दिल्ली सरकार और एमसीडी दोनों द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में घटते नामांकन चोंकाने वाले आंकड़े है। दिल्ली सरकार के स्कूलों में विद्यार्थियों के नामांकन की संख्या में 28,000 की कमी आयी है, वहीं एमसीडी के स्कूलों में यह आँकड़ा 20,000 का है। दिल्ली सरकार ने अपने घोषणा पत्र मे 500 नए स्कूल खोलने का वादा किया था मगर यही हालात रहे तो संभव है उन्हे जल्द ही 500 पूराने स्कूल बंद करना पड़ जाये। लेकिन तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है आज गरीब से गरीब आदमी भी करोड़ो रु के खर्च से चल रहे सफ़ेद हाथी यानि सरकारी स्कूल मे अपने बच्चो को भेजना नहीं चाहता है और जैसे तैसे गुज़रा करने वाला गरीब रिकक्षेवाला भी अपने आस पास के गैर मान्यता प्राप्त बजट प्राइवेट स्कूल मे बच्चो को भेजना चाहता है जिसकी फीस बामुश्किल 200 से 1000 रु महीना तक क्षेत्रवार है। लेकिन हजारो गरीब बच्चो को जल्द ही ऐसे स्कूलो से हाथ धोना पद सकता है सरकार की कुछ लचर नीतियो के कारण। बजट प्राइवेट स्कूलों के अखिल भारतीय संघ नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलायंस (निसा) ने गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों में आगामी सत्र से शैक्षणिक गतिविधियों को बंद करने के फरमान की कड़ी निंदा की है। निसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने कहा है कि सरकार दिल्ली में गुणवत्ता युक्त शिक्षा देने में नाकाम रही है जिससे अभिभावक अपने बच्चों को फ्री सरकारी स्कूलों से निकालकर बजट प्राइवेट स्कूलों में दाखिला दिलाने लगे हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2013-14 से 2015-16 बीच सरकारी स्कूलों में लगभग 1,00,000 (एक लाख) बच्चों का नामांकन घटा है जबकि प्राइवेट स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या इस दौरान लगभग 1,50,000 (डेढ़ लाख) बढ़ी है। चूंकि बजट स्कूलों के अधिकांश छात्र आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं, और सरकारी स्कूलों में भी दाखिला लेने वाले छात्रों की बड़ी तादात इसी वर्ग की होती है इसलिए अब सरकार अपने स्कूलों को भरने के लिए ऐसे छोटे अनरिकग्नाइज़्ड स्कूलों को बंद करना चाहती है। कुलभूषण शर्मा ने कहा कि दिल्ली में एक भी स्कूल को बंद होने नहीं दिया जाएगा। उन्होंने स्कूलों के समक्ष उत्पन्न ऐसी तमाम अन्य समस्याओं के विरोध में आगामी 7 अप्रैल को रामलीला मैदान में विशाल धरना-प्रदर्शन करने की घोषणा की।
प्राइवेट लैंड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के चंद्रकांत सिंह का कहना है कि 16 जून 2017 को सरकार ने 16 जून 2017 को एक नोटिफिकेशन जारी कर स्कूलों को मान्यता देने के नियमों को लचीला बनाने और गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों को मान्यता देने की संभावनाओं पर रिपोर्ट देने के लिए योगेश प्रताप सिंह के नेतृत्व में एक सात सदस्यीय कमेटी भी गठित की थी। लेकिन इस कमेटी के रिपोर्ट के आने का इंतेजार करने और स्कूलों को मान्यता प्रदान करने की बजाए ऐसे स्कूलों में शैक्षणिक गतिविधियों को बंद करने का निर्देश जारी कर दिया गया। यह आदेश दिल्ली के गरीब वर्ग के छात्रों के हित में बिल्कुल नहीं है और ऐसा फैसला हाल ही में दिल्ली के सरकारी स्कूलों में प्री-बोर्ड परीक्षा के खराब परिणाम से सबका ध्यान भटकाने के उद्देश्य से किया गया प्रतीत होता है।
हाल मे प्राइवेट लैंड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन द्वारा एक आरटीआई मे पूछा गया की योगेश प्रताप सिंह के नेतृत्व में कमेटी के फैसले की प्रति उपलब्ध कारवाई जाए जवाब मे कहा गया की इस विषय मे कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है/प्राप्त जानकारी के अनुसार इस कमेटी की कोई भी बैठक भी नहीं हुई/ इसके बावजूद सरकार का आगामी सत्र से गैर मान्यता प्राप्त स्कूलो को बंद करना एक तरफा फैसला है जिसका प्रभाव हजारो बच्चो के भविष्य पर पड़ेगा और अभिभावकों को ना चाहते हुए भी अपने बच्चो को बदहाल सरकारी स्कूलो मे भेजने को मजबूर होना पड़ेगा/ बेहतर तो ये होता की इन स्कूलो का पक्ष सुना जाता और इन स्कूलो की कमियो को दूर करने का मौका दिया जाता जिससे हजारो विध्यार्थियों का भविष्य सुरक्शित हो जाता चिंता की रेखाये सिर्फ स्कूल प्रबन्धको के माथे पर ही नही बल्कि उन अभिभावकों के चेहरो पर भी है जिनहे न चाहते हुए भी अपने नोनिहालों को सरकारी स्कूलो मे दाखिला करवाना होगा क्योंकि दूसरे बड़े स्कूलो मे दाखिला दिलवाना उनके बूते से बाहर है।
निसा के एडवोकेसी एसोसिएट थॉमस एंटोनी ने कहा कि दिल्ली सरकार ने विज्ञापन पर करोड़ों रूपए खर्च कर यह प्रचारित किया था कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में भारी सुधार हुआ है, किंतु आज प्री-बोर्ड में छात्रों के खराब प्रदर्शन का ठीकरा अध्यापकों के ऊपर फोड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि निसा दिल्ली में एक भी स्कूल बंद नहीं करने देगी और इसके लिए जो हर-संभव कदम उठाए। सरकार के इस मनमाने कदम से संभव है आगामी सत्र मे दिल्ली सरकार और एमसीडी के स्कूलो मे छात्रो की कमी का मुद्दा खत्म हो जाये।