विविधा व्यंग्य औरतों का प्रवेश वर्जित है July 14, 2015 by अशोक गौतम | Leave a Comment यूनान के आर्थिक तौर पर दिवालिया होने की खबर ज्यों ही स्वर्गलोक तक पहुंची तो धन की देवी लक्ष्मी और कुबेर के हाथ पावं फूल गए। उन्हें जंबूद्वीप में चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा ही दिखाई देने लगा। तब उन्होंने स्वर्गलोक में एकदम आपातकालीन बैठक बुलाई । बैठक की अध्यक्षता करते कुबेर ने कहा कि […] Read more » औरतों का प्रवेश वर्जित है
विविधा व्यंग्य व्यंग्य बाण : गाड़ी नंबर ग्यारह July 11, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment पिछले दिनों 21 जून को पूरी दुनिया में ‘योग दिवस’ मनाया गया। इससे बाकी लोगों को कितना लाभ हुआ, ये तो वही जानें; पर हमारे शर्मा जी में एक चमत्कारी परिवर्तन हुआ। उनके पड़ोसी गुप्ता जी ने उन्हें रोज कुछ देर ‘शीर्षासन’ करने की सलाह दी थी। पहले तो शर्मा जी ने सिर नीचे और […] Read more » गाड़ी नंबर ग्यारह
खेल जगत व्यंग्य गरीबी का ‘ नशा ‘ ….!! July 8, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment हास्य – व्यंग्य तारकेश कुमार ओझा अल्टीमेटली आप कह सकते हो कि वह दौर ही गरीब ओरिएटेंड था।गरीबी हटाओ का नारा तो अपनी जगह था ही हर तरफ गरीबी की ही बातें हुआ करती थी। राजनीति हो या कोई दूसरा क्षेत्र । गरीबी के महिमामंडन से कोई जगह अछूता नहीं था। लिटरेचर उठाइए तो उसमें […] Read more »
राजनीति व्यंग्य देश में विदेश !!! July 1, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment हास्य – व्यंग्य —————– तारकेश कुमार ओझा किसी बीमार राजनेता व मशहूर शख्सियत के इलाज के लिए विदेश जाने की खबर सुन कर मुझे बचपन से ही हैरत होती रही है। ऐसी खबरें सुन कर मैं अक्सर सोच में पड़ जाता था कि आखिर जनाब को ऐसी क्या बीमारी है, जिसका इलाज देश में नहीं […] Read more » देश में विदेश
विविधा व्यंग्य सम्मान का गणित June 29, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment शर्मा जी यद्यपि खुद भी वरिष्ठ नागरिक हैं, फिर भी वे बड़े-बुजुर्गों की बात का बहुत सम्मान करते हैं। अवकाश प्राप्ति के बाद सबसे पहले उन्होंने मकान की मरम्मत कराई। इसके बाद कुछ समय आराम किया; पर इस चक्कर में जहां उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा, वहां घरेलू मामलों में बिना बात दखल देने से घर […] Read more » सम्मान का गणित
विविधा व्यंग्य आलेख : एंग्लो इंडियन को विशेष सुविधाएं क्यों ? June 17, 2015 / June 17, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment भारत में एंग्लो इंडियन (आंग्ल भारतीय/आ.भा.) कितने हैं, इसके ठीक आंकड़े उपलब्ध नहीं है। देश में कई स्थानों पर ये रहते हैं; पर इन्हें संविधान द्वारा कई विशेष सुविधाएं दी जाती हैं। भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान अधिकांश अंग्रेज अधिकारी अकेले ही रहते थे। ऐसे में उनके कई भारतीय महिलाओं से वैध/अवैध सम्बन्ध बन […] Read more » Featured एंग्लो इंडियन
व्यंग्य मौसम अपना – अपना …! June 16, 2015 / June 16, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment -तारकेश कुमार ओझा- इस गलतफहमी में आप कतई न पड़ें कि मैं किसी समाजवादी आंदोलन का सिपाही हूं। लेकिन पता नहीं क्यों मुझे अपनी खटारा साइकिल से मोह बचपन से ही है। उम्र गुजर गई लेकिन आज न तो साइकिल से एक पायदान ऊपर उठ कर बाइक तक पहुंचने की अपनी हैसियत बना पाया और […] Read more » Featured मौसम मौसम अपना – अपना व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य बाण : मिलावट के लिए खेद है June 13, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment –विजय कुमार- गरमी में इन्सान तो क्या, पेड़–पौधे और पशु–पक्षियों का भी बुरा हाल हो जाता है। शर्मा जी भी इसके अपवाद नहीं हैं। कल सुबह पार्क में आये, तो हाथ के अखबार को हिलाते हुए जोर–जोर से चिल्ला रहे थे, ‘‘देखो…देखो…। क्या जमाना आ गया है ?’’ इतना कहकर वे जोर–जोर से हांफने लगे। […] Read more » Featured मिलावट मिलावट के लिए खेद है व्यंग्य
व्यंग्य प्रमाणित करता हूं कि मैं आम आदमी हूं…! June 2, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment -तारकेश कुमार ओझा- कहते हैं गंगा कभी अपने पास कुछ नहीं रखती। जो कुछ भी उसे अर्पण किया जाता है वह उसे वापस कर देती है। राजनीति भी शायद एसी ही गंगा हो चुकी है। सत्ता में रहते हुए राजनेता इसमें जो कुछ प्रवाहित करते हैं कालचक्र उसे वह उसी रूप में वापस कर देता […] Read more » Featured आम आदमी प्रमाणित करता हूं कि मैं आम आदमी हूं व्यंग्य
व्यंग्य केले.. ले लो, संतरे.. ले लो! May 30, 2015 / May 30, 2015 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम- वह इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक का मजनू फिर अपनी प्रेमिका के कूचे से आहत हो आते ही मेरे गले लग फूट- फूट कर रोता हुए बोला,‘ दोस्त! मैं इस गली से ऊब गया हूं। इस गली में मेरा अब कोई नहीं। मैं बस अब आत्महत्या करना चाहता हूं। बिना दर्द का कोई […] Read more » केले.. ले लो व्यंग्य संतरे.. ले लो! हास्य. featured
आर्थिकी व्यंग्य पोटली में रुपया May 29, 2015 by अमित राजपूत | Leave a Comment -अमित राजपूत- आज जहां पैसों को पानी की तरह बहाया जा रहा है, उसके पर्दे की वो प्रथा समाप्त हो गयी जिसके रहते लोग पैसों से कभी साध्य की तरह व्यवहार नहीं करते थे, आज भिखारी भी एक का सिक्का स्वाभिमान में वापस कर देता है। आज के समय में जहां किसी दुकान से कुछ […] Read more » Featured पोटली में रुपया महंगाई पर व्यंग्य व्यंग्य
व्यंग्य ढम-ढम बजाएंगे May 28, 2015 / May 28, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment -विजय कुमार- इन दिनों गर्मी काफी पड़ रही है। कल शाम छींटे पड़ने से मौसम कुछ हल्का हुआ, तो मैं शर्मा जी के घर चला गया। वहां वे छुट्टियों में आयी अपनी नाती गुंजन को कहानी सुना रहे थे। एक गांव में मन्नू नामक लड़का रहता था। जब वह पांच साल का हुआ, तो पढ़ने […] Read more » Featured गर्मी गर्मी पर व्यंग्य़ ढम-ढम बजाएंगे