राजनीति व्यंग्य व्यंग्य बाण : मनमोहन सिंह ‘मजबूर’ August 10, 2013 by विजय कुमार | 1 Comment on व्यंग्य बाण : मनमोहन सिंह ‘मजबूर’ दुनिया में गद्य और पद्य लेखन कब से शुरू हुआ, कहना कठिन है। ऋषि वाल्मीकि को आदि कवि माना जाता है; पर पहला गद्य लेखक कौन था, इसका विवरण नहीं मिलता। इन लेखकों के साथ एक बीमारी जुड़ी है। लेखन का कीड़ा काटते ही उन्हें यह ज्ञान हो जाता है कि माता-पिता ने उनका नाम […] Read more » मनमोहन सिंह ‘मजबूर’
कविता व्यंग्य नेता- अभिनेता, असरकारी August 10, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा हास्य व्यंग्य कविताएं : नेता- अभिनेता, असरकारी नेता-अभिनेता नेता और अभिनेता चुनाव मैदान में खड़े थे । मतदातागण सोच में पड़े थे । उधर, छिड़ा था विवाद, मतदाता देगा किसका साथ । एक के पास था आश्वासनों और वादों का झोला, तो दूसरे के पास था भुलावे में रखने का नायाब मसाला । […] Read more »
व्यंग्य गरीबी -मानसिक अवस्था और खैरात August 7, 2013 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment एल आर गाँधी आत्मविश्वास से लबरेज़ चोखी लामा वी -शेप की चप्लियाँ चटकाते सुबह सुबह आ धमके …. हलो … की हुंकार लगाई । आवाज़ में जोश और आक्रोश एक साथ छलक रहा […] Read more » गरीबी -मानसिक अवस्था और खैरात
राजनीति व्यंग्य नवीन का संस्कार सुरक्षा बिल August 6, 2013 / August 6, 2013 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment एल आर गाँधी राजमाता और उनके दरबारी तो गरीबी रेखा मापने की माथापच्ची में ही उलझे थे। क़ोइ १२/- में गरीब को भरपेट खाना परोस रहा था और कोई ५/- और १/- में गरीब का पेट भर रहा था …. राजमाता १४ में नयी ताजपोशी से पहले ‘खाद्य सुरक्षा ‘बिल पास करवा कर गरीबों को भूख से […] Read more » नवीन का संस्कार सुरक्षा बिल
व्यंग्य बेदागियों से सवधान! August 3, 2013 / August 3, 2013 by अशोक गौतम | Leave a Comment देखो जी, कहे देते हैं अपना कानून अपने पास रखो और हमारे दाग हमारे पास! वरना हमारे से बुरा कोर्इ न होगा! अरे आपको तो समाज के दाग धोने के लिए रखा था और आप हो कि हमारे चेहरे के ही दाग धोने निकल पड़े? आपके पास कोर्इ और काम नहीं है क्या? देखो तो, […] Read more » बेदागियों से सवधान!
विविधा व्यंग्य जाम-स्तुति August 2, 2013 / August 2, 2013 by डा.राज सक्सेना | Leave a Comment डा.राज सक्सेना वह सुरा – पात्र दो दयानिधे,जब मूड बने तब भर जाए | है आठ लार्ज, कोटा अपना,बिन – मांगे पूरा कर जाए | प्रातः उठते ही हैम – चिकन, फ्राइड फिश से हो ब्रेकफास्ट | हो मट्न लंच में हे स्वामी, मैं बटरचिकन से करूं लास्ट | मिलजाय डिनर बिरयानी का,संग […] Read more » जाम-स्तुति
व्यंग्य अभिव्यक्ति और प्रतिबन्ध [व्यंग्य] August 1, 2013 by राजीव रंजन प्रसाद | 1 Comment on अभिव्यक्ति और प्रतिबन्ध [व्यंग्य] राजीव रंजन प्रसाद “सर जी सहारा प्रणाम” “काहे का सहारा वो तो डूब गया भाई, और कौन सा प्रणाम? आज कल हम लाल सलाम करते हैं” “कल तक तो वहीं की गा रहे थे” “भाई वो खिला रहे थे, हम खा रहे थे” “कल यह लाल कहीं हरा, नीला या पीला हो गया तो?” “देख […] Read more » अरुंधती नक्सलवाद राजेंद्र यादव वामपंथ
व्यंग्य राजमाता का राजभोज July 27, 2013 by एल. आर गान्धी | 2 Comments on राजमाता का राजभोज एल आर गाँधी स्वर्ग में विराजमान इंदिरा जी आज गद गद हो गई होंगी …जो काम वे अपने जीवन काल में पूरा नहीं कर पाई उनकी प्रिय पुत्रवधू ने पूरा कर डाला।।।इंदिरा जी तो महज़ गरीबी हटाओ का उद्दघोष मात्र करते करते इतिहास हो गई , पुत्र वधु ने एक ही झटके में गरीबों की […] Read more » राजमाता का राजभोज
व्यंग्य हास्य व्यंग्य कविताएं: संकट, योजना July 27, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा संकट नेताजी से जब एक पत्रकार ने पूछा , महाशय, तेल संकट पर क्या हैं आपके विचार ? तो कहा नेताजी ने हँसते हुए , कहाँ तेल संकट जो करें सोच विचार . अरे , हमारे घर तो रोज हजारों लोग आते हैं और हमें लगाने के लिए भर-भर टीन तेल साथ […] Read more » योजना हास्य व्यंग्य कविताएं : संकट
व्यंग्य यहां सब ऐसे ही चला है प्यारे! July 26, 2013 / July 26, 2013 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम खाने के सुरक्षा बिल को लेकर बेताल इतना उतावला हुआ कि पिछले हफते संसद के सामने सावन की बौछार में दिनरात भीगता रहा, मल्लहार गाता रहा। मैंने उसे रोकने की लाख कोशिश की, ‘पागल! ये खाने का सुरक्षा बिल तेरी सुरक्षा के लिए नहीं, उनकी अपनी सुरक्षा के लिए अधिक है। इससे तेरी […] Read more »
राजनीति व्यंग्य व्यंग्य बाण : मेरी छतरी के नीचे आ जा.. July 23, 2013 / July 23, 2013 by विजय कुमार | Leave a Comment इस सृष्टि में कई तरह के जीव विद्यमान हैं। सभी को स्नेह-प्रेम, हास-परिहास और मनोरंजन की आवश्यकता होती है। पशु-पक्षी भी मस्ती में खेलते, एक-दूसरे पर कूदते और लड़ते-झगड़ते हैं। यद्यपि कथा-सम्राट प्रेमचंद ने ‘दो बैलों की कथा’ में बैल के साथ ही एक अन्य प्राणी की चर्चा की है, जो कभी नहीं हंसता, और […] Read more » मेरी छतरी के नीचे आ जा
व्यंग्य …और अब वह सम्पादक हो गए July 17, 2013 / July 17, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी आखिर वह सम्पादक बन ही गए। मुझसे एक शाम उनकी मुलाकात हो गई। वह बोले सर मैं आप को अपना आदर्श मानता हूँ। एक साप्ताहिक निकालना शुरू कर दिया है। मैं चौंका भला यह मुझे अपना आदर्श क्यों कर मानता है, यदि ऐसा होता तो सम्पादक बनकर अखबार नहीं निकालता। जी […] Read more »