विश्व में एक मात्र भारत ही ऐसा देश है जहां के मूल नागरिक किसी भी सम्प्रदाय के व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव नहीं करता। यह भारत भूमि का प्रभाव है कि इस भूमि पर अनेक ऐसे महापुरुष पैदा किए, जिसमें जाति सम्प्रदाय को महत्व नही दिया। भारत की मूल अवधारणा को आत्मसात करने वाले हर मानव को अत्यंत सम्मान के साथ देखा गया। हम देखते हैं कि भारत के आध्यात्म प्रेरक स्थानों पर जो भी विदेशी व्यक्ति पर्यटन के लिए आते हैं उनमें से कई व्यक्ति इसी भूमि पर अपने जीवन की शेष आयु भगवान नाम जपते हुए गुजारने में ही धन्यता का अहसास करते हैं। लेकिन सवाल यह आता है कि वर्तमान में हमारे देश को क्या हो गया है कि कई स्थानों पर वर्ग संघर्ष की स्थिति पैदा हो रही है।
उत्तरप्रदेश के दादरी में हुए घटनाक्रम के बाद समाचार माध्यमों ने जिस प्रकार की खबर प्रस्तुत की, उससे ऐसा लगा कि ये समाचार माध्यम देश की एकता और अखंडता से सरोकार नहीं रखते। इस कांड पर राजनीतिक दलों से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा की जा रही थी, लगभग वैसी ही प्रतिक्रिया देखने को मिली। लेकिन इस सबके बावजूद किसी ने भी यह प्रयास नहीं किया कि इस इस घटना के मूल में क्या है। वास्तव में समाचार माध्यमों की यह जिम्मेदारी भी बनती है कि वह घटना के कारणों का भी जिक्र करे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। जिसके कारण देश में एक बहुत बड़े भ्रम का वातावरण बन जाता है। यह भ्रम ही हिन्दू मुस्लिम एकता की खाई को चौड़ी कर रहा है।
देश के अंदर वैमनस्य पूर्ण कार्यवाही की जितनी निंदा की जाए, उतनी कम है। आखिर यह वैमनस्य कैसे पैदा होता है, और कौन पैदा करता है, इसकी गहराई से जांच पड़ताल किया जाना निहायत जरूरी है। सबसे पहले तो सरकार द्वारा यह तय किया जाना जरूरी है कि किसी भी घटना को हिन्दू या मुसलमान के नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। देश में प्रायः यह देखा जाता है कि हिंदुओं के साथ अमानवीयता की हद को पार करने वाले क्रूर हादसे हुए हैं, लेकिन उनके बारे में न तो सरकार का रवैया अनुकूल रहता है और न ही समाचार माध्यमों का। दादरी की घटना निसंदेह मानवीयता के नाम पर कलंक है। लेकिन यही भाव सभी घटनाओं के बारे में दिखाई दे तभी आपसी समानता की बातें अच्छी लगतीं हैं।
देश में हर धर्म और सम्प्रदाय के अपने अपने श्रद्धा केंद्र हैं, उस धर्म के व्यक्ति का यह स्वाभाविक कर्तव्य है कि वह अपने मानबिंदुओं का सम्मान करे। देश में केवल हिन्दू धर्म ही ऐसा है, जो सभी का सम्मान करता है, हिन्दू सभी धर्मों के पूजा स्थल पर अत्यंत श्रद्धा भाव के साथ जाता है, लेकिन देश में अन्य धर्म और सम्प्रदाय के अनुयायी केवल अपने धर्म को ही प्रधानता देते हैं। इसके अलावा दूसरे धर्म का अपमान भी कर देते हैं। देश में व्याप्त यह भाव पूरी तरह समाप्त होना चाहिए। सभी धर्म और सम्प्रदाय के व्यक्तियों को देशभाव को सामने रखकर ही व्यवहार करना चाहिए। तभी हम कह सकते हैं कि भारत में सभी धर्मों का सम्मान होता है।
उत्तरप्रदेश के दादरी में जो कुछ हुआ वह अक्षम्य अपराध की श्रेणी में तो आता ही है, लेकिन घटना को जिस प्रकार से राजनीतिक रंग दिया जा रहा है, उसकी सभी ओर से निंदा की जानी चाहिए। इसे लेकर तथाकथित कुछ मुस्लिम सम्प्रदाय से जुड़े नेता हो-हल्ला मचा रहे हैं। हत्या, हत्या ही होती है, वह चाहे किसी भी धर्म से जुड़े व्यक्ति की हो। लेकिन जिस तरह से इसे लेकर मुस्लिम सम्प्रदाय के तथाकथित नेता तूल देने में लगे हुए हैं, वह गले नहीं उतर रहा है। उत्तर प्रदेश के तो एक कैबिनेट मंत्री इस मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र