जाते-जाते तुम बहुत कुछ दे गए स्‍वामी महाराज शांतिलाल पटेलजी……….

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स्वामी महाराज शांतिलाल पटेल
-Pramukh-swami
स्वामी महाराज शांतिलाल पटेल

डॉ. मयंक चतुर्वेदी
जीवन सतत है और देह क्षणभृंगुर। देह पंचमहाभूतों का सार तत्‍व है और यह देह तभी अपने आकार को प्राप्‍त करती है, जब चेतना इसमें प्रतिष्‍ठ‍ित होती है। मृत्‍यु लोक जीवन के नानाविध रूपों के प्रकटीकरण का आश्रयस्‍थल है। जहां न जाने कितने प्रकार के जीव अपने स्‍वरूपों में स्‍वधर्म के साथ गोचर हो रहे हैं। हर किसी का अपना सत्‍य और यथार्थ है, दूसरी ओर सत्‍य यह भी है कि प्रत्‍येक जीव किसी विशेष उद्देश्‍य की पूर्ति के लिए ही देह धारण कर अपना अस्‍तित्‍व प्रकट कर रहा है। कुछ लोग एक जीवन में या कुछ जीवन प्राप्‍त कर अपने जीवनोद्देश्‍य को प्राप्‍त कर लेते हैं और कुछ को इसे प्राप्‍त करने में कई जन्‍मों की जरूरत होती है। इस सतत चलने वाली श्रंखला में महान वही है जो इस बात को समझकर अपना जीवन व्‍यवहार परस्‍पर करे कि मृत्‍यु लोक में कोई अमर नहीं, काल किस रूप में कब आ जाए और अपने साथ ले जाए कुछ कहा नहीं जा सकता, इसलिए जीवन में परमार्थ के रास्‍ते पर चलना ही श्रेयस्‍कर है। जो यह जानकार कार्य करने में सफल होता है वही इस संसार में महान कहलाता है। दूसरी ओर इस महानता को प्राप्‍त करने का हक सभी को समान रूप से प्रकृति ने दिया है।
हमारे बीच स्वामीनारायण संप्रदाय के प्रमुख स्वामी महाराज शांतिलाल पटेल नहीं रहे। जब तक एक व्‍यक्‍ति के रूप में स्‍वामी जी जीवित रहे, उन्‍होंने अपने जीवन का एक-एक क्षण दूसरों के दुखों को हरने में लगा दिया। मंगल की कामना और उस मंगलमय सुख को प्रत्‍यक्ष कर देना ही मानो, स्‍वामी जी के जीवन का ध्‍येय बन गया हो। लेकिन आज उनके हमारे बीच से हमेशा के लिए चले जाने के बाद यह अहसास हो रहा है कि हमने क्‍या खो दिया है । उनको पास से जानने वाले और दूर से जानने वाले दोनों को अभी तक यह भरोसा ही नहीं हो रहा है कि स्‍वामी महाराज देह रूप से सदा के लिए मुक्‍त हो गए हैं और अब वे हमारे बीच प्रत्‍यक्ष कभी नहीं आएंगे।
स्वामी जी महाराज का जन्म 7 दिसम्बर 1921 को वडोदरा जिले में पादरा तहसील के चाणसद गांव में हुआ था। उन्‍होंने युवावस्था में ही आध्यात्म का मार्ग अंगीकार कर लिया । वे शास्त्री महाराज के शिष्य बने और 10 जनवरी 1940 को नारायणस्वरूपदासजी के रूप में उन्होंने अपना आध्यात्मिक सफर शुरू किया। साल 1950 में मात्र 28 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने बीएपीएस के प्रमुख का पद संभाल लिया था। इस समय बीएपीएस में उनकी उम्र की तुलना में अनेकों बड़े संत थे, लेकिन स्वामी की साधुता, नम्रता, करुणा और सेवाभाव को देखकर-समझकर ही बड़े स्‍वामी ने उन्हें यह पद दिया था।
स्‍वामी जी की ओजस्‍विता और प्रखरता के दर्शन इस बात से भी होते हैं कि उन्‍होंने अपने एक जीवन में ही देश और विदेश लंदन से लेकर न्यूजर्सी और शिकागो से लेकर दक्षिण अफ्रीका के कई देशों में 11 हजार से अधिक भारतीय वास्‍तु आधारित मंदिरों का निर्माण कराया और भारतीय दर्शन-आध्‍यात्‍म की दृष्‍ट‍ि से वे अंतरराष्ट्रीय नेता के रूप में प्रसिद्ध‍ि प्राप्‍त करने में सफल रहे। उन्‍हीं की प्रेरणा से अमेरिका के न्यूजर्सी में बन रहा एक मंदिर तो दुनिया में हिंदुओं के सबसे बड़े मंदिर के रूप में आकार ले रहा है। यह मंदिर 162 एकड़ में बनाया जा रहा है। जिसका कि निर्माण कार्य 2017 तक पूरा होगा। स्वामी नारायण संप्रदाय की ख्‍याति केवल मंदिर निर्माण के लिए ही नहीं है, इसके अनुयायी अपने गुरू स्‍वामी भगवान के साथ श्रीकृष्ण और श्रीराधा की अराधना करते हैं। इस संप्रदाय में हुए अभी तक के संतों का अपना योगदान है, लेकिन इन सब के बीच जो कार्य स्वामी महाराज शांतिलाल पटेल कर गए हैं, उन्‍हें स‍दियों गुजर जाने के बाद भी याद रखा जाएगा।
भले ही हिंदूओं के इस स्वामीनारायण संप्रदाय की शुरूआत 1830 में स्वामी सहजानंद ने की हो और उनसे लेकर आगे के गुरुओं की लम्‍बी श्रंखला का जोर धार्मिक सदभावना के साथ समाज सुधार पर रहा हो किंतु हम सभी के बीच से गए स्‍वामी नारायणस्वरूपदासजी का कार्य अविस्‍मरणीय है। उनके द्वारा बनवाया गया गांधी नगर का अक्षरधाम मंदिर हो या नई दिल्ली में बना स्वामिनारायण अक्षरधाम मन्दिर, वस्‍तुत: यह भारतीय संस्‍कृति की विशालता का दिगदर्शन कराने वाला एक अनोखा सांस्कृतिक तीर्थ स्‍थल है। इसे ज्योतिर्धर भगवान स्वामिनारायण की पुण्य स्मृति में बनवाया गया था। इस परिसर की भव्‍यता इसके 100 एकड़ भूमि के 86 हजार 342 वर्ग फुट परिसर में फैले होने और अब तक के दुनिया के सबसे विशाल हिंदू मन्दिर होने के नाते गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिका‌र्ड्स में शामिल होने से भी है।
इस विशाल मंदिर में बने दश द्वार दसों दिशाओं के प्रतीक के रूप में वैदिक शुभकामनाओं को प्रतिबिंबित करते हैं। दूसरी ओर भक्ति द्वार परंपरागत भारतीय शैली का है, जिसमें भक्ति एवं उपासना के 208 स्वरूप मंडित हैं। मंदिर के मयूर द्वार में कलामंडित स्तंभों के साथ जुड़कर 869 मोर नृत्य कर रहे हैं। यह शिल्पकला की अत्योत्तम कृति है। इसी प्रकार मंदिर में श्रीहरि चरणार्विंद, अक्षरधाम मंदिर 356 फुट लंबा 316 फुट चौड़ा तथा 141 फुट ऊंचा बनाया गया है, साथ ही अक्षरधाम महालय, मुख्य मूर्ति इत्‍यादि प्रतिमाएं निर्मित की गई हैं। इन मंदिरों की लम्‍बी श्रंखला निर्माण के अलावा प्रमुख स्‍वामी महाराज को योगदान इस दृष्‍ट‍ि से भी विशेष है कि उन्‍होंने अपने जीवन के रहते 65 वर्ष के कार्यकाल में देश विदेश के 70 हजार से अधिक गांव व शहरों का भ्रमण करते हुए नशामुक्ति एवं संस्‍कार सिंचन के लिए 9 हजार 90 संस्कार केन्द्र खुलवाने के साथ ही 55 हजार ऐसे स्वयंसेवकों का निर्माण किया जो देश में आई किसी भी प्राकृतिक आपदा या अन्‍य प्रकार की समस्‍याओं से निपटने के लिए सदैव तैयार रहते हैं । वे भी अपने पूर्वत गुरुओं की तरह अपने जीतेजी अपना उत्तराधिकारी बना गए हैं। प्रमुख स्वामी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में स्वामी केशवजीवन दास महाराज को चुना है। उन्‍होंने इन्‍हें वर्ष 2012 में अपना उत्तराधिकारी बना दिया था।
स्‍वामी जी कि विशाल दृष्टि और भव्‍यता के दिग्‍दर्शन उस समय भी हुए जब 24 सितंबर 2002 को गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले के बावजूद आपने सांप्रदायिक सौहार्द की वकालत की। यही कारण था कि पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय एपीजे अब्दुल कलाम जैसे तमाम लोग उन्‍हें जाति, धर्म, संप्रदाय से ऊपर उठकर अपना गुरु मानते रहे। आज भले ही देह रूप में स्‍वामी जी हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनके कार्य, बताया गया रास्‍ता निश्‍चित ही सदियों तक भारत के आध्‍यात्‍म क्षेत्र को प्रेरणा देता रहेगा। भारतीय कला, संस्‍कृति के जो जीवित स्‍मारक उन्‍होंने खड़े किए हैं, वे हजारों वर्ष बीच जाने के बाद भी यही ज्ञान देते रहेंगे कि जब तक जीवन और देह है, नर से नारायण बन जाओ, सुचिता पूर्ण कर्मफल से इस जीव जगत में छा जाओ।
श्रद्धेय स्‍वामी जी को शत-शत नमन् ।

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