खान-पान मांसाहारी दूध पर भारत-अमेरिका विवाद: सांस्कृतिक मूल्यों और व्यापारिक हितों का टकराव August 11, 2025 / August 11, 2025 by सुरेश गोयल धूप वाला | Leave a Comment अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं के आयात पर 50 % टेरीफ लगाने के बाद भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव कई क्षेत्रों में देखा जा रहा हैं। लेकिन डेयरी उत्पादों को लेकर उठा विवाद विशेष रूप से संवेदनशील और गंभीर है। इस तनाव का प्रमुख कारण अमेरिका द्वारा भारत को गाय का दूध निर्यात करने […] Read more » मांसाहारी दूध पर भारत-अमेरिका विवाद
खान-पान खेत-खलिहान हाइड्रोपोनिक खेती: भविष्य की दिशा या सीमित समाधान? July 24, 2025 / July 24, 2025 by सचिन त्रिपाठी | Leave a Comment सचिन त्रिपाठी भारत कृषि प्रधान देश है परंतु कृषि आज भी एक असुरक्षित, अनिश्चित और घाटे का सौदा बनी हुई है। भूमि क्षरण, जल संकट, मौसम की मार, लागत में वृद्धि और बाजार की अस्थिरता ने किसानों को वैकल्पिक तकनीकों की ओर देखने के लिए मजबूर कर दिया है। ऐसे में ‘हाइड्रोपोनिक’ खेती अर्थात मिट्टी रहित, नियंत्रित वातावरण में पौधों की खेती को कृषि क्षेत्र के भविष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है लेकिन प्रश्न यह है कि क्या यह तकनीक भारत के किसानों के लिए व्यावहारिक और टिकाऊ समाधान बन सकती है? हाइड्रोपोनिक खेती की शुरुआत नीदरलैंड, इजरायल और अमेरिका जैसे देशों में हुई जहां भूमि और जल की सीमित उपलब्धता ने वैज्ञानिकों को नियंत्रित खेती की दिशा में प्रयोग के लिए प्रेरित किया। आज इजरायल इस तकनीक में वैश्विक अगुवा है जहाँ रेगिस्तानी क्षेत्रों में अत्याधुनिक हाइड्रोपोनिक फार्म फसल उत्पादन कर रहे हैं। अमेरिका और कनाडा में यह तकनीक शहरी कृषि, सुपरमार्केट और ग्रीन रेस्टोरेंट्स के लिए ताज़ी सब्जियों की आपूर्ति का मुख्य आधार बन चुकी है। जापान और सिंगापुर जैसे देश जहां कृषि भूमि सीमित है, वहां हाइड्रोपोनिक्स वर्टिकल फार्मिंग के साथ जोड़ा गया है। भारत में इस तकनीक को अब धीरे-धीरे अपनाया जा रहा है, विशेष रूप से बड़े शहरों और कुछ विकसित राज्यों में। बेंगलुरु, पुणे, हैदराबाद, गुरुग्राम, अहमदाबाद जैसे शहरों में कई निजी स्टार्टअप शहरी हाइड्रोपोनिक फार्मिंग को बढ़ावा दे रहे हैं। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, हरियाणा और तेलंगाना की सरकारों ने इस तकनीक के लिए कुछ प्रोत्साहन योजनाएं भी चलाई हैं। हालांकि भारत में अब तक यह तकनीक प्रायोगिक और व्यावसायिक सीमित क्षेत्रों तक ही केंद्रित है। गांवों या छोटे किसानों में इसका प्रसार नगण्य है। भारत सरकार की ‘स्मार्ट एग्रीकल्चर’ और ‘डिजिटल इंडिया’ पहल के तहत नवीन कृषि तकनीकों को बढ़ावा देने की दिशा में कुछ प्रयास हो रहे हैं। कृषि मंत्रालय ने ‘प्रिसिजन फार्मिंग’ और ‘कंट्रोल्ड एनवायरनमेंट एग्रीकल्चर’ को प्राथमिकता क्षेत्र बताया है और विभिन्न राज्य सरकारें स्टार्टअप्स को सहायता दे रही हैं परंतु, जमीनी स्तर पर इसे अपनाने में अभी भी कई बाधाएं हैं ,खासकर पूंजी, प्रशिक्षण और बुनियादी ढांचे की सीमाओं के कारण। हाइड्रोपोनिक सिस्टम की स्थापना में प्रति एकड़ ₹25 लाख से अधिक का खर्च आता है। 