अनसुना न करें, डोलती धरती के बोल

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-अरुण तिवारी-
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-संदर्भ: नेपाल भूकंप-
धरती डोली। एक नहीं, कई झटके आये। नेपाल में तबाही हुई। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी – माउंट एवरेस्ट की जीतने निकले 18 पर्वतारोहियों को मौत ने खुद जीत लिया। जैसे-जैसे प्रशासन और मीडिया की पहुंच बढ़ती गई, मौतों का आंकड़ा बढ़ता गया। इसका कुछ दर्द तिब्बत, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश ने भी झेला। दहशत में रात, दिल्लीवासियों ने भी गुजारी। जरूरी है कि  हम सभी इससे दुखी हों। यमन की तरह, नेपाल के मोर्चे पर भारत सरकार मुस्तैद दिखी। इस बार आपदा प्रबंधन निगरानी की कमान, हमारे प्रधानमंत्री जी ने खुद संभाली। एयरटेल ने नेपाल में फोन करना मुफ्त किया। बीएसएनएल ने तीन दिन के लिए नेपाल काॅल रेट, लोकल किया। स्वामी रामदेव बाल-बाल बचे। सोशल मीडिया पर लोगों ने सभी की सलामती के लिए दुआ मांगी। मीडिया ने भी जानकारी और दुआओं के लिए अपना दिल खोल दिया। भूकंप में अपनी सुरक्षा कैसे करें ? कई ने इस बाबत् शिक्षित करने का दायित्व निभाया। हम, इन सभी कदमों की प्रशंसा करें। किंतु क्या हम इस कदम की प्रशंसा करें कि नदी और जल से जुड़े मंत्रालय की केन्द्रीय मंत्री उमा भारती ने पर्यावरण मंत्रालय द्वारा हिमालयी उत्तराखण्ड में जलविद्युत परियोजनाओं को दी ताजा मंजूरी को लेकर सवाल उठाया और किसी न इसकी परवाह ही नहीं की।
प्रशंसनीय नहीं ये कदम
उमा भारती ने कहा कि इन परियोजनाओं के कारण गंगा जी का पारिस्थितिकीय प्रवाह सुनिश्चित करना मुश्किल हो जायेगा। तमाम अदालती आदेश के बावजूद जारी खनन के खिलाफ मातृसदन, हरिद्वार के संत स्वामी शिवानंद सरस्वती को एक बार फिर अनशन पर बैठना पड़ा क्या किसी ने परवाह की ? परवाह करें, क्योंकि असलियत यह है कि परियोजनाओं हेतु बांध, सुरंग, विस्फोट, निर्माण तथा मलवे के कारण गंगा, हिमालय और हिमवासी.. तीनों ही तबाह होने वाले हैं। ’’मैं आया नहीं हूं; मुझे मां नहीं बुलाया है’’ – क्या यह कहने वाले प्रधानमंत्री को नहीं चाहिए था कि वह हस्तक्षेप करते और कहते कि मुझे मेरी मां गंगा और पिता हिमालय की कीमत पर बिजली नहीं चाहिए ? प्रधानमंत्री जी ने 2014 की अपनी पहली नेपाल यात्रा में ही उसे पंचेश्वर बांध परियोजना का तोहफा दिया। वहां से लौटे विमल भाई बताते हैं कि 280 मीटर ऊंचाई की यह प्रस्तावित परियोजना, खुद भूकम्प जोन 4-5 में स्थित है। मध्य हिमालय का एक बड़ा हिस्सा इसके दुष्प्रभाव में आने वाला है। आगे जो होगा, उसका दोष किसका होगा; सोचिए ?
हिमालयी जलस्त्रोत वाली नदियों में बांध और सुंरगों का हिमवासी और पर्यावरणविद् लगातार विरोध कर रहे हैं ? क्या कोई सरकार आज तक कोई बांध नीति बना पाई ? प्रधानमंत्रीजी ने 2014 की अपनी पहली नेपाल यात्रा में ही उसे पंचेश्वर बांध परियोजना का तोहफा दिया। वहां से लौटे विमल भाई बताते हैं कि 280 मीटर ऊंचाई की यह प्रस्तावित परियोजना, खुद भूकम्प जोन 4-5 में स्थित है। मध्य हिमालय का एक बड़ा हिस्सा इसके दुष्प्रभाव में आने वाला है। आगे जो होगा, उसका दोष किसका होगा; सोचिए ? नदी नीति, हिमालयी क्षेत्र के विकास की अलग नीति और मंत्रालय की मांग को लेकर लंबे समय से कार्यकर्ता संघर्षरत् हैं। सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है ? क्या हम इसकी प्रशंसा करें ?
