शौच के लिए बाहर जाते शर्म आती है

1
134

opendefecationराबिया बसरी

 

बिहार का जिला सीतामढ़ी जो सीता जी की जन्मभूमी है। यहां से 35 किमी दूर बसा है एक गांव कुशैल। जिसकी आबादी लगभग 2500 है। इस गांव मे जैसे जैसे अंदर जाते हैं सड़कों की स्थिति खराब होती जाती है लेकिन उससे भी ज्यादा खराब है यहां की महिलाओं की स्थिति। कारण है गांव मे शौचालय का न होना। शौचालय न होने के कारण महिलाओं को आए दिन कैसी कैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है इस बारे मे 35 वर्षिय आरती देवी ने बताया कि “मेरी शादी हुए 10 साल हो गए हैं दो बच्चे भी हैं अभी तक मेरे घर मे शौचालय नही बना है। मुझे शौचालय जाने के लिए दोनो छोटे बच्चों को छोड़ कर जाना पड़ता है। सड़क का इस्तेमाल शौचालय के रुप मे करने मे बहुत शर्म आती है।  अगर घर मे शौचालय होता तो हम गांव की सड़क को गंदा क्यों करते ?” दूसरी महिला राम कली देवी पति का नाम नरेश महतो का कहना है कि “मेरे घर मे भी शौचालय नही है मैं और मेरे बच्चे जब दिन के समय शौच के लिए जाते है तो गावं के लोग खड़े होकर मुझे और बच्चों को अजीब नजरों से देखते हैं।  दिन के उजाले मे शौच के लिए बाहर जाने मे शर्म आती है खासकर जब भीड़ ज्यादा हो तो न खुद जाती हुँ और न बच्चों को ले जाती हुँ लेकिन ऐसा करने से बच्चो के पेट मे दर्द होने लगता है। और तो और जिस रास्ते से होकर खेत तक जाना होता है वहां पर इतना पानी जमा रहता है कि रात के समय जाने आने मे डर लगता है कि कहीं सांप बिच्छु काट न ले। कितने लोगो को तो सांप ने काटा भी है। अब आप ही सोचिए शौचालय होता तो ये सब परेशानी थोड़े होती।”

40 साल की बनारसी देवी पति का नाम छोटे लाल महतो से जब ये सवाल किया कि क्या आपको भी शैचालय न होने का दूख है? तो बनारसी देवी कहती हैं “शादी को 20 साल हो गए हैं। न मायके मे शौचालय है और न ससुराल मे । मेरे 4 संतान हैं, जवान बेटियों को शौच के लिए खुले मे जाना अच्छा नही लगता वो मुझसे शिकायत करती है मुझ पर गुस्सा भी होती हैं लेकिन मैं क्या कर सकती हुँ। अगर घर मे शौचालय होता तो मेरी बेटियों को न ही सड़क पर जाना पड़ता न ही मुझे उनके ताने सुनने पड़ते। सड़क पर शौच के लिए जाए तो गांव के दस लोग देखते भी हैं जो बिल्कुल अच्छा नही लगता लेकिन क्या करुँ मजबूर हुँ। 45 साल की चानो देवी का कहना है “हमारे जमाने की बात कुछ और थी हम भी शौच के लिए बाहर जाते थे लेकिन तब का जमाना कुछ और था गांव में बहू बेटियों को इज्जत की नजर से देखा जाता था। जब हम शौच के लिए बाहर जाते थें तो पुरुष हमें देखते ही खुद ही किनारे हो जाते थे लेकिन अब के जमाने मे शहर तो दूर गांव मे लड़कियों के साथ शौच को जाते हुए बहुत सारे हादसे हो जाते हैं इसलिए बहु बेटियों को बाहर भेजने मे डर लगता है। घर मे दो बहुएं हैं उनके मायके मे शौचालय था लेकिन हमारे यहां नही है जिस कारण उन्हे यहां रहने मे बहुत दिक्तत आती है मैने अपने पति को कितनी बार बोला कि घर मे इतनी जगह है तो बहुओं के लिए एक शौचालय बनवा दो लेकिन बोतला है कि जैसे सब की बहु-बेटियां जाती हो वैसे तुम्हारी भी जाएंगी तो क्या हो गया।

चानो  देवी  की  पति  की ये बात समाज की उस सोच को दर्शाती है जिसमें एक तरफ तो बहुँ- बेटियों को घर की चार दिवारी के अंदर उन्हे सुरक्षित रखने का अच्छा तरीका समझा जाता है तो वहीं दूसरी तरफ खुले मे शौच जाने को उनकी इज्जत पर धब्बा नही बल्कि ग्रामीण जीवन का एक हिस्सा माना जाता है। ऐसी स्थिति मे भारत सरकार द्वारा 2019 तक 9 करोड़ 80 लाख शौचालय बनाने का जो लक्ष्य तय किया गया है वो पूरा हो पाएगा या नही? इस बारे मे चरखा फीचर्स से बात करते हुए पुपरी के प्रखंड विकास पदाधिकारी नीरज कुमार ने बताया ”  स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौचालय बनवाने के लिए समय हर बार तीन प्रखंड को चयन करना होता है और चयन के बाद सभी शैचालय विहिन घरों मे शौचालय बनवाया जाता है । इस समय जिस तीन प्रखंड का चयन हुआ है उसमे पुपरी प्रखंड शामिल नही है हो सकता है अगली बार हमारा काम पुपरी प्रखंड मे ही हो। तो इस प्रखंड मे आने वाले कुशैल और सभी गांव के शौचालय विहिन घरों मे शौचालय जरुर बनवाया जाएगा”।

कुशैल गांव में शौचालय की स्थिति तो मात्र एक उदाहरण है ताजा आंकड़ो पर नजर डाले तो हमे मालुम होगा कि कई तरह के प्रयासो के बावजुद भी वर्ष 2014- 15 के दौरान प्रति मिनट मात्र 11 शौचालय ही बनाए गए हैं जबकि लक्ष्य प्रति मिनट 46 शौचालय बनाने का रखा गया था। 2011 की जनगणना के अनुसार देश भर में 53 प्रतिशत घरों में आज भी शौचालय नहीं हैं। ग्रामीण इलाकों के 69.3 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं हैं। सिर्फ गांवों की ही बात करें तो ज्यादातर राज्यों में स्थिति बेहद खराब हैं। झारखंड के 92 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं हैं। जबकि ओडिशा के 85.9 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ के 85.5 प्रतिशत, राजस्थान के 80.4  प्रतिशत, उत्तर प्रदेश के 78.2 प्रतिशत और बिहार के 82.4 प्रतिशत घरों में आज भी शौचालय नहीं हैं।

एक तरफ आंकड़े हैं और दूसरी तरफ शौचालय के प्रति लोगो की मानसिकता। जो हमें ये समझाने के लिए काफी हैं कि देश को स्वच्छ रखने के लिए सिर्फ शौचालय बनवा देना ही काफी नही है शौचालय के प्रति लोगो की मानसिकता को सकारात्मक रुप देने से ही अब बात बन सकती है। (चरखा फीचर्स)

1 COMMENT

  1. कितनी शर्मनाक स्थिति है कि हम चाँद पर जाने के लिए कोशिश कर रहे हैं लेकिन अपने घरों में शौचालय नहीं बनवा सकते .किसी नेता के चुनाव घोषणा पत्र में यह मुद्दा नहीं होता .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,719 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress