खान-पान कृषि और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है मोटे अनाज की खेती January 23, 2025 / January 23, 2025 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment अमृत राजमुजफ्फरपुर, बिहार कृषि के क्षेत्र में विशेषकर मोटे अनाज के उत्पादन के मामले में केंद्र सरकार के प्रयास ने जहां भारत को इस क्षेत्र में अग्रणी बना दिया है वहीं किसानों को भी आर्थिक रूप से लाभ पहुंचाया है. भारत की पहल पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित […] Read more »
खान-पान गोल्ड रूल अपनाएं, कोल्ड भगाएं! January 6, 2025 / January 6, 2025 by डॉ घनश्याम बादल | Leave a Comment घनश्याम बादल दिसंबर चला गया है और जनवरी के साथ ही नया साल शुरू हो गया है। नया साल इस बार अच्छी खासी सर्दियां लेकर आया है। सर्दियों का मौसम अपने साथ ठंडक, आरामदायक माहौल और उत्सवों की खुशियाँ लेकर आता है लेकिन साथ ही साथ स्वास्थ्य के प्रति अतिरिक्त ध्यान देने की भी जरूरत […] Read more » chase away the cold! Follow the Golden Rule
खान-पान स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ावा देते पैकेज्ड खाद्य पदार्थ December 30, 2024 / December 30, 2024 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment -डॉ सत्यवान सौरभ हाल ही की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि लिंड्ट डार्क चॉकलेट में स्वीकार्य स्तर से ज़्यादा लेड और कैडमियम होता है। कंपनी इसका कारण कोको में भारी धातुओं की अनिवार्यता को मानती है। अमेरिका में, एक वर्ग-कार्रवाई मुकदमा दायर किया गया है; हालाँकि, कंपनी बिना किसी बाधा के अपना संचालन […] Read more » Packaged foods promote health problems पैकेज्ड खाद्य पदार्थ
खान-पान लेख समाज भारतीय युवाओं में बढ़ रही व्यसन की प्रवृति को रोकना जरूरी December 19, 2024 / December 19, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment आज भारत के विभिन्न कस्बों, नगरों, विशेष रूप से महानगरों में, कम उम्र के नागरिकों के बीच व्यसन की समस्या विकराल रूप धारण करती हुई दिखाई दे रही है। देश के कुछ भागों में विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में विद्यार्थी भी नशे की लत का शिकार हो रहे हैं। भारत का युवा यदि गलत दिशा में जा रहा है तो यह भारत के भविष्य के लिए अत्यधिक चिन्ता का विषय है। देश के पंजाब राज्य में तो हालात बहुत खराब स्थिति में पहुंच गए है एवं वहां ग्रामीण इलाकों में भी युवा विभिन्न प्रकार के व्यसनों में लिप्त पाए जा रहे हैं। नशे के सेवन से न केवल स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है बल्कि मानसिक तौर पर भी युवा वर्ग विक्षिप्त अवस्था में पहुंच जाता है। मेडिकल साइन्स के अनुसार, ड्रग्स के लंबे समय तक सेवन से लिवर, फेफड़े, हृदय और मस्तिष्क को नुकसान पहुंचता है। ड्रग्स का सेवन इम्यून सिस्टम को कमजोर करता है, जिससे व्यक्ति आसानी से बीमार पड़ सकता है। अत्यधिक मात्रा में ड्रग्स लेने से व्यक्ति कोमा में जा सकता है या मृत्यु भी हो सकती है। इसी प्रकार ड्रग्स के सेवन से डिप्रेशन, एंग्जायटी, और सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों को बढ़ावा मिलता है। ड्रग्स लेने वाले व्यक्ति को चूंकि इनकी लत लग जाती है अतः वह व्यक्ति मानसिक और भावनात्मक रूप से ड्रग्स पर निर्भर हो जाता है। ड्रग्स के आदी व्यक्ति का व्यवहार भी आक्रामक हो जाता है, जिसके कारण परिवार में तनाव और झगड़े बढ़ जाते हैं। ड्रग्स पर पैसा खर्च करने से व्यक्ति और उसके परिवार की आर्थिक स्थिति भी डावांडोल होने लगती है। ड्रग्स को खरीदने के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है, यदि परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी हो और युवाओं को परिवार से धन की प्राप्ति नहीं होती है तो ड्रग्स की लत के कारण युवा चोरी, लूटपाट या अन्य अवैध गतिविधियों में संलिप्त हो जाते हैं। यह स्थिति भारत के लिए ठीक नहीं कही जा सकती है क्योंकि एक तो उस युवा का देश के विकास में योगदान लगभग शून्य हो जाता है, दूसरे, वह व्यक्ति अपने परिवार एवं समाज पर बोझ बन जाता है। हम अक्सर मदिरापान और धूम्रपान की स्थिति में कैंसर का डर दिखाकर तम्बाकू निषेध को लक्षित करते हैं। जबकि व्यसनों के कई प्रकार हैं। ड्रग्स के विभिन्न प्रकार और उनके प्रभावों को समझना जरूरी है ताकि इसके दुरुपयोग से बचा जा सके। ड्रग्स से होने वाले शारीरिक, मानसिक और सामाजिक नुकसान के बारे में जागरूकता फैलाकर ही एक स्वस्थ और सुरक्षित समाज का निर्माण किया जा सकता है। आज देश में ड्रग्स की उपलब्धता बहुत आसान हो गई है। कई अंतरराष्ट्रीय गिरोह भारतीय युवाओं को अपनी गिरफ्त में लेकर कई प्रकार के ड्रग्स आसानी से उपलब्ध कराते हैं और उन्हें इनका आदी बना देते हैं। ड्रग्स के भी कई प्रकार हैं। जैसे, (1) डिप्रेसेंट्स (Depressants): इस श्रेणी में अल्कोहल, बार्बिटुरेट्स, बेंजोडायजेपाइन आदि को शामिल किया जाता है। इस प्रकार के ड्रग्स मस्तिष्क की गतिविधि को धीमा कर देते हैं, जिससे व्यक्ति को शांति या सुकून महसूस होता है। लेकिन, अधिक मात्रा में लेने से यह सांस की तकलीफ, बेहोशी और मृत्यु का कारण बन सकते हैं। (2) स्टिमुलेंट्स (Stimulants): इस श्रेणी में कोकीन, मेथामफेटामिन, कैफीन आदि को शामिल किया जाता है। यह ड्रग्स मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की गतिविधि को बढ़ाते हैं, जिससे चुस्ती और ऊर्जा बढ़ती है। इसके अधिक सेवन से दिल की धड़कन तेज होना, हाई ब्लड प्रेशर, और घबराहट जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। (3) ओपिओइड्स (Opioids): हेरोइन, मॉर्फिन, कोडीन आदि को इस श्रेणी में शामिल किया जाता है। इस प्रकार के ड्रग्स दर्द निवारक दवाएं हैं, लेकिन नशे के रूप में इनका दुरुपयोग किया जाता है। ओपिओइड्स का अधिक सेवन श्वसन तंत्र को धीमा कर देता है, जिससे व्यक्ति कोमा या मृत्यु का शिकार हो सकता है। (4) साइकेडेलिक्स (Psychedelics): एलएसडी, साइलोसाइबिन (मशरूम), डीएमटी आदि ड्रग्स इस श्रेणी में शामिल किए जाते हैं एवं इस प्रकार के ड्रग्स व्यक्ति की धारणा, विचार और मूड को बदल देते हैं। यह मतिभ्रम (hallucinations) पैदा कर सकते हैं। (5) इनहेलेंट्स (Inhalants): पेट्रोल, गोंद, स्प्रे पेंट आदि को इस श्रेणी में शामिल किया जाता है। इन पदार्थों को सूंघकर नशा किया जाता है। यह मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। (6) कैनाबिनोइड्स (Cannabinoids): गांजा, भांग, हशीश आदि को इस श्रेणी के ड्रग्स में शामिल किया जाता है। इस प्रकार के ड्रग्स सुखद अनुभव कराते हैं, लेकिन अधिक मात्रा में लेने से मनोवैज्ञानिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। कुल मिलाकर देश में ड्रग्स की समस्या विकराल रूप धारण करती दिखाई दे रही है एवं इसने विशेष रूप से युवाओं को अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया है। दरअसल युवा, फिल्मों आदि को देखकर इसके सेवन को उचित मानने लगता है एवं इसके सेवन से समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने का प्रयास करता है। उसे लगता है कि उच्च सोसायटी में नशे का सेवन करना जैसे आम बात है। परंतु, नशे से होने वाले नुक्सान से सर्वथा अनभिज्ञ रहता है। इसलिए विशेष रूप से युवाओं को नशे की लत से छुड़ाना अति आवश्यक है। हालांकि, हाल ही के समय में नशे की समस्याओं