राहुल गांधी की केदारनाथ यात्रा पर प्रदेश कांग्रेस के महासचिव ने कहा कि इसका मकसद यह बताना भी था कि कभी त्रासदी का शिकार हुआ केदारनाथ इलाका अब ठीक कर लिया गया है। देशभर से पर्यटक अब यहां आ सकते हैं। मात्र दो वर्ष पूर्व उत्तराखण्ड में हुई तबाही को आखिर कोई कैसे भूल सकता है ? प्रथम इंसान की रचना हिमालय में हुई। हिमालय को देवभूमि कहा ही जाता है। इस नाते हिमालय पर्यटन नहीं, तीर्थ का क्षेत्र है। अब विनाश की आवृति के तेज होने के संदेश भी यहीं से मिल रहे हैं। पर्यटन और पिकनिक के लिए हिमालय में पर्यटकों की बाढ़ आई, तो तबाही पर नियंत्रण फिर मुश्किल होगा। क्या किसी ने टोका कि कृपया गलत संदेश न दें ?
हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन एक स्वाभाविक घटना
कहा गया कि यह पिछले 30 सालों में दुनियाभर में आये भूकंपों की तुलना में सबसे तीव्र भूकंप था। गौरतलब है कि आज इससे ज्यादा जरूरत, यह कहने की है कि यह भूकंप न पहला है और न आखिरी। भूकंप पहले भी आते रहे हैं; आगे भी आते ही रहेंगे। हिमालय की उत्तरी ढाल यानी चीन के हिस्से में कोई न कोई आपदा, महीने में एक-दो बार हाजिरी लगाने जरूर आती है। कभी यह ऊपर से बरसती है और कभी नीचे सब कुछ हिला के चली जाती है। अब इनके आने की आवृति, हिमालय की दक्षिणी ढाल यानी भारत, नेपाल और भूटान के हिस्से में भी बढ़ गई हैं। ये अब होगा ही। इनके आने के स्थान और समय की घोषणा सटीक होगी; अभी इसका दावा नहीं किया जा सकता। भूकम्प का खतरा हिमालय में इसलिए भी ज्यादा है, चूंकि शेष भू-भााग, हिमालय को पांच सेंटीमीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से उत्तर की तरफ धकेल रहा है। इसका मतलब कि हिमालय चलायमान है। हिमालय में हमेशा हलचल होती रहती है। एक प्लेट, दूसरी प्लेट को नीचे की तरफ ढकेलती रहती है। एक प्लेट उठेगी, तो दूसरी नीचे धसकेगी ही। यह स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस नाते हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन का होते रहना स्वाभाविक घटना है।
हिमालयी समझ जरूरी
हिमालय के दो ढाल हैं: उत्तरी और दक्षिणी। दक्षिणी में भारत, नेपाल, भूटान हैं। उत्तराखण्ड को सामने रख दक्षिणी हिमालय को समझ सकते हैं। उत्तराखण्ड की पर्वत श्रृंखलाओं के तीन स्तर हैं: शिवालिक, उसके ऊपर लघु हिमाल और उसके ऊपर ग्रेट हिमालय। इन तीन स्तरों मे सबसे अधिक संवेदनशील है, ग्रेट हिमालय और मध्य हिमालय की मिलान पट्टी। इस संवेदनशीलता की वजह है, इस मिलान पट्टी में मौजूद गहरी दरारें। उत्तराखण्ड में दरारें त्रिस्तरीय हैं। पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ती 2000 किमी लंबी, कई किलोमीटर गहरी, संकरी और झुकी हुई। बद्रीनाथ, केदारनाथ, रामबाड़ा, गौरीकुण्ड, गुप्तकाशी, पिंडारी नदी मार्ग, गौरी गंगा और काली नदी – ये सभी इलाके दरारयुक्त हैं। भागीरथी के ऊपर लोहारी-नाग-पाला तक का क्षेत्र दरारों से भरा है। दरार क्षेत्र में करीब 50 किमी चौड़ी पट्टी भूकम्प का केन्द्र है। बजांग, धारचुला, कफकोट, पेजम आदि कई इलाके भूकम्प का मुख्य केन्द्र हैं। भूखण्ड सरकने की वजह से दरारों की गहराई में मौजूद ग्रेनाइट की चट्टानें