राजनीति शख्सियत डिजिटल इंडिया: मोदी संग बदलता भारत September 18, 2025 / September 18, 2025 by पवन शुक्ला | Leave a Comment पवन शुक्ला भारत का चेहरा बदल रहा है। जहाँ कभी नागरिकों के जीवन में सरकारी दफ्तरों की लंबी कतारें और जटिल प्रक्रियाएँ सबसे बड़ी बाधा थीं, आज वहीं मोबाइल ऐप, QR कोड, स्मार्ट सिटी की रफ़्तार और ऑनलाइन सेवाओं की सहज उपलब्धता आम बात हो गई है। यह परिवर्तन किसी संयोग का परिणाम नहीं, बल्कि […] Read more » digital india Digital India: India changing with Modi India changing with Modi डिजिटल इंडिया
राजनीति लेख शख्सियत राष्ट्र नायक नरेंद्र मोदी September 16, 2025 / September 16, 2025 by डॉ.वेदप्रकाश | Leave a Comment डॉ.वेदप्रकाश राष्ट्र का कोई पिता नहीं होता। राष्ट्र के पुत्र व राष्ट्र के नायक होते हैं क्योंकि वैदिक चिंतन कहता है- माता भूमि: पुत्रोअहं पृथ्विव्या: अर्थात् यह भूमि मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं। प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व-कृतित्व ने युवा भारत के मन मस्तिष्क से राष्ट्रपिता के प्रायोजित नॉरेटिव को भी समझने हेतु नई दिशा प्रदान की है। वे जिस रूप में मां भारती के सच्चे सिपाही अथवा पुत्र और सेवक बनकर जन-जन की सेवा में लगे हुए हैं, उससे उनका व्यक्तित्व राष्ट्र नायक के रूप में उभरा है। विभिन्न योजनाओं और कार्य प्रणाली में जब वे पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति की आशाओं-आकांक्षाओं की चिंता करते हैं तो उनकी अनुभूति की व्यापकता स्पष्ट देखी जा सकती है। साक्षी भाव नामक रचना में वे लिखते हैं-मुझे तो जगत को भावनाओं से जोड़ना है।मुझे तो सबकी वेदना की अनुभूति करनी है…। प्रस्तुत पंक्तियों से यह भी स्पष्ट है कि उनका विचार और संस्कार भारतीय ज्ञान परंपरा के आलोक में पोषित हुआ है। भारतवर्ष की संत परंपरा, महापुरुषों एवं स्वर्गीय अटल जी जैसे विभिन्न व्यक्तित्वों के चिंतन का उन पर गहरा प्रभाव है। भारतीय ज्ञान परंपरा में सर्वे भवंतु सुखिनः का मंत्र और दृष्टि प्रधान है इसलिए वे सभी के सुख के लिए स्वयं को खपा रहे हैं। स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार वर्ष 2014 में लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी राष्ट्र के नाम अपने पहले ही संबोधन में संकल्प का भाव प्रस्तुत करते हैं। वे जन-जन को झकझोरते हैं और आवाह्न करते हैं। वे प्रधानमंत्री नहीं, प्रधानसेवक के रूप में प्रस्तुत होते हैं। उनके मन मस्तिष्क में नया भारत बनाने की भावना है। गरीब, मजदूर ,किसान, युवा शक्ति एवं नारी शक्ति सबको साथ लेकर वे सबके कल्याण और राष्ट्र निर्माण का संकल्प प्रस्तुत करते हैं। वर्ष 2025 में लालकिले की प्राचीर से उनके बारह संबोधन पूर्ण हो चुके हैं। वे अपने प्रत्येक संबोधन में सबके साथ और सबके विकास का मंत्र लेकर प्रत्येक बार नई एवं जन कल्याणकारी योजनाएं लेकर आते हैं। अब भारत बदल रहा है। आज जन-जन नए भारत,आत्मनिर्भर भारत व समृद्ध भारत का भाव लेकर अपनी भागीदारी करते हुए विकसित भारत का संकल्प लेकर तेजी से आगे बढ़ रहा है। राष्ट्र नायक वही है जो राष्ट्र के जन-जन के साथ जुड़कर और उन्हें अपने साथ जोड़कर शिखर की ओर बढ़ चले। विगत कुछ वर्षों में आर्थिक उन्नति के शिखर की ओर बढ़ते हुए भारत आज विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। मेक इन इंडिया, मेड इन इंडिया का विचार अब व्यापक हो चुका है। खेती, किसानी, पशुपालन, मत्स्य पालन आदि के माध्यम से आत्मनिर्भरता जन-जन का संकल्प बनता जा रहा है। संतुलित विकास और नेक्स्ट जेनरेशन इंफ्रास्ट्रक्चर का तेजी से विकास हो रहा है। वैश्विक मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए नरेंद्र मोदी विभिन्न मुद्दों पर विश्व समुदाय का मार्गदर्शन कर रहे हैं। राष्ट्र की सीमाओं और स्वाभिमान की रक्षा के लिए वे दृढ़ संकल्पित हैं। आज विश्व भारतीय सेना के शौर्य और मोदी नेतृत्व की निर्णय क्षमता की सराहना कर रहा है। आज देश किसी की थौंपी हुई नीतियां मानने को मजबूर नहीं है अपितु स्वयं को आत्मनिर्भर और मजबूत बनाते हुए दूसरों के लिए प्रेरणा बन रहा है। विश्व के अनेक देशों के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सम्मानित किया जा चुका है। वे राष्ट्रीय और वैश्विक फलक पर जहां भी जाते हैं वहीं वसुधैव कुटुंबकम का उद्घोष करते हैं। वे सबको साथ लेकर मानवता के कल्याण के सूत्र देकर उन पर अमल का मार्ग बताते हैं। राष्ट्र नायक वही है जो विपरीत परिस्थितियों में भी आत्मविश्वास का भाव जगा दे। वैश्विक महामारी कोरोना में अनेक देशों की व्यवस्थाएं भिन्न-भिन्न रूपों में चरमरा गई लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने सूझबूझ से न केवल अपने देश को इस संकट से निकला अपितु अनेक देशों की सहायता और सेवा के लिए काम किया। 