व्यंग्य काश…! दादी ने शहर की कहानी सुनाई होती May 27, 2015 by कन्हैया कुमार झा | Leave a Comment काश…! दादी ने शहर की कहानी सुनाई होती लोग कहते हैं फिल्में समाज का दर्पण होती हैं मतलब समाज मे जो कुछ घटित होता है, समाज की जो भी असलियत है, जितनी संवेदना है , जैसी भी अवधारना है, फिल्में ठीक वैसी ही परोसती हैं । कभी-कभी तो हर आदमी की कहानी ही फिल्मी लगती […] Read more » काश...! दादी ने शहर की कहानी सुनाई होती: नानी विदेशनीति व्यंग सरकार
व्यंग्य यमराज एडमिट हैं May 19, 2015 / May 19, 2015 by अशोक गौतम | 1 Comment on यमराज एडमिट हैं -अशोक गौतम- मुहल्ले को ताजी सब्जी उधार- सुधार दे खुद पत्तों से रोटी खाने वाला रामदीन कमेटी के जमादार को रोज- रोज नाली के ऊपर सब्जी की दुकान लगाने के एवज में दो- दो किलो सब्जी दे तंग आ गया तो उसने यमराज से गुहार लगाई,‘ हे यमराज महाराज! या तो मुझे इस देस से […] Read more » Featured यमराज यमराज एडमिट हैं यमराज पर व्यंग्य सामाजिक व्यंग्य
विविधा व्यंग्य ‘गब्बर इज़ बैक’ एन्ड ही इज मोर डैंजर May 14, 2015 / May 14, 2015 by जावेद अनीस | Leave a Comment -जावेद अनीस- शोले फिल्म के ओरिजिनल क्लाइमैक्स में ठाकुर द्वारा गब्बर को मारते हुए दिखाया गया था जिसे बाद में सेंसर बोर्ड की दखल के बाद बदलना पड़ा, सेंसर बोर्ड नहीं चाहता था कि फिल्म में ठाकुर का किरदार कानून को अपने हाथ में ले। लगभग चालीस साल बाद आयी “गब्बर इज बेक” केक्लाइमैक्स में […] Read more » 'गब्बर इज़ बैक' एन्ड ही इज मोर डैंजर Featured अक्षय कुमार गब्बर इज़ बैक
मीडिया व्यंग्य उबाऊ होता ‘दाऊद – पुराण’…! May 12, 2015 / May 12, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment -तारकेश कुमार ओझा- अपना बचपन फिल्मी पर्दो पर डाकुओं की जीवन लीला देखते हुए बीता। तब कुछ डाकू अच्छे भी होते थे, तो कुछ बुरे भी। किसी के बारे में बताया जाता कि फलां डाकू है तो काफी नेक, लेकिन परिस्थितियों ने उसे हाथों में बंदूक थामने को मजबूर कर दिया। कुछ डाकू जन्मजात दुष्ट […] Read more » Featured उबाऊ होता 'दाऊद - पुराण'...! दाउद दाउद इब्राहिम
कला-संस्कृति व्यंग्य ये कार्टून बोलता है ! May 7, 2015 / May 7, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -गर्वित बंसल- रात्रि को सोने से पहले फेसबुक अकाउंट की हलचल का जायजा लेते हुए अचनाक से दृष्टि एक कार्टून पर पड़ी ! लगा कि ये कार्टून कुछ बता रहा है, कुछ बोल रहा है! कार्टून का बारीकी से जायजा लेते हुए समझ आया कि यह तो आज़ाद हिंदुस्तान की उस तथाकथित महान परम्परा का बखान कर […] Read more » Featured ये कार्टून बोलता है ! राजनीतिक व्यंग्य व्यंग्य सोनिया गांधी
मीडिया व्यंग्य विश्वास के चक्कर में लोगो की टक्कर May 6, 2015 by दीपक शर्मा 'आज़ाद' | Leave a Comment -दीपक शर्मा “आज़ाद”- ना ना ना भाई विश्वास करो वो साहब निर्दोष है, एकदम शरीफ की जात है। आपको मालूम नहीं क्या उनके पास देश की एकमात्र साफ़, स्वच्छ पार्टी का सर्टिफिकेट भी है। फिर आप कैसे उनको झूठा बोल सकते हो। देखा नहीं वो देश की राजनीतिक स्थिति को बदलने के लिए कितना प्रयास […] Read more » Featured न्यूज चैनल्स मीडिया मीडिया पर व्यंग्य विश्वास के चक्कर में लोगो की टक्कर
विविधा व्यंग्य अफवाहें हैं अफवाहों का क्या… May 4, 2015 / May 5, 2015 by दीपक शर्मा 'आज़ाद' | 2 Comments on अफवाहें हैं अफवाहों का क्या… अफवाहे है अफवाहों का क्या… कभी कभी कुछ कहा हुआ इतना फ़ैल जाता है कि उसके आगे फैला हुआ रायता भी कम लगने लगता है। मुझे अक्सर लगता है कि आखिर वे कौन लोग है जो इस तरह से बातों को इधर से उधर फैला कर अच्छे-खासे दिमाग की भुजिया बनाने पर तुले रहते है। […] Read more » Featured rumours अफवाह अफवाहे है अफवाहों का क्या... अफवाहों का क्या...
