नवरात्रोत्सव में देवी की उपासना धर्मशास्त्रानुसार कैसे करें ?

आश्‍विन शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रोत्सव आरंभ होता है । इस वर्ष नवरात्रोत्सव १३ अक्टूबर, २०१५ से आरंभ हो रहा है । इस काल में नवरात्रोत्सव में घटस्थापना करते हैं । अखंड दीप के माध्यम से नौ दिन श्री दुर्गादेवी की पूजा करना अर्थात नवरात्रोत्सव मनाना । नवरात्रि के काल में श्री दुर्गादेवी का तत्त्व अधिक कार्यरत होता है । शास्त्र समझकर देवी की उपासना करने से हमें दुर्गातत्त्व का अधिकाधिक लाभ होता है । इसी दृष्टि से भक्तगण इस लेख का अभ्यास करें ।

 

श्री दुर्गादेवी की विशेषताएं

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।

Navrathri-2011 सर्व मंगलकारी वस्तुओं में विद्यमान मांगल्य रूप देवी, कल्याणदायिनी, सर्व पुरुषार्थों को साध्य कराने वाली, शरणागतों की रक्षा करने वाली देवी, त्रिनयना, गौरी, नारायणी ! आपको मेरा प्रणाम । श्री दुर्गादेवीके अतुलनीय गुणोंका परिचय इस श्लोक से होता है । जीवन को परिपूर्ण बनाने हेतु आवश्यक सर्व विषयों का साक्षात प्रतीक हैं, आदिशक्ति  श्री दुर्गादेवी । श्री दुर्गादेवीको जगत्जननी कहा गया है । जगत्जननी अर्थात सबकी माता ।

 

नवरात्रिमें देवीके कौनसे रूपोंकी उपासना करें ?

महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती, देवीके तीन प्रमुख रूप हैं । एक मतानुसार नवरात्रिके पहले तीन दिन तमोगुण कम करने हेतु महाकाली की, अगले तीन दिन सत्त्वगुण बढाने हेतु महालक्ष्मी की एवं अंतिम तीन दिन साधना तीव्र होने हेतु सत्त्वगुणी महासरस्वती की पूजा करते हैं ।

 

व्रत करनेकी पद्धति :

अनेक परिवारोंमें यह व्रत कुलाचारके स्वरूपमें किया जाता है । आश्विन की शुक्ल प्रतिपदा से इस व्रत का प्रारंभ होता है ।

१. घरके किसी पवित्र स्थान पर एक वेदी तैयार कर, उस पर सिंहारूढ अष्टभुजा देवी की और नवार्णव यंत्र की स्थापना की जाती है । यंत्र के समीप घटस्थापना कर, कलश एवं देवी का यथाविधि पूजन किया जाता है ।

२. नवरात्रि महोत्सव में कुलाचारानुसार घटस्थापना एवं मालाबंधन करें । खेत की मिट्टी लाकर दो पोर चौडा चौकोर स्थान बनाकर, उसमें पांच या सात प्रकारके धान बोएं । इसमें (पांच अथवा) सप्तधान्य रखें । जौ, गेहूं, तिल, मूंग, चेना, सांवां, चने सप्तधान्य हैं ।

३. जल, गंध (चंदनका लेप), पुष्प, दूब, अक्षत, सुपारी, पंचपल्लव, पंचरत्न एवं स्वर्णमुद्रा या सिक्के इत्यादि वस्तुएं मिट्टी या तांबे के कलश में रखें ।

४. सप्तधान एवं कलश (वरुण) स्थापना के वैदिक मंत्र यदि न आते हों, तो पुराणोक्त मंत्र का उच्चारण किया जा सकता है । यदि यह भी संभव न हो, तो उन वस्तुओं का नाम लेते हुए ‘समर्पयामि’ बोलते हुए नाममंत्र का विनियोग करें । माला इस प्रकार बांधें, कि वह कलश के भीतर पहुंचे ।

५. प्रतिदिन कुंवारी कन्या की पूजा कर उसे भोजन करवाएं ।

६. ‘नवरात्रों का व्रत करनेवाले अपनी आर्थिक क्षमता एवं सामर्थ्य के अनुसार विविध कार्यक्रम करते हैं, जैसे अखंड दीपप्रज्वलन, उस देवता का माहात्म्यपठन (चंडीपाठ), सप्तशतीपाठ, देवीभागवत, ब्रह्मांडपुराण के ललितोपाख्यान का श्रवण, ललितापूजन, सरस्वतीपूजन, उपवास, जागरण इत्यादि ।

७. यद्यपि भक्त का उपवास हो, फिर भी देवता को हमेशा की तरह अन्न का नैवेद्य दिखाना पडता है ।

८. व्रत के दौरान उपासक उत्कृष्ट आचरण का एक अंग मानकर दाढी न बनाना, ब्रह्मचर्य का पालन, पलंग एवं बिस्तर पर न सोना, गांव की सीमा न लांघना, चप्पल एवं जूतों का प्रयोग न करना इत्यादि का पालन करता है ।