रगड़ती-पिसती-चकनाचूर होती रहती हैं। ताप निकल जाने से जम जाती है। फिर जरा सी बारिश से उधड़ जाती हैं। उधड़कर निकला मलवा नीचे गिरकर शंकु के आकार में इकट्ठा हो जाता है। वनस्पति जमकर उसे रोके रखती है। यह भी स्वाभाविक प्रक्रिया है। किंतु इसेे मजबूत समझने की गलती, हमारा अस्वाभाविक कदम होगा। पर्वतराज हिमालय की हकीकत और इजाजत को जाने बगैर… इसकी परवाह किए बगैर निर्माण करने को स्वाभाविक कहना, नासमझी ही कहलायेगी। मलवे या सड़कों में यदि पानी रिसेगा, तो विभीषिका सुनिश्चित है। जब तक ऐसी नासमझी जारी रहेगी, तब तक विनाश रोकना संभव नहीं होगा।
समझें कि पहले पूरे लघु हिमालय क्षेत्र में एकसमान बारिश होती थी। अब वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण अनावृष्टि और अतिवृष्टि का दुष्चक्र चल रहा है। यह और चलेगा। अब कहीं भी यह होगा। कम समय में कम क्षे़त्रफल में अधिक वर्षा होगी ही। इसे ’बादल फटना’ कहना गलत संज्ञा देना है। जब ग्रेट हिमालय में ऐसा होगा, तो ग्लेशियर के सरकने का खतरा बढ़ जायेगा। हमे पहले से चेतना है। याद रखना है कि नेपाल भूकंप से पहले कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखण्ड और उत्तर-पूर्व में विनाश इसलिए नहीं हुआ कि आसमान से कोई आपदा बरसी; विनाश इसलिए हुआ, चूंकि हमने हिमाद्रि यानी आद्र हिमालय में निर्माण के खतरे की हकीकत और इजाजत को याद नहीं रखा।
गलतियां कई
दरअसल, हमने हिमालयी इलाकों में आधुनिक निर्माण करते वक्त गलतियां कईं की। हमने दरारों वाले इलाके में भी मनमाने निर्माण किए। लंबी-लंबी सुरंगों को बनाने के लिए डायनामाइट लगाकर पहाड़ का सीना चाक किया। ध्यान से देखें तो हमें पहाड़ियों पर कई ’टैरेस’ दिखाई देंगे। ’टैरेस’ यानी खड़ी पहाड़ी के बीच-बीच में छोटी-छोटी सपाट जगह। स्थानीय बोली में इन्हें ’बगड़’ कहते हैं। ’बगड़’ नदी द्वारा लाई उपजाऊ मिट्टी से बनते हैं। यह उपजाऊ मलवे के ढेर जैसे होते हैं। पानी रिसने पर बैठ सकते हैं। हमारे पूर्वजों ने बगड़ पर कभी निर्माण नहीं किया था। वे इनका उपयोग खेती के लिए करते थे। हम बगड़ पर होटल-मकान बना रहे हैं। हमने नहीं सोचा कि नदी नीचे है; रास्ता नीचे; फिर भी हमारे पूर्वजों ने मकान ऊंचाई पर क्यों बसाये ? वह भी उचित चट्टान देखकर। वह सारा गांव एक साथ भी तो बसा सकते थे। नहीं! चट्टान जितनी इजाजत देती थी, उन्होंने उतने मकान एक साथ बनाये; बाकी अगली सुरक्षित चट्टान पर। हमारे पूर्वज बुद्धिमान थे। उन्होने नदी किनारे कभी मकान नहीं बनाये। सिर्फ पगडंडिया बनाईं। हम मूर्ख हैं। हमने क्या किया ? नदी के किनारे-किनारे सड़कें बनाई। हमने नदी के मध्य बांध बनाये। मलवा नदी किनारे फैलाया। हमने नदी के रास्ते और दरारों पर निर्माण किए। बांस-लकड़ी की जगह पक्की कंक्रीट छत और मकान…. वह भी बहुमंजिली। तीर्थयात्रा को पिकनिक यात्रा समझ लिया है। एक कंपनी ने तो भगवान केदारनाथ की तीर्थस्थली पर बनाये अपने होटल का नाम ही ’हनीमून’ रख दिया है। सत्यानाश! हम ’हिल व्यिु’ से संतुष्ट नहीं हैं। हम पर्यटकों और आवासीय ग्राहकों को सपने भी ’रिवर व्यिु’ के ही बेचना चाहते हैं। यह गलत है, तो नतीजा भी गलत ही होगा। प्रकृति को दोष क्यों ?
