व्यंग्य व्यंग्य बाण : चमत्कारी अंगूठी February 12, 2015 / February 12, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment दिल्ली के चुनाव परिणाम आने के बाद परसों मैं शर्मा जी के घर गया, तो एक बाल पत्रिका उनके हाथ में थी। वे एक कहानी पढ़ रहे थे, जिसका शीर्षक था ‘चमत्कारी अंगूठी’। मैंने प्रश्नाकुल आंखों से बुढ़ापे में बाल पत्रिका पढ़ने का कारण पूछा, तो उन्होंने चुपचाप पत्रिका मुझे थमा दी और खुद अंदर […] Read more » चमत्कारी अंगूठी
व्यंग्य ई जो है पॉलिटिक्स…!! February 9, 2015 / February 9, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा राजनयिक और कूटनीतिक दांव – पेंच क्या केवल खादी वाले राजनीतिक जीव या सूट – टाई वाले एरिस्टोक्रेट लोगों के बीच ही खेले जाते हैं। बिल्कुल नहीं। भदेस गांव – देहातों में भी यह दांव खूब आजमाया जाता है। बचपन में हमें अभिभावकों के साथ अक्सर घुर देहात स्थित अपने ननिहाल […] Read more » पॉलिटिक्स
व्यंग्य चुनावी मौसम, देश भक्ति का आलम February 6, 2015 by रवि श्रीवास्तव | 1 Comment on चुनावी मौसम, देश भक्ति का आलम चुनावी मौसम आते ही राजनीतिक पार्टियों के नेताओं में जबरजस्त देश भक्ति का आलम जाग उठता है। जो 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन देखने को मिलता है। हर प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में गाने देश भक्ति के गाने बजते हैं। कार, आटो, से लेकर रिक्शा तक में हम जिएगें और मरेगें ए […] Read more » चुनावी मौसम देश भक्ति का आलम
व्यंग्य मैनिफेस्टो: तोरई आदमी पार्टी February 5, 2015 by अनुज अग्रवाल | 2 Comments on मैनिफेस्टो: तोरई आदमी पार्टी गतांक से आगे (पढ़े पिछला अंक “तोरई आदमी पार्टी ”) मित्रों तोरई आदमी पार्टी अपना पहला चुनाव लड़ने जा रही है | दिल्ली का चुनाव | और चुनाव बिना घोषणापत्र के नहीं लड़ा जा सकता | बाकी सभी पार्टियों के अपना अपना मैनिफेस्टो जारी कर दिया है | आज हम भी अपनी पार्टी का […] Read more » तोरई आदमी पार्टी मैनिफेस्टो मैनिफेस्टो: तोरई आदमी पार्टी
व्यंग्य प्रीतिभोज से पार्टी तक….!! February 4, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा कोई भी एेसा मौका जिसके तहत दस लोगों को दरवाजे बुलाना पड़े, पता नहीं क्यों मुझमें अजीब सी घबराहट पैदा कर देती है। कुछ साल पहले छोटे भाई की शादी में न चाहते हुए भी हमें आयोजित भोज का अगुवा बनना पड़ा। अनुभवहीन होने के चलते डरते – डरते इष्ट – […] Read more » प्रीतिभोज से पार्टी तक
व्यंग्य वास्तव में उनके अच्छे दिन आये हैं जो केरेक्टर की परवाह नहीं करते January 22, 2015 by श्रीराम तिवारी | 1 Comment on वास्तव में उनके अच्छे दिन आये हैं जो केरेक्टर की परवाह नहीं करते मेरे देश में इन दिनों बहुतेरों को एक अदद ‘अवतार ‘ की शिद्द्त से दरकार है। पीलिया रोग से पीड़ित कुछ नर-मादाओं को तो नरेंद्र मोदी साक्षात विष्णु के अवतार ही नजर आ रहे हैं। महज कार्पोरेट लाबी या हिन्दुत्ववादियों को ही नहीं अब तो खांटी धर्मनिर्पेक्षतावादियों ,कांग्रेसियों और लोहियावादियों को भी मोदी जी ‘कितने अच्छे लगने लगे ‘ हैं। जब शांति भूषण […] Read more »
