बैरसिया, 05 जनवरी। गोबर की खाद धरती का प्राकृतिक आहार है इससे धरती की उर्वरा शक्ति निरंतर बढती जाती है, घटती नहीं। यह कहना है विष्व मंगल गोग्राम यात्रा के पश्चिमी भारत क्षेत्र के संयोजक श्री रामचंद्र सहस्त्रभोजनी का। वे आज यात्रा के मध्यप्रदेश के भोजपुर जिले के बैरसिया स्थान पहुंचने पर आयोजित सभा को संबोधित कर रहे थे।
श्री सहस्त्रभोजनी ने कहा कि गोबर की कम्पोस्ट खाद किसी भी प्रकार से रासायनिक खाद से कम प्रभावशाली नहीं है इसमें नाइट्रोजन 0.5 प्रतिशत, फास्फोरस 0.5-0.9 प्रतिशत और पोटेषियम 1.2-1.4 प्रतिशत रहता हैं।
उन्होंने कहा कि निकम्मा कहे जाना वाला गोवंश सिर्फ अपने गोबर और गोमूत्र से अपने पालक को, वह जो कुछ भी खाता है उससे अधिक आय देता है। उसका गोमूत्र भी कीटनाशक है, वह सिर्फ खेती में ही उपयोगी नहीं बल्कि मनुष्य की कई बीमारियों में औषधि रूप में काम आता है।
उन्होंने कहा कि यूरोप के बाजारों में गोबर की खाद से उपजाये अनाज, शाक-भाजी और फल, रासायनिक खाद से उपजाये अनाज, शाक-भाजी और फल से दुगने-तिगुने कीमत पर बेचे जा रहे है फिर भी इनकी मांग बढ़ती जा रही है।
दशहरा मैदान में आयोजित सभा को समन्वय आश्रम के स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि, सूबा सरबजीत सिंह, श्री अजमेरसिंह आदि ने संबोधित किया।
यात्रा के जिला संयोजक श्री दुर्गेश कुमार ने बताया कि बैरसिया तहसील में एक उपयात्रा के द्वारा 60 गांवों में गोपालन और गोसंवर्धन का संदेश दिया गया और पचास हजार हस्ताक्षरों का संग्रह किया।
रासायनिक खाद से प्रथ्वी दूषित जहरीली हो रही है. विज्ञान यह सिद्ध कर चूका है की गोबर खाद सबसे अच्छा खाद उर्वरक है. गाँव के घर घर में एक गाय होगी तो देश की आधी भुखमरी वैसे ही ख़त्म हो जाएगी.