चुनाव व्यंग्य चुनावी फसल से खलिहान भरने की चाहत…! April 1, 2014 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment -तारकेश कुमार ओझा- गांव – देहात से थोड़ा भी संबंध रखने वाले भलीभांति जानते हैं कि खेतीबारी कितना झंझट भरा, श्रमसाध्य और जोखिम भरा कार्य है। यदा-कदा गांव जाने पर उन मुर्झाए चेहरों वाले रिश्तेदारों से मुलाकात होती है, जो अपना दुखड़ा सुनाते हुए बताते हैं कि बेटा .. खेतीबारी से गुजारा मुश्किल है। पुश्तैनी […] Read more » satire on current election चुनावी फसल से खलिहान भरने की चाहत...!
चुनाव राजनीति व्यंग्य राजनैतिक आत्महत्या: घूंघट नहीं खोलूंगी सैंया तोरे आगे April 1, 2014 by डा. अरविन्द कुमार सिंह | Leave a Comment -डॉ. अरविन्द कुमार सिंह- बहुत दिनों के बाद आज कुछ लिखने के लिये कलम उठाया हूं। देश चुनावी ताप से तप रहा है। राजनेताओं का कहा हर लफ्ज, कई अर्थों को जन्म दे रहा है। सब अपनी विश्वसनियता को साबित करने हेतु दूसरों पर जमकर आरोप प्रत्यारोप का सहारा ले रहे हैं। मैं समझ नही […] Read more » satire on Arvind Kejrival राजनैतिक आत्महत्या: घूंघट नहीं खोलूंगी सैंया तोरे आगे
कविता व्यंग्य मिक्सिंग और फिक्सिंग March 27, 2014 by मिलन सिन्हा | 1 Comment on मिक्सिंग और फिक्सिंग -मिलन सिन्हा- उसने पहले ढंग से जाना गेम का सब ट्रिक्स फिर मैच को अच्छे से किया फिक्स जब शोर हुआ तब राजनीति से किया उसे मिक्स पकड़ा गया फिर भी शर्म नहीं किसी बात का कोई गम नहीं क्योंकि उसे मालूम है यहां मैच को करके मिक्स और फिक्स कैसे मारा जाता है सिक्स […] Read more » satire poem on match fixing मिक्सिंग और फिक्सिंग
व्यंग्य व्यंग्य बाण : उफ, ये सादगी March 19, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment छात्र जीवन में मैंने ‘सादा जीवन उच्च विचार’ पर कई बार निबन्ध लिखा है। निबन्ध में यहां-वहां का मसाला, कई उद्धरण और उदाहरण डालकर चार पंक्ति की बात को चार पृष्ठ बनाने में मुझे महारथ प्राप्त थी। मेरे निबन्ध को इसीलिए सर्वाधिक अंक भी मिलते थे। वस्तुतः किसी भी बात के, बिना बात विस्तार को […] Read more » ये सादगी व्यंग्य बाण : उफ
व्यंग्य शिशुपाल और केजरीवाल March 19, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | 9 Comments on शिशुपाल और केजरीवाल दिल्ली का मुख्यमन्त्री बनने के पहले अरविन्द केजरीवाल ने कांग्रेस और भ्रष्टाचार-विरोध का एक मुखौटा लगा रखा था जो समय के साथ-साथ तार-तार हो रहा है। कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छुपते। केजरीवाल की हरकतें इस कहावत की सत्यता सिद्ध करती हैं। शक तो तभी होने लगा था, जब […] Read more » शिशुपाल और केजरीवाल
व्यंग्य घुटन का मौसम March 15, 2014 / March 15, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment -विजय कुमार- मौसम विज्ञानियों की बात यदि मानें, तो दुनिया भर में मुख्यत: तीन मौसम होते हैं। सर्दी, गर्मी और वर्षा। जहां तक भारत की बात है, तो यहां षड्ऋतु में वसंत, शिशिर और हेमंत भी शामिल हैं। हमारे कुछ मित्रों का कहना है कि दक्षिण भारत में गर्मी और बहुत अधिक गर्मी तथा पहाड़ों […] Read more » satire on leaders घुटन का मौसम
