दक्षिण एशिया में चीनी निवेशः कारण एवं प्रभाव

-डॉ. नजम अब्बास-

chinese_invest_2चीनी राष्ट्रपति शी चींगयांग का पाकिस्तान दौरा एक ऐसे समय हो रहा है जिसके कुछ सप्ताह बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन का दौरा करेंगे और चीन बुलैट ट्रेन, परमाणु सहयोग एवं बिजली पैदावार बढ़ाने की योजनाओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पेशकश करेगा इसके बदले वह भारत से आंतरिक्ष एवं हवाई सहयोग में मदद चाहेगा। सितम्बर 2014 में अपने दौरे भारत में चीनी राष्ट्रपति शी चींग यांग ने अगले पांच वर्षों में 20 बिलियन डाॅलर निवेश की घोषणा की थी।

चीन, भारत और अमेरिका तीनों ताकतों हिंसक और अलगावादी रुझानों को बढ़ने से रोकना चाहती हैं और क्षेत्र को ऐसे तत्वों से सुरक्षित देखना चाहती है। अमेरिकी कांग्रेस की रिचर्स सर्विस के अनुसार अमेरिका पर 2001 से 2015 के बीच दक्षिणी एशिया में फौजी मुहिमों पर 686 मिलियन डालर का खर्च आया है जिसके बावजूद एक आम अफगानी नागरिक को अब तक न तो उचित संरक्षण मिला और न ही आर्थिक स्थिरता आयी। अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजी मुहिम के खत्म होने और शस्त्र बलों के चले जाने के बाद चीन क्षेत्र में सुरक्षा एवं स्थिरता के लिए निवेश और आर्थिक विकास की योजनाओं द्वारा परिवर्तन चाहता है यही कारण है कि आने वाले वर्षों में चीनी निवेश अतीत के मुकाबले कई गुना बढ़ती नज़र आएगा। पड़ोसी देशों में यह निवेश चीन की आंतरिक सूरतेहाल को शांति बनाए रखने की तरफ एक पहल है।

क्षेत्रीय सहयोग की सिंघाई संगठन 2014 की चोटी कानफ्रेंस के अवसर पर चीनी नेतृत्व ने अफगानिस्तान की आंतरिक शांति और क्षेत्र में सुरक्षा के लिए सक्रिय भूमिका अदा करने का आशवासन दिया था। एक चीनी प्रवक्ता के अनुसार अमेरिका के जाने के बाद अफगानिस्तान में बौद्धिक संपदा खोजने में सहयोग हेतु चीन को नए अवसर हासिल होंगे। अफगानिस्तान अपनी अर्थ-व्यवस्था एवं सियासत को मध्य दक्षिणी एशिया की अर्थव्यवस्था से जोड़ना चाहता है। भविष्य में शिंगाई संगठन अफगानिस्तान को क्षेत्रीय सहयोग में एक अहम कड़ी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।

अपने सियासी और सैन्य पकड़ की खातिर चीन को एक बड़ी आर्थिक कीमत अदा करने में कोई संकोच नहीं है। चीनी नेतृत्व के अनुसार अब समय आ गया है कि चीन की पश्चिमी सीमा के इलाकों के पड़ोसी देशों से बेहतर रास्ता ;त्वंकद्ध उपलब्ध करा कर आर्थिक विकास को फैलाया और बढ़ाया जाए। जिस तरह अतीत में चीन ने कुछ मुद्दों पर अमेरिका से सहयोग और अन्य मुद्दों में मुकाबला जारी रखा है, अब भारत के साथ वह कुछ इसी तरह आर्थिक सहयोग और सैन्य दौड़ जारी रखना बेहतर समझता है। इसके साथ साथ चीन ने पाकिस्तान को भारत के साथ संबंधों में मधुरता और आपसी व्यापार में वृद्धि का सुझाव दिया है।

चीन और पाकिस्तान संबंधों पर एक नई किताब के लेखक एंडरयू सेमूल के अनुसार पाकिस्तान और चीन के बीच द्विपक्षीय सहयोग जो 1960 में शुरू हुआ था उसमें कई लिहाज़ से तब्दीली हुई है जिसमें चीन का प्रभावशील आर्थिक विकास, पाकिस्तान, भारत, चीन एवं अमेरिका के बीच बदलते, बढ़ते और ऊँच नीच से गुजरने वाले संबंध एवं सहयोग शामिल है। कुछ वषों से यह बताया जा रहा है कि कुछ बड़ी योजनाओं की शुरुआत पाक-चीन दोस्ती को एक नया संतुलन और एक नया आयाम दे सकता है।

ऐसा नज़र आता है कि पाकिस्तान की आंतरिक समस्याओं के बावजूद चीन वहां पर निवेश इस आशा के साथ करने पर तैयार है कि ऐसा करने से पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था एवं समाज स्थिरता की ओर बढ़ेगा जिसके नतीजे में पाकिस्तान चीन के लिए एक प्रभावशाली क्षेत्र साबित होगा जो चीनी हित हेतु दक्षिण एशिया एवं पश्चिमी एशिया में फैलाव और प्रसार के लिए पुल का काम देगा और दक्षिण एशिया में संतुलन बनाए रखने में भी मदद देगा। जैसे जैसे चीन एक आर्थिक एवं वैश्विक ताकत का रूप लेगा उसे आर्थिक एवं रक्षात्मक हितों के समर्थकों और फौजी अड्डों की और भी ज़रूरत पड़ेगी।

एक ऐसे समय जब पाकिस्तान ऊर्जा संकट से निकलने के लिए प्रयासरत है, चीनी निवेश की पेशकश आपसी सदभावना से बढ़कर एक रणनीति का हिस्सा है जिसके परिणाम स्वरूप एक कमज़ोर और अस्थिर पड़ोसी चीन हित के लिए अच्छी नहीं रहेगा। अफगानिस्तान में चीन का निवेश और उद्योग बढ़ने के साथ वह क्षेत्रीय स्थिरता में पाकिस्तान से एक सकारात्मक भूमिका की आशा करेगा। चीन की उभरती हुई अर्थ व्यवस्था और बढ़ती फौजी ताकत से पाकिस्तान को बहुत बड़ा सहारा मिल सकता है लेकिन अपनी आंतरिक स्थिति एवं सियासी घटनाक्रम को काबू में रखने में नाकामी से पाकिस्तान के हाथ से यह मौका फिसल भी सकता है।

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