राष्ट्रवाद को चुनौती देता “अल्पसंख्यकवाद”

अल्पसंख्यकवाद या मुस्लिम उन्मुखी राजनीति की विवशता आज राष्ट्रवादियों के समक्ष एक बड़ी चुनौती  
बन रही है। जबकि स्वतंत्र भारत के नीति नियंताओं का ध्येय स्वस्थ राष्ट्रवाद की परिकल्पना का अनुगामी था। क्योंकि उन्हें स्मरण था कि अखंड भारत के मुगल व ब्रिटिश शासनों में देश के मूल निवासियों (भूमि पुत्रो) अर्थात् हिन्दुओं के शोषण का इतिहास भरा पड़ा है। उनकी स्मृतियों में देश के लगभग 1000 वर्षों के परतंत्रता काल में (यत्र-तत्र कुछ भागों में कुछ दशकों को छोड़ कर) भारत के भूमि पुत्रों के मानवीय मूल्यों के घोर हनन की वास्तविकता अभी धूमिल नही हुई थी। सन् 1947 में भारत का धर्मानुसार विभाजन मुख्यतः इस्लामिक अत्याचारों का ही परिणाम था। इस सबसे पीड़ित हमारे देश के तत्कालीन कर्णधारों ने रामराज्य की स्थापना का सपना संजोया था।
दुर्भाग्यवश आज भी बहुसंख्यकों की उपेक्षा ही देश की मुख्यधारा बनी हुई है। स्वतंत्र भारत में संगठित अल्पसंख्यक मुस्लिम वोटों के लालच में बहुसंख्यक राष्ट्रवादियों का ही शोषण होता आ रहा है। सत्तर वर्षो के आधुनिक भारत में भारतीय ऋषि मुनियों की संस्कृति के वाहकों को अपमानित होना पड़े और उन्हें आक्रान्ताओं के वंशजों के सामने दब्बू बनने को या आत्मसमर्पण करने को विवश होना पड़े, तो इससे बडा राष्ट्रवादियों का दुर्भाग्य और क्या होगा ? कैसी विडम्बना है कि अल्पसंख्यक आयोग व अल्पसंख्यक मंत्रालय आदि को बहुसंख्यक समाज  “धर्मनिरपेक्षता” के धोखे में स्वीकार करता आ रहा है।
राष्ट्रवादियों को बार-बार एक ही प्रश्न कटोचता है कि राष्ट्रवादी सोच रखने वाली 2014 में बनी मोदीनीत राजग सरकार “सबका साथ व सबका विकास” का नारा देकर भी अपने को अल्पसंख्यकवाद से पृथक् क्यों नहीं कर पायी? सदैव कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण नीतियों का विरोध करते रहने वाली भाजपा को बहुसंख्यक राष्ट्रवादियों ने सत्ता में इसी आशा से बैठाया था कि देश में स्वच्छ व निष्पक्ष राजनीति से राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन मिलेगा। लेकिन सत्ता के मद में सिद्धांतों व मानवीय संवेदनाओं का कोई मूल्य नहीं होता। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के संदर्भ से नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों में  12 मई 2017 के ‘पायनियर’ में छपे समाचार व 13 मई 2017 के “न्यू ऑब्ज़र्वर पोस्ट” में छपा  लेख “मोदी-मुख्तार अल्पसंख्यक सशक्तिकरण” से ज्ञात हुआ कि हमारे प्रधानमंत्री व मंत्री जी मुस्लिम सशक्तिकरण की योजनाओं में 2004-14 की कांग्रेसनीत सरकार से कुछ अधिक ही सक्रिय हो गए है। अल्पसंख्यकों के विकास के लिए प्रमाण के रूप में  मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल की मुख्य योजनाओं के कुछ नाम निम्नलिखित है…
▶गरीब नवाज कौशल विकास केंद्र, उस्ताद, नई मंज़िल, नई रोशनी, नई उड़ान, सीखो और कमाओ, पढ़ो परदेस , तहरीके तालीम, प्रोग्रेस पंचायत, हुनर हाट, सद्भाव मंडप, बेगम हजरत महल छात्रा छात्रवृत्ति, बहुक्षेत्रीय विकास कार्यक्रम व प्रधानमंत्री का नया 15 सूत्री कार्यक्रम आदि। इनके अंतर्गत पिछले  3 वर्षों (2014-17) में निम्नलिखित लाभकारी कार्य हुए थे… 
~4740 करोड़ रुपये छात्रवृत्ति के रूप में  1.82 लाख छात्रों को दिए गए ।
~116 करोड़ रुपये 32705 मुस्लिम युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए दिए गए ।
~120 करोड़ रुपयों के व्यय से 70 हज़ार स्कूल ड्राप आउट बच्चों को पुनः स्थापित किया गया ?
~44 करोड़ रुपयों द्वारा “नई रोशनी” कार्यक्रम में  1.98 लाख मुस्लिम युवतियों को लाभ हुआ ।
~31 करोड़ रुपये 2.34 लाख मुस्लिम युवाओं पर व्यय करके उनको रोजगार दिलवाए ।
~ “नई उड़ान” योजना में छात्रों को 50 हजार रुपये की  अतिरिक्त सहायता दी गयी।
~ अल्पसंख्यक (मुस्लिम) बहुल क्षेत्रो में 33 डिग्री कालेज, 1102 स्कूल भवन, 15869 नये कक्षा कक्ष,           676 छात्रावास, 97 आई टी आई, 16 पॉलिटेक्निक व 223 सद्भावना मंडप भी बनाये गये।
~ कौशल विकास  योजना से 5.2 लाख से अधिक मुस्लिम  युवा व युवतियों ने लाभ उठाया है। 
~2016-17 में एनएमडीएफसी के द्वारा स्वरोजगार व व्यापार के लिए 108588 अल्पसंख्यकों की आर्थिक सहायता की गई।
~2014 से 2019 में हज यात्रियों की संख्या में निरतंर वृद्धि होने से अब दो लाख मुसलमान हज यात्रा के लिए सऊदी अरब जाएँगे।
~ इसके अतिरिक्त मुस्लिम बहुल क्षेत्रो में 100 से अधिक नवोदय विद्यालय जैसे स्कूल खोले जाएँगे ।
~साथ ही मोदी जी की इच्छा है कि मौलाना आज़ाद फाउंडेशन द्वारा 5 उच्च शिक्षण संस्थान खोले जाएँ जिनमें अल्पसंख्यकों को अच्छी “परंपरागत” व आधुनिक शिक्षा मिले।
▶राजग व सप्रंग सरकार के ऐसे अल्पसंख्यक हितैषी कार्यों को निम्नलिखित तुलनात्मक दृष्टि देखें तो आपको तुष्टिकरण व सशक्तिकरण में भेद भी समझ में आएगा_

