व्यंग्य पैसे की भाषा December 25, 2010 / December 18, 2011 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार इन दिनों शादी-विवाह का मौसम है। जिधर देखो उधर ‘आज मेरे यार की शादी है’ की धुन पर नाचते लोग मिल जाते हैं। कुछ लोगों को इस शोर या सड़क जाम होने से परेशानी होती है; पर वे यह सोच कर चुप रहते हैं कि अपनी जवानी में उन्होंने भी यही किया था। […] Read more » Money पैसे
व्यंग्य यूपीए सरकार और भ्रष्टाचार December 24, 2010 / December 18, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 3 Comments on यूपीए सरकार और भ्रष्टाचार पंडित सुरेश नीरव यूपीए सरकार और भ्रष्टाचार एक-दूसरे के अभिन्न पूरक त्तव हैं। जैसे हायड्रोजन और ऑक्सीजन के मिलने से पानी बनता है वैसे ही है इनका अटूट मिलन। और जैसे पानी की रासायनिक सरंचना में से हायड्रोजन और ऑक्सीजन में से किसी एक को अलग करने पर पानी पानी नहीं रहता बल्कि पानी शर्म […] Read more » UPA Government भ्रष्टाचार यूपीए सरकार
व्यंग्य व्यंग्य: वर्तमान परिदृश्य December 24, 2010 / December 18, 2011 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार बहुत पुरानी बात है। एक रानी के दरबार में राजा नामक एक मुंहलगा दरबारी था। रानी साहिबा मायके संबंधी किसी मजबूरी के चलते गद्दी पर बैठ नहीं सकीं। बेटा छोटा और अनुभवहीन था, इसलिए उन्होंने अपने एक विश्वासपात्र सरदार को ही गद्दी पर बैठा दिया। वे उस राज्य को महारानी की कृपा समझ […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ चातक वैष्णव प्याज पुकारे December 24, 2010 / December 18, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम उनकी पार्टी के बीसियों समाज सेवकों के पास बीसियों धक्के खाने के बाद बड़ी मुश्किल से अपनी चिंता पर उनकी चिंता व्यक्त करा अपनी चिंता से मुक्त होने के लिए उनके दरबार में हाजिर हुआ तो देखता क्या हूं कि वे तो चिंताओं से मुझसे भी अधिक शोभायमान हैं। सिर से पांव तक […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/ रेडियोएक्टिव साहित्यकार December 22, 2010 / December 18, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव अपने लपकू चंपक जुगाड़ीजी आजकल रेडियो एक्टिव साहित्यकार हो गए हैं। यूरेनियम-जैसे रेडियो एक्टिव पदार्थ में और रेडियोएक्टिव साहित्यकार में सिर्फ इतना फ़र्क होता है कि रेडियोएक्टिव साहित्यकार हमेशा अपनी दम पर सक्रिय रहता है वहीं रेडियोएक्टिव साहित्यकार सिर्फ रेडियो में नोकरी लगने के बाद ही सक्रिय होता है। और जैसे ही […] Read more » vyangya
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/ निजी कारणों से हुई सरकारी मौत December 17, 2010 / December 18, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव बांसुरी प्रसादजी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि ज़िंदगीभर चैन की बांसुरी बजानेवाले बांसुरी प्रसाद की मौत सरकार के जी का जंजाल बन जाएगी। संवेदनशील सरकार का एक कलाकार की मौत पर परेशान होना लाजिमी है। और फिर बांसुरी प्रसादजी तो सरकार के बुलाने पर ही लोक-कला-संगीत के जलसे में भाग […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ किरकिटवा उर्फ किस्सा ए सत्र December 17, 2010 / December 18, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम पहाड़ों से ऊंचे पेड़ों से सूरज पूरी तरह ढका होने के बाद भी जनता के हिस्से की चुराई गुनगुनी धूप का आंनद ले रहा था कि सामने अपने सरकारी प्राइमरी स्कूल में छुट्टियां होने के बाद अपने बेड़े के बच्चे तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार गुड्डू मौसी के फटे कुरते की गेंद, छिंबा ताऊ […] Read more » vyangya
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/ झूठ की मोबाइल अकादमीः पिद्दी राजा December 14, 2010 / December 18, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव सच बोलने के लिए दिमाग की जरूरत नहीं पड़ती है। जब से मैंने यह महावाक्य पढ़ा और सुना है तभी से जितने भी दिमागी-विद्वान लोग हैं, उन्हें मैं झूठा मानने लगा हूं। और दुनिया के जितने भी झूठे हैं,उन्हें विद्वान। इस समीकरण के मुताबिक जो जिस दर्जे का झूठा वो उसी दर्जे […] Read more » Mobile मोबाइल
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य /हवासिंह हवा-हवाई December 13, 2010 / December 18, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव जब से हवासिंह किसी ऊपरी हवा के प्रभाव में आए हैं बेचारे की तो हवा ही खराब हो गई है। और हवा हुई भी इतनी खराब है कि नाक की प्राणवायु और कूल्हे की अपान वायु में कोई भेद नहीं रह गया है। हवा का ऐसा हवाई सदभाव हवाईसिंह-जैसे बिरलों को ही […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य / सत्यवीरजी के झूठे बयान December 6, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 2 Comments on हास्य-व्यंग्य / सत्यवीरजी के झूठे बयान पंडित सुरेश नीरव सत्यवीरजी का दावा है कि वे कभी झूठ नहीं बोलते और उनके जाननेवालों का दावा है कि सत्यवीरजी से बड़ा झूठा उन्होंने अपनी ज़िंदगी में आजतक नहीं देखा है। उनके जन्म को लेकर किंवदंती प्रचलित है कि जिस गांव में सत्यवीरजी का जन्म हुआ वहां सत्यवीरजी के जन्म से ठीक पहले सौ […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य क्या फायदा बड़े होने में December 6, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on क्या फायदा बड़े होने में -पंडित सुरेश नीरव ये छोटेपन का दौर है। कभी छुटपन में पढ़ा था कि बड़ा हुआ तो क्या हुआ,जैसे पेड़ खजूर..मगर अब जब बड़े हुए तब समझ में आई बड़ेपन की फालतूनेस। और छोटेपन की यूजफुल उपयोगिता। जिधर देखो उधर छोटेपन का जलबा। छोटेपन का दंभ। बड़े तो बेचारे अपने बड़प्पन की शर्मिंदगी के मारे […] Read more » Profit फायदा
व्यंग्य व्यंग्य / चक्कर करोड़पति बनने का December 3, 2010 / December 19, 2011 by गिरीश पंकज | 1 Comment on व्यंग्य / चक्कर करोड़पति बनने का -गिरीश पंकज हम अपने मित्र लतखोरीलाल के घर पहुँचे। देखा तो वे सामान्य ज्ञान की किताबों से घिरे हुए हैं। मैं चकराया। इस प्रौढ़ावस्था में ये पट्ठा कौन-सी परीक्षा की तैयारी में भिड़ा हैं। पूछने पर शरमाते हुए बोले – ”हे…हे…बस, ऐसे ही…” ”अरे, शरमाओ मत, बता भी दो। कहीं से कोई अच्छी संभावना हो […] Read more » vyangya व्यंग्य