व्यंग्य चुनावी मौसम बड़ा सुहाना लगे March 15, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -नजमून नवी खान- प्रकति के बनाये हूये तीन मौसम हमें मिले जिन्हें हम सर्दी, गर्मी और बरसात के नाम से जानते हैं, इनके अलावा हम इंसानों ने भी एक मौसम बनाया है जिसे हम सभी चुनावी मौसम के नाम से जानते हैं। ये सबसे सुहाना मौसम होता है जिसमें ना कोई छोटा है ना कोई […] Read more » satire on electoral system and leaders चुनावी मौसम बड़ा सुहाना लगे
व्यंग्य योग्य उम्मीदवार March 13, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- चुनाव सिर पर थे और योग्य उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी थी। सभी राजनैतिक दल एक दूसरे को पटकनी देने के जुगाड़ में थे। किसी भी तरह चुनाव में बढ़त बनायें और सत्ता हथियाएं, मात्र यही एक सूत्रीय कार्यक्रम सबके पास था। बहुमत मिल जाये तो फिर क्या कहने हैं। […] Read more » satire on election candidates योग्य उम्मीदवार
व्यंग्य टिकट खत्म! प्रचार शुरू March 9, 2014 by अशोक गौतम | 1 Comment on टिकट खत्म! प्रचार शुरू बड़े दिनों से उनकी पार्टी की चौखट पर मेरे जैसे कर्इ गधे अपने कार्यकर्ताओं के साथ टिकट के लिए पड़े थे। एक लिस्ट में नहीं तो दूसरी लिस्ट में ही सही। मुझे लग रहा था कि कम से कम मेरा नाम आ ही जाएगा। और बस एक बार लिस्ट में नाम पड़ गया तो समझो […] Read more » टिकट खत्म! प्रचार शुरू
व्यंग्य हिंदी साहित्य का अखाड़ा March 2, 2014 by विजय कुमार सप्पाती | 1 Comment on हिंदी साहित्य का अखाड़ा ::: भाग एक::: बहुत समय पहले की बात है। मुझे एक पागल कुत्ते ने काटा और मैंने हिंदी साहित्यकार बनने का फैसला कर लिया। ये दूसरी बार था कि मुझे किसी पागल कुत्ते ने काटा था और मैं अपनी ज़िन्दगी से जुड़ा हुआ कोई महत्वपूर्ण फैसला कर रहा था। पहली बार जब एक महादुष्ट पागल […] Read more » हिंदी साहित्य का अखाड़ा
व्यंग्य अस्सी वाले स्वतंत्र बाबा कहीन “लोकतंत्र की फ्रीस्टाईल नूराकुश्ती” March 1, 2014 / March 1, 2014 by सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र” | Leave a Comment – सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र”- राजनीति एक बार दोबारा अपने चिर-परिचित स्वरूप की ओर बढ़ चली है। वही स्वरूप जिसमें पद पिपासा और अवसरवाद सर्वाधिक लोकप्रिय सिद्धांत है। इस बात को देखकर मेरे बाबा का एक पुराना शेर याद आ गया जो वे अक्सर ही कहा करते थे, सियासत नाम है जिसका वो कोठे की […] Read more » satire on democracy अस्सी वाले स्वतंत्र बाबा कहीन "लोकलंत्र की फ्रीस्टाईल नूराकुश्ती"
व्यंग्य जैसे कैसे हो गया बस ! February 27, 2014 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम- बरसों से महसूस होने का सारा सिस्टम खटारा होने के बाद भी कई दिनों से मैं महसूस कर रहा था कि जब-जब पत्नी की चिल्ल-पों बंद होती और अपने कानों को जरा चैन देने की कोशिश में होता तो उनके घर के भीतर से किसी चीज को ठोकने-बजाने की आवाजें आने […] Read more » satire on political system जैसे कैसे हो गया बस !