व्यंग्य व्यंग्य : हे कुत्ते, तुझे सलाम!! July 26, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य : हे कुत्ते, तुझे सलाम!! वे मेरे परमादरणीय पड़ोसी हैं। मेरे लिए रोल माडल हैं। परमादरणीय इसलिए कि उन्होंने मुझे दुनियादारी की बहुत सी बातें सिखाई हैं। उनके ही आशीर्वाद से मैं यहां तक मक्खन लगाने की कला में निपुण हो पाया हूं। वे न होते तो कसम खाकर कहता हूं कि आज मैं एक अच्छे पद पर होने के […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ तालियां! तलियां!! तलियां!!! July 21, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ तालियां! तलियां!! तलियां!!! पहाड़ पर एक गांव था। गांव में सबकुछ था। पर पानी न था। कई बार चुनाव आए। वहां के लोगों से भरे पूरे मुंह मंत्रियों ने वोट के बदले पानी पहुंचाने के वादे किए और वोट ले रफूचक्कर होते रहे। और वे बेचारे पहाड़ पर से कोसों नीचे बहती नदी को देख अपनी प्यास बुझाते […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य : यार, लौट आओ!! – डॉ. अशोक गौतम July 19, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य : यार, लौट आओ!! – डॉ. अशोक गौतम इस इश्तहार के माध्यम से सर्व साधारण को एक बार फिर सूचित किया जाता है कि हमारे मुहल्ले का पिछले कई महीनों से गुम हुआ प्रेम अभी भी गुम है। इस बारे मैं कई बार देश के प्रमुख समाचार पत्रों के माध्यम से इश्तहार भी दे चुका हूं। पर आज तक न तो सूचना पढ़कर […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ बिन जूते सब सून/ अशोक गौतम July 17, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment विश्व आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा हो तो गुजरता रहे भाई साहब! मुझे विश्व की आर्थिक मंदी से कोई लेना देना नहीं। विश्व को परेशान होते देख पत्नी ने मुझसे कहा, ‘जब तक मैं चाय बनाती हूं, विश्व को ढांढस बंधा आओ।’ ‘मेरे अपने रोने ही क्या कम है जो विश्व के रोने […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य चुंबन की आवाज़ और चांटा ! July 16, 2009 / December 27, 2011 by जयराम 'विप्लव' | 2 Comments on चुंबन की आवाज़ और चांटा ! मुशर्रफ, मनमोहन, ऐश्वर्या राय और सोनिया एक ट्रेन में यात्रा कर रहे हैं। ट्रेन एक सुरंग से निकलती है ट्रेन में अंधेरा हो जाता है। अचानक वहां एक चुंबन ध्वनि और फिर एक थप्पड़ की आवाज आती है। Read more » Slap आवाज़ चांटा
व्यंग्य व्यंग/मुआ समय के फेर May 15, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment इधर कम्बख्त चुनाव का दौर खत्म हुआ, उधर मेरे शहर में जूतों की दुकानों को ताले लगने की नौबत आ धमकी। कल तक जिन जूतों की दुकानों पर जूते खरीदने के लिए रेलमपेल हुई रहती थी... Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य/ अपनी राय दीजिए!! May 12, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment वे हाथ में कुछ लहराते हुए पटरी से उतरी रेल के डिब्बे की तरह मेरी ओर आ रहे थे। डर भी लगा, हैं तो मेरे ताऊ! पर इन दिनों ताऊ ही दुश्मनों से अधिक पगला रहे हैं। वैसे भी आज के दौर में दुश्मन कौन से माथे पर दुश्मन का लेबल लगाए आते हैं? सावधानी में ही सुरक्षा है सो मैं सावधान हो गया। असल में क्या है कि न पिछले दिनों मुझे मेरे उस पालतू कुत्ते ने काट दिया जिसे मैं अपने मुंह का भी कौर देता रहा था। Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/शपथ खा, मौज़ मना May 8, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment उसके बीसियों बार अपने बेटे के माध्यम से बुलाने पर मैं कुढ़ा, जला भुना उसके घर पहुंचा। हालांकि वह मेरा इमीजिएट पड़ोसी है। कहते हैं कि पेट और पड़ोस कभी खराब नहीं होने चाहिए। पर कहीं भी देख लो, आजकल और तो सब जगह सब ठीक है पर ये दो ही चीजें ठीक नहीं। Read more » vyangya व्यंग्य शपथ
व्यंग्य व्यंग्य/बुंदु उठ, लीडर बन April 27, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment बुंदु उठ, घराट बंद कर। चुनाव आ गया। खड्ड सूख गई। सिर में हाथ मत दे। परेशान मत हो। घराट का स्यापा मत कर। वोटर ही मत रह। वोटर होकर बहुत जी लिया। अब लीडर बन। Read more » vyangya लीडर व्यंग्य
राजनीति व्यंग्य एक समसामयिक राजनीतिक व्यंग्य – दीपक ‘मशाल’ April 15, 2009 / December 25, 2011 by दीपक चौरसिया ‘मशाल’ | 5 Comments on एक समसामयिक राजनीतिक व्यंग्य – दीपक ‘मशाल’ आज की ताज़ा खबर, आज की ताज़ा खबर... 'कसाब की दाल में नमक ज्यादा', आज की ताज़ा खबर...चौंकिए मत, क्या मजाक है यार, आप चौंके भी नहीं होंगे क्योंकि हमारी महान मीडिया कुछ समय बाद ऐसी खबरें बनाने लगे तो कोई बड़ी बात नहीं. Read more » political satire राजनीतिक व्यंग्य
व्यंग्य तीर ए नजर/ जा बेटा, कुर्सी तोड़!! April 14, 2009 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment इस स्कूल मास्टरी की वजह से कई बार घरवाली से जूते खा चुका हूं। बच्चे मुझे अपना बाप समझने में शरम समझते हैं। और वह अपनी बगल वाला माल मकहमे का चपड़ासी! उसके बच्चे भरे मुंह उसे बाप!बाप! कहते मुंह का थूक सुखाए रहते हैं। इधर-उधर के बच्चे भी जब उसे बाप-बाप कहते उसके पीछे दौड़ते हैं तो उसकी पत्नी का सीना फुट भर फुदकता है। Read more » satire by Ashok Gautam व्यंग
राजनीति व्यंग्य ‘जरनैलिज्म’ नहीं जर्नलिज्म April 14, 2009 / December 25, 2011 by आशुतोष | 2 Comments on ‘जरनैलिज्म’ नहीं जर्नलिज्म यह अघोरपंथी राजनीति का दौर है। या यूं कहें कि अघोरपंथी राजनीति पर भदेस किस्म की प्रतिक्रिया है। अघोरपंथ में सांसारिक बंधनों और लोक मर्यादाओं की परवाह नहीं की जाती। आज राजनीति भी... Read more » P. Chidambaram reporter Janrail Singh चिदंबरम जरनैल सिंह