उन्होंने वाहनों को 20-25 किमी से अधिक गति में नहीं चलाया। हमने धड़धड़ाती वोल्वो बस और जेसीबी जैसी मशीनों के लिए पहाड़ के रास्ते खोल दिए। पगडंडियों को राजमार्ग बनाने की गलत की। यह न करें। अब पहाड़ों में और ऊपर रेल ले जाने का सपना देख रहे हैं। क्या होगा ? पूर्वजों ने चैड़े पत्ते वाले बांझ, बुरांस और देवदार लगाये। एक तरफ से देखते जाइये! इमारती लकड़ी के लालच में हमारे वन विभाग ने चीड़ ही चीड़ लगाया। चीड़ ज्यादा पानी पीने और एसिड छोड़ने वाला पेड़ है। हमने न जंगल लगाते वक्त हिमालय की संवेदना समझी और न सड़क, होटल, बांध बनाते वक्त। अब तो समझें।
हिमालय हम से क्या चाहता है ?
दरारों से दूर रहना, हिमालयी निर्माण की पहली शर्त है। जलनिकासी मार्गों की सुदृढ़ व्यवस्था को दूसरी शर्त मानना चाहिए। हमें चाहिए कि मिटटी-पत्थर की संरचना और धरती के पेट कोे समझकर निर्माण स्थल का चयन करें। जलनिकासी के मार्ग में निर्माण नहीं करें। नदियों को रोके नहीं, बहने दें। जापान और आॅस्ट्रेलिया में भी ऐसी दरारें हैं लेकिन सड़क मार्ग का चयन और निर्माण की उनकी तकनीक ऐसी है कि सड़के के भीतर पानी रिसने-पैठने की गुंजाइश नगण्य है। इसीलिए सड़कें बारिश में भी स्थिर रहती हैं। हम भी ऐसा करें।
संयम की सीख
हिमालय को भीड़ और शीशे की चमक पसंद नहीं। अतः वहां जाकर माॅल बनाने का सपना न पालें। इसकी सबसे ऊंची चोटी पर अपनी पताका फहराकर, हिमालय को जीत लेने का घमंड पालना भी ठीक नहीं। हिमालयी लोकास्था, अभी भी हिमालय को एक तीर्थ ही मानती है। हम भी यही मानें। तीर्थ, आस्था का विषय है। वह तीर्थयात्री से आस्था, त्याग, संयम और समर्पण की मांग करती है। हम इसकी पालना करें। बड़ी वोल्वो में नहीं, छोटे से छोटे वाहन में जायें। पैदल तीर्थ करें, तो सर्वश्रेष्ठ। आस्था का आदेश यही है। एक तेज हाॅर्न से हिमालयी पहाड़ के कंकड़ सरक आते हैं। 25 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक रफ्तार से चलने पर हिमालय को तकलीफ होती है। अपने वाहन की रफ्तार और हाॅर्न की आवाज न्यूनतम रखें। हिमालय को गंदगी पसंद नहीं। अपने साथ न्यूनतम सामान ले जायें और अधिकतम कचरा वापस लायें। आपदा प्रबंधन तंत्र और तकनीक को सदैव सक्रिय और सर्वश्रेष्ठ बनायें। हम ऐसी गतिविधियों को अनुमाति न दें, जिनसे हिमालय की सेहत पर गलत फर्क पड़े और फिर अंततः हम पर। हिमवासी, हिमालय की सुरक्षा की गारंटी लें और मैदानवासी, हिमवसियों के जीवन जरूरतों की। फिर आपदा प्रबंधन में न लगना पड़े, इसके लिए जरूरी है कि प्रधानमंत्री जी हिमालयी प्रदेशों के विकास और निर्माण की ऐसी नीति बनायें, जिनसे हिमवासी भी बचे रह सकें और हमारे आंसूं भी।

1 COMMENT

  1. बड़े-बड़े कॉरपोरेट घराने देश के पर्यावरण नीति को अँगूठा दिखा रहे हैं — सरकार मौन है क्योंकि उन्हें चुनाव फंड भी बचाना है :—