से युवा किस प्रकार परेशानी का सामना करता है जैसे विषयों को लेकर कई फिल्में भी बनाई गई हैं, इन्हें देखकर युवाओं में जागरूकता पैदा की जा सकती है। उड़ता पंजाब (2016), इस फिल्म में पंजाब में ड्रग्स की समस्या और उससे जूझते युवाओं की कहानी है। संजू (2018), इस फिल्म में युवाओं में ड्रग्स की लत और उससे बाहर निकलने की कहानी को दिखाया गया है। फैशन (2008), इस फिल्म में एक मॉडल को दिखाया गया है, जो शोहरत की दुनिया में ड्रग्स की लत का शिकार हो जाती है। डरना जरुरी है (2006), इस फिल्म की कहानी एक विशेष ड्रग एडिक्शन पर केंद्रित है। तमाशा (2015), इस फिल्म में नशे और आत्म-खोज की चुनौती को दर्शाया गया है। इसी प्रकार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कुछ फिल्मे बनाई गईं है। Requiem for a Dream (2000), इस फिल्म में ड्रग्स की लत और उसके विनाशकारी प्रभावों को बहुत ही गहराई से दिखाया गया है। Trainspotting (1996), इस फिल्म में हेरोइन की लत से जूझते युवाओं की कहानी दिखाई गई है और इसमें नशे की भयावहता को दिखाया गया है Beautiful Boy (2018), इस फिल्म में एक पिता और उसके बेटे की कहानी दिखाई गई है, जिसमें बेटा नशे की लत से जूझ रहा है। The Basketball Diaries (1995), इस फिल्म में एक किशोर की कहानी दिखाई गई है, जो नशे की लत में फंस जाता है और उसका जीवन बर्बाद हो जाता है। A Star Is Born (2018), इस फिल्म में ड्रग्स और शराब की लत से जूझते युवा को दिखाया गया है, जिससे उसके करियर और रिश्तों पर असर पड़ता है। आज का युवा चूंकि फिल्मों की ओर अधिक आकर्षित होता है अतः व्यसनों से छुटकारा पाने के सम्बंध में बनाई गई फिल्मों का वर्णन किया गया है। परंतु, युवाओं को नशामुक्त करने की दृष्टि से विभिन्न संगठनों द्वारा जागरूकता अभियान चलाना आज आवश्यक हो गया है। सार्वजनिक स्थानों, स्कूलों, कॉलेजों और सामुदायिक केंद्रों पर व्यसन के दुष्प्रभावों पर आधारित जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। फिल्म फेस्टिवल, नुक्कड़ नाटक, सेमिनार, और सोशल मीडिया का उपयोग कर व्यसनों के नुकसान के बारे में युवाओं को जानकारी दी जा सकती है। स्कूलों और कॉलेजों में नशा विरोधी शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए जिससे छात्रों को छोटी उम्र से ही व्यसनों के खतरों के बारे में शिक्षित किया जा सके। नशे से संबंधित गतिविधियों में संलिप्त लोगों पर इतनी सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए कि वह समाज के सामने उदाहरण बने। अवैध शराब और नशीले पदार्थों की बिक्री पर निगरानी बढ़ाई जानी चाहिए एवं दोषियों पर कठोर दंड लागू किया जाना चाहिए। विभिन्न कस्बों एवं नगरों में स्थानीय स्तर पर कार्य कर रहे NGO और समुदाय आधारित संगठनों को नशमुक्ति अभियान में शामिल किया जाना चाहिए। यह संगठन व्यसन पीड़ितों की पहचान कर उन्हें उचित सहायता और मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं। परिवारों को व्यसन से बचाव और इसके लक्षणों की पहचान करने के तरीकों पर शिक्षित किया जाना चाहिए। इसके लिए माता-पिता को उनके बच्चों के व्यवहार पर ध्यान देने और संवाद बनाए रखने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।व्यसन मुक्त भारत बनाने के लिए युवाओं को खेल, संगीत, नृत्य, और अन्य सृजनात्मक गतिविधियों में शामिल किया जाना चाहिए। इससे वे सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहेंगे और व्यसन से दूर रहेंगे। युवाओं को कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से रोजगार के अवसर दिए जाने चाहिए ताकि उन्हें सकारात्मक दिशा मिले और वे व्यसन से दूर रहें। