कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार धरती के माथे का तिलक गोवर्धन, जहाँ ईश्वर ने विनम्रता सिखाई October 21, 2025 / October 21, 2025 by उमेश कुमार साहू | Leave a Comment भारतीय संस्कृति में पर्व केवल तिथियों के अनुसार मनाए जाने वाले उत्सव नहीं, बल्कि जीवन और प्रकृति के संतुलन को समझाने वाले अध्याय हैं। ऐसा ही एक दिव्य पर्व है – गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट भी कहा जाता है। यह दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है, जब सम्पूर्ण व्रज भूमि में श्रद्धा, भक्ति और उत्साह का अद्भुत संगम दिखाई देता है। परंतु इस पर्व का रहस्य केवल पूजा या परंपरा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानव-जीवन के अहंकार, विनम्रता, प्रकृति और भगवान के साथ सामंजस्य का गूढ़ संदेश देता है। अहंकार के गर्व को तोड़ने वाली लीला प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, जब इंद्र के मन में अपनी देवत्व-शक्ति का अहंकार अत्यधिक बढ़ गया, तो उन्होंने वर्षा के नियंत्रण को अपनी व्यक्तिगत सत्ता समझ लिया। वे भूल गए कि वर्षा भी उसी परम ब्रह्म की व्यवस्था का एक अंश है। उसी समय बालरूप श्रीकृष्ण ने व्रजवासियों को समझाया कि “हम सबका पोषण इंद्र नहीं, प्रकृति करती है – यह गोवर्धन पर्वत, यह गायें, यह वन-भूमि।” इंद्र-यज्ञ को रोककर उन्होंने व्रजवासियों से कहा कि वे इस पर्वत का पूजन करें, क्योंकि यह हमारी अन्नदात्री धरती का प्रतीक है। जब इंद्र को यह बात अहंकारजन्य लगी, तो उन्होंने प्रलयकारी वर्षा से गोकुल को डुबाने का प्रयास किया। परंतु वही बालक श्रीकृष्ण सात दिनों तक अपनी कनिष्ठा अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाए खड़े रहे, और समस्त व्रज की रक्षा की। यह केवल चमत्कार नहीं था, बल्कि एक प्रतीकात्मक शिक्षा थी – जिसके भीतर श्रद्धा और करुणा का बल हो, उसके लिए प्रकृति भी सहायक बन जाती है। गोवर्धन की दिव्यता और प्रतीकात्मकता गोवर्धन केवल एक पर्वत नहीं, बल्कि जीवित चेतना का प्रतीक माना गया है। यह पर्वत धरती, जल, वायु और जीवन के संरक्षण का साक्षात् प्रतीक है। पुराणों में कहा गया है कि श्रीकृष्ण ने स्वयं को गोवर्धन के रूप में प्रकट कर यह दर्शाया कि ईश्वर प्रकृति में ही बसते हैं। गोवर्धन पूजा का अर्थ केवल पहाड़ की आराधना नहीं है, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है। यह पर्व हमें यह स्मरण कराता है कि मनुष्य का अस्तित्व पृथ्वी और पर्यावरण के संरक्षण से ही संभव है। जब हम गोवर्धन की पूजा करते हैं, तो वस्तुतः हम अपने अन्न, जल, पशु, वनस्पति और पर्यावरण का सम्मान करते हैं। अन्नकूट का दार्शनिक अर्थ गोवर्धन पूजा के दिन व्रजवासी तरह-तरह के अन्न और पकवान बनाकर उन्हें पर्वत के प्रतीक रूप में सजाते हैं, इसे अन्नकूट कहा जाता है। यह केवल भोग नहीं, बल्कि “अन्न ही ब्रह्म है” की वेदवाणी का प्रत्यक्ष प्रदर्शन है। इस दिन मनुष्य अपने श्रम और प्रकृति की देन के प्रति आभार प्रकट करता है। अन्नकूट यह सिखाता है कि समृद्धि तब तक अर्थहीन है जब तक उसमें बाँटने की भावना न हो। श्रीकृष्ण ने जब सबके साथ बैठकर अन्न का सेवन किया, तो यह सामाजिक समरसता और समानता का अद्भुत उदाहरण बना। विनम्रता का पाठ इंद्र का अहंकार तब शांत हुआ जब उन्होंने देखा कि जिस ‘बालक’ को वे साधारण मानव समझते थे, वही परमात्मा स्वयं