मिली ठोकरें तो सम्भलना सिखाया
जीना सम्भलकर कठिन जिन्दगी में
उलझ भी गए तो निकलना सिखाया
रंगों की महफिल है ये जिन्दगी भी
गिरगिट के जैसे बदलना सिखाया
सबकी खुशी में खुशी जिन्दगी की
खुद की खुशी में बहलना सिखाया
बहुत दूर मिल के भी क्यों जिन्दगी में
सुमन फिर भ्रमर को टहलना सिखाया
आपने बहुत मान दिया रमेश जी – यह मेरा सौभाग्य है – हार्दिक धन्यवाद