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के 100वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है एवं विजयादशमी 2025 को 100 वर्ष का महान पर्व सम्पन्न होगा। संघ के स्वयंसेवक समाज में अपने विभिन्न सेवा कार्यों को समाज को साथ लेकर ही सम्पन्न करते रहे हैं। अतः इस शुभ अवसर पर, भारत के प्रत्येक जिले को, अपने स्थानीय स्तर पर समाज को विपरीत रूप से प्रभावित करती, समस्या को चिन्हित कर उसका निदान विजयादशमी 2025 तक करने का संकल्प लेकर उस समस्या को अभी से हल करने के प्रयास प्रारम्भ किए जा सकते हैं। किसी भी बड़ी समस्या को हल करने में यदि पूरा समाज ही जुड़ जाता है तो समस्या कितनी भी बड़ी एवं गम्भीर क्यों न हो, उसका समय पर निदान सम्भव हो सकता है। अतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, एक सांस्कृतिक संगठन होने के नाते, समाज को साथ लेकर भारत को व्यसन मुक्त बनाने हेतु लगातार प्रयास कर रहा है। इसी प्रकार, अन्य धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठनों को भी आगे आकर विभिन्न नगरों में इस प्रकार के अभियान चलाना चाहिए। प्रहलाद सबनानी Read more » It is necessary to stop the increasing trend of addiction among Indian youth. भारतीय युवाओं में बढ़ रही व्यसन की प्रवृति को रोकना जरूरी
खान-पान लेख समाज कुपोषण आज भी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है December 18, 2024 / December 18, 2024 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सुनील कुमार महला आधुनिक युग में हमारी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन आए हैं और आज हमारी खान-पान की आदतों में बहुत बदलाव हो चुके हैं। खान-पान भी समय पर नहीं किया जा रहा है, आधुनिक शहरी, भागम-भाग भरी जीवनशैली के साथ देर रात को खाना आज जैसे फैशन हो चुका है। दिन में भी न ब्रेकफास्ट का कोई समय है और न ही लंच का। आजकल तो ब्रेकफास्ट और लंच दोनों के स्थान पर ब्रंच का कंसेप्ट भी भारतीय संस्कृति में जन्म ले चुका है। आज मनुष्य अपने शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरी का सेवन करता है और उस अनुरूप शारीरिक व्यायाम,कसरत, मेहनत आज आदमी नहीं करता। कहना ग़लत नहीं होगा कि अत्यधिक प्रसंस्कृत(डिब्बा बंद) भोजन, उच्च चीनी वाले खाद्य पदार्थ और पेय, तथा उच्च मात्रा में संतृप्त वसा वाले खाद्य पदार्थ आज मनुष्य में अधिक वजन का कारण बन रहें हैं। आनुवंशिकी मोटापे का एक मजबूत घटक है. चीनी-मीठे, उच्च वसा वाले इंजीनियर्ड जंक फूड्स, फास्ट फूड, हमारी भोजन की असमय करने की आदतें, वेस्टर्न कल्चर(पाश्चात्य संस्कृति) के बहुत से आहार, तथा बहुत बार विभिन्न पर्यावरणीय कारक भी मोटापा लाते हैं। वास्तव में मोटापा (ओबैसिटी) वो स्थिति होती है. जब अत्यधिक शारीरिक वसा शरीर पर इस सीमा तक एकत्रित हो जाती है कि वो स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है। यहां तक कि यह आयु संभावना को भी घटा सकता है, मनुष्य की बीएमआई(शरीर द्रव्यमान सूचक) को प्रभावित कर सकता है। सच तो यह है कि मोटापा बहुत से रोगों से जुड़ा हुआ है, जैसे हृदय रोग(हार्टअटैक) , मधुमेह(डायबिटीज), निद्रा कालीन श्वास समस्या, कई प्रकार के कैंसर आदि आदि। सच तो यह है कि आज मोटापा दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। यह बहुत ही चिंतनीय है कि आज दुनिया में हर आठवां व्यक्ति मोटापे का शिकार है। क्या यह बहुत चिंताजनक नहीं है कि तीन दशकों में मोटापे (ओबैसिटी) की समस्या में चार गुना से भी अधिक इजाफा हुआ है। आज बड़े बुजुर्गों से लेकर महिलाओं, बच्चों को शामिल करते हुए सभी उम्र के लोगों में मोटापे की समस्या बढ़ रही है। आज शहरों में वज़न कंट्रोल करने के लिए अनेक जिम खुले हैं लेकिन हमारी