25 मार्च 2018 के मन की बात में उन्होंने जन-जन में आत्मविश्वास भरते हुए कहा- आज पूरे विश्व में भारत की ओर देखने का नजरिया बदला है। आज जब भारत का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है तो इसके पीछे मां भारती के बेटे- बेटियों का पुरुषार्थ है। वे छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी उपलब्धि का श्रेय स्वयं नहीं लेते अपितु देश की जनता के संकल्प और पुरुषार्थ को समर्पित करते हैं। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में कार्य प्रणाली को बदला है। उनका दृष्टिकोण बहुत स्पष्ट है-रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म। स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, शौचालय युक्त भारत, गरीबी मुक्त भारत, गंदगी मुक्त भारत, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, मिशन अंत्योदय, बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ, मुद्रा योजना, फिट इंडिया, खेलता भारत-खिलता भारत, वोकल फाॅर लोकल, लखपति दीदी आदि अनेक ऐसी योजनाएं एवं अभियान हैं जिनके आवाह्न के बाद समूचा देश नरेंद्र मोदी के साथ चलता दिखाई दे रहा है। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती जी अपने उद्बोधनों में बार-बार कहते हैं- यह देश का सौभाग्य है कि देश को नरेंद्र मोदी जैसा योगी और तपस्वी प्रधानमंत्री मिला है जिनका जीवन मां भारती की सेवा में समर्पित है। राष्ट्र नायक वही है जो विकृति को संस्कृति में बदल दे। असंभव को संभव कर दिखाएं। नकारात्मकता को सकारात्मक बना दे। निराशा को आशा में बदल दे। सेवा की भावना और समर्पण का विचार ही जिसके जीवन का ध्येय है, राष्ट्र नायक वही तो है। 17 सितंबर 2025 को राष्ट्र नायक नरेंद्र मोदी के 75वें जन्मदिन के उपलक्ष में देशभर में जन कल्याण के कार्य हों। जन-जन उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से प्रेरणा लेकर नए विचार और नए संकल्पों के साथ आगे बढ़े। यही राष्ट्र नायक के जन्मोत्सव पर उन्हें महत्वपूर्ण उपहार होगा। मां भारती की सेवा में समर्पित राष्ट्र नायक नरेंद्र मोदी का जीवन दर्शन बिल्कुल स्पष्ट है-मां… मुझे कुछ सिद्ध नहीं करना है।मुझे तो स्वयं की आहुति देनी है। आइए हम भी जाति, संप्रदाय एवं क्षेत्रीयता के भेदभाव को भूलकर स्वयं को सिद्ध करने के स्थान पर मां भारती के कल्याण हेतु एक छोटी सी आहुति अवश्य दें। राष्ट्र नायक के जन्मोत्सव पर उन्हें हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। डॉ.वेदप्रकाश Read more » 75th birthday of narendra modi National leader Narendra Modi r Narendra Modi नरेंद्र मोदी
राजनीति शख्सियत नरेंद्र मोदी मतलब नैति नैति September 16, 2025 / September 16, 2025 by डॉ घनश्याम बादल | Leave a Comment डॉ घनश्याम बादल नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी के कार्यकाल को पीछे छोड़कर नेहरू के बाद सबसे ज्यादा समय तक लगातार प्रधानमंत्री पद रहने वाली उसे शख्सियत का नाम है जिसे उनके समर्थक भारत को विश्वगुरु बनाने एक विकसित देश बनाने और बनाना स्टेट से सॉलिड स्टेट तक ले जाने का श्रेय देते हैं. […] Read more » 75th birthday of narendra modi Narendra Modi means morality
राजनीति शख्सियत नरेंद्र मोदी : विकास के “भगीरथ”, आधुनिक भारत के “शिल्पकार” September 16, 2025 / September 16, 2025 by प्रदीप कुमार वर्मा | Leave a Comment प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर प्रदीप कुमार वर्मा एक लोकप्रिय राजनेता। एक कुशल रणनीतिकार। जनता का प्रधान सेवक। सादगी और सेवा की प्रतिमूर्ति। और विकसित भारत का आधुनिक शिल्पकार। जी हां हम बात कर रहे हैं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी की। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में करीब पच्चीस साल […] Read more » 75th birthday of narendra modi आधुनिक भारत के "शिल्पकार विकास के "भगीरथ"