हैं। वे पश्चाताप से भर उठे और श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक हो गए। इस क्षण में देवता से भी बड़ा दर्शन छिपा है – जिस क्षण अहंकार मिटता है, वहीं सच्चा देवत्व प्रकट होता है। आज जब मानव अपने विज्ञान, सत्ता और संपत्ति के बल पर स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने लगा है, तब गोवर्धन लीला यह याद दिलाती है कि अहंकार चाहे देवों में भी क्यों न हो, उसका पतन निश्चित है। गोवर्धन और आधुनिक संदर्भ यदि हम इस पर्व को आधुनिक दृष्टि से देखें, तो यह पर्यावरण चेतना का सबसे प्राचीन संदेश देता है। गोवर्धन पूजा बताती है कि मानव को केवल उपभोग नहीं, बल्कि संरक्षण का भाव रखना चाहिए। आज जब धरती जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अंधाधुंध उपभोग से कराह रही है, तब श्रीकृष्ण की यह लीला हमें पुनः सिखाती है कि — “धरती की पूजा करना ही सबसे श्रेष्ठ धर्म है।” गोवर्धन पूजा में गायों की सेवा, अन्न का दान, वृक्षों का पूजन और पशुधन की रक्षा, ये सब प्रतीक हैं संतुलित जीवन के। गोप और गोकुल की आत्मा गोवर्धन पूजा केवल धर्म का पालन नहीं, बल्कि प्रेम और समुदाय की अभिव्यक्ति भी है। जिस प्रकार सभी व्रजवासी बच्चे, वृद्ध, नारी, पुरुष एक साथ खड़े होकर संकट का सामना करते हैं, वही समाज की एकता का सबसे सुंदर उदाहरण है। आज जब समाज में विभाजन और स्वार्थ की दीवारें ऊँची हो रही हैं, तब गोवर्धन पर्व यह संदेश देता है कि “एकता और सहयोग से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।” गिरिराज की पावन स्मृति व्रजभूमि में आज भी गोवर्धन पर्वत के परिक्रमा-पथ पर लाखों श्रद्धालु जाते हैं। कहा जाता है कि जहाँ-जहाँ श्रीकृष्ण का चरण पड़ा, वहाँ की मिट्टी भी तिलक बन जाती है। गिरिराज के चरणों में झुकना, वास्तव में स्वयं के अहंकार को मिटाना है। गोवर्धन का प्रत्येक कंकड़ हमें यह सिखाता है कि जो झुकता है, वही ऊँचा उठता है। गोवर्धन का शाश्वत संदेश गोवर्धन पूजा केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि आत्मबोध का उत्सव है। यह हमें सिखाता है – · अहंकार का अंत ही दिव्यता की शुरुआत है। · प्रकृति का सम्मान ही सच्ची पूजा है। · समरसता और सहयोग ही जीवन का आधार हैं। जब-जब मानव अपने सीमित अस्तित्व को ईश्वर से बड़ा समझने लगेगा, तब-तब कोई न कोई श्रीकृष्ण उसे उसकी मर्यादा का स्मरण कराएगा। गोवर्धन पर्व इस बात का प्रतीक है कि ईश्वर हमारे बाहर नहीं, हमारे भीतर की विनम्रता और प्रेम में निवास करते हैं। और शायद यही कारण है कि यह पर्व दीपोत्सव के अगले दिन आता है, क्योंकि अहंकार के अंधकार के बाद ही भक्ति का प्रकाश फैलता है। उमेश कुमार साहू Read more » गोवर्धन पूजा
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार लक्ष्मी के रूप में समाई प्रकृति October 19, 2025 / October 19, 2025 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment प्रमोद भार्गवसमुद्र-मंथन के दौरान जिस स्थल से कल्पवृक्ष और अप्सराएं मिलीं, उसी के निकट से महालक्ष्मी मिलीं। ये लक्ष्मी अनुपम सुंदरी थीं, इसलिए इन्हें भगवती लक्ष्मी कहा गया है। श्रीमद् भागवत में लिखा है कि ‘अनिंद्य सुंदरी लक्ष्मी ने अपने सौंदर्य, औदार्य, यौवन, रंग, रूप और महिमा से सबका चित्त अपनी ओर खींच लिया।‘ देव-असुर सभी ने गुहार लगाई कि लक्ष्मी हमें मिलें। […] Read more » Nature in the form of Lakshmi लक्ष्मी के रूप में समाई प्रकृति
धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार धनतेरस धन के भौतिक एवं आध्यात्मिक समन्वय का पर्व October 17, 2025 / October 17, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment धनतेरस- 18 अक्टूबर, 2025-ललित गर्ग-धनतेरस का पर्व पंच दिवसीय दीपोत्सव की पवित्र श्रृंखला का आरंभिक द्वार है। यह केवल सोना-चांदी, वस्त्र या बर्तन खरीदने का शुभ दिन नहीं, बल्कि धन के प्रति हमारी सोच को पुनर्संतुलित करने का अवसर है। भारतीय संस्कृति में धन को सदैव देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है, परंतु यह […] Read more »
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार वर्त-त्यौहार रूप चतुर्दशी : आंतरिक सुंदरता और सकारात्मक ऊर्जा का महापर्व October 17, 2025 / October 17, 2025 by उमेश कुमार साहू | Leave a Comment दीपोत्सव विशेष : रूप चतुर्दशी 2025 ( दीपावली से एक दिन पहले ) उमेश कुमार साहू दीपावली से ठीक एक दिन पहले आने वाला रूप चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का उत्सव भी है। इस दिन को छोटी दिवाली और काली चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। जहाँ दीपावली धन और समृद्धि का […] Read more » दीपावली से एक दिन पहले दीपोत्सव विशेष : रूप चतुर्दशी 2025
कला-संस्कृति वर्त-त्यौहार पितृ ऋण से मुक्ति का पुण्यकाल है पितृ पक्ष September 8, 2025 / September 8, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment पितृ पक्ष: जहां श्रद्धा बनती है ऊर्जा और आशीर्वाद बनता है भाग्य– योगेश कुमार गोयलहिन्दू धर्म में पितृ पक्ष (श्राद्ध) को बहुत अहम माना गया है। श्राद्ध का अर्थ होता है ‘श्रद्धापूर्वक’। हमारे संस्कारों और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने को ही श्राद्ध कहा जाता है। सरल शब्दों में कहें तो दिवंगत परिजनों को […] Read more » Pitru Paksha is the auspicious time to get freedom from ancestral debt पितृ पक्ष
कला-संस्कृति वर्त-त्यौहार एक भाव है राखी, हर भाई-बहन को बांधती है स्नेह की डोर से August 8, 2025 / August 8, 2025 by राजेश जैन | Leave a Comment राजेश जैन रक्षाबंधन हर साल आता है पर हर साल कुछ नया दे जाता है- नई यादें, वादे और भरोसे। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि रिश्तों की असली मिठास महंगे उपहार में नहीं बल्कि उस धागे में होती है जो प्रेम, विश्वास और अपनेपन से बुना होता है। इसलिए भले ही राखी का धागा है बहुत हल्का […] Read more » रक्षाबंधन
कला-संस्कृति वर्त-त्यौहार रक्षाबंधन और सनातन संस्कृति August 7, 2025 / August 7, 2025 by डा. शिवानी कटारा | Leave a Comment डॉ शिवानी कटारा सनातन संस्कृति में ‘रक्षा’ और ‘बंधन’ दोनों ही अत्यंत महत्वपूर्ण अवधारणाएं हैं। ‘रक्षा’ का अर्थ केवल शारीरिक सुरक्षा नहीं, बल्कि भावनात्मक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रक्षा भी है। वहीं ‘बंधन’ किसी को बाधित करने वाला नहीं, बल्कि प्रेम, विश्वास और मर्यादा से जुड़ा आत्मिक संबंध है। रक्षाबंधन का मूल बहुत प्राचीन है । […] Read more » Rakshabandhan and Sanatan culture रक्षाबंधन