    पर्यावरण दिवस ( ५ जून ) आने का समय आ रहा है तो पुराना दर्द फिर ताजा हो गया है, बड़ी मेहनत और लगाव से मैंने रिलायंस टाउनशिप जामनगर गुजरात में एक सुन्दर बगीचा बागवानी व सेक्युरिटी डिपार्टमेंट के परमीसन से बनाया था आसपास के पशु -पक्षियों के अलावा गरीब व्यक्ति भी उनसे खाने-पीने की चीजें ले जाते थे .वह सभी के लिए खुला था .पर प्रिंसिपल सुन्दरम साहब जब मुझसे नाराज हुए ( हिंदी दिवस ( १४-९-१०) रिलायंस पेट्रोलियम जामनगर( गुजरात) के के.डी. अम्बानी विद्या मंदिर के प्राचार्य श्री एस. सुन्दरम ने प्रातःकालीन सभा में सभी के सामने कहा था “कौन बोलता है हिन्दी राष्ट्र भाषाहै, बच्चोंहिन्दी टीचरआपको मूर्खमानते हैं ऐसा संविधान में कहीं नहीं लिखाहै.” हिन्दी मीटिंग में मैंने इसके लिए निवेदन किया था कि ऐसी बातें बच्चों के सामने कहने से वो भाषा सीखने पर कम ध्यान देंगे. फलस्वरूप आज मैं रिलायंस स्कूल से बेइज्जत करके निकाल दिया गया हूँ तथा राष्ट्र भाषा के प्रति अपशब्द कहने वाले वहीं हैं.,) तो मेरी अनुपस्थिति में इस बगीचे को बुलडोजर लगवाकर उजडवा दिया, मैंने बागवानी, सेक्युरिटी व अन्य अधिकारियों से निवेदन किया पर किसी ने ध्यान नहीं दिया, जैसे गरीब को कोई अच्छा काम करने का भी अधिकार नहीं होता है ….!!! कृपया ध्यान दें :-
    Wed, 14 September, 2011 12:04:28 PM
    Re: Happy Enviournment Day & Imp.Information.
    From:
    Dr. Ashok Kumar Tiwari
    View Contact
    To:
    machaih.thimaijh@ril.
    Cc:
    rohit.parmar@ril.com; sanjay tiwari ; ashokktiwari07@yahoo.co.in; Vardhani Prasad ; kdav principal
    :HINDI Divas Mubarak Ho !
    HAPPY ENVIRONMENT DAY( 05-6-11)
    Respected Sir, I wanted to give you an Imp. Information – when I returned home on 19-5-11 morning, many useful green, fruitful trees were seen cut and fallen down near my quarter :-
    3 Mango Trees, 5 Parijat ( Harsingar) flower trees, 5 Adhaul (Hibiscus flower) trees,
    4 Drumstick trees, 6 Papaya trees, 4 Banana trees, 2 trees of lemon,
    1 Jamun tree, 1 Amla tree, 2mehandi trees
    1 bel tree, many plants of Tulsi, Guava, Beli and other small flowers plants.
    After asking the neighbors and my daughter they told on 18-5-11 some people had come from reliance maintenance dept. with Bulldozer and destroy all trees and plants. All trees and plants 12 feet far from the boundary and were watered by reliance pipe (drip system).]
    Yours:

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