हिंदी पर तानाकशी ठीक नहीं

bassiडॉ.वेदप्रताप वैदिक

दिल्ली की पुलिस के मुखिया बी.एस. बस्सी से कुछ अंग्रेजी के अखबार और चैनल नाराज़ हो गए हैं| उनकी नाराज़ी का कारण यह है कि बस्सी ने अपने सारे पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अपना काम हिंदी में करें| उन्होंने कहा है कि हम सारी भाषाओं को सम्मान करते हैं लेकिन हिंदी हमारी मातृभाषा है और राष्ट्रभाषा है| इसके अलावा पुलिस को यदि सीधे जनता की सेवा करनी है तो उसे अपनी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए| उन्होंने यह भी कहा कि यदि कहीं कोई अड़चन हो तो अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करने में कोई बुराई नहीं है|

बस्सी ने बड़ी व्यावहारिक बात कही है लेकिन अंग्रेजी के पक्षपाती पत्रकारों ने लिखा है कि बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभानअल्लाह याने दिल्ली पुलिस का मुखिया अपने गृहमंत्री से भी आगे निकल गया| गृहमंत्री राजनाथसिंह ने सरकारी कर्मचारियों को सलाह दी है कि वे कम से कम अपने हस्ताक्षर तो हिंदी में करें लेकिन बस्सी कह रहे हैं कि पुलिसवाले सारा काम हिंदी में करें| उ.प्र. में पुलिस का सारा काम हिंदी में ही होता है| यह ठीक है कि दिल्ली और उ.प्र. में फर्क है| दिल्ली में भारत की लगभग सभी भाषाओं के बोलनेवाले रहते हैं और हजारों विदेशी भी रहते हैं लेकिन बस्सी ने किसी भी भाषा पर प्रतिबंध नहीं लगाया है| उनका लक्ष्य सिर्फ यह है कि आम लोगों की सुविधा बढ़े| यदि पुलिस थानों और अदालतों में अंग्रेजी चलती है तो आम जनता को अंधेरे में रखना आसान होता है| इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है| न्याय और व्यवस्था जादू-टोना बन जाती है| गरीब, ग्रामीण और वंचित लोगों की जमकर लुटाई और पिटाई होती है| इसीलिए बस्सी को बधाई! वे हिंदी थोप नहीं रहे हैं, उसे सिर्फ प्रोत्साहित कर रहे हैं|

जहां तक हिंदी में दस्तखत करने की बात है, इस आंदोलन को लगभग साल भर पहले मैंने शुरु किया था| मुझे खुशी है कि हजारों लोग अपने दस्तखत अंग्रेजी से बदलकर हिंदी व अपनी मातृभाषाओं में कर रहे हैं| देश के सभी दलों, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, आर्यसमाज और सभी साधु-संतों ने इस आंदोलन का समर्थन किया है| यदि गृहमंत्री राजनाथसिंह इसका समर्थन कर रहे हैं तो उन पर ताना कसना कहां तक उचित है? मैं तो चाहता हूं कि प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और अन्य मंत्री भी इस मामले में आगे बढ़ें|

2 COMMENTS

  1. वैदिक जी,
    न तो हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और न ही हमारी मातृभाषा.
    कहने वाले व्यक्ति विशेष की मातृभाषा हो सकती है पर सारे भारतीयों की नहीं.

  2. हिंदी जानने वाले ही हिंदी का ज्यादा अपमान करते है. जिसकी नहीं आती है, वो तो बच सकता है किन्तु हिंदी जानने वाले अगर मंच, पर, फाइलों पर हिंदी का इस्तेमाल नहीं करते है तो वोह ज्यादा दोषी है.

    अगर कोई हिंदी का इस्तेमाल करने चाहते है तो उसका मजाक बनाया जाता है. वाही कोग अंग्रेजी में मिले कागजो को लोगो के पास मातलब जानने के लिए घूमते रहते है. खुद अंग्रेजी फॉर्म पढ़ नहीं सकते है, और हिंदी का मजाक बनाते है.

    हर अफसर फ़ाइलो में कुछ शब्द लिखता है, ९९.९९ प्रतिशत अंग्रेजी में ही होते है. अगर आदेश जारी हो जाय की ऊपर से लेकर नीचे तक हर जगह हिंदी ही उपयोग होगी, प्रेजेंटेशन, रिपोर्ट, हिंदी में ही होंगे और कोष्ठक में अंग्रेजी के शब्द भी सकते है. जैसे मेने प्रेजेंटेशन, रिपोर्ट शब्द लिखा है. १५-१७ सालो से ऑफिस में येही शब्द लिख रहे है, रट गे है. हिंदी में याद हे नहीं रहते है., शब्दकोष में देखने में समय लगेगा, समय कम है. क्यों नहीं दोनों हे लिख दिए जाय जिससे हर व्यक्ति को सुसिधा हो जाय. जो हिंदी शब्द समझता है, हिंदी पढ़ ले, जो अंग्रेजी शब्द चाहता है, उसे पढ़ ले. मतलब तो साफ़ होना चाहिए. अगर अफसर हिंदी में लिखेगा तो अधिनस्त कर्मचारी का मनोबल बढेगा. लोग हिंदी का मजाक ही उड़ना में शान समझते है, क्यों नहीं इस्तेमाल करके मिसाल बने, लोगो के आदर्श बने.

    जरूरत है एक इकाशक्ति की. कम से कम हम तो शुरुआत कर ही सकते है जो हमारे वश में है. इतनी हिम्मत भी होने चाहिए की अपने लोग तो हिंदी का मजाक उड़ाते है उन्हें टोका जाय, प्रोत्साहित किया जाय.

    जय हिंदी जय भारत.

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