कला-संस्कृति वर्त-त्यौहार राष्ट्र रक्षाबंधन अनुष्ठान पर्व August 4, 2025 / August 4, 2025 by डा. विनोद बब्बर | Leave a Comment डा. विनोद बब्बर संस्कृति और पर्व एक दूसरे के उसी तरह से पूरक है जैसे नदी और जल। रक्त और मज्जा। शरीर और आत्मा। संस्कृति जीवन दर्शन, कला, साहित्य, अध्यात्म और संस्कारों जैसे असंख्य रंग-बिरंगे पुष्पों का वह गुलदस्ता है जिसकी सुगंध हजारों वर्षों से निरंतर प्रवाहमान है। पर्व समय-समय पर उस सुगंध की छटा […] Read more » Rakshabandhan national festival
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार सावन, शिव और प्रेम: भावनाओं की त्रिवेणी July 24, 2025 / July 24, 2025 by मनीषा कुमारी आर्जवाम्बिका | Leave a Comment सावन का महीना भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना में एक विशेष स्थान रखता है। यह वह समय है जब धरती हरी चादर ओढ़ लेती है, आकाश सावन की फुहारों से सज उठता है और हर ओर हरियाली और शीतलता का एक अनुपम संगम दिखाई देता है। इस मौसम में न केवल प्रकृति खिल उठती है, […] Read more » शिव और प्रेम
कला-संस्कृति वर्त-त्यौहार सावन मनभावन: भीगते मौसम में साहित्य और संवेदना की हरियाली July 7, 2025 / July 7, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment सावन केवल एक ऋतु नहीं, बल्कि भारतीय जीवन, साहित्य और संस्कृति में एक गहरी आत्मिक अनुभूति है। यह मौसम न केवल धरती को हरा करता है, बल्कि मन को भी तर करता है। लोकगीतों, झूले, तीज और कविता के माध्यम से सावन स्त्रियों की अभिव्यक्ति, प्रेम की प्रतीक्षा और विरह की पीड़ा का स्वर बन […] Read more » Sawan Manbhaaan: Greenery of literature and sensitivity in the wet season सावन
ज्योतिष धर्म-अध्यात्म राशिफल राहु-केतु बदलेंगे राशि , सभी राशियाँ होगी प्रभावित। May 21, 2025 / May 21, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment ज्योतिर्विद मनीष भाटिया वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मायावी ग्रह राहु और केतु ने लगभग 18 महीने के बाद,18 मई 2025 से अपना स्थान परिवर्तन किया है । राहु ग्रह मीन राशि से निकलकर कुंभ राशि में गोचर करेंगे और केतु ग्रह कन्या राशि से निकलकर सिंह राशि में गोचर करेंगे। राहु केतु की इस उल्टी चाल से लगभग सभी राशियां प्रभावित होंगीं। राहु केतु का यह राशि परिवर्तन कुछ राशियों के लिए तो बहुत ही शुभ रहेगा, औऱ कुछ राशि वालों के लिए बहुत ही सावधानी बरतने की आवश्यकता होगी। अलग-अलग राशियों पर राहु केतु के इस राशि परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ेगा।मेष राशि :- मेष राशि वाले जातकों के लिए राहु का राशि परिवर्तन लाभ स्थान से होगा । राहु का लाभ स्थान में गोचर बहुत ही शुभ माना जाता है। राहु के इस अच्छी परिवर्तन से मेष राशि वाले जातकों को कई स्रोतों से धन लाभ होने का योग बनेगा। वही केतु का गोचर मेष राशि वालों के पंचम भाव से होगा जो पेट संबंधित समस्याएं दे सकता है तथा विद्या अध्ययन में बाधा उत्पन्न करेगा। मेष राशि वालों के लिए शनि की साडेसाती भी चल रही है और धन का काफी व्यय और नुकसान होने के योग बन रहे हैं। राहु के गोचर से लाभ और शनि के गोचर से नुकसान, व्यय का योग बन रहा है। क्योंकि मेष राशि वालों की धनी की साडेसाती भी लगी हुई है अतः इनका बहुत ही सावधानी से चलना चाहिए। नौकरी और पारिवारिक जीवन में भी विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। मेष राशि वालों को हनुमान चालीसा पढ़ते रहने से तथा हनुमान मंदिर में जाकर दर्शन करने से काफी राहत महसूस होगी।