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भारत में तेज गति से आगे बढ़ता पर्यटन उद्योग

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भारत में पर्यटन उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए कई वर्षों से लगातार प्रयास किए जाते रहे हैं, परंतु इस क्षेत्र में वृद्धि दर कम ही रही है। क्योंकि, भारत में पर्यटन का दायरा केवल ताजमहल, कश्मीर एवं गोवा आदि स्थलों तक ही सीमित रहा है। परंतु, हाल ही के वर्षों में धार्मिक क्षेत्रों यथा, अयोध्या, वाराणसी, मथुरा, उज्जैन, हरिद्वार, उत्तराखंड में चार धाम (केदारधाम, बद्रीधाम, गंगोत्री एवं यमुनोत्री), माता वैष्णोदेवी एवं दक्षिण भारत स्थित विभिन्न मंदिरों सहित, बौद्ध धर्म, जैन धर्म एवं सिक्ख धर्म के कई पूजा स्थलों पर मूलभूत सुविधाओं का विस्तार कर इन्हें आपस में जोड़कर पर्यटन सर्किट विकसित किए गए हैं। इससे भारत में धार्मिक पर्यटन बहुत तेज गति से आगे बढ़ा है। विभिन्न देशों से भी अब पर्यटक इन नए विकसित किए गए धार्मिक स्थलों पर भारी मात्रा में पहुंच रहे हैं। योग एवं आयुर्वेद भी हाल ही के समय में विदेशों में काफी लोकप्रिय हो गया है अतः इसकी खोज के लिए विदेशों से कई पर्यटक भारत में धार्मिक पर्यटन करने के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। इससे विदेशी पर्यटन भी देश में तेजी से वृद्धि दर्ज कर रहा है। हाल ही के समय में भारत के नागरिकों में “स्व” का भाव विकसित होने के चलते देश में धार्मिक पर्यटन बहुत तेज गति से बढ़ा है। अयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर में श्रीराम लला के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात प्रत्येक दिन औसतन 2 लाख से अधिक श्रद्धालु अयोध्या पहुंच रहे हैं। दिनांक 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में सम्पन्न हुए प्रभु श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद स्थानीय कारोबारी अपना उज्जवल भविष्य देख रहे हैं। अयोध्या धार्मिक पर्यटन का हब बनाने जा रहा है तथा अब अयोध्या दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र बन जाएगा। जेफरीज के अनुसार अयोध्या में प्रति वर्ष 5 करोड़ से अधिक पर्यटक आ सकते हैं।  यह तो केवल अयोध्या की कहानी है इसके साथ ही तिरुपति बालाजी, काशी विश्वनाथ मंदिर, उज्जैन में महाकाल लोक, जम्मू स्थित वैष्णो देवी मंदिर, उत्तराखंड में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री एवं यमनोत्री जैसे कई मंदिरों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ रही है। भारत में धार्मिक पर्यटन में आई जबरदस्त तेजी के बदौलत रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं, जो देश के आर्थिक विकास को गति देने में सहायक हो रहे हैं। विश्व के कई अन्य देश भी धार्मिक पर्यटन के माध्यम से अपनी अर्थव्यवस्थाएं सफलतापूर्वक मजबूत कर रहे हैं। सऊदी अरब धार्मिक पर्यटन से प्रति वर्ष 22,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर अर्जित करता है। सऊदी अरब इस आय को आगे आने वाले समय में 35,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक ले जाना चाहता है। मक्का में प्रतिवर्ष 2 करोड़ लोग पहुंचते हैं, जबकि मक्का में गैर मुस्लिम के पहुंचने पर पाबंदी है। इसी प्रकार, वेटिकन सिटी में प्रतिवर्ष 90 लाख लोग पहुंचते हैं। इस धार्मिक पर्यटन से अकेले वेटीकन सिटी को प्रतिवर्ष लगभग 32 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आय होती है, और अकेले मक्का शहर को 12,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आमदनी होती है। अयोध्या में तो किसी भी धर्म, मत, पंथ मानने वाले नागरिकों पर किसी भी प्रकार की पाबंदी नहीं होगी। अतः अयोध्या पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 5 से 10 करोड़ तक प्रतिवर्ष जा सकती है। एक अनुमान के अनुसार, प्रत्येक पर्यटक लगभग 6 लोगों को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराता है। इस संख्या के हिसाब से तो लाखों नए रोजगार के अवसर अयोध्या में उत्पन्न होने जा रहे हैं। अयोध्या के आसपास विकास का एक नया दौर शुरू होने जा रहा है। