व्यंग्य जुगाड़ कर ,जुगाड़ कर, जुगाड़ कर!! April 10, 2013 / April 10, 2013 by अशोक गौतम | Leave a Comment हे कल छपने वाले अखबारों की ओर टकटकी लगाए देश वासियो ! छोड़ो कि कल के अखबार में वे क्या कहने वाले हैं तो परसों उसके बदले में वे क्या कहने वाले हैं। अखबार में कुछ देखना ही है तो छूट के, लूट के विज्ञापन देखो, देखो तो एक के साथ एक क्या क्या फ्री […] Read more »
व्यंग्य प्रेम इज सिट्रक्टली प्रहिबिटिड! April 10, 2013 by अशोक गौतम | 1 Comment on प्रेम इज सिट्रक्टली प्रहिबिटिड! वे आए और मेरे पास बैठ गए। चुपचाप! बड़ी देर तक मेरे डार्इ किए बालों को देखते रहे। जब उन्हें कुछ पता न चला तो शरमाते बोले,’ यार! माफ करना ! ये सिर में तुमने काला सा क्या लगा क्या रखा है? इस देश के लोगों के मुंह तो आए दिन काले होते ही रहे […] Read more »
व्यंग्य मधुमक्खी -अरिष्ट लक्षण April 9, 2013 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment एल. आर. गाँधी राज कुमार के मधुमक्खियों के छत्ते में ‘रानी मक्खी’ पर जबसे मोदी ने निशाना साधा है …रानी की भक्त मण्डली के मखियाल भिन -भिन्ना उट्ठे हैं …मियाँ रशीद अल्वी को तो मोदी में यमराज के दर्शन होने लगे ..हों भी क्यों न …यमराज तो मात्र प्राण ही हरता है , मोदी राज-पाठ […] Read more » मधुमक्खी -अरिष्ट लक्षण
व्यंग्य भ्रष्टाचारी-जी की आरती April 2, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment तेरी हर रोज विजय होवे हे भ्रष्ट तुम्हारी जै होवे| दिन दूनी रात चौगुनी अब ये रिश्वत बढ़ती जाती है नेता अफसर बाबू की तिकड़ी मिलजुलकर ही खाती है धोती कुरता टोपी वाले जब नेताजी बन जाते हैं ये बिना किसी डर दहशत के ये रिश्वत लप-लप खाते हैं खाने पीने में हर नेता संपूर्ण […] Read more » भ्रष्टाचारी-जी की आरती
व्यंग्य राजमाता का गुस्सा March 23, 2013 by एल. आर गान्धी | 1 Comment on राजमाता का गुस्सा हिन्दुस्तान को कोई भी मुल्क हलके में ‘न’ ले …और इटली भी …..राज माता का अपने मायके के प्रति यह गुस्सा …भारत को बनाना स्टेट मान बैठे लोगों को ‘बहुत हो चूका ‘ का सन्देश ही तो है. ..? पहले उड़न खटोलों की खरीद में किरकिरी करवा दी और अब वादा खिलाफी और वह भी […] Read more » राजमाता का गुस्सा
व्यंग्य सिंह साहेब का गुस्सा March 13, 2013 / March 13, 2013 by एल. आर गान्धी | 1 Comment on सिंह साहेब का गुस्सा एल आर गाँधी शांत स्वभाव सिंह साहेब को दूसरी बार गुस्से में देखा है …एक तो पिछले दिनों जब वे मोदी के ‘नाईट वाच मैन ‘तंज़ पर बिफरे थे या अबकी जब इटली के पी एम् ने हमारे ‘ मेहमान ‘लौटाने से इनकार कर दिया … सिंह साहेब ने साफ़ साफ़ कह दिया कि इटली […] Read more »
व्यंग्य कुर्सी नहीं, सोफे पर बैठाइए हिंदुस्तान के वजीर को ! March 7, 2013 by आशीष महर्षि | Leave a Comment आशीष महर्षि हिंदुस्तान का वजीर बनने के लिए बड़ी हाय हाय मची हुई है। पद एक। कुर्सी एक। लेकिन हर कोई ख्वाब देख रहा है। कोई पीएम इन वेटिंग है तो कोई पीएम इन फ्यूचर। कुछ का तो एक पैर कब्र में और दूसरा दिल्ली की ओर है। कोई गुजरात से आकर दिल्ली पर बैठना […] Read more » प्रधानमंत्री
व्यंग्य राहुल बाबा..आप खुद समझदार हैं! March 6, 2013 by अरुण कान्त शुक्ला | Leave a Comment एकदम सच कहते हो राहुल बाबा! शादी, बोले तो एकदम झमेला। शादी करेंगा तो बीबी, बच्चों की रिस्पांसबिलिटी तो लेना का होता| अब अपने अखिलेश भैया की बात को ही ले लो। शादी किया तो मुख्यमंत्री बनने के बाद बीबी को सांसद बनाया की नहीं और वो भी निर्विरोध। अपुन को नहीं मालूम की कभी […] Read more »
व्यंग्य डुबकी नहीं लगानी क्या? March 5, 2013 / March 5, 2013 by अशोक गौतम | Leave a Comment अषोक गौतम कुंभ स्नान के लिए पार्वती प्रभु से बारबार आग्रह कर रही थीं पर प्रभु थे कि कोर्इ न कोर्इ बहाना बना पार्वती की बात टाल जाते। आखिर जब कुंभ खत्म होने के सिरे आया तो पार्वती ने प्रभु से कहा ,’ हे प्रभु! मैं जितनी बार कुंभ स्नान करने को कहती हूं आप […] Read more »
व्यंग्य जंग, दिल और दिमाग़ की February 16, 2013 by बीनू भटनागर | 6 Comments on जंग, दिल और दिमाग़ की ‘जब दिल ही टूट गया, हम जी कर क्या करेंगे ’ पुराना गाना है, पर शायद सबने सुना हो। दिल टूटने के बाद जी ही नहीं सकते, जब आपके पास ऐसा कोई विकल्प है ही नहीं, तो ये क्या कहना कि जी कर क्या करेंगे! शायरों को थोड़ा सा जीव-विज्ञान का ज्ञान होता तो बहुत […] Read more » जंग दिल और दिमाग़ की
व्यंग्य व्यंग्य हैप्पी वेलेंटाइन मेरी जान! February 12, 2013 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम हम दोनों की एक समान विशेषता है कि हम दोंनों एक दूसरे को हीन मानते हैं। वह मुझे इसलिए हीन मानता है कि मै शादी शुदा हूं तो मैं उनको इसलिए हीन मानता हूं कि वह अभी तक अविवाहित है। हीन के साथ साथ वह मुझे छूत भी मानता है। इसलिए जब जब […] Read more » व्यंग्य हैप्पी वेलेंटाइन मेरी जान!
व्यंग्य जनतंत्र में तंत्रमंत्र February 6, 2013 by सचिन कुमार जैन | Leave a Comment सचिन कुमार जैन हाँ, शासन व्यवस्था धराशायी हो चुकी है. “राज्य” संविधान के मुताबिक़ लोगों के संरक्षण देने में नाकाम है. अब विकल्पों की बात होना चाहिए. किसी ने कहा है “विकल्पहीन नहीं है दुनिया और नई दुनिया संभव है”. एक किस्सा सुनाया जाता है. एक विदेशी भारत आया. पर्यटन करने के साथ ही यहाँ […] Read more » जनतंत्र में तंत्रमंत्र