वृष राशि :- वृषभ राशि वालों के लिए राहु का गोचर दसवें भाव से होगा तथा केतु का गोचर चौथे भाव से होगा।नौकरी में लाभ, स्थान परिवर्तन के योग तथा घरेलू सुख में बाधा उत्पन्न होने के योग हैं।माता की सेहत भी प्रभावित हो सकती है तथा माता के सुख में कुछ कमी आ सकती। वाहन सुख में भी कमी आएगी। वृषभ राशि वालों को अभी कोई भी जमीन ज्यादाद से संबंधित निवेश नहीं करना चाहिए। मां दुर्गा की पूजा करते रहने से लाभ के रास्ते खुलेंगे।मिथुन राशि :- मिथुन राशि वालों के लिए राहु का गोचर भाग्य भाव से होगा तथा केतु का गोचर तीसरे भाव से होगा।भाग्य में वृद्धि किंतु भाई बहनों से तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है। मिथुन राशि वालों को जो घरेलू परेशानियों चल रही थी उनसे काफी रात महसूस होगी। नई जमीन ज्यादाद एवं वाहन खरीदने के योग बनेंगे। मिथुन राशि वालों को गणेश भगवान जी की पूजा करते रहना चाहिए ।कर्क राशि :- राहु का गोचर अष्टम भाव तथा केतु का गोचर द्वितीय भाव में होगा। कर्क राशि वालों को आपकी चाहत का बहुत ध्यान रखना चाहिए तथा चोट चपेट से बचें, वाहन सावधानी से चलाएं। वाणी पर नियंत्रण रखें तथा पारिवारिक विवादों से बचें । कर्क राशि वालों को ससुराल पक्ष से तनाव होने के योग बनेंगे। विवादों से बचने का प्रयास करें। भगवान कृष्ण की शरण में रहे।सिंह राशि :- सिंह राशि वालों के लग्न में केतु और सप्तम भाव में राहु का गोचर होगा। बहुत ज्यादा गुस्सा आएगा। छोटी-छोटी बातों पर भी बहुत तनाव हो जाएगा और गुस्सा आ जाएगा। जीवनसाथी से भी तनाव की स्थिति उत्पन्न होगी। अपने गुस्से पर काबू करें । जीवनसाथी की सेहत भी प्रभावित होगी। अभी पार्टनरशिप के किसी भी कार्य में हाथ ना डालें। आपका शनि का अष्टम भाव भी चल रहा है। वर्तमान समय में सूर्य का गोचर दसवां भाग से चल रहा है। सूर्य के इस गोचर के प्रभाव से आपकी नौकरी में पिछले कई महीनो से जो समस्याएं चली आ रही थी वह पिछले एक महीने से काफी कम हो गई है और आप काफी राहत महसूस कर रहा है। किंतु 14 अगस्त के बाद जब सूर्य का गोचर आपके 12 वें भाव से होगा तो नौकरी में फिर से समस्याएं उठने लगेंगी । आपके लिए राहु, केतु, मंगल और शनि का गोचर अभी शुभ नहीं चल रहा और कर्क राशि के मंगल भी बारहवे भाव में चल रहा है। नौकरी में स्थानांतरण के योग बन रहे हैं। मंगल के गोचर से आपको नौकरी में कोई बड़ी समस्या आने के योग हैं किंतु सूर्य के गोचर राहत मिल रही है। रविवार का व्रत रखें एवं सूर्य भगवान को रोज जल देते रहे।मंगलवार को लाल मसूर की दाल का दान करें।कन्या राशि :- राहु केतु के एक गोचर से कन्या राशि वालों को काफी राहत महसूस होगी क्योंकि केतु आप ही की राशि में चल रहे थे और अब आपकी राशि से निकलकर सिंह राशि में चले जाएंगे। राहु का गोचर आपकी छठे भाव में होगा। राहु केतु का या गोचर कन्या राशि वालों के लिए काफी शुभ साबित होगा। पिछले कई वर्षों से चली आ रही मानसिक समस्याएं खत्म होगी। आपके विरोधी परास्त होंगे। नौकरी व्यवसाय में लाभ की स्थिति बनेगी।धार्मिक यात्राओं के योग बनेंगे। देवी माता की पूजा करना आपके लिए बहुत शुभ रहेगा।तुला राशि :- तुला राशि वालों के लिए राहु केतु का यह गोचर सामान्य रहेगा। पेट संबंधित कुछ परेशानियां बनी रहेगी। आय वृद्धि के योग बनेंगे।