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अब अयोध्या के रूप में वेटिकन एवं मक्का का जवाब भारत में खड़ा होने जा रहा है। धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने भी धरातल पर बहुत कार्य सम्पन्न किया है। साथ ही, अब इसके अंतर्गत एक रामायण सर्किट रूट को भी विकसित किया जा रहा है। इस रूट पर विशेष रेलगाड़ियां भी चलाए जाने की योजना बनाई गई है। यह विशेष रेलगाड़ी 18 दिनों में 8000 किलो मीटर की यात्रा सम्पन्न करेगी, इस विशेष रेलगाड़ी के इस रेलमार्ग पर 18 स्टॉप होंगे। यह विशेष रेलमार्ग प्रभु श्रीराम से जुड़े ऐतिहासिक नगरों अयोध्या, चित्रकूट एवं छतीसगढ़ को जोड़ेगा। अयोध्या में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर वैश्विक पटल पर इस रूट को भी रखेगा। इसके पूर्व में केंद्र सरकार ने भी देश के 12 शहरों को “हृदय” योजना के अंतर्गत भारत के विरासत शहरों के तौर पर विकसित करने की घोषणा की है। ये शहर हैं, अमृतसर, द्वारका, गया, कामाख्या, कांचीपुरम, केदारनाथ, मथुरा, पुरी, वाराणसी, वेल्लांकनी, अमरावती एवं अजमेर। हृदय योजना के अंतर्गत इन शहरों का सौंद्रयीकरण किया जा रहा है ताकि इन शहरों की पुरानी विरासत को पुनर्विकसित कर पुनर्जीवित किया जा सके। इस हेतु देश में 15 धार्मिक सर्किट भी विकसित किये जा रहे हैं। “हृदय” योजना को लागू करने के बाद से केंद्र सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने कई परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान कर दी है। इनमें से अधिकतर परियोजनाओं पर काम भी प्रारम्भ हो चुका है। इन सभी योजनाओं का चयन सम्बंधित राज्य सरकारों की राय के आधार पर किया गया है।  केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा पर्यटन की गति को तेज करने के उद्देश्य से किए जा रहे उक्तवर्णित उपायों के चलते अब भारतीय पर्यटन उद्योग तेज गति से आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। भारतीय पर्यटन उद्योग ने वर्ष 2024 में 2,247 करोड़ अमेरिकी डॉलर का आकार ले लिया है। वर्ष 2033 तक इसके 3,812 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर तक पहुंचने की सम्भावना है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2034 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में पर्यटन उद्योग का योगदान बढ़कर 43.25 लाख करोड़ रुपए का हो जाने वाला है। भारत के हवाईअड्डों पर भारी भीड़ अब आम बात हो गई है एवं हेरिटेज स्थलों पर विदेशी पर्यटकों की भारी भीड़ दिखाई देने लगी है। देश के नागरिक एवं अन्य देशों के पर्यटक भारत में पर्यटन के लिए घरों से बाहर निकलने लगे हैं। भारत में मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या में अतुलनीय वृद्धि दर्ज हुई है एवं आम भारतीयों की डिसपोजेबले आय में भी वृद्धि दर्ज हुई है। अतः भारतीय नागरिक, विदेशी स्थलों पर पर्यटन के लिए जाने के स्थान पर अब भारत में ही विभिन्न स्थलों पर पर्यटन करने लगे हैं। इस बीच देश के विभिन्न पर्यटन स्थलों पर आधारभूत सुविधाओं का विस्तार भी किया गया है। होटल उद्योग ने भारी मात्रा में होटलों का निर्माण कर पर्यटन स्थलों पर उपलब्ध कमरों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की है। रेल एवं हवाई यात्रा को बहुत सुगम बनाया गया है तथा 4 लेन से लेकर 8 लेन की सड़कों का निर्माण किया गया है, जिससे पर्यटकों के लिए यातायात की सुविधाओं में बहुत सुधार हुआ है। इससे कुल मिलाकर अब भारतीय परिवार अपने घर से बाहर भी घर जैसा वातावरण एवं आराम महसूस करने लगे है। अतः अब भारतीय परिवार वर्ष में कम से कम एक बार तो पर्यटन के लिए अपने घर से बाहर निकलने लगे हैं।   