आर्थिकी राजनीति भारतीय अर्थजगत में स्वत्व बोध के परिणाम दिखाई देने लगे हैं November 20, 2023 / November 20, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारतीय अर्थव्यवस्था आज न केवल विश्व में सबसे अधिक तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गई है बल्कि विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन गई है। वर्ष 1980 में चीन द्वारा लागू किए गए आर्थिक सुधारों के चलते चीन की अर्थव्यवस्था भी सबसे तेज गति से दौड़ी थी और चीन के आर्थिक विकास में बाहरी कारकों (विदेशी व्यापार) का अधिक योगदान था परंतु आज भारत की आर्थिक प्रगति में घरेलू कारकों का प्रमुख योगदान है। भारत का घरेलू बाजार ही इतना विशाल है कि भारत को विदेशी व्यापार पर बहुत अधिक निर्भरता नहीं करनी पड़ रही है। वैसे भी, वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों, विकसित देशों सहित, की आर्थिक स्थिति आज ठीक नहीं है एवं इन देशों के विदेशी व्यापार सहित इन देशों के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर भी कम हो रही है। भारत के आर्थिक विकास की वृद्धि दर तेज करने के सम्बंध में घरेलू कारकों में भारत के नागरिकों द्वारा स्वदेशी के विचार को अपनाया जाना भी शामिल है। आज भारतीय नागरिकों में स्वत्व का बोध स्पष्टत: दिखाई दे रहा है। अभी हाल ही में अमेरिका के निवेश के सम्बंध में सलाह देने वाले एक प्रतिष्ठित संस्थान मोर्गन स्टैनली ने अपने एक अनुसंधान प्रतिवेदन में यह बताया है कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास की दृष्टि से अगला दशक भारत का होने जा रहा है। अभी तक चीन पूरे विश्व के लिए एक विनिर्माण केंद्र बन गया था। परंतु, आगे आने वाले 10 वर्षों के दौरान स्थिति बदलने वाली है। भारत चीन से भी आगे निकलकर विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन चुका है, जिससे भारत में उत्पादों का उपभोग तेजी से बढ़ रहा है। अतः भारत न केवल उत्पादों के उपभोग का प्रमुख केंद्र बन बन रहा है बल्कि विश्व के लिए एक विनिर्माण केंद्र के रूप में भी उभर रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत पूर्व में ही वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े केंद्र के रूप में विकसित हो चुका है। भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार वर्तमान स्तर 3.50 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2031 तक 7.5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा और इस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। आगे आने वाले 10 वर्षों के दौरान आर्थिक क्षेत्र में भारत पूरी दुनिया का नेतृत्व करने जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्विक स्तर पर सुपर पावर बनने के पीछे भारत के विशाल आंतरिक बाजार को मुख्य कारण बताया जा रहा है। वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने भारत में गरीब वर्ग के नागरिकों को बैकों से जोड़ने के लिए जनधन योजना प्रारम्भ की थी। भारतीय नागरिकों में यह स्व का भाव ही था, जिसके चलते बहुत कम समय में इस योजना के अंतर्गत अभी तक लगभग 50 करोड़ बचत खाते विभिन्न बैकों में खोले जा चुके हैं एवं छोटी छोटी बचतों को जोड़कर आज लगभग 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि इन खातों में जमा की जा चुकी है। भारत ने इस संदर्भ में पूरे विश्व को ही राह दिखाई है। यह बचत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों को कल का मध्यम वर्ग बनाएगी, इससे देश में विभिन्न उत्पादों का उपभोग बढ़ेगा तथा देश की आर्थिक उन्नति की गति भी तेज होगी। यह भारतीय सनातन संस्कारों के चलते ही सम्भव हो पाया