरण कर रहे हैं और आज हमारे समाज में लगातार सांस्कृतिक बदलाव आ रहे हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि […] Read more » ए.आई. इंजीनियर द्वारा की गई आत्महत्या
लेख विधि-कानून समाज कानून और पत्नी से पीड़ित की आत्महत्या पर उठते सवाल December 13, 2024 / December 13, 2024 by राजेश कुमार पासी | Leave a Comment राजेश कुमार पासी बेंगलुरू में कार्यरत एक एआई इंजीनियर अतुल सुभाष ने अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया की कानूनी प्रताड़ना से तंग आकर मौत को गले लगा लिया । उसने अपनी मौत से पहले एक डेढ़ घंटे का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया में जारी कर दिया । इसके अलावा उसने एक 24 पेज का सुसाइड नोट भी लिख कर छोड़ा है । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह व्यक्ति कितनी यातना और भावनात्मक पीड़ा से गुजरा होगा । आत्महत्या का मनोविज्ञान कहता है कि आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की मनोदशा के सिर्फ कुछ मिनट ऐसे होते हैं जब वो मरने का फैसला करता है । अगर उन क्षणों में उसे समझा दिया जाये तो उसका फैसला बदल जाता है लेकिन यह व्यक्ति डेढ़ घंटे का वीडियो बनाता है और 24 पेज का सुसाइड नोट लिखता है । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो न्यायिक व्यवस्था से कितना निराश और हताश हो चुका था । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसकी पत्नी से उसे कितना तंग किया होगा जो उसने मजबूरी ने सोच समझ कर ऐसा कदम उठाया । सोशल मीडिया में उसका वीडियो वायरल होने के बाद लोगों ने वैवाहिक व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करने शुरू कर दिये हैं । यह विमर्श चलाने की कोशिश की जाने लगी है कि महिलाओं द्वारा पुरूषों को जबरन फंसाया जा रहा है और उनके पैसे से महिलाएं ऐश कर रही हैं । इसे एक बिजनेस मॉडल का नाम दिया जाने लगा है । यह कहा जा रहा है कि पुरूषों की कोई सुनने वाला नहीं है इसलिए पुरूषों की आत्महत्या दर महिलाओं के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा है । मृतक अतुल सुभाष ने वीडियो में कहा है कि अगर मुझे न्याय नहीं मिलता है तो मेरी अस्थियों को गटर में बहा देना । मुझे न्याय मिलता है तो ही मेरी अस्थियों का विसर्जन गंगा में किया जाए । इसके अलावा उसने यह भी कहा है कि भारत में पुरुषों की जिन्दगी गटर बन चुकी है । उसके इस बयान को सोशल मीडिया में जबरदस्त तरीके से प्रचारित किया गया है । बेंगलुरू में कार्यरत इस इंजीनियर की शादी जौनपुर निवासी निकिता सिंघानिया से 2019 में हुई थी । 2021 में एक बच्चे के साथ उसकी पत्नी ने उसे छोड़ दिया और अलग रहने लगी । अलग रहते हुए पत्नी ने उससे 40 हजार प्रति माह मेंटेनेंस की मांग की थी. इसके अलावा वो अपने बच्चे के लिए भी 2-4 लाख रुपये प्रतिमाह की डिमांड कर रही थी । मृतक ने आरोप लगाया है कि उसकी पत्नी ने जौनपुर से उस पर मुकदमा दायर किया था । उसने पहले उससे मामला खत्म करने के लिए एक करोड़ रुपये की मांग की और फिर बाद में तीन करोड़ रुपये मांगने लगी । इसके अलावा मामले की सुनवाई कर रही जज भी उससे मामला खत्म करने के लिए पांच लाख रुपये की मांग कर रही थी । उसे बार-बार पेशी पर बुलाया जा रहा था जिसके लिए उसे बार-बार बेंगलुरू से जौनपुर आना-जाना पड़ता था । अतुल सुभाष ने अपने पत्र में लिखा है कि एक बार उन्होंने अपनी पत्नी और सास से