वर्ष 2023 में भारत में अंतरराष्ट्रीय हवाई उड़ानों में 124 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है और 1.92 करोड़ विदेशी पर्यटक भारत आए हैं, जो अपने आप में एक रिकार्ड है। विदेशी पर्यटन से विदेशी मुद्रा की आय 15.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 1.71 लाख करोड़ रुपए के स्तर को पार कर गई है। गोवा, केरल, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, पश्चिमी बंगाल एवं पंजाब में देशी पर्यटकों की संख्या में भारी वृद्धि दर्ज हुई है। अब तो उत्तर प्रदेश भी विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद बनता जा रहा है। वर्ष 2022 में 31.7 करोड़ भारतीय पर्यटक उत्तर प्रदेश पहुंचे हैं। वर्ष 2023 में तमिलनाडु में 10 लाख से अधिक विदेशी पर्यटक पहुंचे हैं। वर्ष 2025 में प्रयागराज में आयोजित किए गए महाकुम्भ मेले के अवसर पर लगभग 66 करोड़ श्रद्धालु त्रिवेणी के पावन तट पर आस्था की डुबकी लगाने के लिए पहुंचे हैं, जो अपने आप में विश्व रिकार्ड है।    भारत में यात्रा एवं पर्यटन उद्योग 8 करोड़ व्यक्तियों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से रोजगार प्रदान कर रहा है एवं देश के कुल रोजगार में पर्यटन उद्योग की 12 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। भारत में प्राचीन समय से धार्मिक स्थलों की यात्रा, पर्यटन उद्योग में, एक विशेष स्थान रखती है। एक अनुमान के अनुसार, देश के पर्यटन में धार्मिक यात्राओं की हिस्सेदारी 60 से 70 प्रतिशत के बीच रहती है। देश के पर्यटन उद्योग में लगभग 19 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित की जा रही है जबकि वैश्विक स्तर पर पर्यटन उद्योग केवल 5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज कर रहा है। देश में पर्यटन उद्योग में 87 प्रतिशत हिस्सा देशी पर्यटन का है जबकि शेष 13 प्रतिशत हिस्सा विदेशी पर्यटन का है। अतः भारत में रोजगार के नए अवसर निर्मित करने के उद्देश्य से केंद्र एवं उत्तर प्रदेश सरकार धार्मिक स्थलों को विकसित करने हेतु प्रयास कर रही हैं। पर्यटन उद्योग में कई प्रकार की आर्थिक गतिविधियों का समावेश रहता है। यथा, अतिथि सत्कार, परिवहन, यात्रा इंतजाम, होटल आदि। इस क्षेत्र में व्यापारियों, शिल्पकारों, दस्तकारों, संगीतकारों, कलाकारों, होटेल, वेटर, कूली, परिवहन एवं टूर आपरेटर आदि को भी रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं।  केंद्र सरकार के साथ साथ हम नागरिकों का भी कुछ कर्तव्य है कि देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हम भी कुछ कार्य करें। जैसे प्रत्येक नागरिक, देश में ही, एक वर्ष में कम से कम दो देशी पर्यटन स्थलों का दौरा अवश्य करे। विदेशों से आ रहे पर्यटकों के आदर सत्कार में कोई कमी न रखें ताकि वे अपने देश में जाकर भारत के सत्कार का गुणगान करे। आज करोड़ों की संख्या में भारतीय, विदेशों में रह रहे हैं। यदि प्रत्येक भारतीय यह प्रण करे की प्रतिवर्ष कम से कम 5 विदेशी पर्यटकों को भारत भ्रमण हेतु प्रेरणा देगा तो एक अनुमान के अनुसार विदेशी पर्यटकों की संख्या को एक वर्ष के अंदर ही दुगना किया जा सकता है।  