लेख शख्सियत नरेंद्र मोदी होना आसान नहीं है September 16, 2025 / September 16, 2025 by राजेश कुमार पासी | Leave a Comment जन्मदिन 17 सितंबर राजेश कुमार पासी नरेन्द्र दामोदरदास मोदी का नाम आज पूरी दुनिया में गूंज रहा है, भारत में बच्चे-बच्चे के मुंह पर मोदी का नाम चढ़ गया है । कितने ही देशों में जनता की मांग होती है कि उन्हें भी मोदी जैसा नेता चाहिए । हमारा पड़ोसी वैसे तो मोदी से बहुत नफरत करता है लेकिन पाकिस्तानी जनता भी चाहती है कि उनके पास भी मोदी जैसा कोई नेता हो । 17 सितंबर, 1950 को मोदी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ । एक गरीब परिवार से निकलकर देश की सर्वोच्च सत्ता पर पहुंचना आसान नहीं रहा होगा । 17 वर्ष की आयु में उनका विवाह जशोदाबेन से किया गया लेकिन विवाह के पश्चात वो अपने परिवार और घर को छोड़ कर देशसेवा के लिए निकल गए । उन्होंने संघ प्रचारक रहते हुए 1983 में गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की । बचपन में चाय बेचने वाले बच्चे ने संघ प्रचारक के रूप में पूरे देश का भ्रमण किया । यही कारण है कि उन्हें पूरे देश की जनता की नब्ज का पता है । उन्हें देश की समस्याओं को समझने के लिए किसी अधिकारी और विशेषज्ञ की जरूरत नहीं पड़ती । उनकी योजनाएं लीक से हटकर होती हैं । मोदी को गरीबी समझने के लिए किताबी ज्ञान की जरूरत नहीं है, उन्होंने गरीबी को जीया है । यही कारण है कि उनकी योजनाओं से गरीबों की जिन्दगी में जो बदलाव आया है, वो बदलाव पिछले 70 साल की सरकारें भी नहीं कर पाई । देश का प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से राष्ट्र के नाम संबोधन में पूरे देश में शौचालय बनाने की घोषणा करता है । ये देखने में बड़ा अजीब लग सकता है और इसका मजाक भी बनाया गया लेकिन गरीब महिलाओं के लिए शौचालय का क्या मतलब होता है, ये वही जान सकता है, जिसने उनके जीवन को करीब से देखा है । मोदी सरकार की योजनाओं का सबसे ज्यादा फायदा महिलाओं को हुआ है । मोदी सरकार की ज्यादातर योजनाएं महिलाओं को ही ध्यान में रखकर बनाई गई हैं । यही कारण है कि महिलाओं में मोदी का एक बड़ा समर्थक वर्ग खड़ा हो गया है । मोदी ने संघ के प्रचारक से राजनीति में प्रवेश किया लेकिन उन्होंने राजनीति को सत्ता प्राप्ति नहीं बल्कि सेवा का माध्यम माना । यही कारण है कि वो खुद को देश का शासक नहीं बल्कि प्रधान सेवक मानते हैं । स्वयंसेवक से प्रधान सेवक का सफर आसान नहीं रहा होगा, मोदी जैसा व्यक्तित्व ही ऐसा सफर पूरा कर सकता है । संघ से उन्हें निस्वार्थता, सामाजिक दायित्व बोध, समर्पण, सेवा, त्याग और देशभक्ति के विचारों को आत्मसात करने का अवसर मिला । 1974 में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में उन्होंने हिस्सा लिया और 1975 में आपातकाल के दौरान भी अपना योगदान दिया । संघ के निर्देश पर 1987 में उन्होंने भाजपा में प्रवेश करके राजनीति की मुख्यधारा में कदम रखा । एक साल बाद पार्टी ने उनकी योग्यता को देखते हुए गुजरात की राज्य इकाई का प्रदेश महामंत्री बना दिया । उनकी मेहनत और रणनीति के कारण 1995 में भाजपा को गुजरात विधानसभा में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का मौका मिला । 2001 में गुजरात के भूकंप के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के खिलाफ पार्टी में असंतोष भड़क गया । इस असंतोष को देखते हुए भाजपा हाईकमान ने गुजरात की कमान मोदी जी को सौंपने का निर्णय लिया । 7 अक्तूबर 2001 को मोदी जी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली । मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने गुजरात के भूकंप पीड़ितों के लिए बड़े कार्यक्रम चलाए और उनके पुनर्वास की व्यवस्था की । 2002 में गुजरात में गोधरा कांड हो गया, जिसमें 59 कारसेवकों को रेल के डिब्बे में बंद करके जलाकर मार दिया गया । इसकी प्रतिक्रिया में गुजरात में दंगे हो गए, जिसमें 1200 लोग मारे गए । इसके बाद हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई । इसके बाद 2007 और 2012 में मोदी के नेतृत्व में गुजरात में भाजपा की सरकार बनी । गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में काम करते हुए उनके गुजरात मॉडल की पूरे देश में चर्चा होने लगी । गुजरात के विकास को देखते हुए उन्हें विकासपुरूष कहा जाने लगा । उनकी योजनाओं की पूरे देश में चर्चा होने लगी । ज्योतिग्राम योजना के जरिये उन्होंने गांव-गांव तक बिजली पहुंचा दी । गुजरात में गांव-गांव तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था की । गुजरात की कानून-व्यवस्था की चर्चा भी देश में होने लगी । उनकी लोकप्रियता को देखते हुए ही भाजपा ने उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया । 2014 में उनकी लोकप्रियता का ये आलम था कि मनमोहन सिंह के रहते हुए ही उन्हें प्रधानमंत्री मान लिया गया था । मोदी की सबसे बड़ी विशेषता है कि वो हमेशा बड़े लक्ष्य रखते हैं और फिर उन्हें हासिल करने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं । उन्होंने 2014 में भाजपा के लिए 272 सीटें हासिल करके पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का लक्ष्य रखा था । राजनीतिक विश्लेषक, विपक्षी दल और भाजपा के नेताओं को भी यह विश्वास नहीं था कि भाजपा 272 सीटें जीत सकती है लेकिन मोदी ने 282 सीटें जीतकर सबको अचंभित कर दिया । इसके बाद 2019 में उन्होंने 303 सीटें जीतकर पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया । 2024 में मोदी के नेतृत्व में भाजपा को 240 सीटें मिली लेकिन मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन गए । मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले ही कुछ राजनीतिक विश्लेषकों और विपक्षी नेताओं का कहना था कि मोदी अगर प्रधानमंत्री बन गए तो उनको इस पद से हटाना बहुत मुश्किल होगा। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बाद मोदी देश पर लगातार सबसे ज्यादा शासन करने वाले नेता बन गए हैं। नेहरू जी के सामने विपक्ष नाममात्र का था लेकिन मोदी एक शक्तिशाली विपक्ष के रहते यह कारनामा करने में सफल हुए हैं। कोई नहीं कह सकता कि मोदी कब तक देश के प्रधानमंत्री बने रहेंगे क्योंकि उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आ रही है । 75 साल की उम्र होने पर भी वो पूरी तरह से स्वस्थ हैं और पूरी ताकत से काम कर रहे हैं। मोदी सत्ता को जनता द्वारा दी गई जिम्मेदारी मानते हैं, इसलिए कहते हैं कि वो जनता के कल्याण के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा करेंगे और वो कर भी रहे हैं । 13 साल मुख्यमंत्री और 11 साल प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने एक भी छुट्टी नहीं ली है । रोज 20 घंटे तक काम करना उनकी आदत है । जनता को वो अपना भगवान मानते हैं और उसकी सेवा को अपना धर्म मानते हैं । यही कारण है कि वो जनता से हमेशा जुड़े रहते हैं और उन्हें ऐसा करने के लिए मीडिया की जरूरत नहीं है । जनता से जुड़ने के लिए पूरे देश का भ्रमण और सोशल मीडिया को वो इस्तेमाल करते हैं । जहां वो गरीबों की समस्याओं को समझते हैं, वही वो उद्योगपतियों की समस्याओं की भी खबर रखते हैं । गरीबों से प्यार करते हैं लेकिन अमीरों से नफरत नहीं करते । देश के इतिहास, भूगोल, संस्कृति और धर्म की उन्हें गहरी समझ है, इसलिए उन्हें उनके समर्थक हिन्दू हृदय सम्राट कहते हैं । जहां जनता वीआईपी कल्चर से परेशान हैं, वहीं मोदी जी ने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनने के बाद परिवार से दूरी बनाए रखी है । उनके भाई-बहन और अन्य परिजन निम्न मध्यवर्गीय जीवन बिता रहे हैं । उन्होंने अपने पद का इस्तेमाल अपने परिजनों के लिए कभी नहीं किया है । जनता पर मोदी इतना ज्यादा विश्वास करते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी लागू करने जैसा मुश्किल फैसला किया । जनता ने उनके विश्वास को कायम रखा है क्योंकि वो मानती है कि मोदी की नीतियां गलत हो सकती हैं लेकिन उनकी नीयत कभी गलत नहीं हो सकती । 2014 से पहले पाकिस्तान के आतंकवादी हमलों के बावजूद उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई लेकिन मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक और फिर ऑपरेशन सिंदूर करके पाकिस्तान को संदेश दे दिया कि आतंकवादी हमले की उसे बड़ी कीमत चुकानी होगी । जिस चीन से डर कर हम सीमा पर सड़क भी नहीं बना रहे थे, मोदी ने उस सीमा पर सेना के लिए पूरा बुनियादी ढांचा तैयार कर दिया है । जो देश हथियारों का सबसे बड़ा आयातक था, आज उनके नेतृत्व में भारत हजारों करोड़ के हथियार निर्यात कर रहा है । आईटी सुपरपॉवर बना देश अब मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की तैयारी कर रहा है । अपनी कल्याणकारी योजनाओं के कारण ही मोदी ने पूरे देश में भाजपा के लिए एक बड़ा वोट बैंक तैयार कर लिया है । आज हम अशांत पड़ोसियों से घिरे हुए देश हैं. जहां श्रीलंका, म्यांमार और पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहे हैं, वहीं बांग्लादेश और नेपाल में हिंसक