नरेंद्र मोदी सरकार ने केंद्रीय मंत्रीमंडल की पहली बैठक में कालेधन की कारगर जांच के लिए विशेष जांच दल के गठन की मंजूरी देकर साफ कर दिया है कि उसमें निर्णय लेने की क्षमता है। दरअसल देश का सर्वोच्च न्यायालय इसी परिप्रेक्ष्य में एसआइटी गठन का निर्देश कई साल से देता रहा है, लेकिन यह बेहद शर्मनाक स्थिति रही है कि मनमोहन सिंह सरकार लगातार इस गठन को टालती रही और आखिर में एक पुनर्याचिका दायर करके एसआइटी के गठन को इस न्यायिक सक्रियता को विधायिका और कार्यपालिका में हस्तक्षेप ठहराकर इसका विरोध भी किया था। हालांकि न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए केंद्र सरकार को तत्काल एसआईटी गठन का निर्देश दिया था, जिसे अंजाम तक नरेंद्र मोदी ने पहुंचा दिया है।
एसआईटी के आकार को देखते हुए साफ होता है कि इसका स्वरुप व्यापक है और यह जांच के लिए देश से लेकर विदेशों तक स्वतंत्र है। यह जांच शीर्ष न्यायालय के अवकाष प्राप्त न्यायाधीश एमबी शाह की अध्यक्षता में शुरू होगी। इसके उपाध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के ही रिटायर जज अरिजीत पसायत होंगे। इस दल के सदस्य के रूप में राजस्व सचिव, भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर, खुफिया ब्यूरों के निदेशक, निदेशक प्रवर्तन, सीबीआई निदेशक, अध्यक्ष केंद्रीय कर बोर्ड ;सीबीडीटी महानिदेशक राजस्व, खुफिया निदेशक, वित्तीय गुप्तचर और निदेशक रॉ शामिल रहेंगे। मसलन यह दल उस हर क्षेत्र में जांच करने के लिए अधिकार रखता है, जहां-जहां से कालाधन पैदा करके उसे छिपाने के क्रिया-कलाप गोपनीय रूप में जारी रहते हैं। वरना अकसर अब तक जांचें एक विभाग से दूसरी विभाग का सहयोग न मिलने पर अटकी रहती थीं। अब उम्मीद है यह जांच कारगर ढंग से आगे बढ़ेगी।
दल के गठन के साथ ही एक और अहम बात हुई है कि एसआईटी को कालेधन के कुख्यात कारोबारी हसन अली के मामलों में और कालेधन के अन्य मामलों में जांच कार्रवाई करने और सीधे मुकदमा चलाने की जिम्मेदारी भी सौंप दी गई है। साथ ही एसआईटी के अधिकार क्षेत्र में वे सभी मामले आएंगे, जिनमें या तो जांच शुरू हो चुकी है या लंबित है या शुरू की जानी है या फिर जांच पूरी हो गई है। एसआईटी एक व्यापक कार्ययोजना तैयार करेगी, जिसमें आवश्यक संस्थागत ढांचा तैयार करना शामिल है। इस तरह के मजबूत जांच दल के गठन से साफ होता है कि केंद्र की नई सरकार बेहिसाब-किताब कालाधन रखने वाले लोगों को बेनकाब करने के प्रति बाकई प्रतिबद्ध है।
हालांकि आम चुनाव के दौरान बदलती परिस्थितियों में कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में कालेधन की वापसी का मुद्दा शामिल कर लिया था। दूसरी तरफ वित्त मंत्री पी. चिदंबरम की भी अचानक सक्रियता बढ़ गई थी। उन्होंने स्विट्जरलैंड सरकार को पत्र लिखकर वहां के बैंकों में भारतीयों के जमा कालेधन को स्वदेश लाने में मदद करने की अपील की थी। नरेंद्र मोदी भी लगातार चुनावी सभाओं में आक्रामक ढंग से कालेधन का मुद्दा उठाते रहे थे। बाबा रामदेव ने भाजपा को समर्थन कालाधन वापसी की षर्त पर ही दिया था। आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल तो हरेक सभा में देश के कुछ बड़े उद्योगपतियों की स्विस बैंको में जमा राषि व उनके खातों का ब्यौरा देते हुंकार भर रहे थे। दिल्ली की रामलीला मैदान में लोकपाल को लेकर दिए धरने में अन्ना हजारे ने भी कालाधन को वापिस लाने का शंखनाद किया था। लालकृश्ण आडवाणी भी इस मुद्दे को उठा चुके थे। मई 2011 में केंद्र की सप्रंग सरकार ने कालेधन पर एक श्वेत-पत्र भी जारी किया था। किंतु इस पत्र में न तो कालेधन का कोई आंकड़ा दिया गया था और न ही जमाखोरों के नाम दिए गए थे, लिहाजा इसे कोरा श्वेत-पत्र कहकर संसद में विपक्ष ने नकार दिया था।