है। भारत में परिवार अपने खर्चों को संतुलित करते हुए भविष्य के लिए बचत आवश्यक समझते हैं, यह भी स्वत्व का भाव ही दर्शाता है। हमारी भारतीय सनातन संस्कृति हमें सिखाती है कि हमें प्रकृति का दोहन करना चाहिए, शोषण नहीं। प्रकृति से जितना आवश्यकता है केवल उतना ही लें। साथ ही, आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु स्वदेशी उत्पादों का उपयोग करना भी हमें सिखाया जाता है। स्वदेशी अपनाने से विभिन्न उत्पादों के आयात में कमी लाई जा सकती है। इसके लिए, भारतीय नागरिकों की सोच में गुणात्मक परिवर्तन दिखाई देने लगा है एवं अब वे निम्न गुणवत्ता वाले सस्ते विदेशी उत्पादों का कम उपयोग करने लगे हैं। भारत में ही निर्मित उत्पादों का उपयोग, चाहे वह थोड़े महंगे ही क्यों न हो, बढ़ रहा है। इसी कारण से हाल ही के समय में चीन से कई सस्ते उत्पादों का आयात कम हुआ है। उत्पाद की जितनी आवश्यकता है उतना ही खरीदा जा रहा है एवं भारत में वैश्विक बाजारीकरण की मान्यताओं को बढ़ावा नहीं दिए जाने के भरपूर प्रयास हो रहे हैं। यह समस्त परिवर्तन नागरिकों में स्वत्व की भावना के चलते ही सम्भव हो पा रहा है। हमारी भारतीय सनातन संस्कृति महान रही है और आगे भी रहेगी। हमारी संस्कृति के अनुसार धर्म, कर्म एवं अर्थ, सम्बंधी कार्य मोक्ष प्राप्त करने के उद्देश्य से किए जाते हैं। अतः अर्थ के क्षेत्र में भी धर्म का पालन करने के प्रयास हो रहे हैं। भारत में 60, 70 एवं 80 के दशकों में हम लगभग समस्त नागरिक हमारे बचपन काल से ही सुनते आए हैं कि भारत एक गरीब देश है एवं भारतीय नागरिक अति गरीब हैं। हालांकि भारत का प्राचीनकाल बहुत उज्जवल रहा है, परंतु आक्रांताओं एवं ब्रिटेन ने अपने शासन काल में भारत को लूटकर एक गरीब देश बना दिया था। अब समय का चक्र पूर्णतः घूमते हुए आज के खंडकाल पर आकर खड़ा हो गया है एवं भारत पूरे विश्व को कई मामलों में अपना नेतृत्व प्रदान करता दिखाई दे रहा है। साथ ही, भारत में विशेष रूप से कोरोना महामारी के बीच एवं इसके बाद केंद्र सरकार द्वारा भारतीय सनातन संस्कारों का पालन करते हुए गरीब वर्ग के लाभार्थ चलाए गए विभिन्न कार्यक्रमों के परिणाम अब सामने आने लगे हैं। विशेष रूप से प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्याण योजना के अंतर्गत देश के 80 करोड़ नागरिकों को मुफ्त अनाज की जो सुविधा प्रदान की गई है एवं इसे कोरोना महामारी के बाद भी जारी रखा गया है, इसके परिणामस्वरूप देश में गरीब वर्ग को बहुत लाभ हुआ है। वर्ष 2022 में विश्व बैंक द्वारा जारी किए गए एक प्रतिवेदन के अनुसार, वर्ष 2011 में भारत में 22.5 प्रतिशत नागरिक गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर थे परंतु वर्ष 2019 में यह प्रतिशत घटकर 10.2 रह गया है। पिछले दो दशकों के दौरान भारत में 40 करोड़ से अधिक नागरिक गरीबी रेखा से ऊपर आ गए हैं। दरअसल पिछले लगभग 9 वर्षों के दौरान भारत के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में कई बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। जिसके चलते भारत में गरीबी तेजी से कम हुई है और भारत को गरीबी उन्मूलन के मामले में बहुत बड़ी सफलता प्राप्त हुई है। भारत में अतिगरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले करोड़ों नागरिकों का इतने कम समय में गरीबी रेखा के ऊपर आना विश्व के अन्य देशों के लिए एक सबक है। इतने कम समय में किसी भी देश में इतनी तादाद में लोग अपनी आर्थिक स्थिति सुधार पाए हैं ऐसा कहीं नहीं हुआ है। भारत में गरीबी का जो बदलाव आया है वह धरातल पर दिखाई देता है। इससे पूरे विश्व में भारत की छवि बदल गई है। एक और क्षेत्र जिसमें भारतीय आर्थिक दर्शन ने पूरे विश्व