कहा था कि ऐसे मामलों से तंग आकर पुरूष आत्महत्या कर लेते हैं तो उन्होंने उसे कहा था कि वो कब मरने जा रहा है । सुभाष ने कहा कि वो मर गया था वो क्या करेंगी तो उन्होंने कहा कि उसके मरने के बाद उसका सारा पैसा उनको मिल जायेगा । इसके बाद सुभाष ने पूरी योजना बनाकर आत्महत्या की है । उसने यह सोचकर आत्महत्या की है कि उसके मरने के बाद उसके साथ न्याय होगा । अभी कानून उसकी बिल्कुल नहीं सुन रहा है लेकिन मरने के बाद उसकी बात सुनी जायेगी । देखा जाये तो मृतक कानून से बिल्कुल निराश हो चुका था लेकिन उसे उम्मीद थी कि उसकी मौत से कानून सुनवाई के लिए मजबूर होगा । यही सोचकर उसने अपना वीडियो और पत्र सोशल मीडिया में जारी किया है । सुभाष की आत्महत्या ने आईपीसी की धारा 498ए को हथियार बनाकर पुरूषों को प्रताड़ित करने की बात साबित कर दी है । 10 दिसम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा ही मामला खारिज कर दिया है और कहा है कि धारा 498ए पत्नी और उसके परिजनों के लिए बदला लेने का हथियार बन गई है । अब सोशल मीडिया में यह धारा खत्म करने की मांग की जा रही है । यह सच है कि भारत में पुरूषों की आत्महत्या दर महिलाओं के मुकाबले लगभग ढाई गुना है । एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2022 में 1,22,724 पुरुषों ने आत्महत्या की है जबकि आत्महत्या करने वाली महिलाओं की संख्या 48,172 है । इस तरह पुरूषों की आत्महत्या दर 72 प्रतिशत है जबकि महिलाओं की आत्महत्या दर 28 प्रतिशत है । दूसरी तरफ आत्महत्या करने वाले पुरुषों में विवाहित और अविवाहित पुरूषों की बात करें तो इनका औसत लगभग बराबर है । इसके अलावा पारिवारिक समस्याओं से तंग आकर मरने वाले पुरुषों का औसत 31.7 प्रतिशत है । वैवाहिक समस्याओं से पीड़ित आत्महत्या करने वाले पुरूषों का औसत 4.8 है । इस तरह देखा जाये तो वैवाहिक संबंधों के कारण सिर्फ 4.8 प्रतिशत पुरुषों ने आत्महत्या की है जबकि परिवार से तंग आकर मरने वाले पुरुष 31.7 प्रतिशत हैं । इसलिए पुरुषों में बढ़ती आत्महत्या कर दर के लिए न तो विवाह को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और न ही पत्नियों के उत्पीड़न को दोष दिया जा सकता है । मेरा मानना है कि इस घटना की आड़ में वैवाहिक संस्था को बदनाम करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए । इस सच को हम सभी जानते हैं कि कानूनों को महिलाओं के पक्ष में बनाया गया है क्योंकि सदियों से महिलाओं का उत्पीड़न होता आ रहा है । यह सच है कि धारा 498 ए का दुरुपयोग होता है लेकिन कानून के दुरुपयोग को देखते हुए उसे खत्म करने की मांग करना उचित नहीं है । जहां इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है तो दूसरी तरफ इस कानून के होते हुए भी महिलाओं का उत्पीड़न बंद नहीं हुआ है । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब तक यह कानून नहीं था जब तक दहेज के कारण महिलाओं का उत्पीड़न बहुत ज्यादा हो रहा था और कानून बनने के बाद भी यह पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है । इस मामले में महिला जज ने पीड़ित की बात नहीं सुनी लेकिन यह पूरा सच नहीं है । वास्तव में आज पुलिस और अदालत इस कानून के दुरुपयोग से परिचित हैं इसलिए मामला सामने आने पर पुरुष की बात भी सुनते हैं । इस कानून को लेकर अदालतों द्वारा कई बार सवाल खड़े किये गये हैं । मेरा मानना है कि इस कानून में सुधार की बहुत जरूरत है । इस कानून