व्यंग्य लुंगी पर एक शोध प्रबंध-प्रभुदयाल श्रीवास्तव September 22, 2012 / September 25, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 2 Comments on लुंगी पर एक शोध प्रबंध-प्रभुदयाल श्रीवास्तव प्रस्तुत अंश देश के होनहार एवं प्रगतिशील विचारधारा वाले समाज शास्त्र के एक पी. एच. डी. के एक छात्र द्वारा प्रेषित शोध प्रबंध से लिया गया है। वह छात्र मेरे पास आया था एवं लुंगी पर लिखा यह अद्वितीय एवं अमूल्य शोध प्रबंध मुझसे जंचवाया था। मैंने अपनी तीसरी एवं सबसे तरोताजा प्रेमिका के सहयोग […] Read more » लुंगी पर एक शोध प्रबंध
व्यंग्य प्यारी दीदी, सॉरी दीदी, मान जाओ! September 21, 2012 / September 21, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम अरी ओ ममता दीदी! तुमने तो हद कर दी! हमें औरों से तो ये उम्मीद थी पर कम से कम तुमसे ये उम्मीद न थी। अब हमें मंझधार में किसके सहारे छोड़ दिया री दीदी! ऐसे तो अपने भार्इ के साथ दुश्मन भी नहीं करता। तुम्हारे लिए हमने क्या क्या नहीं किया दीदी? […] Read more » satire on politics
व्यंग्य ऊंट तू किस करवट बैठेगा-प्रभुदयाल श्रीवास्तव September 20, 2012 / September 25, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment ऊंट का नाम तो सभी ने सुना होगा|जिन्होंने न सुना हो उनकी जानकारी के लिये बता दूं कि यह एक चार पैरों वाला ऊंचा सा जानवर होता है जिसकी एक पूंछ और लंबी सी गरदन होती है|इसे मरुस्थल का जहाज़ कहते हैं| सैकड़ों मील गरम रेत में चलता रहता है और थकता नहीं|इसके गले में […] Read more »
व्यंग्य हिंदी बनाम अंग्रेज़ी….. September 15, 2012 / September 15, 2012 by इक़बाल हिंदुस्तानी | 2 Comments on हिंदी बनाम अंग्रेज़ी….. इक़बाल हिंदुस्तानी हिंदीवाले सीधेसादे भोलेभाले, अंग्रेज़ीवाले रौब मारते बैठेठाले। राष्ट्रभाषा की करते हैं उपेक्षा, विदेशीभाषा से रखते हैं अपेक्षा। साल में एक दिन ‘हिंदी दिवस’ मनाते हैं, पूरे वर्ष अंग्रेज़ी से काम चलाते हैं। बात बात पर हिंदी हिंदी चिल्लाते हैं, लेकिन अपने बच्चो को अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाते हैं। […] Read more » poem by iqbal hidustan हिंदी बनाम अंग्रेज़ी.....