जीवनशैली ऐसी हो चुकी है कि मोटापा कम होने का नाम तक नहीं ले रहा है। हम अपनी संस्कृति को छोड़कर वेस्टर्न कल्चर को आज अपना रहे हैं और आज हमारी भोजन पद्धति में जो बदलाव आए हैं, वे मोटापे के प्रमुख कारण हैं। आज क्रोनिक बीमारियों का कारण कुछ और नहीं बल्कि शरीर का मोटापा ही तो है। मोटापे के संदर्भ में द लैंसेट जर्नल का अध्ययन चौंकाने वाला है। जानकारी देना चाहूंगा कि द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित विश्लेषण के अनुसार, दुनिया भर में मोटापे से ग्रस्त बच्चों, किशोरों और वयस्कों की कुल संख्या एक बिलियन (एक अरब) से अधिक हो गई है। शोधकर्ताओं ने यह बात कही है कि, साल 1990 के बाद से कम वजन वाले लोगों की घटती व्यापकता के साथ अधिकांश देशों में मोटापा के शिकार लोगों की संख्या काफी बढ़ी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अन्य सहयोगियों के साथ इस वैश्विक डेटा के विश्लेषण में अनुमान लगाया है कि दुनिया भर के बच्चों-किशोरों में साल 1990 की तुलना में 2023 में, यानी तीन दशकों में मोटापे की दर चार गुना बढ़ गई है। सबसे बड़ी बात तो यह है यह चलन लगभग सभी देशों में देखा गया है। वयस्क आबादी में, महिलाओं में मोटापे की दर दोगुनी और पुरुषों में लगभग तीन गुना से अधिक हो गई। अध्ययन के अनुसार साल 2022 में 159 मिलियन (15.9 करोड़) बच्चे-किशोर और 879 मिलियन (87.9 करोड़) वयस्क मोटापे के शिकार पाए गए हैं। अध्ययन में यह पाया गया कि पिछले तीन दशकों में वयस्कों में मोटापा दोगुना से अधिक हो गया है। वहीं 5 से 19 साल के बच्चों और किशोरों में यह समस्या चार गुना बढ़ गई है। इतना ही नहीं, अध्ययन में यह भी सामने आया कि 2022-23 में 43 फीसद वयस्क अधिक वजन वाले थे। इस अध्ययन के अनुसार 1990 से 2022 तक विश्व में सामान्य से कम वजन वाले बच्चों और किशोरों की संख्या में कमी आई है। इतना ही नहीं, यह स्टडी बताती है कि दुनिया भर में समान अवधि में सामान्य से कम वजन से जूझ रहे वयस्कों का अनुपात आधे से भी कम हो गया है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि यह अध्ययन कुपोषण के विभिन्न रूपों संबंधी वैश्विक रूझानों की विस्तृत तस्वीर प्रस्तुत करता है। यहां यह भी कहना ग़लत नहीं होगा कि आज दुनिया के ग़रीब इलाकों, हिस्सों में करोड़ों लोग आज भी कुपोषण से पीड़ित हैं। बहरहाल, पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि रिसर्चर ने इस अध्ययन के लिए 190 से अधिक देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच वर्ष या उससे अधिक उम्र के 22 करोड़ से अधिक लोगों के वजन और लंबाई(बीएमआई) का विश्लेषण किया, जिसमें सामने आया है कि सामान्य से कम वजन वाली लड़कियों का अनुपात वर्ष 1990 में 10.3 फीसद से गिरकर 2023 में 8.2 फीसद हो गया और लड़कों का अनुपात 16.7 फीसद से गिरकर 10.8 फीसद हो गया है।अध्ययन में यह भी पाया गया कि कुपोषण की दर भी कई जगहों पर विशेषकर दक्षिण- पूर्व एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है। Read more » malnutrition Malnutrition is still a public health challenge
खान-पान खेत-खलिहान समान पैदावार के साथ स्वास्थ्य जोखिम कम करेगी प्राकृतिक खेती December 17, 2024 / December 17, 2024 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment किसानों की खाद की मांग को पूरा करने के लिए शहरी गीले कचरे से खाद बनाने को राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन में शामिल करें। विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन: स्थानीय खाद बनाने के समाधानों के लिए शहर-किसान भागीदारी को बढ़ावा दें। खाद बनाने की तकनीक और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन में किसान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को मज़बूत करें। जन […] Read more » Natural farming Natural farming will reduce health risks with equal yield स्वास्थ्य जोखिम कम करेगी प्राकृतिक खेती