को राह दिखाई है, वह है मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण स्थापित करना। दरअसल, मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए विकसित देशों द्वारा ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते जाना, अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को विपरीत रूप से प्रभावित करता नजर आ रहा है, जबकि इससे मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण होता दिखाई नहीं दे रहा है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में अब पुराने सिद्धांत बोथरे साबित हो रहे हैं। और फिर, केवल मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते जाना ताकि बाजार में वस्तुओं की मांग कम हो, एक नकारात्मक निर्णय है। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उत्पादों की मांग कम होने से, कम्पनियों का उत्पादन कम होता है, देश में मंदी फैलने की सम्भावना बढ़ने लगती है, इससे बेरोजगारी बढ़ने का खतरा पैदा होने लगता है, सामान्य नागरिकों की ईएमआई में वृद्धि होने लगती है, आदि। अमेरिका में कई कम्पनियों ने इस माहौल में अपनी लाभप्रदता बनाए रखने के लिए 2 लाख से अधिक कर्मचारियों की छंटनी करने की घोषणा की थी। किसी नागरिक को बेरोजगार कर देना एक अमानवीय कृत्य ही कहा जाएगा। और फिर, अमेरिका में ही इसी माहौल के बीच तीन बड़े बैंक फैल हो गए हैं। यदि इस प्रकार की परिस्थितियां अन्य देशों में भी फैलती हैं तो पूरे विश्व में ही मंदी की स्थिति छा सकती है। पश्चिम की उक्त व्यवस्था के ठीक विपरीत, भारतीय आर्थिक चिंतन में विपुलता की अर्थव्यवस्था के बारे में सोचा गया है, अर्थात अधिक से अधिक उत्पादन करो – “शतहस्त समाहर, सहस्त्रहस्त संकिर” (सौ हाथों से संग्रह करके हजार हाथों से बांट दो) – यह हमारे शास्त्रों में भी बताया गया है। विपुलता की अर्थव्यवस्था में अधिक से अधिक नागरिकों को उपभोग्य वस्तुएं आसानी से उचित मूल्य पर प्राप्त होती रहती हैं, इससे उत्पादों के बाजार भाव बढ़ने के स्थान पर घटते रहते हैं। भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था में उत्पादों के बाजार भाव लगातार कम होने की व्यवस्था है एवं मुद्रा स्फीति के बारे में तो भारतीय शास्त्रों में शायद कहीं कोई उल्लेख भी नहीं मिलता है। भारतीय आर्थिक चिंतन व्यक्तिगत लाभ केंद्रित अर्थव्यवस्था के स्थान पर मानवमात्र के लाभ को केंद्र में रखकर चलने वाली अर्थव्यवस्था को तरजीह देता है। नागरिकों में स्व का भाव जगा कर, उनमें राष्ट्र प्रेम की भावना विकसित करना भी आवश्यक है। इससे आर्थिक गतिविधियों को देशहित में करने की इच्छा शक्ति नागरिकों में जागृत होती है और देश के विकास में प्रबल तेजी दृष्टिगोचर होती है। इस प्रकार का कार्य जापान, ब्रिटेन, इजराईल एवं जर्मनी ने द्वितीय विश्व युद्ध (1945) के पश्चात सफलतापूर्वक सम्पन्न किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी वर्ष 1925 में, अपनी स्थापना के बाद से, भारतीय नागरिकों में स्व का भाव जगाने का लगातार प्रयास कर रहा है। संघ के परम पूज्य सर संघचालक माननीय डॉक्टर मोहन भागवत जी ने अपने एक उदबोधन में बताया है कि दुनिया विभिन्न क्षेत्रों में आ रही समस्याओं के हल हेतु कई कारणों से आज भारत की ओर बहुत उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। यह सब भारतीय नागरिकों में स्व के भाव के जगने के कारण सम्भव हो रहा है और अब समय आ गया है कि भारत के नागरिकों में स्व के भाव का बड़े स्तर पर अवलंबन किया जाय क्योंकि हमारा अस्तित्व ही भारतीयतता के स्व के कारण है। Read more » The results of the sense of self are beginning to be seen in the Indian economy.
