—विनय कुमार विनायक
शब्द बड़ा या प्रस्तोता निश्चय ही प्रस्तोता,
जिसने शब्द को जन्म दिया, प्रस्तुत किया,
ये शब्द बना है वर्ण या अक्षर के मिलन से
अक्षर या वर्ण शब्दनाद कहाँ से जन्म लेता?
निश्चय ही किसी व्यक्ति वस्तु स्थिति से,
क ख ग घ ङ कवर्ग (अ आ ह 🙂 कंठ से
च छ ज झ ञ चवर्ग (इ ई य श) तालु से
ट ठ ड ढ ण टवर्ग (ऋ र ष) मूर्धन्य ध्वनि
त थ द ध न तवर्ग (ल लृ स) दंत्य से उत्स
प फ ब भ म पवर्ग (उ ऊ) ओठ के स्पर्श से!
य र ल व स्वर और व्यंजन की अंतःस्थिति
ए ऐ कंठ-तालु, ओ औ कंठोष्ठ्य और दंतोष्ठ्य
ध्वनि तंत्र विकृति से सार्थक शब्द नहीं बनता,
तो अक्षर वर्ण शब्द बड़ा या इसका जन्मदाता!
निश्चय ही जन्मदाता, जन्मदाता कहाँ होता?
निश्चय ही मुखगुहा में, मुखगुहा कहाँ होता?
निश्चय ही देह में, तो क्या देह स्वतः बोलता?
नहीं, देह में मन होता, मन ही निश्चय करता,
तब मुख अक्षर वर्ण शब्द ध्वनि उत्पन्न करता!
तो क्या देह से बड़ा मन होता? निश्चय ही नहीं,
निर्जीव देह में मन कहाँ होता? तब निश्चय ही
मन से बड़ा जीवन होता, जीवन से ही मन होता,
मन का निवास जीव के हिय अंतःकरण में होता!
तो क्या सिर्फ सजीव ही ध्वनि को उत्पन्न करता,
नहीं निर्जीव वस्तु भी तो शब्द नाद को जन्म देता,
हवा सरसराती, सागर लहराता, आसमान गड़गड़ाता,
तो क्या सजीव और निर्जीव में समान है भगवंतता?
नहीं सजीव का शब्द सार्थक,निर्जीव का निरर्थक होता,
सजीव ही जीव जगत, नाद अक्षर ईश्वर का निर्माता,
फिर कौन बड़ा जीव या ईश्वर? निश्चय ही जीव बड़ा,
जीव से उत्पन्न नाद ब्रह्म ईश्वर जीवन ही है आत्मा!
जीव ब्रह्म ही आत्मा जीवात्मा अंतरात्मा और सर्वस्व,
जीवात्मा ने ही प्रथम कही रामकथा और राम हो गया,
जीवात्मा ने जीवित देह से जीवित देह को प्रकट किया,
नाम दिया राम कृष्ण बुद्ध महावीर ईसा को ईश कहा!
जीव ने जीवित देह से ॐ अल्लाह खुदा उच्चारण किया,
तो खुद जीवात्मा बड़ा,ईश्वर अल्लाह खुदा बड़ा नहीं होता,
निश्चय ही जीवात्मा ही ईश्वर अल्लाह खुदा का है पिता,
राम आत्माराम का बेटा,ईश्वर अल्लाह खुदा खुद से छोटा!
राम से बड़ा राम नाम लेने वाला, भक्त ही भगवान बनाता,
दशरथ सुत को राम बनानेवाला वो वाल्मीकि आदि कवि था,
अल्लाह को अव्वल किया, खुदा बनाया वो अरब का नबी था,
वहाँ अल्लाह खुदा रब किस काम का जहाँ मजहबी नहीं होता?
माँ पिता भक्त भ्राता सीता रावण ना होता तो क्या राम होता?
वेद बड़ा या प्रस्तोता, उद्गाता, लेखनकर्ता, पाठक, अनुवादक, भाष्यकर्ता?
निश्चय ही प्रस्तोता उद्गाता लेखक पाठक प्रवक्ता प्रचारक प्रवचनकर्ता,
वेद पुराण रामायण महाभारत त्रिपिटक अवेस्ता बाइबिल कुरान ना होता,
अगर किसी के अंतःकरण में उतरा ना होता, दूसरे को सुनाया ना होता,
तीसरे ने सुना ना होता,चौथे ने गुणा ना होता, पाँचवें ने उतारा ना होता!
अगर वेद पुराण विस्तारक, एंजिल बाइबिल कुरान उतारनेवाले में किसी का
ध्वनि तंत्र विकृत हो गया होता, तो सत्य तथ्य का अवतरण नहीं हो पाता,
अक्षर वर्ण शब्द वाक् अशुद्ध होता,ईश्वर ईश्वर सा नहीं,खुदा जुदा हो जाता,
पीढ़ी दर पीढ़ी मंत्रजाप पूजा नमाज अरदास गुम जाता जीव पतित हो जाता,
शब्द बड़ा या प्रस्तोता हाँ प्रस्तोता,उनकी चूक का खामियाजा कौन भुगतता?
निश्चय ही जीव जगत ही, फिर जीव जगत की सुरक्षा कैसे होगी?
क्या नित बदलते मत मजहब दल पंथ पार्टी की विचार धारा से
जीव जगत सुखी होगा?या जीव जगत के गुण धर्म को बचाने से,
निश्चय ही जीव जगत के गुण धर्म बचाने से ही जीव रक्षा होगी!
तथाकथित बड़े धार्मिक मजहबी कहते पशु में पाशविकता होती,
मगर पशु से अधिक धार्मिक गुणग्राही मानव जाति कहाँ होती?
शाकाहारी पशु का गुणधर्म है शाकाहार, क्या मांसाहार करता कभी?
पीढ़ियों से भूखे गाय घोड़ा गदहा हाथी भूल से मांस खाता कभी?
मानव हेतु दया धर्म का मूल,मगर हिंसा के पूर्व धर्म जाता भूल!
मानव कभी कौआ बन जाता मलमूत्र रज वीर्य भ्रूण अंडा खाता,
मानव कभी कुत्ता बन जाता, मुर्गी बकरी गाय की हड्डी चबाता,
मानव गिद्ध बनकर मरी खाता, शेर बाघ भालू जैसा खून पीता,
मानव को नख दंत नहीं चीर फाड़ का, धारदार औजार बना लेता,
निरीह पशु पक्षी तो क्या,मानव-मानव का सिर तन से उतार देता,
पता नहीं कब मानव मत मजहब में मानवता का धर्म निभाएगा? —विनय कुमार विनायक