को खत्म नहीं किया जाना चाहिए लेकिन पुरूषों के खिलाफ कार्यवाही सिर्फ महिला की शिकायत के आधार पर नहीं होनी चाहिए । आरोपी को जमानत मिलनी चाहिए और जांच के बाद ही किसी के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए । कानून के दुरुपयोग को रोकने की कोशिश जरूर होनी चाहिए लेकिन महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने की कोशिश किसी भी तरह से कम नहीं होनी चाहिए । सरकार को कानून में संशोधन करके यह सुनिश्चित करना होगा कि इस कानून को पति से बदला लेने का हथियार न बनने दिया जाए जैसा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा है। राजेश कुमार पासी Read more » Questions arising on law and wife's suicide
लेख समाज साक्षात्कार सार्थक पहल रोज़गार के कम अवसरों से भी एकल परिवारों को मिल रही है गति ! December 13, 2024 / December 13, 2024 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सुनील कुमार महला किसी भी व्यक्ति के विकास के लिए परिवार व समाज की भूमिका महत्वपूर्ण है। व्यक्ति समाज में रहता है और आज भारत में दो प्रकार के परिवार हैं -संयुक्त परिवार और एकल परिवार। आंकड़ों की बात करें तो 2021 के डेटा के अनुसार भारत में 30.24 करोड़ परिवार निवास करते हैं। इसके अनुसार भारत में 58.2 फीसदी एकल परिवार हैं तथा 41.8 फीसदी परिवार संयुक्त परिवार हैं। मतलब यह है इस डेटा के अनुसार भारत में संयुक्त परिवारों की संख्या एकल परिवारों की तुलना में कहीं कम है।आज भारतीय समाज में आज एकल परिवार(न्यूक्लियर फैमिली) का कंसेप्ट लगातार बढ़ता चला जा रहा है और संयुक्त परिवारों(जॉइंट फैमिलीज)की संख्या में कमी देखने को मिल रही है। कारण बहुत से हैं।आज पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति, बढ़ते शहरीकरण, बढ़ती जनसंख्या के गहरे प्रभाव के कारण आज भारतीय समाज का परिवेश, वातावरण लगातार बदल रहा है। सबसे पहला कारण तो बढ़ती जनसंख्या ही है क्योंकि जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती है, वैसे-वैसे ही रोजगार के अवसरों में कमी होती चली जाती है और एकल परिवार का कंसेप्ट जन्म लेने लगता है। जब जनसंख्या में वृद्धि होती है तो लोगों को काम के संदर्भ में अपने घर से दूर दूसरे स्थानों , दूसरे राज्यों में यहां तक कि दूसरे देशों में जाकर काम करने के लिए विवश होना पड़ता है और इसका असर यह होता है कि समाज में एकल परिवार बढ़ने लगते हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है, आज भी यह देश कृषि प्रधान ही है। पहले के जमाने में मतलब कि आज से तीस-पैंतीस या चालीस बरस पहले लोगों की जीविका का मुख्य साधन कृषि और पशुपालन हुआ करता था। मतलब यह है कि पहले के जमाने में कृषि और पशुपालन पर निर्भरता ज्यादा थी, इसलिए लोग संयुक्त परिवार में रहना पसंद करते थे। आज कृषि और पशुपालन के अतिरिक्त लोगों की आजीविका के अनेक साधन उपलब्ध हैं, इसलिए लोग आज गांवों से शहरों की ओर पलायन करने लगे हैं और एकल परिवार का कंसेप्ट समाज में बढ़ने लगा है। पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के प्रभाव के कारण आज बुजुर्गों का परिवार में वह सम्मान नहीं रहा है जो बरसों पहले हुआ करता था। पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के प्रभाव के कारण आज हमारे समाज में नैतिक मूल्यों, संस्कारों, संस्कृति में निरंतर गिरावट आई है। बुजुर्गों की टोका-टाकी आज के युवा