वृश्चिक राशि :- वृश्चिक राशि वालों के लिए राहु केतु का गोचर, घरेलू सुख में कमी करेगा। नौकरी व्यवसाय में बहुत ही संभल कर चलने की आवश्यकता है, स्थानांतरण के योग बनेंगे। माता के सुख में कमी महसूस होगी एवं माता के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना होगा। हनुमान जी की पूजा करना आपके लिए बहुत ही शुभ रहेगा।धनु राशि :- धनु राशि वाले जातकों के लिए राहु केतु का यह गोचर शुभ रहेगा। अभी तक आपके चौथे भाव में राहु और शनि का पिशाच योग बना हुआ था, अब राहु के वहां से निकल जाने से पिशाच योग भंग होगा। मानसिक तनाव में कमी आएगी परंतु मानसिक तनाव बना रहेगा क्योंकि आपका शनि का ढैया चल रहा है। घरेलू परेशानियों भी कुछ कम होगी। क्योंकि गुरु की दृष्टि आपकी लगन पर पड़ रही है इसलिए आपको मान सम्मान यश में वृद्धि होगी और गुरु के गोचर के प्रभाव से आपको काफी राहत मिलेगी।पीले चंदन का तिलक हर रोज अपने माथे पर लगाएं।मकर राशि :- राहु का गोचर आपके परिवार भाव में होगा और केतु का गोचर आपकी अष्टम भाव में होगा। अपनी सेहत का ध्यान रखें।अगर रीड की हड्डी से संबंधित कोई परेशानी है तो लापरवाही ना करें। पारिवारिक विवादों से बचने का प्रयास करें। अचानक से धन लाभ के योग भी बनेंगे। बिना कमाया हुआ धन मिलने का योग है। क्योंकि आपकी शनि की साडेसाती खत्म हो गई है और शनि का गोचर आपकी तृतीय भाव में है इसलिए शनि का लाभ आपको मिलता रहेगा। हनुमान जी की पूजा करते रहे एवं हनुमान चालीसा का जाप रोज करें।कुंभ राशि :- राहु का गोचर आप ही की राशि में होने जा रहा है। मानसिक तनाव से बचना होगा। छोटी-छोटी बातों को दिल से ना लगाएं। जीवनसाथी से विवाद बिल्कुल भी ना करें एवं उनकी चाहत का ध्यान रखें। अपने माथे पर रोज पीले चंदन का तिलक लगाए एवं भगवान विष्णु अथवा उनके किसी भी अवतार की पूजा करते रहें।मीन राशि :- मीन राशि वालों का शनि की साडेसाती का दूसरा चरण चल रहा है। अभी वर्तमान समय में शनि और राहु का पिशाच योग आप ही की राशि में बना हुआ था। राहु के इस राशि परिवर्तन से शनि राहु का पिशाच योग खत्म हो जाएगा, जिससे आपकी मानसिक तनाव में काफी कमी आएगी परंतु राहु का गोचर आपका व्यय भाव में होने से आपके खर्चों में निरंतर वृद्धि होगी। अभी 14 जून तक सूर्य भगवान का गोचर आपकी तृतीय भाव में रहेगा जिससे आपका धन भाव और परिवार पाप कर्तवी योग में रहेगा। राहु की पांचवी दृष्टि आपके घरेलू सुख पर पड़ेगी। अभी 15 जून तक कहीं भी किसी भी प्रकार का निवेश करने से बचे हैं क्योंकि आपका धन भाव पाप कर्तवी योग में चल रहा है। मीन राशि वाले जातकों की परेशानियां कुछ कम तो होगी लेकिन अभी खत्म नहीं होंगीं । हां गुरु बृहस्पति का गोचर आपके लिए शुभ रहेगा।अपने माथे पर रोज हल्दी का या पीले चंदन का तिलक लगाए।। ज्योतिर्विद मनीष भाटिया Read more » all zodiac signs will be affected. Rahu-Ketu will change the zodiac sign राहु-केतु बदलेंगे राशि
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार नव संवत्सर : भारत का नव वर्ष March 30, 2025 / March 31, 2025 by सुरेश हिन्दुस्थानी | Leave a Comment सुरेश हिन्दुस्थानी आज यह प्रामाणिक रूप से कहा जा सकता है कि अपने स्वर्णिम अतीत को विस्मृत करने वाला भारतीय समाज अब अपनी जड़ों की ओर लौट रहा है। सही मायनों में कहा जाए तो समाज प्राकृतिक होने की ओर कदम बढ़ा चुका है। विश्व की महान और शाश्वत परंपराओं का धनी भारत देश भले […] Read more » Nav Samvatsara: India's New Year नव संवत्सर