आर्थिकी राजनीति दुनिया स्तंभित हो रही है भारत की आर्थिक तरक्की से November 20, 2023 / November 20, 2023 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे अधिक तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गई है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्रीय वार्ता को संबोधित करते हुए सतत विकास के प्रति देश की प्रतिबद्धता पर बल दिया। वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन को रेखांकित करते हुए उन्होंने भविष्यवाणी की कि 2027 […] Read more » The world is shocked by India's economic progress
Tech राजनीति लेख विज्ञान डीपफेक पर नियंत्रण के लिये सरकार की सख्ती जरूरी November 20, 2023 / November 20, 2023 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग-डीपफेक व्यक्तिगत जीवन से आगे बढ़ कर अब राजनीतिक एवं वैश्विक सन्दर्भों के लिये एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है। इक्कीसवीं सदी में कृत्रिम बौद्धिकता (आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस या एआई) तकनीक के आगमन ने अगर सुविधाओं के नए रास्ते खोले हैं तो दुनियाभर में चिंताएं भी बढ़ा दी हैं। इस तकनीक का दुरुपयोग बड़े […] Read more » Government's strictness necessary to control deepfakes
राजनीति देश विभाजन और सावरकर ? एक गांधीवादी के आरोप, अध्याय 2 November 20, 2023 / November 20, 2023 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment अभी पिछले दिनों एक हिमांशु कुमार नामक गांधीवादी का लेख पढ़ा। इन महोदय ने अपने लेख के प्रारंभ में लिखा है कि ‘मोदी ने अब से चौदह अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मरण दिवस घोषित करवा दिया है। ये सोच रहे हैं कि इस बहाने हमें हर साल भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार बता कर […] Read more » Partition of the country and Savarkar? Accusations of a Gandhian
राजनीति मध्य प्रदेश में ‘कमल’ खिलेगा या फिर आएंगे कमलनाथ ? November 20, 2023 / November 20, 2023 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment जब तक यह लेख आपके हाथों में होगा तब तक मध्य प्रदेश विधानसभा के एग्जिट पोल परिणाम आ चुके होंगे । इस समय मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ ,राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम जैसे पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रचार बड़े जोरों पर चल रहा है। मध्य प्रदेश में कुल 230 सीटों पर चुनाव हो रहा है। पिछले […] Read more » Will 'Kamal' bloom in Madhya Pradesh or will Kamal Nath come?
राजनीति देश का विभाजन और सावरकर : नए संसद भवन का उद्घाटन और विपक्ष, अध्याय 1 November 19, 2023 / November 20, 2023 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार के बहाने विपक्ष 2024 के लोकसभा चुनावों की अपनी भूमि और भूमिका तैयार कर रहा है। जितने भर भी राजनीतिक दल नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार कर रहे हैं उन्हें 2024 के चुनावों की राजनीति ऐसा करने के लिए बाध्य कर रही है। माना […] Read more » देश का विभाजन और सावरकर
आर्थिकी राजनीति तेज गति से बढ़ रहा है भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार November 17, 2023 / November 17, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारतीय अर्थव्यवस्था आज लगभग 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से विकास की राह पर आगे बढ़ रही है। अर्थव्यवस्था के आकार में विस्तार से उस देश के नागरिकों की आय में वृद्धि दर्ज होती है इससे गरीब वर्ग के हाथों में भी पैसा पहुंचता है इससे, विभिन्न उत्पादों की मांग बढ़ती है एवं रोजगार के नए अवसर निर्मित होते हैं और अंततः गरीब वर्ग की संख्या में कमी होकर देश में मध्यम वर्ग की संख्या बढ़ती है। नीति आयोग के एक प्रतिवेदन के अनुसार वर्ष 2015-16 में भारत के शहरी क्षेत्रों में गरीब वर्ग की संख्या 24.85 प्रतिशत थी जो वर्ष 2020-21 में घटकर 14.90 प्रतिशत रह गई है। इसमें 9.95 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। इसी प्रकार वर्ष 2015-16 में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में ग़रीब वर्ग की