९. नवरात्रि की संख्या पर जोर देकर कुछ लोग अंतिम दिन भी नवरात्रि रखते हैं; परंतु शास्त्रानुसार अंतिम दिन नवरात्रि समापन आवश्यक है । इस दिन समाराधना (भोजनप्रसाद) उपरांत, समय हो तो उसी दिन सर्व देवताओं का अभिषेक एवं षोडशोपचार पूजा करें । समय न हो, तो अगले दिन सर्व देवताओं का पूजाभिषेक करें ।

१०. देवी की मूर्ति का विसर्जन करते समय बोए हुए धान के पौधे देवी को समर्पित किए जाते हैं । उन पौधों को ‘शाकंभरी देवी’ का स्वरूप मानकर स्त्रियाँ अपने सिर पर धारण कर चलती हैं और फिर उसे विसर्जित करती हैं ।

११. स्थापना एवं समापन के समय देवोंका ‘उद्वार्जन (सुगंधी द्रव्योंसे स्वच्छ करना, उबटन लगाना)’ करें । उद्वार्जन हेतु सदैव की भांति नींबू, भस्म इत्यादि का प्रयोग करें । रंगोली, बर्तन मांजने के चूर्ण का प्रयोग न करें ।

 

नवरात्रोत्सव के काल में श्री दुर्गादेवी का नामजप करना

नामजप कलियुग की सर्वश्रेष्ठ तथा सरल साधना है । नामजप द्वारा देवी को निरंतर पुकारने से वे तुरंत हमारी सुनती हैं । नवरात्रि में अधिक मात्रा में कार्यरत श्री दुर्गादेवी का तत्त्व ग्रहण हो, इसलिए इस कालमें ‘ॐ श्री दुर्गादेव्यै नमः ।’ नामजप अधिकाधिक करें ।

 

नवरात्रि में देवी को की जानेवाली प्रार्थना

नवरात्रिमें हम अपनी विविध कामनाओंकी पूर्तिके लिए देवीसे प्रार्थना करते हैं; परंतु वर्तमान कलियुग में महिषासुरमर्दिनी से कौन-सी प्रार्थना करना उपयुक्त है ? देवीने महिषासुरका वध किया । आज अधिकांश लोगों के हृदय में षड्रिपुरूपी महिषासुर बसते हैं । आसुरी बंधनों से मुक्त होने के लिए नवरात्रि में आदिशक्ति  की शरण जाकर उनसे प्रार्थना करें, – ‘हे देवी, आप हमें बल दें । आपकी शक्ति से हम आसुरी वृत्ति का नाश कर पाएं ।’

 

नवरात्रि की नौ रातें प्रतिदिन गरबा खेलना

‘गरबा खेलने’को ही हिन्दू धर्ममें तालियों के लयबद्ध स्वर में देवी का भक्तिरसपूर्ण गुणगानात्मक भजन कहते हैं । गरबा खेलना, अर्थात तालियों की नादात्मक सगुण उपासना से श्री दुर्गादेवी को ध्यान से जागृत कर, उन्हें ब्रह्मांड के लिए कार्य करने हेतु मारक रूप धारण करने का आवाहन ।

 

गरबा दो तालियों से खेलना चाहिए या तीन तालियों से ?

नवरात्रि में श्री दुर्गादेवी का मारक तत्त्व उत्तरोत्तर जागृत होता है । ईश्वर की तीन प्रमुख कलाएं हैं – ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश । इन तीनों कलाओं के स्तर पर देवी का मारक रूप जागृत होने हेतु, तीन बार तालियां बजाकर ब्रह्मांडांतर्गत देवी की शक्तिरूपी संकल्पशक्ति कार्यरत की जाती है । इसलिए तीन तालियों की लयबद्ध हलचल से देवी का गुणगान करना अधिक इष्ट एवं फलदायी होता है ।

 

नवरात्रि में सरस्वतीपूजन (अष्टमी एवं नवमी)

विजयादशमी से एक दिन पूर्व तथा विजयादशमी पर भी सरस्वतीपूजन प्रधानता से करें । सरस्वती का प्रत्यक्ष आवाहनकाल आश्विन शुक्ल अष्टमीपर मनाया जाता है; नवमी पर देवी के मूर्तस्वरूप की ओर उपासक का आकर्षण बढता है । विजयादशमी पर सरस्वती विसर्जन की विधि संपन्न की जाती है । अष्टमी से विजयादशमीतक, शक्तिरूप सुशोभित होता है । सरस्वती की तरंगों से उपासक की आत्मशक्ति जागृत होती है और उसे आनंदकी अनुभूति होती है ।

 

(संदर्भ : सनातन संस्था-निर्मित ग्रंथ ‘शक्ति ’ एवं लघुग्रंथ ‘देवीपूजनसे संबंधित कृत्योंका अध्यात्मशास्त्र’)

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