व्यंग्य कमाल पिछले दरवाजे का-प्रभुदयाल श्रीवास्तव September 11, 2012 / September 25, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 2 Comments on कमाल पिछले दरवाजे का-प्रभुदयाल श्रीवास्तव एक लड़की थी गोरी नारी सुंदर गोल मटोल| यह तो नहीं मालूम उसने कितने बसंत पार किये थे किंतु वह जवान थी और कुँवारी भी|उसके बाप का मकान बीच शहर में था| लड़की यदा कदा मकान की छत पर खड़ी हो जाती और् धूप अटारी पर खड़ी खोले सिर के बाल वाली कहावत चरितार्थ करती […] Read more »
व्यंग्य मैडम मोरी मैं नहीं कोयला खायो September 9, 2012 / September 10, 2012 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 12 Comments on मैडम मोरी मैं नहीं कोयला खायो राम कृष्ण खुराना मैडम मोरी मैं नहीं कोयला खायो ! विपक्षी दल सब बैर पडे हैं, बरबस मुख लिपटायो ! चिट्ठी-विट्ठी इन बैरिन ने लिखी, मोहे विदेस पठायो ! मैं बालक बुद्धि को छोटो, मोहें सुबोध कांत फसायो ! हम तो कुछ बोलत ही नाहीं, सदा मौन रह जायो ! इसीलिए मनमोहन सिंह से मौन […] Read more » colgate scam
व्यंग्य प्रतियोगितायें आज के संदर्भ में-प्रभुदयाल श्रीवास्तव September 7, 2012 / September 25, 2012 by रतन मणि लाल मिस्टर गड़बड़िया हमारे भूतपूर्व पड़ौसी हैं|भूतपूर्व इसलिये कि वे हमेशा मकान बदलते रहते हैं|जिस प्रकार नेताओं को दल बदलने की बीमारी होती है गड़बड़िया को मकान बदलने की बीमारी है|अपने अपने शौक हैं बदलने के,कुछ कार बदलने में अपनी शान समझते हैं कुछ लोग बाईक बदलकर अपनी भड़ास निकाल लेते हैं|विदेशों में तो साल बदला […] Read more »
व्यंग्य आमरण अनशन के पैरोकार-प्रभुदयाल श्रीवास्तव September 2, 2012 / September 25, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment झंडूलाल झापड़वाले कोई साधारण आदमी नहीं हैं| वह एक खास आदमी हैं और उनकी इसी खासियत ने उन्हें शहर का गणमान्य नागरिक बना दिया है|देश के हित में और देश की गरीब और सरकार की मारी निरीह जनता के हित में जब जब भी आमरण अनशन की बात होती है झंडूलाल झापड़वाले को याद किया […] Read more » आमरण अनशन आमरण अनशन के पेरोकार
व्यंग्य मिटाएँ भूख इन कुंभकर्णों की August 20, 2012 / August 20, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य मिटाएँ भूख इन कुंभकर्णों की वरना ये मर भी न पाएंगे चैन से भूखे की भूख शांत करना दुनिया का सबसे बड़ा पुण्य है। इसके मुकाबले कोई दूसरा पुण्य हो ही नहीं सकता। यों देखा जाए तो भूख इतना विराट और व्यापक शब्द है जो कभी भी, कहीं भी, किसी भी समय […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य बाण : बातों और वायदों का ओलम्पिक August 19, 2012 / August 20, 2012 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार शर्मा जी बचपन से ही खेलकूद में रुचि रखते हैं। यद्यपि उन्होंने आज तक किसी प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया। इसलिए पुरस्कार जीतने का कोई मतलब ही नहीं; पर कबाड़ी बाजार से खरीदे कप, ट्रॉफी और शील्डों से उनका कमरा भरा है, जिसे वे हर आने-जाने वाले को विभिन्न राज्य और राष्ट्र स्तर […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य:अबके पूरे छह हजार! August 19, 2012 / August 18, 2012 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य:अबके पूरे छह हजार! हालांकि उनके आजकल रमजान के रोजे चले हैं। बंदे हैं कि दिनभर पानी भी नहीं लेते तो नहीं लेते। अच्छी बात है, इसी बहाने हमारे मुहल्ले के नलकों का पानी भरी बरसात में तो बच रहा है! नहीं तो भर बरसात में नल के पास होने वाली लड़ार्इ में न चाहते हुए बाल्टी नचाते उन्हें […] Read more »
व्यंग्य ईमानदारों पर भौंकते और गुर्राते हैं कुत्ते August 19, 2012 / August 18, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | 2 Comments on ईमानदारों पर भौंकते और गुर्राते हैं कुत्ते डॉ. दीपक आचार्य कलियुग में ईमानदारों पर भौंकते और गुर्राते हैं कुत्ते वह जमाना अब चला गया जब त्रेता युग में कुत्ते भी मनुष्य की वाणी बोलते थे। वो जमाना भी करीब-करीब चला ही गया है जिसमें चोर-उचक्कों और संदिग्धों को देख-सूंघ कर भौंकते थे कुत्ते। युधिष्ठिर का जमाना भी गुजर गया जब वफादारी दिखाने […] Read more »