विविधा व्यंग्य एक पाती राहुल बचवा के नाम May 1, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | 4 Comments on एक पाती राहुल बचवा के नाम प्यारे राहुल बचवा, तुम दो महीने की छुट्टी बैंकाक में बिताकर इन्डिया आ गए, मनवा को बड़ा सकून मिला। बचवा, इस तरह कबतक कभी बैंकाक में तो कभी कैलिफ़ोर्निया में छुट्टी मनाते रहोगे? राजनीति तो तुम्हारा पुश्तैनी धंधा है, कान्ग्रेस की अध्यक्षी कहीं भागे थोड़े जा रही है? देखो, दिग्गी चचवा बुढ़ौती में अमृता को […] Read more » एक पाती राहुल बचवा के नाम
विविधा व्यंग्य गड़बड़ चौथ April 27, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment –विजय कुमार- पिछले रविवार को शर्मा जी ने अपने घर यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के बाद कुछ खानपान का भी प्रबन्ध था। इसलिए हम सभी मित्र समय से पहुंच गये। यज्ञ में तो मैं सैकड़ों बार गया हूं; पर यह यज्ञ कुछ अलग प्रकार का था। इसमें हवन सामग्री के साथ ही ढेर सारी […] Read more » Featured गड़बड़ चौथ जीवन जीवन व्यंग्य
विविधा व्यंग्य ‘सेवा’ में करियर…!! April 24, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा साइकिल – घड़ी और रेडियो। यदि एेसी चीजें सात फेरे लेने जा रहे दुल्हे की खिदमत में पेश की जाती थी, तो आप सोच सकते हैं कि वह जमाना कितना वैकवर्ड रहा होगा। तब की पीढ़ी के लिए करियर का मतलब साइकिल के पीछे लगे उस सहायक उपकरण से था, जिस पर […] Read more » Featured करियर
कविता राजनीति व्यंग्य नेता चालीसा April 22, 2015 / April 22, 2015 by रवि श्रीवास्तव | 1 Comment on नेता चालीसा -रवि श्रीवास्तव- जय जय भारत देश के नेता तुम्हरी चालाकी से न कोई जीता तुम हो देश के भाग्य विधाता , देश को लूटना तुमको आता तुम्हरे हाथ में देश की सत्ता मिलता है सरकारी भत्ता महंगाई के तुम हो दाता,, इसके सिवा और कुछ भी न आता घोटाले पर करते घोटाला , छिनो गरीबों के मुंह का […] Read more » Featured नेता चालीसा. राजनीतिक व्यंग्य राजनीतिक कविता व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य बाण : मेरा पिया घर आया… April 17, 2015 / April 17, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment हमारे प्रिय शर्मा जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। वे कभी लेखक बन जाते हैं, तो कभी कवि। कभी गायक तो कभी वादक और संगीतकार। कभी पत्रकार तो कभी वक्ता या अधिवक्ता। सफाई से लेकर कपड़े धोने और भोजन बनाने तक में वे माहिर हैं। यद्यपि ये घरेलू काम उन्होंने विवाह के बाद मजबूरी में […] Read more » Featured rahul gandhi returning home sattire on rahul gandhi