खान-पान डिब्बा बंद भोजन संस्कृति में हो रहा इजाफा। December 16, 2024 / December 16, 2024 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment पहले की तुलना में आज हमारी जीवनशैली बहुत बदल गई है। सच तो यह है कि आज हम आपा-धापी और दौड़-धूप भरी जिंदगी जी रहे हैं। समय होते हुए भी आज हमारे पास दूसरों के लिए तो दूर की बात, स्वयं के लिए भी समय नहीं बचा है। समय के अभाव में हम अपने रहन-सहन, […] Read more » The canned food culture is increasing. डिब्बा बंद भोजन संस्कृति में इजाफा
खान-पान स्वास्थ्य-योग सिजेरियन सेक्शन के बाद खाद्य पदार्थ और परहेज December 3, 2024 / December 3, 2024 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment –डॉ. प्रियंका सौरभ बहुत सी सिजेरियन डिलीवरी, गर्भावस्था की कुछ जटिलताओं या अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण की जाती है। सी-सेक्शन प्रक्रिया ज़्यादातर महिलाओं के लिए चुनौतीपूर्ण और अप्रिय हो सकती है और यह मानसिक और शारीरिक रूप से थका देने वाली हो सकती है। प्रक्रिया से उबरने के लिए माँ को भरपूर आराम और सख्त […] Read more » Foods and Avoidance after Cesarean Section सिजेरियन सेक्शन सिजेरियन सेक्शन के बाद खाद्य पदार्थ
कला-संस्कृति खान-पान स्वास्थ्य-योग भारत की पारंपरिक चिकित्सा को प्रोत्साहन देने की मांग November 18, 2024 / November 18, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग – सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में शामिल करने की मांग वाली एक याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा गया था। यह मांग बिल्कुल प्रासंगिक एवं भारत के पारंपरिक चिकित्सा को प्रोत्साहन देने का सराहनीय प्रयास है। ऐसा करने से एक बड़ी आबादी […] Read more » Demand to promote traditional medicine of India भारत की पारंपरिक चिकित्सा
खान-पान बच्चों का पन्ना स्वास्थ्य-योग क्या भारत एक स्वस्थ युवाओं का देश भी है? November 14, 2024 / November 14, 2024 by डॉ नीलम महेन्द्रा | Leave a Comment हमारे बच्चों में टाइप 2 मधुमेह के बढ़ते मामलों का गम्भीर विषय सामने आया है । क्या भारत एक स्वस्थ युवाओं का देश भी है?वर्तमान भारत जिसके विषय में हम गर्व से कहते हैं कि यह एक युवा देश है, क्या हम उसके विषय में यह भी कह सकते हैं कि भारत स्वस्थ युवाओं का […] Read more » बच्चों में टाइप 2 मधुमेह
खान-पान दोहे स्वास्थ्य-योग बढ़ते मधुमेह को नियंत्रित करने की वैश्विक चुनौती November 13, 2024 / November 13, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment विश्व मधुमेह दिवस- 14 नवम्बर, 2024-ललित गर्ग- डायबिटीज यानी मधुमेह दुनियाभर में तेजी से बढ़ती ऐसी बीमारी है जो अन्य अनेक बीमारियों एवं शरीर की जर्जरता का कारण बनती है, जिसका शिकार हर उम्र के लोगों को देखा जा रहा है। जिन लोगों का शुगर लेवल अक्सर बढ़ा हुआ रहता है उनमें आंखों, किडनी, तंत्रिकाओं, […] Read more » Global challenge to control rising diabetes विश्व मधुमेह दिवस- 14 नवम्बर
खान-पान स्वास्थ्य-योग देश के लिये कलंक है मिलावटी व नक़ली खाद्य सामग्री का चलन November 13, 2024 / November 13, 2024 by निर्मल रानी | Leave a Comment निर्मल रानी कम से कम समय व लागत में अधिक से अधिक धन कमाने जैसी ‘शार्ट कट ‘ मानवीय प्रवृति ने लगभग पूरे देश को संकट में डाल रखा […] Read more »