~राजग सरकार ने 2014-17 तक अल्पसंख्यकों के लिए 1161 स्कूल भवनों का निर्माण किया जबकि सप्रंग सरकार में 2006-14 के मध्य केवल 654 ऐसे भवनों का निर्माण हुआ था।
~इसके अतिरिक्त जहां सप्रंग सरकार ने इसी अवधि में 334 छात्रावासों का निर्माण करवाया था वहीं राजग सरकार ने इस अवधि में अल्पसंख्यकों के लिए 680 छात्रावासों का निर्माण करवाया।                             

(मोदीजी के प्रथम कार्यकाल के अन्तिम वर्षो 2018 व 2019 के कुछ आँकड़े उपलब्ध नहीं हुए है।)

~ जहां अल्पसंख्यकों के लिए  2012-13 में सप्रंग सरकार द्वारा आवंटित बजट 3135 करोड़ रुपये का था, उसको राजग सरकार ने पांच वर्षों में धीरे धीरे बढ़ा कर 2018-19 तक 4700 करोड़ रुपये कर दिया।         
उपर्युक्त आंकड़ों से यह समझ आता है कि संप्रग सरकार ने जो कार्य 8 वर्षों में किया उसको लगभग दुगना करके राजग सरकार ने अति शीघ्रता दिखाते हुए 3 वर्षो में ही कर दिया। यह कितना विचित्र है कि अल्पसंख्यकों का सशक्तिकरण करने में अति शीघ्र मोदी सरकार “मुस्लिम तुष्टीकरण” की राजनीति से अपने को दूर रखते हुए राष्ट्रवाद की विजय के नाम पर  “सबका साथ और सबका विकास” और “तुष्टिकरण किसी का नहीं” का संदेश देने में सफल हुई है।
आज संभवतः विश्व में भारत ही एक ऐसा देश होगा जहां उसके भूमि पुत्रों (राष्ट्रवादियों) का ऐसी विशेष सरकारी योजनाओं द्वारा शोषण का सिलसिला अभी भी जारी है। ध्यान रहे कि विश्व में कहीं भी अल्पसंख्यकों के अनुसार पृथक् योजनाएं नहीं बनायी जातीं। अधिकांश योजनाएं वहाँ के मूल बहुसंख्यक निवासियों के मौलिक अधिकारों व रीति रिवाजों पर आधारित होती हैं। यह भी मुख्यतः विचार करना चाहिये कि संसार के किसी भी देश में अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों से अलग कोई विशेषाधिकार नहीं होते। वैसे भी इसमें कोई संदेह नहीं कि बहुसंख्यकों के विकास से ही देश विकसित होते है न की अल्पसंख्यकों को विशेषाधिकार दे कर। लेकिन हमारे देश में बढ़ते अल्पसंख्यकवाद के कारण उनको पुचकारने के लिए दिए जा रहें अतिरिक्त लाभों से बहुसंख्यक राष्ट्रवादियों के साथ होने वाले भेदभाव के कारण अनेक समस्याएं बढ़ रही हैं।

अब मोदी जी ने अपने प्रथम कार्यकाल में किये गए उदघोष “सबका साथ और सबका विकास” में “सबका विश्वास” जोड़कर राष्ट्रवाद को अपने अनुसार अधिक प्रोत्साहित करने का संकल्प दर्शाया है। लेकिन इस सकारात्मक विचार को सार्थक करने के लिए विभाजनकारी व राष्ट्रघाती “अल्पसंख्यकवाद”  पर एक बड़ी बहस की आवश्यकता है। वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य ने यह प्रमाणित कर दिया है कि धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यवाद के धोखे से बचना है तो “राष्ट्रवाद” को केंद्र बिंदु बनाना होगा। अप्रैल-मई 2019 में हुए लोकसभा चुनावों के परिणामों से भी यह स्पष्ट है कि बहुसंख्यकों को “राष्ट्रवाद” अधिक प्रभावित करता है। जब राष्ट्रवाद में किसी के तुष्टिकरण या सशक्तिकरण की आवश्यकता ही नहीं, तो फिर धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में धर्म आधारित  “अल्पसंख्यकवाद” की क्या सार्थकता? क्योंकि देशद्रोहियों के विभिन्न षडयन्त्रों में इस्लामिक आतंकवाद मुख्य भूमिका निभाता है, इसलिये यह मानना कि कहीं न कहीं आतंकवाद की जड़ों को अल्पसंख्यकवाद सींच रहा हो तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
वर्तमान अनुकूल परिस्थितियों में भी अल्पसंख्यकवाद राष्ट्रवाद के लिये एक बड़ी चुनौती बन रहा हैं। इसलिए अल्पसंख्यकवाद देश की दुर्दशा का कारण न बन जाएं, सावधान रहना चाहिये। अतः श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सशक्त राजग सरकार सहित करोड़ों राष्ट्रवादियों को विशेष सतर्कता बरतनी होगी। जब राष्ट्र की मुख्यधारा का आधार ही राष्ट्रवाद हो तो अल्पसंख्यकवाद का कोई औचित्य नहीं।

विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक व लेखक)
गाज़ियाबाद 

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