क्रांति के बाद सत्ता परिवर्तन हो चुका है । प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है । मोदी ने भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने का लक्ष्य तय किया है और उसी ओर देश को ले जा रहे हैं। ये भारत की जनता और ग्लोबल मीडिया के लिए आश्चर्य का विषय था कि जो व्यक्ति 13 साल से गुजरात का सीएम था, वो प्रधानमंत्री बनने के बाद जब अपनी मां से मिलने जाता है तो एक छोटे से सरकारी मकान के छोटे कमरे में उसकी मां रहती है । जिस देश में कोई विधायक बन जाए तो पूरा परिवार पैसों में खेलने लगता है । मोदी जैसा नेता कभी-कभी आता है क्योंकि सत्ता के शीर्ष पर पहुंच कर जनता का सेवक बने रहना आसान नहीं है। मोदी होना इसलिए भी आसान नहीं है क्योंकि शासक बन जाने के बाद सत्ता सिर पर चढ़ कर बोलती है। लगातार 24 साल तक सत्ता में रहने के बाद भी बेदाग बने रहना आसान नहीं है। राजेश कुमार पासी Read more » 75th birthday of narendra modi नरेंद्र मोदी
राजनीति शख्सियत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर September 16, 2025 / September 16, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment राजनीति के अंधियारे में सूर्य निकल आया जैसेएक अपाहिज देश आज फिर पैदल चल आया जैसेकिसी चक्रवर्ती राजा ने मोदी बनकर जन्म लियास्वयं इन्द्र प्यासी धरती पर लेकर जल आया जैसे सेनाओं में प्राण आ गए, देश शक्ति बनकर उभरासोया पडा समर्पण जागा, देश भक्ति बनकर उभरानतमस्तक है विश्व सामने, एक सन्त की माया हैयह […] Read more » 75th birthday of narendra modi
राजनीति शख्सियत मोदी का चमत्कारिक व्यक्तित्व और जनापेक्षाएं September 16, 2025 / September 16, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment यह सत्य है कि इस समय सारे विश्व के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों में मोदी का आभामंडल सबसे अधिक प्रभावी है। अपने इसी आभामंडल के चलते प्रधानमंत्री मोदी देश में अल्पमत की सरकार उतने ही आत्मविश्वास के साथ चला रहे हैं, जितने आत्मविश्वास के साथ उन्होंने अपनी पार्टी की बहुमत की सरकारों को चलाया है। इस […] Read more » मोदी का चमत्कारिक व्यक्तित्व
लेख शख्सियत समाज परमपूज्य स्वामी ब्रह्मानंद जी का वैराग्य नैसर्गिक था September 11, 2025 / September 11, 2025 by ब्रह्मानंद राजपूत | Leave a Comment (43वीं पुण्यतिथि 13 सितम्बर 2025 पर विशेष) स्वामी ब्रह्मानंद का व्यक्तित्व महान था। उन्होंने समाज सुधार के लिए काफी कार्य किए। देश की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने जहां स्वयं को समर्पित कर कई आंदोलनों में जेल काटी। आजादी के बाद देश की राजनीति में भी उनका भावी योगदान रहा है। स्वामी जी ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ही कार्य किए। समाज के लोगों को शिक्षा की ओर ध्यान देने का आह्वान किया। स्वामी ब्रह्मानंद महाराज का जन्म 04 दिसंबर 1894 को उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले की राठ तहसील के बरहरा नामक गांव में साधारण किसान परिवार में हुआ था। स्वामी ब्रह्मानंद महाराज जी के पिता का नाम मातादीन लोधी तथा माता का नाम जशोदाबाई था। स्वामी ब्रह्मानंद के बचपन का नाम शिवदयाल था। स्वामी ब्रह्मानंद ने बचपन से ही समाज में फैले हुए अंधविश्वास और अशिक्षा जैसी कुरीतियों का डटकर विरोध किया। स्वामी ब्रह्मानंद जी की प्रारम्भिक शिक्षा हमीरपुर में ही हुई। इसके पश्चात् स्वामी ब्रह्मानंद जी ने घर पर ही रामायण, महाभारत, गीता, उपनिषद और अन्य शास्त्रों का अध्ययन किया। इसी समय से लोग उन्हें स्वामी ब्रह्मानंद से बुलाने लगे। कहा जाता है कि बालक शिवदयाल के बारे में संतों ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक या तो राजा होगा या प्रख्यात सन्यासी। बालक शिवदयाल का रुझान आध्यात्मिकता की तरफ ज्यादा होने के कारण पिता मातादीन लोधी को डर सताने लगा कि कहीं वे साधु न बन जाए। इस डर से मातादीन लोधी ने स्वामी ब्रह्मानंद जी का विवाह सात वर्ष की उम्र में हमीरपुर के ही गोपाल महतो की पुत्री राधाबाई से करा दिया। आगे चलकर राधाबाई ने एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया। लेकिन स्वामी जी का चित्त अब भी आध्यात्मिकता की तरफ था। स्वामी ब्रह्मानंद जी ने 24 वर्ष की आयु में पुत्र और पत्नी का मोह त्याग गेरूए वस्त्र धारण कर परम पावन तीर्थ स्थान हरिद्वार में भागीरथी के तट पर ‘‘हर कि पेड़ी’’ पर सन्यास कि दीक्षा ली। संन्यास के बाद शिवदयाल लोधी संसार में ‘‘स्वामी ब्रह्मानंद’’ के रूप में प्रख्यात हुए। संन्यास ग्रहण करने के बाद स्वामी ब्रह्मानंद ने सम्पूर्ण भारत के तीर्थ स्थानों का भ्रमण किया। इसी बीच उनका अनेक महान साधु संतों से संपर्क हुआ। इसी बीच उन्हें गीता रहस्य प्राप्त हुआ। पंजाब के भटिंडा में स्वामी ब्रह्मानंद जी की महात्मा गांधी जी से भेंट हुई। गांधी जी ने उनसे मिलकर कहा कि अगर आप जैसे 100 लोग आ जायें तो स्वतंत्रता अविलम्ब प्राप्त की जा सकती है। गीता रहस्य प्राप्त कर स्वामी ब्रह्मानंद ने पंजाब में अनेक हिंदी पाठशालाएँ खुलवायीं और गोवध बंदी के लिए आंदोलन चलाये। इसी बीच स्वामी जी ने अनेक सामाजिक कार्य किये 1956 में स्वामी ब्रह्मानंद को अखिल भारतीय साधु संतों के अधिवेशन में आजीवन सदस्य बनाया गया और उन्हें कार्यकारिणी में भी शामिल किया गया। इस अवसर पर देश के प्रथम राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी सम्मिलित हुए। स्वामी जी सन् 1921 में गाँधी जी के संपर्क में आकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। स्वतंत्रता आन्दोलन में भी स्वामी ब्रह्मानंद जी ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। 1928 में गांधी जी स्वामी ब्रह्मानंद के प्रयासों से राठ पधारे। 1930 में स्वामी जी ने नमक आंदोलन में हिस्सा लिया। इस बीच उन्हें दो वर्ष का कारावास हुआ। उन्हें हमीरपुर, हरदोई और कानपूर कि जेलों में रखा गया। उन्हें पुनः फिर जेल जाना पड़ा। स्वामी ब्रह्मानंद जी ने पूरे उत्तर भारत में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लोगों में अलख जगाई। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय स्वामी जी का नारा था उठो! वीरो उठो!! दासता की जंजीरों को तोड फेंको। उखाड़ फेंको इस शासन को एक साथ उठो आज भारत माता बलिदान चाहती है। उन्होने कहा था की दासता के जीवन से म्रत्यु कही श्रेयस्कर है। बरेली जेल में स्वामी ब्रह्मानंद की भेट पंडित जवाहर लाल नेहरू जी से हुई। जेल से छूटकर स्वामी ब्रह्मानंद शिक्षा प्रचार में जुट गए। 1942 में स्वामी जी को पुनः भारत छोडो आंदोलन में जेल जाना पड़ा। स्वामी जी ने सम्पूर्ण बुंदेलखंड में शिक्षा की अलख जगाई आज भी उनके नाम से हमीरपुर में डिग्री कॉलेज चल रहा है। जिसकी नीव स्वामी ब्रह्मानंद जी ने 1938 में ब्रह्मानंद विद्यालय के रूप में रखी। 1966 में गौ हत्या निषेध आंदोलन में स्वामी ब्रह्मानंद ने 10-12 लाख लोगों के साथ संसद के सामने आंदोलन किया। गौहत्या निषेध आंदोलन में स्वामी ब्रह्मानंद को गिरप्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया। तब स्वामी ब्रह्मानंद ने प्रण लिया कि अगली बार चुनाव लड़कर ही संसद में आएंगे। स्वामी जी 1967 से 1977 तक हमीरपुर से संासद रहे। जेल से मुक्त होकर स्वामी जी ने हमीरपुर लोकसभा सीट से जनसंघ से 1967 में चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीतकर संसद भवन पहुंचे। देश की संसद में स्वामी ब्रह्मानंद जी पहले वक्ता थे जिन्होने गौवंश की रक्षा और गौवध का विरोध करते हुए संसद में करीब एक घंटे तक अपना ऐतहासिक भाषण दिया था। 1972 में स्वामी जी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के आग्रह पर कांग्रेस से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति वीवी गिरि से स्वामी ब्रह्मानंद के काफी निकट संबंध थे। स्वामी जी की निजी संपत्ति नहीं थी। सन्यास ग्रहण करने के बाद उन्होंने पैसा न छूने का प्रण लिया था और इस प्रण का पालन मरते दम तक किया। स्वामी ब्रह्मानंद अपनी पेंशन छात्र-छात्राओं के हित में दान कर दिया करते थे। समाज सुधार और शिक्षा के प्रसार के लिए उन्होंने अपना जीवन अर्पित कर दिया। वह कहा करते थे मेरी निजी संपत्ति नहीं है, यह तो सब जनता की है। कर्मयोगी शब्द का जीवंत उदाहरण यदि भारत देश में है तो स्वामी ब्रह्मानंद का नाम अग्रिम पंक्ति में लिखा है। कर्म को योग बनाने की कला अगर किसी में थी तो वो स्वामी ब्रह्मानंद जी ही थे। स्वामी जी का वैराग्य नैसर्गिक था उनका वैराग्य स्वयं या अपने आप तक सीमित नहीं था। बल्कि उनके वैराग्य का लाभ सारे समाज को मिला। हमेशा गरीबों की लड़ाई लड़ने वाले बुन्देलखण्ड के मालवीय नाम से प्रख्यात, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, त्यागमूर्ति, सन्त प्रवर, परम पूज्य स्वामी ब्रह्मानंद जी 13 सितम्बर 1984 को ब्रह्मलीन हो गए। लेकिन उनका जीवन और शिक्षाएं आज भी हमें राह दिखाती हैं। आज हम त्यागमूर्ति, संत प्रवर, परम पूज्य स्वामी ब्रह्मानंद जी को उनकी 43वीं पुण्यतिथि 13 सितम्बर 2025 पर नमन करते हुए यही कह सकते हैं कि- ‘‘लाखों जीते लाखों मरते याद कहा किसी की रह जाती, रहता नाम अमर उन्ही का जो दे जाते अनुपम थाती’’ – ब्रह्मानंद राजपूत Read more » परमपूज्य स्वामी ब्रह्मानंद जी
