व्यंग्य साहित्य व्यंग्य/ जनहित में जारी October 1, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | 4 Comments on व्यंग्य/ जनहित में जारी कल रात मेरा शानदार जानदार साठवां जन्म दिन था। मैंने यह श्रीमती के आदेश पर सोलहवें जन्म दिन की तरह धूमधाम से मनाया। क्या है न कि वह नहीं चाहती कि मैं बूढ़ा होने पर भी बूढ़ा हो जाऊं। कौन मालिक चाहेगा कि उसका गधा बूढ़ा हो? जग बूढ़ा हो रहा हो तो होता रहे। […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य साहित्य व्यंग्य/ अब मजे में हूं September 28, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ अब मजे में हूं तब मैं दफ्तर से कइयों की जेब काट कर शान से सीना चौड़ा किए घर आ रहा था कि रास्ते में मुहल्ले का वफादार कुत्ता मिल गया। कुत्ता वैसे ही उदास था जैसे अकसर आजकल समाज में वफादार लोग चल रहे हैं। ‘और कुत्ते क्या हाल हैं? रोटी राटी मिली आज कि…..’ ‘साहब ! रोटी […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य साहित्य व्यंग : पद्मश्री इन वेटिंग…. September 22, 2009 / December 26, 2011 by गिरीश पंकज | 2 Comments on व्यंग : पद्मश्री इन वेटिंग…. समाचार देखा तो अपन की वो खिल गई। वो यानी बाँझें। समाचार मनोरंजक था कि जिनको पद्म पुरस्कार चाहिए, वे दफ्तर आकर आवेदन पत्र ले जाएँ। वाह, क्या बात है। एक आवेदन पत्र ही तो जमा करना है। ‘आँख का अंधा नाम नयन सुख टाइप का कोई बैठा होगा तो पद्मश्री मिल भी सकती है। […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य/तथास्तु!! September 20, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment आप हों या न हों, होने के बाद भी खुल कर कह सकते हों या न, पर मैं सरेआम कहता हूं कि मैं साहब भक्त हूं। इस लोक में तो इस लोक में, तीनों लोकों में कोई एक भी ऐसे बंदे का नाम बता दें जो आज तक साहब भक्ति के बिना भव सागर तो […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/हिंदी के श्रद्धेय पंडे September 15, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/हिंदी के श्रद्धेय पंडे इधर पितृ श्राद्धों का पखवाड़ा खत्म भी नहीं हुआ कि हिंदी श्राद्ध का पखवाड़ा षुरू हो गया। पंडों का फिर अभाव। श्राद्ध पितरों का हो या हिंदी का। भर पखवाड़ा श्रद्धालु पितरों और हिंदी की आवभगत पूरे तन से करते हैं। जिस तरह से पितृ श्राद्धों में कौवे खा खा कर तंग आ जाते हैं […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य: क्या करें, ये मास्टर मानते ही नहीं… September 11, 2009 / December 23, 2011 by पंकज व्यास | Leave a Comment क्या करें साब! ये लोग तो ऐसे नाक-भौं सिंकोड़ रहे हैं, जैसे बहुत बड़ी बात हो गई हो। शिक्षक दिवस के दिन शिक्षकों पर लाठी चार्ज क्या कर दिया, मानो पहाड़ टूट गया, आसमान फट गया, जिसको देखो वो सरकार की आलोचना करने में लगा है। कोई ताने कस रहा है, तो कोई व्यंग्य कर […] Read more » satire by pankaj vyas क्या करें ये मास्टर मानते ही नहीं
व्यंग्य व्यंग्य/कुछ कहिए प्लीज!! September 10, 2009 / December 23, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/कुछ कहिए प्लीज!! भाई जी, अब आप से छुपाना क्या! हम तो ठहरे जन्मजात दुर्बल! शादी से पहले और शादी के बाद बहुत कोशिश की कि दुर्बलता से छुटकारा मिले। पता नहीं कितने दावा करने वालों की गोलियां खाई, कभी बाप के पैसों की तो कभी ससुराल के पैसों की। अपने हाथों में और तो हर तरह की […] Read more » gव्यंग्य/कुछ कहिए प्लीजam!! satire by Ashok Gautam
व्यंग्य व्यंग्य/ बस यार बस!! September 4, 2009 / December 26, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ बस यार बस!! सुबह के साढ़े की दस बजे का टाइम हुआ होगा। मिसेज को दफ्तर रवाना करने के बाद लगे हाथ बरतन धो जरा धूप देखने के लिए दरवाजा खोल सीढ़ियों पर आराम फरमाने निकलने की सोच ही रहा था कि दरवाजे पर बेल हुई। कहीं श्रीमती दफ्तर से लौट तो नहीं आई! अरे अभी तो झाड़ू […] Read more » vyangya व्यंग्य
प्रवक्ता न्यूज़ व्यंग्य समाज बुद्ध सेक्स के पहरेदार के रूप में August 17, 2009 / December 27, 2011 by कनिष्क कश्यप | 3 Comments on बुद्ध सेक्स के पहरेदार के रूप में मैं लाफिंग बुद्धा से वाकिफ़ नही था। दिल्ली में मुलाकात हुई, एक माल मे सजे हुए थे। मैने सोचा धर्म का बाज़ार बुद्ध से कैसे सुशोभित हो रहा है। वह तो आकांक्षाओं को लगाम देने पर जोड़ देते थे और बाज़ार आकांक्षाओं पर आश्रित व्यवस्था है। बाज़ार एक कदम आगे बढ़ कर फ्यूचर ट्रेडिंग की […] Read more » Laughing Buddha मीडिया मॉनिटर
व्यंग्य व्यंग्य/बाल भोगी महाराज की जय!! August 8, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/बाल भोगी महाराज की जय!! समाज के तमाम सज्जनों की मानसिक कमजोरियों की वजह से, आपकी जेब, हैसियत और असंतोष के प्रति आपका अथाह प्रेम देखकर बाल भोगी जी महाराज आपका खराब हुआ वर्तमान सुधारने चौथी बार आपके शहर में पधार चुके हैं। तमाम मानसिक भोगियों को यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता होगी कि हम बाल भोगी हर भोग विद्या के […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/कुकुरमुत्ते का उगना ……। August 7, 2009 / August 7, 2009 by रामस्वरूप रावतसरे | Leave a Comment हम अपने दडबे में बैठे इस बात पर सोच को एकाग्र करने का सार्थक प्रयास कर रहे थे कि हमारे यहां पर आखिर एक कुकुरमुत्ता उग आने का हरसम्भव प्रयास क्यों कर रहा है? जबकि हमने ना ही तो कभी उसका बीजारोपण किया और ना ही ऐसा वातावरण बनाया कि वह हमारे यहां पर उगे […] Read more »
व्यंग्य व्यंग/रसोई घर में बनती सौ दिन की कार्य योजना August 6, 2009 / December 27, 2011 by रामस्वरूप रावतसरे | 1 Comment on व्यंग/रसोई घर में बनती सौ दिन की कार्य योजना हम कमरे में बैठे टकटकी लगाये बाहर देख रहे थे कि कब गृहलक्ष्मी अपने कामों से फ्री हो और हमें भोजन मिले। पर गृहलक्ष्मी की स्थिति यह थी कि वह क्या कर रही है? किस कार्य में लगी है। मालूम ही नहीं चल रहा था। हमने उसे बार-बार पूछा कि आज क्या बात है, वह […] Read more » vyangya व्यंग