86% भारतीय किसान सीमांत और छोटे हैं जिनकी वार्षिक कृषि आय ₹1 लाख से भी कम है। यह तकनीक उनके लिए सुलभ नहीं है। यह खेती ‘लो टेक’ नहीं है। पीएच बैलेंस, इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी, नमी नियंत्रण, पोषक घोल का ज्ञान ये सब आवश्यक हैं। ग्रामीण किसानों के पास इसके लिए प्रशिक्षण और संसाधन नहीं हैं। सतत और गुणवत्ता युक्त जल तथा बिजली की उपलब्धता इस तकनीक की रीढ़ है। भारत के अनेक गांवों में अभी भी ये आधारभूत सुविधाएं बाधित रहती हैं। हाइड्रोपोनिक उत्पादों की मांग फिलहाल शहरी उच्च वर्ग तक सीमित है। बाजार की सीमाएं और मूल्य अस्थिरता इसे जोखिम भरा बना देती हैं। भारत में एक समान नीति लागू नहीं की जा सकती। जल संकट से जूझते राज्यों (जैसे राजस्थान, तमिलनाडु) और शहरी क्षेत्रों के पास स्थित बेल्ट्स को प्राथमिकता दी जाए। एफपीओ, एसएचजी या कृषि स्टार्टअप्स के माध्यम से साझा हाइड्रोपोनिक यूनिट्स को प्रोत्साहित किया जाए ताकि लागत और जोखिम का बंटवारा हो। केवीके और कृषि विश्वविद्यालयों के माध्यम से व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाए। अनुसंधान संस्थानों को भारतीय जलवायु के अनुकूल प्रणाली विकसित करने की दिशा में कार्य करना चाहिए। नाबार्ड और अन्य वित्तीय संस्थानों को हाई रिस्क कृषि निवेश के लिए विशेष स्कीम लानी चाहिए। बीमा सुरक्षा और मूल्य गारंटी योजना तकनीक को अपनाने में सहायक होगी। हाइड्रोपोनिक खेती कोई ‘मैजिक बुलेट’ नहीं है जो सभी समस्याओं का समाधान कर दे। परंतु यह तकनीक भारत के बदलते कृषि संदर्भ में एक महत्वपूर्ण उपकरण बन सकती है यदि इसे व्यवस्थित, नीति-सहायक और क्षेत्रीय जरूरतों के अनुसार लागू किया जाए। यह तकनीक उन किसानों के लिए व्यवहारिक है जो शहरी मांगों से जुड़े हैं, पूंजी और तकनीकी पहुंच रखते हैं, या जो संगठित समूहों के तहत काम करते हैं। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, एक तकनीक सभी के लिए नहीं हो सकती, लेकिन सही क्षेत्र, सही समूह और सही नीति के तहत हाइड्रोपोनिक खेती भविष्य की दिशा तय कर सकती है। सचिन त्रिपाठी Read more » Hydroponic Farming हाइड्रोपोनिक खेती
खान-पान लेख भूखमरी है विकास के विरोधाभासी स्वरूप की भयावह तस्वीर July 24, 2025 / July 24, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की हालिया रिपोर्ट ने एक बार फिर वैश्विक समुदाय को चेताया है कि धरती पर करोड़ों लोग आज भी भूख, कुपोषण और खाद्य असुरक्षा के शिकंजे में जकड़े हुए हैं। यह रिपोर्ट केवल आंकड़ों का लेखा-जोखा नहीं, बल्कि एक वैश्विक त्रासदी की दास्तान है, जो यह सोचने […] Read more » Hunger is a frightening picture of the contradictory nature of development
खान-पान लेख स्वास्थ्य बनाम स्वादः समोसा और जलेबी से सावधान! July 15, 2025 / July 15, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- भारत जैसे विविधताओं वाले देश में जहां हर नुक्कड़ पर समोसे की महक और जलेबी की मिठास लोगों को आकर्षित करती है, वहीं यह स्वादिष्ट व्यंजन अब स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी बनते जा रहे हैं। हमारी परंपराओं और खानपान में गहराई से जुड़े समोसा, कचोरी और जलेबी जैसे तली-भुनी और अत्यधिक […] Read more » Health vs Taste: Beware of Samosa and Jalebi!