राजनीति शख्सियत संकर्षण ठाकुर की पत्रकारिता महज़ पेशा नहीं बल्कि लोकतंत्र की आत्मा September 10, 2025 / September 10, 2025 by कुमार कृष्णन | Leave a Comment कुमार कृष्णन सुप्रसिद्ध पत्रकार संकर्षण ठाकुर से मेरी पहली मुलाकात 1989 में भागलपुर दंगे के दौरान हुई,जब वे द टेलीग्राफ की ओर से रिपोर्टिग भागलपुर आए थे। उन दिनों चार पांच दिन भागलपुर में थे। उनकी रिर्पोटिंग काफी असरदार थी. रिपोर्टिग का नतीजा था कि राज्य सरकार ने स्थिति को संभालने के लिए उस समय […] Read more » संकर्षण ठाकुर
लेख शख्सियत गुरुजी शिबू सोरेन : झारखंड की आत्मा, अस्मिता और संघर्ष के प्रतीक September 3, 2025 / September 3, 2025 by अशोक कुमार झा | Leave a Comment अशोक कुमार झा झारखंड की धरती संघर्षों, बलिदानों और असंख्य जनांदोलनों की साक्षी रही है। यहां के पहाड़ों, नदियों और जंगलों ने बार-बार उस पुकार को सुना है जिसमें आदिवासी अस्मिता, जल-जंगल-जमीन और अस्तित्व की रक्षा की गूँज रही है। इस संघर्ष की सबसे ऊँची आवाज़ और सबसे दृढ़ संकल्पित व्यक्तित्व रहे गुरुजी शिबू सोरेन।गुरुजी का नाम झारखंड की […] Read more » गुरुजी शिबू सोरेन
लेख शख्सियत एक महान क्रांतिकारी के साथ कर रही है कोलकाता नगर निगम अत्याचार August 25, 2025 / August 25, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment कृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि 30 अगस्त 1888 को कलकत्ता के समीप चंद्रनगर में एक बालक का जन्म हुआ। बालक का जन्म चूंकि कृष्ण जन्माष्टमी के दिन हुआ था, इसलिए माता-पिता ने इस नवजात शिशु का नाम ” कन्हाई लाल “नाम रखा था । पिता का स्थानांतरण बॉम्बे में होने के कारण 5 वर्ष की आयु […] Read more » कन्हाई लाल दत्त
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार फांसी के फंदे को चूमकर शहीद हो गए खुदीराम बोस August 11, 2025 / August 11, 2025 by कुमार कृष्णन | Leave a Comment शहादत दिवस, 11 अगस्त 1908 कुमार कृष्णन आज की तारीख में आम तौर पर उन्नीस साल से कम उम्र के किसी युवक के भीतर देश और लोगों की तकलीफों, और जरुरतों की समझ कम ही होती है लेकिन खुदीराम बोस ने जिस उम्र में इन तकलीफों के खात्मे के खिलाफ आवाज बुलंद की, वह मिसाल है जिसका वर्णन इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। इससे ज्यादा हैरान करने वाली बात और क्या हो सकती है कि जिस उम्र में कोई बच्चा खेलने-कूदने और पढ़ने में खुद को झोंक देता है, उस उम्र में खुदीराम बोस यह समझते थे कि देश का गुलाम होना क्या होता है और कैसे या किस रास्ते से देश को इस हालत से बाहर लाया जा सकता है। इसे कम उम्र का उत्साह कहा जा सकता है लेकिन खुदीराम बोस का वह उत्साह आज भारत में ब्रिटिश राज के खिलाफ आंदोलन के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है तो इसका मतलब यह है कि वह केवल उत्साह नहीं था बल्कि गुलामी थोपने वाली किसी सत्ता की जड़ें हिला देने वाली भूमिका थी। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि महज उन्नीस साल से भी कम उम्र में उसी हौसले की वजह से खुदीराम बोस को फांसी की सजा दे दी गई लेकिन यही से शुरू हुए सफर ने ब्रिटिश राज के खिलाफ क्रांतिकारी आंदोलन की ऐसी नींव रखी कि आखिर कार अंग्रेजों को इस देश पर जमे अपने कब्जे को छोड़ कर जाना ही पड़ा। बंगाल के मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में त्रैलोक्य नाथ बोस के घर 3 दिसंबर 1889 को खुदीराम बोस का जन्म हुआ था लेकिन बहुत ही कम उम्र में उनके सिर से माता-पिता का साया उठ गया। माता-पिता के निधन के बाद उनकी बड़ी बहन ने मां-पिता की भूमिका निभाई और खुदीराम का लालन-पालन किया था। इतना तय है कि उनके पलने-बढ़ने के दौरान ही उनमें प्रतिरोध की चेतना भी विकसित हो रही थी। दिलचस्प बात यह है कि खुदीराम ने अपनी स्कूली जिंदगी में ही राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। तब वे प्रतिरोध जुलूसों में शामिल होकर ब्रिटिश सत्ता के साम्राज्यवाद के खिलाफ नारे लगाते थे, अपने उत्साह से सबको चकित कर देते