पी. चिदंबरम ने चुनावी गहमागहमी में एक पत्र 13 मार्च 2013 को स्विटजरलैंड के वित्त मंत्री इवेलिन विदमर स्कूम्फ को लिखा था। यही नहीं अक्टूबर 2013 में चिदंबरम ने इलेविन के साथ भेंट का भी ब्यौरा दिया था। इस मुलाकत में स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा कालेधन की जानकारी मांगी गई थी। लेकिन स्विटजर्लैंड ने बैंकिंग जानकारी देने से साफ इन्कार कर दिया। बहाना लिया कि स्विस संसद में बैंकिंग सूचनाओं को दूसरे देशों को देने का जबरदस्त विरोध हो रहा है। दरअसल स्विटजरलैंड की पूरी अर्थव्यस्था की बुनियाद ही दुनिया के देशों के जमा कालेधन पर टिकी है। यदि यह धन यहां की तिजोरियों से निकल जाता है,तो इस देश में रोटियों के भी लाले पड़ जाएंगे। लेकिन हैरानी इस बात पर है कि भारत और स्विट्जरलैंड के बीच नया कर समझौता हो चुका है। इसके तहत परस्पर सूचनाओं को साझा करने का प्रावधान है। इन शर्तों के मुताबिक गोपनीयता बनी ही नहीं रह सकती ? इसे ही आधार बनाकर 562 बैंक खातों की जानकारी स्विस सरकार से मांगी थी। यही वे संदिगध खाते हैं, जिनके जरिए भारत का अरबों रूपये स्विस बैंकों में जमा हैं। लेकिन स्विस सरकार ने फरवरी 2014 में एक पत्र लिखकर खातों की जानकारी देने से इनकार कर दिया।
कालेधन के सिलसिले में संयुक्त राष्ट्र ने भी एक संकल्प पारित किया है। जिसका मकसद ही कालेधन की वापिसी से जुड़ा है। इस संकल्प पर भारत समेत 140 देशों के हस्ताक्षर हैं। इसके मुताबिक 126 देशों ने तो इसे लागू कर कालाधन वसूलना भी शुरू कर दिया है। इस क्रम में सबसे पहले जर्मनी ने ‘वित्तीय गोपनीय कानून‘ को चुनौती देते हुए अपने देश के जमाखोरों के नाम उजागर करने के लिए स्विस सरकार पर दबाव बनाया। फिर इटली, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन हावी हो गए। नतीजतन इन देशों को न केवल जमाखोरों के नाम बताए गए, बल्कि ये देश अपना धन स्वदेश लाने में भी कामयाब हो गए। अमेरिका ने तो 17 हजार खातेधारों की सूची लेकर 78 करोड़ डॉलर कालाधन वसूल लिया।
संयुक्त राष्ट्र जिसने कि यह संकल्प पारित कर गोपनीयता कानून भंग करते हुए कालेधन की वापसी का रास्ता खोला है, वह ऐसे कानूनी उपाय क्यों नहीं करता कि कालाधन बैंकों में जमा ही न होने पाए ? संयुक्त राष्ट्र पर खासकर यूरोपीय देशों का प्रभुत्व है और विडंबना यह है कि कालाधन जमा करने वाले बैंक भी इन्हीं देशों में हैं। संयुक्त राष्ट्र विश्वस्तरीय ऐसा संगठन है, जो दुनिया के विकासशील व गरीब देशों में व्याप्त गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य और तमाम तरह के अभावों की फ्रिक करता है। कोई प्राकृतिक आपदा आने पर रशद व दवाएं देकर बड़े पैमाने पर राहत पहुंचाने का काम भी करता है। संयुक्त राष्ट्र चाहे तो दोहरे कराधान की नीति को समाप्त कर सकता है। इस नीति के तहत तमाम देशों की सरकारें कालेधन को कर चोरी का मामला मानती हैं। जबकि यह धन केवल कर चोरी से अर्जित धन नहीं होता, बड़ी तादाद में यह भष्ट्राचार से प्राप्त धन होता है।
रक्षा-सौदों और कंप्यूटर व इलेक्टॉनिक उपकरणों की सरकारी खरीद में बड़ी मात्रा में यह धन काली कमाई के रूप में उपजता है। इस बाबत पूरी दुनिया में कर चोरी और भ्रश्ट्र कदाचरण से कमाया धन सुरक्षित रखने की भरोसेमंद जगह स्विट्जरलैंड है। बहरहाल यह अच्छी बात है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने अपनी पहली बैठक में ही कालाधन वापसी की और ठोस कदम एसआईटी का गठन करके बड़ा दिया है। नई सरकार की यह जवाबदेही भी बनी थी, क्योंकि पिछले एक दशक से विपक्ष इस मुद्दे को संसद से सड़क तक गर्माये हुए था। गोया, कालाधन वापस आता है तो लोगों को अतिरिक्त कर के बोझ से मुक्ति मिलेगी ? शिक्षा, स्वास्थ्य, कुपोषण और भूखमरी को लेकर देश में जो भयावह हालात हैं, उनसे भी एक हद तक छुटकारा मिलेगा ? साथ ही नई सरकार के अलंबदारों को ऐसे सख्त कानूनी प्रावधानों को भी अमल में लाने की जरुरत है जिससे कालेधन की उपज बंद हो ?