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लगे हाथ एक गणना इनकी भी हो जाए…

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सुशील कुमार ‘नवीन’ पहलगाम हादसे के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच अघोषित युद्ध की शुरुआत हो चुकी है। इसका परिणाम क्या रहेगा? यह अभी भविष्य के गर्भ में है। इस गंभीर माहौल की जहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक चिंतन हो रहा है वहीं कुछ कुचक्रिय तत्व अभी भी सक्रिय है। जातीय जनगणना तो जब होगी सो होगी, इससे पहले ऐसे लोगों की गणना बहुत जरूरी है। जो भारत में रहते हैं और भारतीय नहीं है। जो इसी मिट्टी में जन्मे हैं और इसी के विखंडन का स्वप्न देखते हैं। जो यही कमाते हैं और इसका प्रयोग इसी के खिलाफ करते हैं। युद्ध अपने तरीके से चलता रहेगा, युद्ध के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे लोगों की पहचान आज इस घड़ी में करना बेहद जरूरी है। जयचंदों की फौज जिस तरह से बढ़ रही है वो भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। चाणक्य नीति में साफ लिखा गया है कि – परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्। वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भ पयोमुखम्॥ इसका सीधा सा भाव है कि पीठ पीछे काम बिगाड़ने वाले और सामने मीठा बोलने वालों को उसी प्रकार त्याग देना चाहिए, जिस प्रकार  मुख पर दूध तथा भीतर विष से भरे घड़े को त्याग दिया जाता है।    एक सच्चे देशभक्त का इस समय कर्तव्य बनता है कि आपदा आने के समय वो आपसी गिले शिकवे भूल एकमत से राष्ट्रहित में ली गई प्रत्येक कार्रवाई का समर्थन करे। उसमें यथोचित सहयोग करें, उसका संबल बनें। किसी तरफ की छींटाकशी,मीनमेख निकाल दूसरे पक्ष के लिए उदाहरण बनना राष्ट्रविरोधी से कमतर नहीं है। देश आज जिस संकट से गुजर रहा है वह हमारे द्वारा पैदा नहीं किया गया है। गीता का प्रसिद्ध श्लोक यहां सार्थक सिद्ध है। इसके अनुसार कहा गया है – कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ युद्ध से इनकार किए जाने पर श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं – तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करना है। कर्म के फल पर तुम्हारा अधिकार नहीं है। इसलिए तुम केवल निरन्तर कर्म करो। कर्म के फल पर मनन मत करो और अकर्मण्य भी मत बनो।      संसार का कोई भी ऐसा देश नहीं है। जहां राष्ट्र विरोधी ताकतें मुंह बाए न खड़ी हो। दुश्मन राष्ट्र से ज्यादा खतरा राष्ट्र के अंदर छिपी पड़ी इन कुचक्रियों से होता है। वक्त बेवक्त इनका सिर्फ एक उद्देश्य होता है कि किसी भी तरह से अपनी विचारधारा को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित किया जाए। इन्हें इस बात से मतलब नहीं कि देश किस स्थिति से गुजर रहा है। उन्हें सिर्फ अपनी विचारधारा को अग्रसर रखना होता है, चाहे वो विचारधारा राष्ट्रविरोधी ही क्यों न हो।    आज के समय को ही ले लीजिए। पक्ष-विपक्ष आज सरकार के साथ खड़ा है। फिर भी कुछ लोगों की जुबान नहीं रुक रही है। इसी का फायदा सोशल मीडिया के माध्यम से पाकिस्तान द्वारा उठाया गया है  हमारे ही लोगों द्वारा की गई बयानबाजी का प्रयोग हमारे ही खिलाफ उनके द्वारा खूब किया गया है। कन्हैयालाल मिस्र का एक निबंध मै और मेरा देश पढ़ा हो तो उसकी एक पंक्ति आज के समय में अपनी सार्थकता को पूर्ण सिद्ध करती है कि युद्ध में जय बोलने वालों का बड़ा महत्व है। भाव यह है कि युद्ध करना हर किसी के सामर्थ्य में नहीं है। लेकिन अपने साथियों का उत्साह बढ़ाना तो हमारे हाथ में है। लेकिन हम है कि अभी भी बाज नहीं आ रहे। आलोचना या समीक्षा का अभी वक्त थोड़े ही है। अभी तो जो हो रहा है उसे होने दें। वो चाहे अच्छा है या बुरा। हमारा पहला फर्ज बनता है कि उसमें सहयोग करें। लोकतंत्र में सबको बोलने का अधिकार है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। एक छोटी सी चिनगारी की उपेक्षा से दावानल की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।   प्राचीन भारत के महान अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक आचार्य चाणक्य के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए जीवन सिद्धांत और रणनीतियां न केवल राजनीति, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी सफलता प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करने का कार्य करते हैं। उनके द्वारा बताये गए नियमों में जीवन की कठिनाइयों का सामना करने और सही दिशा में आगे बढ़ने के उपाय दिए गए हैं। ये न केवल आत्मनिर्भर बनाते हैं, बल्कि जीवन में बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भी प्रेरित करते हैं।   आचार्य चाणक्य के अनुसार यदि आपका कोई शत्रु है तो कमजोरियों का पता लगाकर कमजोर करो। शत्रु को नष्ट करने से पहले उसे हराना बहुत जरूरी है। चाणक्य का कहना था कि सच्चाई अक्सर कड़वी होती है, लेकिन यह हमेशा सही होती है, यदि हम सच्चाई को अपनाते हैं, तो जीवन में हमें कोई पछतावा नहीं होगा।  आचार्य चाणक्य राष्ट्र शब्द को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि राष्ट्र केवल किसी भूखंड मात्र नहीं होता। राष्ट्र संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, भाषा, इतिहास इन पांचों विषयों का बोध होता है। उनके अनुसार देश में जन्मे प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पण का भाव रखना ही सच्ची राष्ट्र सेवा है। अपने नीति सूत्रों के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने तत्कालीन सुप्त जनमानस के पटल पर राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं आत्मगौरव की भावना को जाग्रत किया। देश के आत्मगौरव और आत्मस्वाभिमान को सुदृढ़ एवं अखंड रखने के लिए अनिवार्य है राष्ट्र की एकता एवं संगठन। चाणक्य का विचार था कि ‘राष्ट्रीय एकता राष्ट्र रूपी शरीर में आत्मा के समान है। जिस प्रकार आत्मा से हीन शरीर प्रयोजनहीन हो जाता है, उसी प्रकार राष्ट्र भी एकता एवं संगठन के अभाव में टूट जाता है। ऐसे में आज हम सब का भी दायित्व बनता है कि समाज एवं राष्ट्र स्तर पर कहीं भी कुछ ऐसा घटित हो रहा है जो राष्ट्रहित में नहीं है तो एक सजग भारतीय की तरह उस पर मुखर हो। गलत देखकर चुप रह जाना भी किसी अपराध से कम नहीं होता। राष्ट्र-विरोध की स्थितियों से संघर्ष करना समय की जरूरत है। उनसे पलायन करने से राष्ट्रीयता सशक्त मजबूत नहीं हो सकती। महाभारत के शान्तिपर्व में लिखा गया है – दुर्जनः परिहर्तव्यः विध्ययालंकृतोऽपि सन् । मणिना भूषितः सर्पः किमसो न भयंकरः॥ दुर्जन व्यक्ति यदि विद्या से भी अलंकृत हो फ़िर भी उसका छोड़ देना चाहिए। मणि से भूषित सांप क्या भयंकर नही होते? लेखक; सुशील कुमार ‘नवीन‘

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प्रवक्ता न्यूज़

चमत्कारी ‘पूर्णागिरी’ से होती हैं सभी मुरादें पूरी