थे। यही वजह है कि किशोरावस्था में ही खुदीराम बोस ने अपने भीतर के हौसले को उड़ान देने के लिए सत्येन बोस को खोज लिया और उनके नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध मैदान में कूद पड़े थे। तब 1905 में बंगाल विभाजन के बाद उथल-पुथल का दौर चल रहा था। उनकी दीवानगी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने नौंवीं कक्षा की पढ़ाई भी बीच में ही छोड़ दी और अंग्रेजों के खिलाफ मैदान में कूद पड़े। तब रिवोल्यूशनरी पार्टी अपना अभियान जोर-शोर से चला रही थी और खुदीराम को भी एक ठौर चाहिए था जहां से यह लड़ाई ठोस तरीके से लड़ी जाए। खुदीराम बोस ने डर को कभी अपने पास फटकने नहीं दिया, 28 फरवरी 1906 को वे सोनार बांग्ला नाम का एक इश्तिहार बांटते हुए पकड़े गए लेकिन उसके बाद वह पुलिस को चकमा देकर भाग निकले। 16 मई 1906 को पुलिस ने उन्हें दोबारा गिरफ्तार कर लिया लेकिन इस बार उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। इसके पीछे वजह शायद यह रही होगी कि इतनी कम उम्र का बच्चा किसी बहकावे में आकर ऐसा कर रहा होगा लेकिन यह ब्रिटिश पुलिस के आकलन की चूक थी। खुदीराम उस उम्र में भी जानते थे कि उन्हें क्या करना है और क्यों करना है। अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ उनका जुनून बढ़ता गया और 6 दिसंबर 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर आंदोलनकारियों के जिस छोटे से समूह ने बम विस्फोट की घटना को अंजाम दिया, उसमें खुदीराम प्रमुख थे। इतिहास में दर्ज है कि तब कलकत्ता में किंग्सफोर्ड चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट को बहुत ही सख्त और बेरहम अधिकारी के तौर पर जाना जाता था। वह ब्रिटिश राज के खिलाफ खड़े होने वाले लोगों पर बहुत जुल्म ढाता था। उसके यातना देने के तरीके बेहद बर्बर थे जो आखिरकार किसी क्रांतिकारी की जान लेने पर ही खत्म होते थे। बंगाल विभाजन के बाद उभरे जनाक्रोश के दौरान लाखों लोग सड़कों पर उतर गए और तब बहुत सारे भारतीयों को मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड ने क्रूर सजाएं सुनाईं। इसके बदले ब्रिटिश हुकूमत ने उसकी पदोन्नति कर दी और मुजफ्फरपुर जिले में सत्र न्यायाधीश बना दिया। उसके अत्याचारों से तंग जनता के बीच काफी आक्रोश फैल गया था। इसीलिए युगांतर क्रांतिकारी दल के नेता वीरेंद्र कुमार घोष ने किंग्सफोर्ड मुजफ्फरपुर में मार डालने की योजना बनाई और इस काम की जिम्मेदारी खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी को दी गई। तब तक बंगाल के इस वीर खुदीराम को लोग अपना आदर्श मानने लगे थे। बहरहाल, खुदीराम और प्रफुल्ल, दोनों ने किंग्सफोर्ड की समूची गतिविधियों, दिनचर्या, आने-जाने की जगहों की पहले रेकी की और अपनी योजना को पुख्ता आधार दिया। उस योजना के मुताबिक दोनों ने किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम से हमला भी किया लेकिन उस बग्घी में किंग्सफोर्ड की पत्नी और बेटी बैठी थी और वही हमले का शिकार बनीं और मारी गईं। इधर खुदीराम और प्रफुल्ल हमले को सफल मान कर वहां से भाग निकले लेकिन जब बाद में उन्हें पता चला कि उनके हमले में किंग्सफोर्ड नहीं, दो महिलाएं मारी गईं तो दोनों को इसका बहुत अफसोस हुआ लेकिन फिर भी उन्हें भागना था और वे बचते-बढ़ते चले जा रहे थे। प्यास लगने पर एक दुकान वाले से खुदीराम बोस ने पानी मांगा जहां मौजूद पुलिस को उनपर शक हुआ और खुदीराम को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मार ली। बम विस्फोट और उसमें दो यूरोपीय महिलाओं के मारे जाने के बाद ब्रिटिश हुकूमत के भीतर जैसी हलचल मची थी, उसमें गिरफ्तारी के बाद फैसला भी लगभग तय था। खुदीराम ने अपने बचाव में साफ तौर पर कहा कि उन्होंने किंग्सफोर्ड को सजा देने के लिए ही बम फेंका था। जाहिर है, ब्रिटिश राज के खिलाफ ऐसे सिर उठाने वालों के प्रति अंग्रेजी राज का रुख स्पष्ट था, लिहाजा खुदीराम के लिए फांसी की सजा तय हुई। 11 अगस्त 1908 को जब खुदीराम को फांसी के तख्ते पर चढ़ाया गया, तब उनके माथे पर कोई शिकन नहीं थी, बल्कि चेहरे पर मुस्कुराहट थी। यह बेवजह नहीं है कि आज भी इतिहास में खुदीराम महज ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ नहीं बल्कि किसी भी जन-विरोधी सत्ता के खिलाफ लड़ाई के सरोकार और लड़ने के हौसले के प्रतीक के रूप में ताकत देते हैं। कुमार कृष्णन Read more » Khudiram Bose became a martyr by kissing the noose of hanging खुदीराम बोस