सहन नहीं कर पाते। आज की युवा पीढ़ी में सहनशक्ति का अभाव हो गया है और सहनशक्ति के अभाव के कारण भी कहीं न कहीं संयुक्त परिवार आज टूटकर एकल परिवार का रूप धारण कर रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी पर स्वार्थ, लालच, अहम् की भावना,अहंकार, क्रोध हावी हो रहा है जो संयुक्त परिवारों को लगातार तोड़ रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि संयुक्त परिवार को जोड़ कर रखने के लिए सेवा, त्याग, धैर्य, अनुशासन, सहनशीलता, प्यार, सम्मान, समझदारी, न्यायपूर्ण व्यवहार आदि की आवश्यकता होती है। समर्पण और त्याग की भावना बहुत ही जरूरी है। बिना समर्पण और त्याग की भावना के परिवार को जोड़ कर नहीं रखा जा सकता है। आपसी विश्वास, सहनशक्ति भी परिवार को जोड़ कर रखने के लिए एक आवश्यक शर्त है। बड़े बुजुर्ग यदि किसी बात पर दो बातें युवा पीढ़ी को कह भी दें तो युवा पीढ़ी को यह चाहिए कि वह अपने बुजुर्गों की बात को मान लें. बुजुर्गों का कहना मान लेने से युवा पीढ़ी का कुछ बिगड़ नहीं जाएगा क्योंकि कोई भी बुजुर्ग/परिवार का मुखिया कभी भी अपने बच्चों के बारे में, अपने परिवार के बारे में कभी भी बुरा नहीं सोच सकता है। युवा पीढ़ी को यह बात याद रखनी चाहिए कि बच्चे चाहे जितने बड़े हो जाएं, बड़ों के सामने वे हमेशा बच्चे ही होते हैं। संयुक्त परिवार के अपने फायदे हैं। मसलन, एक संयुक्त परिवार में बच्चों को सर्वाधिक सुरक्षित और उचित शारीरिक एवं चारित्रिक विकास के अवसर प्राप्त होते हैं। परिवार के मुखिया या सदस्यों द्वारा बच्चों की इच्छाओं और आवश्यकताओं का अधिक ध्यान रखा जा सकता है। उसे परिवार के अन्य बच्चों के साथ खेलने, घुलने-मिलने के अवसर प्राप्त होते हैं। संयुक्त परिवार में माता-पिता के साथ-साथ ही अन्य परिवारजनों (परिजनों) विशेष तौर पर दादा-दादी, चाचा-चाची का प्यार भी मिलता है। आज की युवा पीढ़ी को यह लगता है कि लगता है कि जॉइंट फैमिली में उन्हें कई तरह की रोक-टोक का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी आजादी छिन जाती है। लेकिन यह विडंबना ही है कि हमारी युवा पीढ़ी यह भूल जाती है कि जॉइंट फैमिली में रहना अकेले रहने से कहीं ज्यादा सिक्योर होता है। एक व्यक्ति संयुक्त परिवार में जितना खुश रह सकता है, उतना शायद एकल परिवार में नहीं। एकल परिवार में व्यक्ति को अक्सर तनाव और अवसाद का सामना करना पड़ता है क्योंकि किसी परेशानी और मुसीबत के समय उनके पास सहायता करने वाला, उनका दुःख, परेशानी, तकलीफ़ सुनने वाला, दुःख को बांटने वाला कोई नहीं होता है। संयुक्त परिवार में रहने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसी भी परेशानी या मुसीबत, दुःख और तकलीफ़ का सामना हमें अकेले नहीं करना पड़ता है। हमारे साथ हर कठिन व नाजुक परिस्थितियों में हमारे घर -परिवार के लोग हमेशा हमारी सपोर्ट के लिए हमारे साथ होते हैं। घर में अनेक लोग हमारे मार्गदर्शक होते हैं, जो हमें कठिनाइयों से आसानी से बाहर निकाल ले जाते हैं। संयुक्त परिवार में हमें फाइनेंशियल सपोर्ट भी अच्छी मिलती है क्योंकि वहां कमाने वाले अधिक होते हैं। संयुक्त परिवार में बच्चों को दादा-दादी, चाचा-चाची और अन्य सदस्यों के कारण अच्छी परवरिश मिलती है और बच्चे एकल परिवार की तुलना में कहीं अधिक संस्कारी बनते हैं, कारण यह है कि संयुक्त परिवार में बच्चों को सही-गलत,अच्छे-बुरे, नैतिक-अनैतिक, सकारात्मक-नकारात्मक की पहचान