संख्या 32.59 प्रतिशत थी जो वर्ष 2020-21 में घटकर 19.28 प्रतिशत रह गई है। अतः भारत में गरीब वर्ग की संख्या कम हुई है। इसी कारण से वैश्विक रेटिंग संस्थान भारत की रेटिंग को बढ़ाते जा रहे हैं। स्टैंडर्ड एंड पुअर रेटिंग संस्थान ने भारत की विकास दर को वर्ष 2023-24 के लिए 6 प्रतिशत रखा है तो वर्ष 2024-25 के लिए 6.9 प्रतिशत की बात की है। साथ ही इसी संस्थान का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार वर्ष 2030 तक 7 लाख 30 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाने वाला है। वर्ष 2023 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था 26 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के साथ प्रथम स्थान पर है। दूसरे नम्बर पर चीन आता है जिसकी अर्थव्यवस्था का आकार 18 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है। तीसरे स्थान पर जापान है जिसकी अर्थव्यवस्था का आकार 4 लाख 20 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर है। चौथे स्थान पर जर्मनी है जिसकी अर्थव्यवस्था का आकार भी लगभग 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है। इस प्रकार भारत अपनी बढ़ी हुई लगभग 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की विकास दर के साथ शीघ्र ही जापान एवं जर्मनी को पछाड़ कर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। फिच नामक रेटिंग संस्थान ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर के अपने पूर्व के अनुमान में सुधार करते हुए इसे वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 6.2 प्रतिशत कर दिया है, पहिले इस वृद्धि दर के 5.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। मूडीज नामक रेटिंग संस्थान ने भी भारत की विकास दर को वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 6.7 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की है। भारत तेजी से विकास कर रहा है यह त्यौहारों के दौरान बाजारों में उत्पादों की खरीद के लिए उमड़ रही भीड़ से भी साफ दिखाई दे रहा है। भारत24 चैनल पर प्रस्तुत एक कार्यक्रम में उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, भारत का सकल घरेलू उत्पाद (अर्थात कृषि, उद्योग एवं सेवा क्षेत्र में कुल उत्पादन) वर्ष 2022-23 में 282.83 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर आ गया है। अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद पूरे विश्व में पहिले नम्बर पर है जो 2121.19 लाख करोड़ रुपए का है। इसीलिए अमेरिका पूरी दुनिया का सबसे अमीर एवं ताकतवर देश कहा जाता है। दूसरे नम्बर पर चीन का सकल घरेलू उत्पाद 1497.31 लाख करोड़ रुपए का है। जापान का सकल घरेलू उत्पाद 407.60 लाख करोड़ रुपए का है। जर्मनी का सकल घरेलू उत्पाद 341.05 लाख करोड़ रुपए का है। इस दृष्टि से भारत दुनिया का 5वां सबसे बड़ा अमीर देश है। वर्ष 2013-14 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 113.55 लाख करोड़ रुपए का था और वर्ष 2013-14 में भारतीय अर्थव्यवस्था का पूरे विश्व में 10वां नम्बर था। वर्ष 2013-14 में अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद 1459.88 लाख करोड़ रुपए का था। चीन का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2013-14 में 871.77 करोड़ का था। जापान का सकल घरेलू उत्पाद 2013-14 में 349.37 लाख करोड़ रुपए का था। जर्मनी का सकल घरेलू उत्पाद 323.59 लाख करोड़ रुपए का था। अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद इस दौरान 50 प्रतिशत, चीन का 80 प्रतिशत, जापान का 30 प्रतिशत, जर्मनी का 5 प्रतिशत बढ़ा है जबकि भारत का सकल घरेलू उत्पाद 150 प्रतिशत बढ़ा है। इसी गति से भारत आर्थिक प्रगति करता रहा तो निश्चित ही वर्ष 2030 के पूर्व ही भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। मेक इन इंडिया योजना के अंतर्गत भी बहुत काम होता दिखाई दे रहा है और भारत में निर्मित वस्तुओं का निर्यात लगतार बढ़ रहा है। वर्ष 2022-23 में भारत ने 36 लाख करोड़ रुपए का निर्यात किया है। जबकि वर्ष 2014 में 19.05 लाख करोड़ रुपए का निर्यात हुआ था। यह लगभग दोगुना हो गया है। वर्ष 2023-24 में भारत सरकार ने पूंजीगत व्यय को 10 लाख करोड़ रुपए पर पहुंचा दिया है। इससे रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित हो रहे हैं। वर्ष 2014-15 में भारत में 97,000 किलो मीटर के राष्ट्रीय राजमार्ग थे, जो 9 वर्ष बाद वर्ष 2023-24 में बढ़कर 145,155 किलोमीटर हो गए हैं। इस दौरान लगभग 50,000 किलोमीटर के नए राष्ट्रीय राजमार्ग निर्मित हुए हैं। अब तो गुणवत्ता के मामले में भारत के राजमार्ग अमेरिका के राजमार्गों से टक्कर लेते हुए दिखाई दे रहे हैं। बेहतरीन राजमार्ग विकसित देश के लिए जरूरी हैं। अच्छे राजमार्गों से बाजार और रोजगार दोनों बढ़ते हैं। आज भारत अपने घर में उत्पादित वस्तुओं के उपयोग को भी लगातार बढ़ा रहा है। “वोकल फोर लोकल” का नारा अब बुलंद हो रहा है एवं भारतीय नागरिक अब चीन में निर्मित उत्पादों का उपयोग कम करते हुए भारत में ही निर्मित वस्तुओं का उपयोग कर रहे हैं। भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी भी भारतीय नागरिकों को लगातार अपील कर रहे हैं कि भारत में ही उत्पादित वस्तुओं का उपयोग करें। इसका असर होता दिख भी रहा है। चीन से विभिन्न उत्पादों के आयात में इस त्यौहारी मौसम में कमी आई है और एक अनुमान के अनुसार इस वर्ष लगभग एक लाख करोड़ रुपए के उत्पादों का आयात चीन से कम हुआ है। चीनी दिवाली लाइट्स के आयात में 32 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है। वहीं दूसरी ओर भारत में बनी लाइट्स की बिक्री में 60 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। इसका सबसे अधिक फायदा गरीब वर्ग को हो रहा है। हम समस्त भारतीय नागरिकों को भी इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि सड़क के एक किनारे बैठकर कुछ वस्तुएं बेचने वाले गरीब व्यक्ति से अधिक मोलभाव ना करते हुए उनसे वस्तुएं खरीदें ताकि यह वर्ग भी अपनी आय को बढ़ा सके। वैसे भी, जब हम लोग माल से वस्तुएं खरीदते हैं तो कोई माल भाव थोड़ी करते हैं। सकल घरेलू उत्पाद जब बढ़ता है तो लोगों की आय भी बढ़ती है। जब लोगों की आय बढ़ती है तो लोग बाजार में सामान खरीदते हैं। इससे बाजार में उत्पादों की मांग बढ़ती है। उत्पादों की मांग एवं आपूर्ति से उत्पादों की बाजार कीमतें तय होती है। जब किसी भी उत्पाद की मांग तुलनात्मक रूप से अधिक तेजी से बढ़ती है और उस उत्पाद की आपूर्ति बाजार में समय पर नहीं हो पाती है तो उस उत्पाद की बाजार में कीमतें बढ़ने लगती है। जब खर्च करने की क्षमता बढ़ती है तो आप सामान के दाम अधिक देने को भी तैयार रहते हैं। भारत में न केवल आर्थिक विकास में गति आ रही है बल्कि मुद्रा स्थिति भी नियंत्रण में है। यह केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा संयुक्त रूप से किए जा रहे उपायों के चलते सम्भव हो पा रहा है। भारत की वित्तीय नीतियां महंगाई को रोकने के साथ साथ विकास को भी बढ़ावा दे रही हैं। खाने पीने की वस्तुओं की बाजार कीमतों में कमी होने से अक्टोबर 2023 माह में खुदरा महंगाई की दर में गिरावट आई है और यह चार महीने के निचले स्तर 4.87 प्रतिशत पर पहुंच गई है। केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई जानकारी के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति की दर सितंबर 2023 माह में पिछले तीन माह के निचले स्तर 5.02 प्रतिशत पर थी। भारत में आम आदमी का सबसे अधिक खर्च खाने पीने और स्वास्थ्य सेवाओं पर हो रहा है। केंद्र सरकार द्वारा बजट में स्वास्थ्य सेवाओं पर 89 000 करोड़ रुपए के व्यय का प्रावधान किया गया है। डॉक्टरों की संख्या में 4 लाख से अधिक की वृद्धि दर्ज हुई है। भारत में आज 13 लाख से अधिक एलोपेथिक डॉक्टर हैं। इसके अतिरिक्त, 5.65 लाख आयुर्वेदिक डॉक्टर भी उपलब्ध हैं। इस प्रकार भारत में प्रत्येक 834 नागरिकों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है। गरीब नागरिकों को मुफ्त इलाज प्रदान करने के लिए आयुषमान स्वास्थ्य कार्ड प्रदान किए गए हैं। इसी प्रकार किसानों के लिए मोदी सरकार ने प्रति क्विंटल गेहूं पर 775 रुपए से, चावल पर 730 रुपए से न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की है। वर्ष 2012-13 में भारत के किसानों की औसत मासिक आय 6,426 रुपए पाई गई थी जो वर्ष 2018-19 में बढ़कर 10,248 रुपए हो गई है। यूएनडीपी के एक प्रतिवेदन में यह बताया गया है कि भारत में मिडल क्लास अर्थात मध्यम वर्ग की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। वैश्विक स्तर पर मिडल क्लास की बढ़ रही संख्या में भारत का योगदान 24 प्रतिशत का है। विश्व के कई वित्तीय संस्थानों का मत है कि वर्ष 2027 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। इसका मतलब यह भी है कि देश में प्रति व्यक्ति आय में और अधिक तेज गति से वृद्धि की सम्भावना है। साथ ही, भारत आज प्रत्येक क्षेत्र में आत्म निर्भर भी बन रहा है। प्रहलाद सबनानी Read more »