खान-पान झारखण्ड का एक अनोखा जंगली मशरूम पुटू July 7, 2025 / July 7, 2025 by अशोक “प्रवृद्ध” | Leave a Comment –अशोक “प्रवृद्ध” झारखण्ड और छतीसगढ़ की सीमावर्ती जिलों के वनों, जंगलों में वर्षा ऋतु के प्रारम्भिक काल में स्वतः ही उगने, निकलने वाली पुटू नामक मशरूम के इस वर्ष कमोत्पति अर्थात कम उपज के कारण लोग इसके प्राकृतिक, असली और बेहतरीन स्वाद से वंचित होकर रह गए हैं। लोग मजबूरी में घरों में मशरूम की खेती से उत्पादित […] Read more » जंगली मशरूम पुटू
खान-पान आपका सादा खाना भी काफ़ी ‘ओइली’ है! June 27, 2025 / June 27, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment क्या आप जानते हैं कि आपका सादा खाना भी काफ़ी ‘ओइली’ है?नहीं, हम घी या सरसों तेल की बात नहीं कर रहे—हम बात कर रहे हैं उस कच्चे तेल की जिसकी कीमत इज़राइल-ईरान जैसे युद्धों से तय होती है, और जिसकी लत में डूबी है आज की पूरी खाद्य प्रणाली. आज चावल से लेकर चिप्स के पैकेट तक, खेत से […] Read more » सादा खाना भी काफ़ी ‘ओइली’ है
खान-पान मिलावट: मुंह में नहीं, ज़मीर में घुला ज़हर June 9, 2025 / June 9, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment मिलावट अब केवल खाने-पीने तक सीमित नहीं रही, यह हमारे सोच, संबंध, और व्यवस्था तक में घुल चुकी है। मूँगफली में पत्थर हो या दूध में डिटर्जेंट, यह मुनाफाखोरी की संस्कृति का विस्तार है। उपभोक्ता की चुप्पी, सरकार की ढील और समाज की “चलता है” मानसिकता ने इसे स्वीकार्य बना दिया है। मिलावट एक नैतिक […] Read more » Adulteration: Poison mixed in conscience मिलावट
खान-पान दुग्धशाला की शक्ति का परिचायक है आत्मनिर्भरता June 1, 2025 / June 2, 2025 by डॉ शंकर सुवन सिंह | Leave a Comment डॉ. शंकर सुवन सिंह दूध में कैल्शियम, मैग्नीशियम, ज़िंक, फास्फोरस, आयोडीन, आयरन, पोटैशियम, फोलेट्स, विटामिन ए, विटामिन डी, राइबोफ्लेविन, विटामिन बी-12, प्रोटीन आदि मौजूद होते हैं। गाय के वसा रहित दूध (स्किम्ड मिल्क) में कोलेस्ट्रॉल 2-5 मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर होता है। पूर्ण वसा (फुल क्रीम) वाले दूध में कोलेस्ट्रॉल 10-15 मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर […] Read more » Self-reliance is a testament to the power of a dairy
खान-पान लेख एमएसपी में वृद्धि :कृषि और किसान कल्याण को गति May 29, 2025 / May 29, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने विपणन(मार्केटिंग) सीजन 2025-26 के लिए 14 खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि को मंजूरी दी है, यह कृषि और किसान कल्याण के विचार से एक स्वागत योग्य कदम कहा जा सकता है। अच्छी बात है कि आज […] Read more »
खान-पान खेत-खलिहान भारत की पहली जीनोम-संपादित चावल की किस्में May 8, 2025 / May 8, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment भारत विश्व का एक बड़ा कृषि प्रधान देश है और यहां की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक कृषि पर निर्भर है। हाल ही में भारत ने अपनी पहली जीनोम-संपादित चावल की किस्में ‘डीआरआर धान 100 (कमला)’ और ‘पूसा डीएसटी राइस 1’ जारी की हैं। यहां पाठकों को बताता चलूं कि हमारे देश के कृषि मंत्री शिवराज […] Read more » India's first genome-edited rice varieties भारत की पहली जीनोम-संपादित चावल की किस्में
कला-संस्कृति खान-पान क्या किसी की भूख की तस्वीर लेना जरूरी है? May 5, 2025 / May 5, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment “सोशल मीडिया युग में करुणा की कैद” सोशल मीडिया के युग में भलाई और करुणा अब मौन संवेदनाएँ नहीं रहीं, वे कैमरे के फ्रेम में क़ैद होती जा रही हैं। आज अधिकांश मदद ‘लाइक्स’ और ‘फॉलोवर्स’ के लिए की जाती है, न कि सच्ची इंसानियत से। सहायता अब एक ‘कंटेंट’ बन चुकी है और ज़रूरतमंद […] Read more » भूख की तस्वीर
खान-पान खेत-खलिहान पर्यावरण जलवायु परिवर्तन ने बदली उत्तराखंड की खेती की सूरत May 1, 2025 / May 1, 2025 by निशान्त | Leave a Comment आलू-गेहूं छोड़ किसानों ने पकड़ी दाल-मसालों की राह, बीते दशक में 27% कम हुई खेती की ज़मीन, 70% गिरी आलू की पैदावारउत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में जलवायु परिवर्तन की मार ने खेती के नक्शे को पूरी तरह बदल दिया है। क्लाइमेट ट्रेंड्स की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले एक दशक में जहां खाद्यान्न और तिलहन […] Read more » जलवायु परिवर्तन