व्यंग्य सरकार आपकी शक्कर खाई है September 29, 2012 / September 29, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment प्रभुदयाल श्रीवास्तव सरकार ने अपने चमचे की तरफ बंदूक तान दी और शूट करने का मन बना लिया|चमचा बेचारा घबरा गया,सरकार के हाथ पैर जोड़ने लगा,गिड़गिड़ा कर् कहने लगा”सरकार मैँने आपकी शक्कर खाई है, मुझ पर रहम करो|”शक्कर का नाम सुनकर सरकार की जीभ में पानी आ गया|नमक हलाल यदि नमक हरामी करे तो उसे […] Read more »
व्यंग्य हिन्दी बेचारी और मेरी लाचारी September 29, 2012 / September 29, 2012 by अशोक बजाज | 1 Comment on हिन्दी बेचारी और मेरी लाचारी अशोक बजाज लेडीज़ एंड जेंटलमेन, गुड मार्निंग पूरे इण्डिया में 14 सितंबर को औपचारिक रूप से हिंदी दिवस मनाया गया. मेरा स्कूल मीडियम इंगलिश है तो क्या हुआ यहाँ भी हिंदी दिवस पर गोष्ठी का प्रोग्राम रखा गया. हमारे प्रिंसिपल मि. के. पी. नाथ ने हिंदी की महत्ता पर प्रकाश डाला तथा हिंदी की […] Read more »
बच्चों का पन्ना व्यंग्य थोड़ा सा फर्क September 28, 2012 / September 27, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 13 Comments on थोड़ा सा फर्क “दादाजी दादाजी ‘बनाना’ को हिंदी में क्या बोलते हैं?” “बेटे ‘बनाना’ को हिंदी में केला कहते हैं|” “और दादाजी वो जो राउंड ,राउंड, ऱेड, रेड एप्पिल होता है न उसको हिंदी में क्या बोलते हैं?” “बेटे उसको सेब बोलते हैं|” मेरा नाती मुझसे सवाल पूँछ रहा था और मैं जबाब दे रहा था| “आच्छा..आपको तो […] Read more » story for kids थोड़ा सा फर्क
व्यंग्य छंगाजी की नाक September 27, 2012 / September 27, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment वैसे तो मुझे कटिंग कराने का कतई शौक नहीं है किंतु अच्छे खासे पुरुष को बेदर्द जमाने के लोग नारी की उपाधि से विभूषित न कर दें मैं साल में दो बार कटिंग करा ही लेता हूँ|मतलब छः महिने व्यतीत होते ही मुझे अपने केश कतरवाने जाना ही पड़ता है|मजबूरी यह है कि जैसे ही […] Read more » छंगाजी की नाक
कविता व्यंग्य गिरगिट दादा-प्रभुदयाल श्रीवास्तव September 25, 2012 / September 25, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 1 Comment on गिरगिट दादा-प्रभुदयाल श्रीवास्तव मिले सड़क पर गिरगिट दादा लगे मुझे दुख दर्द बताने| बहुत देर तक रुके रहे वे अपने मन की व्यथा सुनाने| बोले ‘सदियों सदियों से मैं सदा बदलता रंग रहा हूं| दीवालों आलों खिड़की में, इंसानों के संग रहा हूं| रंग बदलने के इस गुण में , जगवाले मुझसे पीछे थे| रंग बदलने […] Read more » satire poem by prabhudayal गिरगिट दादा
व्यंग्य लुंगी पर एक शोध प्रबंध-प्रभुदयाल श्रीवास्तव September 22, 2012 / September 25, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 2 Comments on लुंगी पर एक शोध प्रबंध-प्रभुदयाल श्रीवास्तव प्रस्तुत अंश देश के होनहार एवं प्रगतिशील विचारधारा वाले समाज शास्त्र के एक पी. एच. डी. के एक छात्र द्वारा प्रेषित शोध प्रबंध से लिया गया है। वह छात्र मेरे पास आया था एवं लुंगी पर लिखा यह अद्वितीय एवं अमूल्य शोध प्रबंध मुझसे जंचवाया था। मैंने अपनी तीसरी एवं सबसे तरोताजा प्रेमिका के सहयोग […] Read more » लुंगी पर एक शोध प्रबंध