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राजनीति भारत पर विदेशी हमले , स्व की रक्षा का संघर्ष और उसका परिणाम November 15, 2023 / November 14, 2023 by डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री | Leave a Comment – डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री भारत में विदेशी आक्रमणकारियों का इतिहास लम्बा है और उलझन भरा भी है । बहुत दूर न भी जाएँ तो यूनानियों , शकों और हूणों के हमलों का ज़िक्र तो करना ही पड़ेगा । लेकिन आजकल इतिहास की जो किताबें पढ़ाई जाती हैं , उनमें इनका ज़िक्र चलते चलाते ही […] Read more » Foreign attacks on India struggle for self-defense and its consequences
राजनीति शख्सियत समाज साक्षात्कार बिरसा मुंडा का जीवन व उनका उलगुलान: मूलनिवासी दिवस का खंडन November 15, 2023 / November 15, 2023 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment आज हमारे बिरसा मुंडा भगवान की जयंती है। अपने जनजातीय समाज को साथ लेकर उलगुलान किया था उन्होने। उलगुलान अर्थात हल्ला बोल, क्रांति का ही एक देशज नाम। वे एक महान संस्कृतिनिष्ठ समाज सुधारक भी थे, वे संगीतज्ञ भी थे जिन्होंने सूखे कद्दू से एक वाद्ययंत्र का अविष्कार भी किया था जो अब भी बड़ा लोकप्रिय है। […] Read more » बिरसा मुंडा का जीवन व उनका उलगुलान मूलनिवासी दिवस
राजनीति नोटा के उपयोग के कुछ नुक्सान भी हैं – 100 प्रतिशत मतदान से चुने गए प्रतिनिधियों की गुणवत्ता उच्चस्तर की होगी November 15, 2023 / November 15, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारत आज वैश्विक पटल पर एक महत्वपूर्ण आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है एवं भारत विश्व को कई क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान करने की स्थिति में भी आ गया है। कुछ देश (चीन एवं पाकिस्तान सहित) भारत की इस उपलब्धि को सहन नहीं कर पा रहे हैं। वैश्विक स्तर पर समस्त विघटनकारी शक्तियां मिलकर भारत को तोड़ना चाहती हैं। इन विघटनकारी शक्तियों द्वारा भारत में जातीय संघर्ष खड़ा करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। जबकि भारत के कई सांस्कृतिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक संगठन समस्त भारतीय समाज में एकजुटता बनाए रखना चाहते हैं ताकि भारत को एक बार पुनः विश्व गुरु बनाया जा सके। परंतु, आज विघटनकारी शक्तियों के निशाने पर मुखर रूप से हिंदुत्व, भारत एवं संघ आ गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने स्वयंसेवकों में राष्ट्रीयता का भाव विकसित किया है। संघ के स्वयंसेवक समाज की सज्जन शक्ति के साथ मिलकर समाज में जागरूकता लाने का प्रयास कर रहे है कि किस प्रकार इन विघटनकारी शक्तियों को परास्त किया जा सकता है। भारत में शीघ्र ही निर्वाचन काल प्रारम्भ होने जा रहा है। भारतीय लोकतंत्र को और अधिक मजबूत बनाने के लिए आज राष्ट्र को भारत माता के प्रति समर्पण का भाव रखने वाले नागरिकों की बहुत अधिक आवश्यकता है। अतः भारतीय समाज द्वारा निर्वाचन में 100 प्रतिशत मतदान किया जाय एवं राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत प्रत्याशी ही चुनाव जीत सकें, इसके लिए समाज को साथ लेकर भारतीय नागरिकों द्वारा विशेष प्रयास किये जाने चाहिए। इस संदर्भ में भारतीय चुनाव आयोग द्वारा भी कई तरह के प्रयास समय समय पर किए जाते हैं ताकि देश के नागरिकों द्वारा 100 प्रतिशत मतदान किया जा सके। निश्चित ही 50 प्रतिशत नागरिकों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि की तुलना में 90 अथवा 100 प्रतिशत नागरिकों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि बेहतर प्रतिनिधि ही साबित होंगे। अतः अधिक से अधिक मतदान किया जाना आज समय की आवश्यकता है। इससे चुने गए प्रतिनिधियों की