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डॉ. रमेश ठाकुर 51 शक्तिपीठों में शामिल उत्तराखंड का ‘पूर्णागिरी मंदिर’ का मेला लग चुका है। देशभर से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। मान्यताओं के मुताबिक यह ऐसा स्थान है, जहां सच्चे मन से मांगी हुई प्रत्येक मुराद पूरी होती है। मंदिर उत्तराखंड के चंपावत जिले और नेपाल की सीमा से सटा है। देश के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में शुमार पूर्णागिरी का मंदिर जमीन से करीब साढ़े पांच हजार मीटर ऊंचे पहाड़ पर स्थित है। 12 से 15 किमी की चढ़ाई के बाद दर्शन नसीब होते हैं। मंदिर चारों तरफ से प्राकृतिक सुंदरताओं से घिरा है। मंदिर के कपाट इस समय खुले हैं। चैत्र नवरात्र से शुरू होकर जून की पहली बारिश तक खुलते हैं। बता दें, यह इलाका उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की विधानसभा ‘खटीमा’ से सटा हुआ है। मेले के वक्त राज्य सरकार द्वारा सुरक्षा-व्यवस्था हर वर्ष चाक चौबंद की जाती है। सालाना करीब 10 लाख से अधिक देश-विदेश से श्रद्धालु मंदिर में मन्नत मांगने पहुंचते हैं। दैवीय चमत्कारी गाथाओं से संबंध रखने वाला यह मेला करीब दो माह तक चलेगा। मार्च-अप्रैल में भीड़ ज्यादा रहती है। सदियों पुरानी मान्यताओं के मुताबिक जो भक्त सच्चे मन से मंदिर में चुन्नी से गांठ बांधकर कुछ मांगता, तो उसकी मुराद तकरीबन पूरी होती है। मंदिर में मुंडन कराने से बच्चा दीर्घायु और बुद्धिमान बनता है। इसी विशेष महत्वता के चलते लाखों तीर्थ यात्री वहां बच्चों का मुंडन कराने जाते हैं। पूर्णागिरी धाम में प्राकृतिक सुंदरता और अध्यात्म के मिलन का एहसास होता है। जहां हरियाली, शीतल हवा और शारदा नदी के साथ प्राकृतिक सौंदर्य हर ओर फैली हुई है।  पुराणों में जिक्र है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहां विष्णु चक्र से कटकर गिरा था। उसके बाद वहां 51 सिद्ध पीठों की स्थापना हुई और मां पूर्णागिरि मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हुआ। मां पूर्णागिरि के मंदिर के लिए सड़क, रेल व वायु मार्ग से पहुंच सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन टनकपुर है। सड़क मार्ग से ठूलीगढ़ तक जा सकते हैं। इसके अलावा वायु मार्ग से जाने के निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है। बरेली-पीलीभीत से मंदिर पहुंचने के लिए तमाम सुगम पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधाएं 24 घंटे उपलब्ध रहती हैं। पुराणों में ये भी बताया है कि महाभारत काल में प्राचीन ब्रह्मकुंड के निकट पांडवों द्वारा देवी भगवती की आराधना तथा बह्मदेव मंडी में सृष्टिकर्ता ब्रह्मा द्वारा आयोजित विशाल यज्ञ में एकत्रित अपार सोने से वहां सोने का पर्वत भी निकला था, जो अदृश्य है। व्यवस्थापक बताते हैं, सोने का मंदिर 100 साल में एक बार दर्शन देता है। सोने का विशालकाय मंदिर धरती फाड़कर उपर निकलता है और थोड़ी देर दिखने के बाद औछल हो जाता है। इसलिए देश के चारों दिशाओं में स्थित कालिका गिरि, हिमगिरि व मल्लिका गिरी में पूर्णागिरि का ये शक्तिपीठ बहुत महत्व रखता है।वेदों में ज्रिक है कि एक समय दक्ष प्रजापति द्वारा यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें देवी-देवताओं का बुलाया गया लेकिन शिव भगवान को नहीं? तभी, सती द्वारा अपने पति भगवान शिव शंकर का अपमान सहन न होने के कारण अपनी देह की आहुति उसी यज्ञ में दे दी। सती की जली हुई देह लेकर भगवान शिव आकाश में विचरण करने लगे। जब भगवान विष्णु ने शिव शंकर को ताण्डव नृत्य करते देखा, तो उन्हें शांत करने के लिए सती के शरीर के सभी अंगों को पृथक-पृथक कर दिया। उसके बाद जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां शांति पीठ स्थापित हो गए। पूर्णागिरी में सती की नाभि गिरी थी। नाभि चंपावत जिले के “पूर्णा” पर्वत पर गिरने से मां “पूर्णागिरी मंदिर” की स्थापना हुई। ‘मल्लिका गिरि’ ‘कालिका गिरि’ ‘हमला गिरि’ में भी यही मान्यताएं हैं लेकिन पूर्णागिरि का स्थान सर्वोच्च है। डॉ. रमेश ठाकुर

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