व्यंग्य मेरी भैंस को अंडा क्यों मारा ?? January 17, 2015 / January 17, 2015 by अनुज अग्रवाल | Leave a Comment आजकल चुनावो का मौसम है | हरियाणा झारखण्ड से लेकर जम्मू होते हुए चुनाव दिल्ली आ धमका है | वैसे हम भारतीय अपने आलस को लेकर विश्व प्रसिद्ध हैं | हमें कभी पता भी नहीं चलता कि कब चुनाव आये और कब हमारे प्रदेश में मुखिया चुन लिया गया | पर दिल्ली विधानसभा चुनाव में […] Read more »
व्यंग्य “जब मोदी-लहर से भयभीत हो काँप उठा इन्द्र का सिंहासन” January 2, 2015 / January 3, 2015 by रोहित श्रीवास्तव | Leave a Comment मोदी लहर का कहर अभी तक धरती तक ही सीमित था परंतु अगर इंद्रलोक के विश्वसनीय सूत्रो की माने तो हाल मे भाजपा द्वारा झारखंड भू-खंड जीतने, दुनिया के स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर मे अप्रत्याशित चुनावी प्रदर्शन करने और एक के बाद एक राज्य को कब्जियाने की मुहिम से स्वर्ग लोक मे मानो ऐसी […] Read more »
व्यंग्य ऊंटरव्यू December 28, 2014 / December 29, 2014 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment अब मीडिया बड़ा ही फ़ास्ट हो गया है . छोटे से छोटी घटना पर ऐसी प्रस्तुति देता है कि जिस व्यक्ति के बारे में समाचार दिखाया जा रहा है , उसे भी शक होने लगता है कि क्या वास्तव में “वो “ वैसा ही है .परन्तु खेद का विषय यह रहा कि हाल में तीन […] Read more » ऊंटरव्यू
व्यंग्य शिकार की तलाश में …. December 23, 2014 / December 23, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment नौकरी से अवकाश प्राप्त करने के बाद शर्मा जी ने कुछ दिन आराम किया। फिर कुछ दिन नाते-रिश्तेदारों से मिलने में खर्च किये। इसके बाद वे सपत्नीक तीर्थयात्रा पर चले गये। वहां से लौटे तो बीमार हो गये। इतना सब करते हुए साल भर निकल गया। लेकिन अब समस्या थी कि खाली समय कैसे […] Read more » शिकार की तलाश
व्यंग्य खाली पेट का सपना, कब आयेगा कालाधन December 19, 2014 / December 19, 2014 by अभिषेक कांत पांडेय | 2 Comments on खाली पेट का सपना, कब आयेगा कालाधन अभिषेक कांत पांडेय एक सपना अपना भी स्विस बैंक में हो खाता अपना, बस 5०० रूपये से ही खुल जाए तो अच्छा है कम से कम हम भी सीना तान कहेंगे, स्विस बैंक में ईमानदारी की कमाई से 5०० का खाता है। क्या ये सपना पूरा हो सकता है? विदेशों जमा काला धन भारत आ […] Read more » कब आयेगा कालाधन खाली पेट का सपना
व्यंग्य चमचे ही चमचे, यहाँ-वहां जहाँ-तहाँ December 17, 2014 by दीपक शर्मा 'आज़ाद' | Leave a Comment मेरे घर के रसोईघर में बर्तनों की भरमार है, होती है सबके घर में होती है| थाली, कटोरी, गिलास, चम्मच और अंत में कप ये न होतो खाना खाने की कल्पना अधूरी सी ही लगती है क्यों सही कहा न| पर इन सबमे भी देखें तो चम्मच सर्वश्रेष्ठ है, वो हर घर में अन्य बर्तनों […] Read more » चमचे ही चमचे