तक जाने की बात कहकर मामले का राजनीतिकरण कर रहे हैं। उनके इस बयान पर अखलाक के बेटे ने कहा है कि मामले का पटाक्षेप करने के बजाए घटना का राजनीतिकरण किया जा रहा है। किसी को भी उनके परिवार की चिंता नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि आजम खान को संयुक्त राष्ट्र में शिकायत करने की अखलाक की मौत के बाद ही क्यों सूझी। निश्चित ही वे इस मामले को तूल देकर देश का साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ना चाहते हैं। संयुक्त राष्ट्र में शिकायत करने का आजम खान को यदि इतना ही शौक है तो क्यों नहीं वे पाकिस्तानी सीमा पर मारे जाने वाले हजारों हिन्दुओं की बात को उठाते। क्यों नहीं हिन्दू महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की शिकायत संयुक्त राष्ट्र में करते ? क्यों नहीं कश्मीरी हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों की बात को संयुक्त राष्ट्र ले जाते ? आजम खान अखलाक की मौत से इतने ही दुखी हैं तो क्यों नहीं उस परिवार की सुरक्षा कर रहे हैं जो बार-बार यह कह रहा है कि अखलाक के बाद उसके परिवार पर जानमाल का संकट आ खड़ा हुआ है। उत्तर प्रदेश में उन्हीं की पार्टी की सरकार है। चाहें तो वह पूरे परिवार को सुरक्षा दे सकते हैं, लेकिन उस परिवार की चिंता किए बगैर आजम खान और उत्तर प्रदेश की सरकार मामले को तूल देकर उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश का माहौल बिगाडऩे में लगे हुए हैं। वह भी इसलिए कि उत्तर प्रदेश में 2017 में चुनाव होने हैं और इसकी पृष्ठभूमि अभी से इस तरह की घटनाओं को तूल देकर तैयार की जा रही है ताकि मोदी सरकार को बदनाम कर उसका राजनैतिक लाभ उठाया जा सके। लूट और बलात्कार की देश में जितनी घटनाएं हो रही हैं, उसमें अल्पसंख्यकों की संख्या एक या दो प्रतिशत से अधिक नहीं है। अंठानवे प्रतिशत तो बहुसंख्यक अर्थात हिन्दू ही इसके शिकार हैं। कानून व्यवस्था के इस मसले को हिन्दुओं ने कभी भी मजहबी वस्त्रों से ढंककर सांप्रदायिक उन्माद नहीं बढ़ाया। यह सब अल्पसंख्यक के नाम पर हो रहा है। क्या कश्मीरी पंडितों से अधिक किसी का उत्पीडऩ और शोषण हुआ है। क्या उनसे अधिक किसी की माताओं-बहनों की अस्मिता लूटी गई है। कौन देशी या विदेशी मानवाधिकार संगठन या व्यक्ति या अल्पसंख्यकों का हितैषी या धर्मनिरपेक्षता का झंडा लेकर चलने वाले उनके लिए आगे आया है।
मुगल शासनकाल में हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों की बात किसी से छिपी नहीं है। मुस्लिम आक्रांताओं ने मौत का भय दिखाकर न केवल हिन्दुओं को मुस्लिम बनाने के लिए दबाव बनाया बल्कि हिन्दू धर्म से भी खिलवाड़ किया, तब किसी हिन्दू ने यह बात दूसरे देशों तक नहीं पहुंचाई। अल्पसंख्यकों से बहुत स्पष्ट कहने में परहेज नहीं करना चाहिए उनके लिए जो छाती पीट रहे हैं उनके अतीत की गतिविधियों पर भी दृष्टिपात करें अन्यथा देश की मुख्यधारा से उनकी दूरी बढ़ती जायेगी और इस बढ़ती दूरी के कारण उनको धार्मिक समानता के आधार पर भड़का कर अपना उल्लू सीधा करने वाले लाभ उठाते रहेंगे। कोई भी सरकार बहुमत से बनती है। मोदी सरकार भी बहुमत से बनी है। उसका लक्ष्य सवा सौ करोड़ भारतीय हैं। इनमें अल्पसंख्यक भी शामिल हैं। यदि सरकार इस लक्ष्य से भटकी है तो उस पर अवश्य लोकतांत्रिक प्रहार करें। इस तथ्य की उपेक्षा नहीं की जा सकती कि मजहबी या पांथिक उन्माद एकपक्षीय नहीं रह सकता, वह उभयपक्षीय होता है और उसके क्या परिणाम होते हैं इसके ब्यौरे में जाने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की अवधारणा के अन्त की। उभारना है एक देश एक जन की भावना को।