कराने के लिए कोई न कोई सदस्य अवश्य ही मौजूद होते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि संयुक्त परिवार अंतर-पीढ़ीगत अंतःक्रियाओं के माध्यम से सांस्कृतिक परंपराओं और मूल्यों को संरक्षित करने के लिए उत्कृष्ट हैं। उत्कृष्ट इसलिए क्यों कि बुजुर्ग लोग हमारे देश के विभिन्न सांस्कृतिक रीति-रिवाजों, प्रेरक नैतिक कहानियों और मूल्यों और संस्कृति -संस्कारों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाते हैं। ज्ञान का यह हस्तांतरण सांस्कृतिक विरासत की निरंतरता सुनिश्चित करता है। संयुक्त परिवार में बच्चों को अकेलापन महसूस नहीं होता है और परिवार का कोई भी सदस्य बेखौफ कहीं भी इधर उधर जा सकता है। संयुक्त परिवार में भावनात्मक समर्थन और साहचर्य बच्चों को मिलता है जो एकल परिवार में उस रूप में नहीं मिल पाता है। संयुक्त परिवार में जिम्मेदारियां (घरेलू काम-काज, बच्चों की देखभाल और वित्तीय-प्रबंधन) साझा होने के कारण परिवार के समक्ष जल्दी से कोई परेशानियां नहीं आ पातीं हैं। संयुक्त परिवार से बच्चों में सामाजिकता का भरपूर विकास होता है और संबंध घनिष्ठ और मजबूत बनते हैं।संयुक्त परिवारों में अक्सर बच्चों की देखभाल और शिक्षा के लिए एक अंतर्निहित व्यवस्था होती है, जिसमें दादा-दादी और परिवार के अन्य सदस्य बच्चे के पालन-पोषण में योगदान देते हैं। संयुक्त परिवार का एक फायदा यह भी है कि इसमें विभिन्न संसाधनों को आपस में साझा किया जा सकता है। सोशल नेटवर्क का भी निर्माण होता है। हालांकि कुछ लोग संयुक्त परिवार के नुकसान भी मानते हैं जैसे कि ऐसे परिवार अनेक बार भावनात्मक और वित्तीय सहायता के लिए परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भरता की भावना को बढ़ावा देते हैं। संयुक्त परिवार से जनरेशन गैप को बढ़ावा मिलता है क्योंकि युवा सदस्यों के विचार बुजुर्गों के विचारों(पारंपरिक मान्यताओं और मूल्यों) से मेल नहीं खाते हैं। संयुक्त परिवार में निर्णय लेने की स्वतंत्रता सीमित होती है क्योंकि परिवार का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति ही ऐसे परिवारों में निर्णय लेता है। पारिवारिक सदस्यों की अधिक निकटता के कारण पारिवारिक सदस्यों में अनेक बार संघर्ष और मतभेद की स्थितियां पैदा हो सकतीं हैं। संयुक्त परिवार में गोपनीयता का भी अभाव होता है और इससे तनाव पैदा हो सकता है।कभी-कभी, परिवार के कुछ सदस्यों को पक्षपात या असमान व्यवहार का सामना करना पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप असंतोष और विभाजन पैदा होता है। संचार संबंधी चुनौतियां भी संयुक्त परिवार में देखने को मिल सकतीं हैं। सुनील कुमार महला Read more » एकल परिवार
लेख स्वास्थ्य-योग असंतुलित जीवनशैली दे रही स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारियों को जन्म ! December 13, 2024 / December 13, 2024 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सुनील कुमार महला आज मनुष्य की जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन आए हैं। विज्ञान और तकनीक के साथ निश्चित रूप से आज स्वास्थ्य सेवाओं में प्रगति हुई है, जन्म-दर बढ़ी है और मृत्यु दर घटी है। मनुष्य की औसत आयु में भी निश्चित रूप से बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन बावजूद इन सबके भारत में बहुत से […] Read more » Unbalanced lifestyle is giving rise to serious diseases like stroke!