व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/ झूठ की मोबाइल अकादमीः पिद्दी राजा December 14, 2010 / December 18, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव सच बोलने के लिए दिमाग की जरूरत नहीं पड़ती है। जब से मैंने यह महावाक्य पढ़ा और सुना है तभी से जितने भी दिमागी-विद्वान लोग हैं, उन्हें मैं झूठा मानने लगा हूं। और दुनिया के जितने भी झूठे हैं,उन्हें विद्वान। इस समीकरण के मुताबिक जो जिस दर्जे का झूठा वो उसी दर्जे […] Read more » Mobile मोबाइल
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य /हवासिंह हवा-हवाई December 13, 2010 / December 18, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव जब से हवासिंह किसी ऊपरी हवा के प्रभाव में आए हैं बेचारे की तो हवा ही खराब हो गई है। और हवा हुई भी इतनी खराब है कि नाक की प्राणवायु और कूल्हे की अपान वायु में कोई भेद नहीं रह गया है। हवा का ऐसा हवाई सदभाव हवाईसिंह-जैसे बिरलों को ही […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य / सत्यवीरजी के झूठे बयान December 6, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 2 Comments on हास्य-व्यंग्य / सत्यवीरजी के झूठे बयान पंडित सुरेश नीरव सत्यवीरजी का दावा है कि वे कभी झूठ नहीं बोलते और उनके जाननेवालों का दावा है कि सत्यवीरजी से बड़ा झूठा उन्होंने अपनी ज़िंदगी में आजतक नहीं देखा है। उनके जन्म को लेकर किंवदंती प्रचलित है कि जिस गांव में सत्यवीरजी का जन्म हुआ वहां सत्यवीरजी के जन्म से ठीक पहले सौ […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य क्या फायदा बड़े होने में December 6, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on क्या फायदा बड़े होने में -पंडित सुरेश नीरव ये छोटेपन का दौर है। कभी छुटपन में पढ़ा था कि बड़ा हुआ तो क्या हुआ,जैसे पेड़ खजूर..मगर अब जब बड़े हुए तब समझ में आई बड़ेपन की फालतूनेस। और छोटेपन की यूजफुल उपयोगिता। जिधर देखो उधर छोटेपन का जलबा। छोटेपन का दंभ। बड़े तो बेचारे अपने बड़प्पन की शर्मिंदगी के मारे […] Read more » Profit फायदा
व्यंग्य व्यंग्य / चक्कर करोड़पति बनने का December 3, 2010 / December 19, 2011 by गिरीश पंकज | 1 Comment on व्यंग्य / चक्कर करोड़पति बनने का -गिरीश पंकज हम अपने मित्र लतखोरीलाल के घर पहुँचे। देखा तो वे सामान्य ज्ञान की किताबों से घिरे हुए हैं। मैं चकराया। इस प्रौढ़ावस्था में ये पट्ठा कौन-सी परीक्षा की तैयारी में भिड़ा हैं। पूछने पर शरमाते हुए बोले – ”हे…हे…बस, ऐसे ही…” ”अरे, शरमाओ मत, बता भी दो। कहीं से कोई अच्छी संभावना हो […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग/ रिश्तों का सुपरपावर देश भारत December 2, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव ये कितनी नाइंसाफी है कि बेचारा आदमी एक और उसकी जान को रिश्ते अनेक। बेचारा कहां जाए। और कितने रिश्ते निभाए। एक को पकड़ो तो दूसरा मेंढक की तरह उछलकर दूर खड़ा हो जाता है। हम यह तो फिजूल ही कहते हैं कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है। असलियत में तो […] Read more » India भारत
व्यंग्य व्यंग/ परंपरा की परंपरा December 2, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव हमें गर्व है कि हम हिंदुस्तानी हैं। जहां आज भी परंपराओं को निभाने की परंपरा जिंदा है। भले ही आदमियत मर चुकी हो। पैदा होने से लेकर मरने तक यहां आदमी परंपराओं को निभाता है। सच तो यह है कि यहां आदमी परंपराओं को ही ओढ़ता है औऱ परंपराओं को ही बिछाता […] Read more » Tradition परंपरा
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : रपट कूकर कॉलौनी की November 29, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 2 Comments on हास्य-व्यंग्य : रपट कूकर कॉलौनी की मैं नगर के सबसे पॉश इलाके में रहता हूं। चाय के उत्पादन से लिए जैसे दार्जिलिंग और बरसात के मामले में चेरापूंजी की प्रतिष्ठा है,ठीक वैसे ही कुत्तों के मामले में हमारी कॉलौनी का भी अखिल भारतीय रुतबा है। एक-से-एक उच्चवर्णी और कुलीन गोत्रों के कुत्ते इस कूकर कॉलौनी में निवास करते हैं। इसलिए ही […] Read more » vyangya पंडित सुरेश नीरव हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/ मुन्ना बदनाम हुआ धन्नो ये तेरे लिए November 26, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य/ मुन्ना बदनाम हुआ धन्नो ये तेरे लिए पंडित सुरेश नीरव हम बदनाम भी हुए तो कुछ गम नहीं…चलो इस बहाने नाम तो हुआ। नामचीन होने के तमाम बहाने आजमाने के बाद दुनियाभर के आम आदमी ने सर्वसम्मति से नामचीन होने के लिए बदनाम होने के फार्मूले को ही सबसे सुविधापूर्ण और सम्मानजनक नुस्खा पाया है। इसमें सबसे बड़ा लाभ तो उसे ये […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य/विपक्ष का मुंह बंद कर दिया रे…… November 20, 2010 / December 19, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम ‘मेरे पास आओ मेरे दोस्तों एक किस्सा सुनाऊं….. मेरे पास आओ मेरे दोस्तों एक किस्सा सुनाऊं। किसका किस्सा सुनोगे? राष्ट्रमंडल खेलों में खिलाड़ियों से अधिक सोना बटोरने वाले दरबारियों का?’ ‘नहीं, सोने से अधिक प्यारा तो हमें भूखे सोना है। क्योंकि अपनी सरकार चुनने के बाद भी हमारी किस्मत में बस रोना है।’ […] Read more » mouth shut of opponent विपक्ष का मुंह बंद कर दिया
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य: भवन निर्माण का कच्चामाल November 18, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य: भवन निर्माण का कच्चामाल भारत देश ऋषि और कृषि प्रधान देश है। जब ऋषियों की फसल कृषि से भी अधिक होने लगी तो मजबूरी में ऋषियों ने भी कृषि कार्य शुरू कर दिया। इस खेती-बाड़ी के चक्कर में न जाने आजतक कितने ऋषि खेत रहे यह शोध का एक पक्ष है, हमारे ऋषियों का। मगर एक दूसरा पक्ष भी […] Read more » raw material in house building पंडित सुरेश नीरव हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य : इस खाकी वर्दी में बड़े-बड़े गुण… November 18, 2010 / December 19, 2011 by गिरीश पंकज | 4 Comments on व्यंग्य : इस खाकी वर्दी में बड़े-बड़े गुण… पुलिस विभाग की कुछ महान आत्माओं का अपना एक गीत है—”इस वर्दी में बड़े-बड़े गुण”. लाख सुखों का इक अड्डा है, आ भरती हो जा.. आ भरती हो जा”. उस दिन की बात है जब एक पुलिस वाला”देश भक्ति, जन सेवा”के लिये गंगाजल की कसम खा रहा था तो लोग चकरा गए. पुलिसवाला और गंगाजल […] Read more » importance of police dress खाकी वर्दी में बड़े-बड़े गुण