गुणवत्ता में तो सुधार होगा ही साथ ही, वर्तमान समय में भारत की आर्थिक प्रगति भी जारी रह सकेगी एवं भारत को विश्व गुरु के रूप में स्थापित होते हुए भी हम लोग देख सकेंगे। कई बार विभिन्न दलों के समस्त प्रत्याशी कुछ मतदाताओं को पसंद नहीं आते हैं, इन परिस्थितियों में ऐसे मतदाताओं को नोटा का बटन दबाने का अधिकार रहता है। परंतु, कोई प्रत्याशी मतदाता की नजर में 100 प्रतिशत खरा प्रत्याशी होगा, ऐसा सम्भव भी तो नहीं है। इन परिस्थितियों में कम से कम बुरे प्रत्याशी को चुना जा सकता है। नोटा का बटन दबाकर तो कम बुरे प्रत्याशी के स्थान अधिक बुरा प्रत्याशी ही चुना जा सकता है। संघ के परम पूज्य सर संघचालक भी कहते हैं कि “नोटा में हम लोग सर्वोत्तम को भी किनारे कर देते हैं और इसका फायदा सबसे बुरा उम्मीदवार ले जाता है। होना यह चाहिए कि हमारे पास जो सर्वोत्तम उपलब्ध है, उसे चुन लें। प्रजातंत्र में सौ फीसदी लोग सही मिलेंगे, ऐसा बहुत मुश्किल है।” यह आकलन पूर्णत: सही ही कहा जा सकता है क्योंकि मतदाता भले ही नोटा दबा कर यह समझे कि उसने सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार कर दिया है लेकिन शायद उसे यह नहीं पता होता कि इस से किसी ऐसे उम्मीदवार की कम अंतर से हार हो सकती है जो उन सबमे सबसे बेहतर हो। ऐसे में नोटा को गए वोट अगर उस हारे उम्मीदवार को जाते तो वह जीत सकता था। अगर इस कारण किसी बुरे उम्मीदवार की जीत हो जाती है तो फिर नोटा दबाने के कोई मायने ही नहीं रह जाते। भारत में चुनावों पर हजारों करोड़ रुपए की राशि खर्च होती है। अतः केंद्र एवं राज्यों में मजबूत सरकारों का चुना जाना अति आवश्यक है, ताकि वे अपने 5 वर्ष के कार्यकाल को सफलता पूर्वक सम्पन्न कर सकें। यदि 100 प्रतिशत मतदान के साथ किसी भी सरकार को चुना जाता है तो निश्चित ही मजबूत सरकार होगी एवं वह अपना कार्यकाल पूर्ण कर सकने में सफल भी होगी और इस प्रकार मध्यावधि चुनावों की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। इस प्रकार, देश के करोड़ों रुपयों के खर्च को बचाया जा सकेगा। इसलिए भारत में आज पढ़े लिखे एवं समझदार वर्ग को भी आगे आकर 100 प्रतिशत मतदान के लिए प्रयास करने चाहिएं, क्योंकि जिस प्रकार विभिन्न क्षेत्रों में भारत आज आगे बढ़ रहा है, यह कार्य लम्बे समय तक जारी रहना चाहिए। इजराईल के नागरिकों में देश प्रेम की भावना के चलते ही 3 लाख से अधिक नागरिकों ने आगे आकर सेना में भर्ती होने के वहां की सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार किया है। भारत में भी देश के प्रतिनिधि राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव रखने वाले ही होने चाहिए। भारतीय समाज की एकजुटता के कारण ही आज भारत में रामसेतु का विध्वंस रुक सका है, जम्मू एवं कश्मीर में लागू धारा 370 एवं धारा 35ए हटाई जा सकी है, 500 वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद श्री राम का भव्य मंदिर अयोध्या में निर्मित हो रहा है, जिसका उद्घाटन 22 जनवरी 2024 में पूज्य संत महात्माओं के साथ भारत के प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेंद मोदी जी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न होने जा रहा है। जी-20 देशों के समूह की अध्यक्षता आज भारत के पास है और भारत इस समूह के समस्त देशों को एकजुट बनाए रखने में सफल रहा है। भारत ने चन्द्रयान को चन्द्रमा के दक्षिणी भाग पर सफलता पूर्वक उतारने में सफलता हासिल की है एवं चन्द्रमा की सतह पर “शिवशक्ति” को अंकित करने में भी सफलता पाई है। भारत आज अपनी सीमाओं की मजबूती के साथ सुरक्षा करने में सफल हो रहा है। खेलों के क्षेत्र में भी नित नए झंडे गाड़े जा रहे हैं, हाल ही में चीन में सम्पन्न हुई एशियाई खेल प्रतियोगिताओं में भारत ने 107 पदकों को हासिल कर एक रिकार्ड बनाया है। इसी प्रकार नागरिकों को आज अच्छी सड़कें मिली हैं, पानी-बिजली की उपलब्धता बढ़ी है, राज्यों में विकास की यात्रा तेजी से आगे बढ़ रही है। राज्यों के चुनाव भी बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं क्योंकि राज्य सभा सदस्य राज्य के विधायकों द्वारा ही चुने जाते हैं। इस दृष्टि से विभिन्न राज्यों के चुनाव में भी 100 प्रतिशत मतदान सुनिश्चित किया जाना चाहिए। Read more » There are some disadvantages of using NOTA