व्यंग्य प्यारी दीदी, सॉरी दीदी, मान जाओ! September 21, 2012 / September 21, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम अरी ओ ममता दीदी! तुमने तो हद कर दी! हमें औरों से तो ये उम्मीद थी पर कम से कम तुमसे ये उम्मीद न थी। अब हमें मंझधार में किसके सहारे छोड़ दिया री दीदी! ऐसे तो अपने भार्इ के साथ दुश्मन भी नहीं करता। तुम्हारे लिए हमने क्या क्या नहीं किया दीदी? […] Read more » satire on politics
व्यंग्य ऊंट तू किस करवट बैठेगा-प्रभुदयाल श्रीवास्तव September 20, 2012 / September 25, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment ऊंट का नाम तो सभी ने सुना होगा|जिन्होंने न सुना हो उनकी जानकारी के लिये बता दूं कि यह एक चार पैरों वाला ऊंचा सा जानवर होता है जिसकी एक पूंछ और लंबी सी गरदन होती है|इसे मरुस्थल का जहाज़ कहते हैं| सैकड़ों मील गरम रेत में चलता रहता है और थकता नहीं|इसके गले में […] Read more »
व्यंग्य हिंदी बनाम अंग्रेज़ी….. September 15, 2012 / September 15, 2012 by इक़बाल हिंदुस्तानी | 2 Comments on हिंदी बनाम अंग्रेज़ी….. इक़बाल हिंदुस्तानी हिंदीवाले सीधेसादे भोलेभाले, अंग्रेज़ीवाले रौब मारते बैठेठाले। राष्ट्रभाषा की करते हैं उपेक्षा, विदेशीभाषा से रखते हैं अपेक्षा। साल में एक दिन ‘हिंदी दिवस’ मनाते हैं, पूरे वर्ष अंग्रेज़ी से काम चलाते हैं। बात बात पर हिंदी हिंदी चिल्लाते हैं, लेकिन अपने बच्चो को अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाते हैं। […] Read more » poem by iqbal hidustan हिंदी बनाम अंग्रेज़ी.....
व्यंग्य कमाल पिछले दरवाजे का-प्रभुदयाल श्रीवास्तव September 11, 2012 / September 25, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 2 Comments on कमाल पिछले दरवाजे का-प्रभुदयाल श्रीवास्तव एक लड़की थी गोरी नारी सुंदर गोल मटोल| यह तो नहीं मालूम उसने कितने बसंत पार किये थे किंतु वह जवान थी और कुँवारी भी|उसके बाप का मकान बीच शहर में था| लड़की यदा कदा मकान की छत पर खड़ी हो जाती और् धूप अटारी पर खड़ी खोले सिर के बाल वाली कहावत चरितार्थ करती […] Read more »
व्यंग्य मैडम मोरी मैं नहीं कोयला खायो September 9, 2012 / September 10, 2012 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 12 Comments on मैडम मोरी मैं नहीं कोयला खायो राम कृष्ण खुराना मैडम मोरी मैं नहीं कोयला खायो ! विपक्षी दल सब बैर पडे हैं, बरबस मुख लिपटायो ! चिट्ठी-विट्ठी इन बैरिन ने लिखी, मोहे विदेस पठायो ! मैं बालक बुद्धि को छोटो, मोहें सुबोध कांत फसायो ! हम तो कुछ बोलत ही नाहीं, सदा मौन रह जायो ! इसीलिए मनमोहन सिंह से मौन […] Read more » colgate scam
व्यंग्य प्रतियोगितायें आज के संदर्भ में-प्रभुदयाल श्रीवास्तव September 7, 2012 / September 25, 2012 by रतन मणि लाल मिस्टर गड़बड़िया हमारे भूतपूर्व पड़ौसी हैं|भूतपूर्व इसलिये कि वे हमेशा मकान बदलते रहते हैं|जिस प्रकार नेताओं को दल बदलने की बीमारी होती है गड़बड़िया को मकान बदलने की बीमारी है|अपने अपने शौक हैं बदलने के,कुछ कार बदलने में अपनी शान समझते हैं कुछ लोग बाईक बदलकर अपनी भड़ास निकाल लेते हैं|विदेशों में तो साल बदला […] Read more »