अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का मिथ्या प्रचार…

-विनोद कुमार सर्वोदय-

alpsankhyakअपना सुदृढ़ राष्ट्रवादी पक्ष रखने की ही कमी आरएसएस व  बीजेपी में है, वे सत्ता में आने के  बाद  अपने ही कार्यकर्ताओं व नेताओं को नकारने लगते हैं, तभी तो आज सभी इनपर अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का मिथ्या आरोप बढ़चढ़ कर लगा रहे हैं। क्या सोनिया द्वारा लाया जा रहा (साम्प्रदायिक हिंसा रोकथाम बिल) communal violence bill 2011 को भुलाया जा सकता है ?  जिसमें  केवल majority( हिन्दुओं) को ही criminal (अपराधी) बनाये जाने की conspiracy (षड्यंत्र) रची जा  रही थी । तब क्यों नहीं उससे वास्तविक रूप से पीड़ित होने वाले बहुसंख्यकों के दर्द को प्रचारित किया गया ?  जब सोनिया की सरकार ने बहुसंख्यकों की उपेक्षा करके देश के महत्वपूर्ण पदों पर अल्पसंख्यकों को वरीयता दी तो क्यों नहीं उस सच्चाई का गुणगान किया गया ? उस समय केंद्रीय बजट में अल्पसंख्यको के लिए विशेष धनराशि का आवंटन करके उनको लाभान्वित करते रहे तो किसी को भी कटघरे में नहीं खड़ा किया गया, क्यों ? इसके अतिरिक्त क्या आपको पता है कि सरकार  हिन्दू श्रद्धालुओं द्वारा दक्षिण के मंदिरों में चढ़ाई जाने वाली अधिकतर धनराशि को मस्जिदों, मदरसों, हज यात्राओं व चर्चों आदि में प्रतिवर्ष बांटती है, क्यों ? यह भी जानो कि बहुसंख्यकों (हिन्दुओं) के द्वारा अनेक प्रकार से दिए जाने वाले करो (Taxes) से संचित राजकोष से धर्म के नाम पर घोषित अल्पसंख्यक विशेषतः मुसलमानों को अरबो रुपया विभिन्न योजनाओ के अंतर्गत प्रति वर्ष बांट कर संविधान के उल्लंघन के साथ साथ धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की भी अनदेखी की जा रही है ।

इस प्रकार बहुसंख्यकों के साथ निरंतर होने वाले सरकारी उत्पीड़न की न कभी आलोचना हुए और न ही इसको इतना प्रमुखता से प्रचारित किया गया ?
इतना सब  सहते हुए भी  कुछ धर्मभक्तों ने सदियों से चल रहा हिन्दुओं का एक तरफ़ा धर्मपरिवर्तन को थामने व सुधार लाने के लिए (धर्मपरावर्तन) घर वापसी का मूल अधिकार वंचितों को दिलवाना चाहा तो कुछ स्वयंसेवी संगठनों (एनजीओ) व अन्य संगठनों  के अनुचित (तथाकथित सेवा) कार्यों में बाधा आने से सभी तिलमिला गये। इसके अतिरिक्त बहुसंख्यकों की जनसंख्या को सीमित रखने के लिए चलाया जा रहा छद्म प्रेम (लव जिहाद) में हिन्दू लड़कियों का दशकों से जारी शोषण के विरोध को भी बेचारे धर्मनिरपेक्षता वादी सहन नहीं कर पाये ।

ऐसे में राष्ट्रवादी मोदीजी की सुदृढ़ सरकार ने भी ढोंगी धर्मनिरपेक्ष मीडिया, बुद्धिजीवीवर्ग व विपक्ष के मिथ्या प्रचार को उचित मानते हुए अपने ही समर्पित राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं को ही दोषी माना। क्या अल्पसंख्यको को असीमित सहायताओं व उनके द्वारा उत्पन्न जटिल सामाजिक  समस्याओं का उचित प्रचार करके अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के मिथ्या षड्यंत्रों द्वारा सरकार को बदनाम करने की अमरीका व अरब आदि समर्थित संगठनो व देशद्रोही शक्तियों व छदम् धर्मनिर्पेक्षतावादियों की कुटिल चालो को कुचला नहीं जा सकता ?
क्या अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए धर्मपरिवर्तन व लव जिहाद का विरोध करना वह भी अपने ही देश में गलत है? यह कैसा राष्ट्रवाद है कि हम अपना अस्तित्व नष्ट होते देखते रहे  और चुप रहे  तो ठीक, विरोध करे तो कटघरे में खड़ा किया जाए ? हमको क्यों गांधीवादी मान कर कायर, सहनशील व उदार बनाया जाता आ रहा है? जिसके परीणामस्वरूप हम निरंतर लूटते व पिटते आ रहे हैं, अगर कुछ बोलते हैं तो साम्प्रदायिक बता कर गालियां दी जाती हैं। ध्यान रहे जब मोदीजी विदेश यात्राओं में जाते है तो पवित्र धर्मग्रन्थ गीता वहां के शासकों को भेंट करते हैं तो फिर हम हिन्दुओं को भी अपने धर्म ग्रन्थों से उचित व अनुचित का पाठ क्यों नहीं समझना चाहिये ? ” जैसे को तैसा” बनो और “हिंसक के आगे कैसी अहिंसा” पर भी विचार करो ।अतः प्रत्येक स्तर पर सावधान व संगठित रहकर अपनी जड़ों में.मठ्ठा डलवाने के पाप से बचो?

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