व्यंग्य सिंह साहेब का गुस्सा March 13, 2013 / March 13, 2013 by एल. आर गान्धी | 1 Comment on सिंह साहेब का गुस्सा एल आर गाँधी शांत स्वभाव सिंह साहेब को दूसरी बार गुस्से में देखा है …एक तो पिछले दिनों जब वे मोदी के ‘नाईट वाच मैन ‘तंज़ पर बिफरे थे या अबकी जब इटली के पी एम् ने हमारे ‘ मेहमान ‘लौटाने से इनकार कर दिया … सिंह साहेब ने साफ़ साफ़ कह दिया कि इटली […] Read more »
व्यंग्य कुर्सी नहीं, सोफे पर बैठाइए हिंदुस्तान के वजीर को ! March 7, 2013 by आशीष महर्षि | Leave a Comment आशीष महर्षि हिंदुस्तान का वजीर बनने के लिए बड़ी हाय हाय मची हुई है। पद एक। कुर्सी एक। लेकिन हर कोई ख्वाब देख रहा है। कोई पीएम इन वेटिंग है तो कोई पीएम इन फ्यूचर। कुछ का तो एक पैर कब्र में और दूसरा दिल्ली की ओर है। कोई गुजरात से आकर दिल्ली पर बैठना […] Read more » प्रधानमंत्री
व्यंग्य राहुल बाबा..आप खुद समझदार हैं! March 6, 2013 by अरुण कान्त शुक्ला | Leave a Comment एकदम सच कहते हो राहुल बाबा! शादी, बोले तो एकदम झमेला। शादी करेंगा तो बीबी, बच्चों की रिस्पांसबिलिटी तो लेना का होता| अब अपने अखिलेश भैया की बात को ही ले लो। शादी किया तो मुख्यमंत्री बनने के बाद बीबी को सांसद बनाया की नहीं और वो भी निर्विरोध। अपुन को नहीं मालूम की कभी […] Read more »
व्यंग्य डुबकी नहीं लगानी क्या? March 5, 2013 / March 5, 2013 by अशोक गौतम | Leave a Comment अषोक गौतम कुंभ स्नान के लिए पार्वती प्रभु से बारबार आग्रह कर रही थीं पर प्रभु थे कि कोर्इ न कोर्इ बहाना बना पार्वती की बात टाल जाते। आखिर जब कुंभ खत्म होने के सिरे आया तो पार्वती ने प्रभु से कहा ,’ हे प्रभु! मैं जितनी बार कुंभ स्नान करने को कहती हूं आप […] Read more »
व्यंग्य जंग, दिल और दिमाग़ की February 16, 2013 by बीनू भटनागर | 6 Comments on जंग, दिल और दिमाग़ की ‘जब दिल ही टूट गया, हम जी कर क्या करेंगे ’ पुराना गाना है, पर शायद सबने सुना हो। दिल टूटने के बाद जी ही नहीं सकते, जब आपके पास ऐसा कोई विकल्प है ही नहीं, तो ये क्या कहना कि जी कर क्या करेंगे! शायरों को थोड़ा सा जीव-विज्ञान का ज्ञान होता तो बहुत […] Read more » जंग दिल और दिमाग़ की
व्यंग्य व्यंग्य हैप्पी वेलेंटाइन मेरी जान! February 12, 2013 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम हम दोनों की एक समान विशेषता है कि हम दोंनों एक दूसरे को हीन मानते हैं। वह मुझे इसलिए हीन मानता है कि मै शादी शुदा हूं तो मैं उनको इसलिए हीन मानता हूं कि वह अभी तक अविवाहित है। हीन के साथ साथ वह मुझे छूत भी मानता है। इसलिए जब जब […] Read more » व्यंग्य हैप्पी वेलेंटाइन मेरी जान!
व्यंग्य जनतंत्र में तंत्रमंत्र February 6, 2013 by सचिन कुमार जैन | Leave a Comment सचिन कुमार जैन हाँ, शासन व्यवस्था धराशायी हो चुकी है. “राज्य” संविधान के मुताबिक़ लोगों के संरक्षण देने में नाकाम है. अब विकल्पों की बात होना चाहिए. किसी ने कहा है “विकल्पहीन नहीं है दुनिया और नई दुनिया संभव है”. एक किस्सा सुनाया जाता है. एक विदेशी भारत आया. पर्यटन करने के साथ ही यहाँ […] Read more » जनतंत्र में तंत्रमंत्र
व्यंग्य तुम्हारा नाम क्या है ? January 31, 2013 / January 31, 2013 by बीनू भटनागर | 6 Comments on तुम्हारा नाम क्या है ? नाम की बड़ी महिमा है, नाम पहचान है, ज़िन्दगी भर साथ रहता है। लोग शर्त तक लगा लेते हैं कि ‘’भई, ऐसा न हुआ या वैसा न हुआ तो मेरा नाम बदल देना।‘’ कहने का मतलब यही है कि नाम मे क्या रक्खा है, कहना सही नहीं होगा । नाम बडी अभूतपूर्व चीज़ है। उसके […] Read more »
व्यंग्य बड़े आदमी की पोती होने का फ़ायदा. January 31, 2013 / January 31, 2013 by अरुण कान्त शुक्ला | 6 Comments on बड़े आदमी की पोती होने का फ़ायदा. वैसे तो बड़े आदमी का कुछ भी होने का बड़ा फ़ायदा होता है। जैसे की, बड़े आदमी का बीबी होने का फ़ायदा। बड़े आदमी का माँ होने का फ़ायदा| बाप होने का फ़ायदा। दोस्त होने का फ़ायदा| सबसे बड़ा दामाद होने का या चमचा होने का फायदा| पर, बड़े आदमी की पोती होने का भी […] Read more »
व्यंग्य गायब हुआ गण का सुकून,तंत्र हथिया रखा है तांत्रिकों ने January 27, 2013 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य आज के दिन हर कहीं, हर बार मचता है शोर, और दो-चार दिन की धमाल के बाद फिर खो जाता है, बिना पेड़ों वाली पहाड़ियों के पार। आजादी के इतने सालों बाद भी गण को जिस तंत्र की तलाश थी उसका गर्भाधान तक नहीं हो सका अब तक, या कि लाख प्रयासों […] Read more »
व्यंग्य प्रोफेशनल बहू चाहिए January 26, 2013 / January 26, 2013 by एम. अफसर खां सागर | Leave a Comment एम. अफसर खां सागर मेरे बेहद करीबी मित्र हैं मिश्रा जी, शालीन व सहज, स्वभाव में उनका कोई सानी नहीं। खानदानी हैं मगर वसूल के पक्के। एक ही चिंता उन्हे खाये जा रही है किसी तरह बेटी के हाथ पीले हो जावे। जिसके घर जवान बेटी हो भला उसे दिन में चैन व रात में […] Read more »
व्यंग्य श्री साहेब जी January 22, 2013 / January 22, 2013 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment एल आर गाँधी ‘श्री’ भारतीय सभ्यता का बहुत ही पौराणिक आदर सूचक शब्द है …श्री शब्द का प्रयोग किसी बहुत ही आदरणीय महापुरुष के नाम के पूर्व प्रयोग किया जाता है . इसके अतिरिक्त ‘श्री’ अलंकार को देवी ,लक्ष्मी, विष्णु व् श्री गणेश -समृद्धि और विघ्न हरने वाले विघ्नेश्वर आदि के लिए भी प्रयोग में […] Read more »