जिस दिन दीपिका की मौत हुई उस दिन गोपाल काँडा को उसके जन्म दिन पर बधाई देने वाले विज्ञापन समाचार पत्रों में प्रकाशित हुये । हरियाणा में इस प्रकार के इश्तहार भी जगह जगह लगाये गये । गोपाल काँडा हरियाणा विधान सभा के सदस्य हैं और कुछ समय पहले तक वे राज्य सरकार में मंत्री भी थे । उन पर आरोप था कि उनकी हरकतों से परेशान होकर गीतिका शर्मा नाम की एक युवा लड़की ने आत्महत्या कर ली । मरने से पहले गीतिका एक पत्र भी छोड़ गई जिसमें उसने अपनी हत्या के लिये गोपाल काँडा को ज़िम्मेदार ठहराया । हरियाणा पुलिस अपने मंत्री पर भला क्या कार्यवाही करती ? लेकिन दिल्ली पुलिस ने काँडा को गिरफ़्तार करके जेल भेज दिया ।इसमें वैसे पुलिस को दोषी नहीं ठहराया जा सकता , क्योंकि उस पर भी न्यायालय का दबाव पड़ रहा था । नहीं तो पुलिस अपनी पुरानी परम्पराओं के अनुसार शायद गोपाल की ही सहायता करती । दीपिका और गीतिका का क़िस्सा लगभग एक जैसा ही है । दीपिका को जो शारीरिक और मानसिक कष्ट सहना पड़ा वह तूफ़ान की तरह आया और आँधी की तरह उसे अपने साथ ही लेकर चला गया । उस के साथ जो हुआ वह सार्वजनिक हो चुका था , इसलिये जनाक्रोश भी अपनी चरम सीमा तक पहुँचा । दीपिका को बचाने की भी भरसक कोशिश की गई । लेकिन गीतिका को जो कुछ भी सहना पड़ा वह अकेली को ही सहना पड़ा । पता नहीं गोपाल काँडा का मानसिक और शारीरिक संताप वह कितने काल से सह रही थी । दीपिका भी जीना चाहती थी । उसने तो अपनी माँ को लिख कर भी दिया कि माँ मैं जीना चाहती हूँ । गीतिका भी जीना चाहती थी । लेकिन गोपाल के कारण वह रोज़ तिल तिल कर मर रही थी ।उसका कुछ अंश रोज़ ही मरता था । गोपाल उसे रोज़ मरते देखता था । वह भी जी सकती थी । लेकिन गोपाल की शर्तों पर । गोपाल की शर्तें ऐसी थीं कि कोई भी स्वाभिमानी लड़की उन्हें स्वीकार नहीं कर सकती थी । लेकिन गीतिका की सबसे बड़ी त्रासदी यह थी संकट के इस काल में उसे बचानेबाला कोई नहीं था । वह परोक्ष रुप से अपने क़ातिल के घेरे में ही थी और इस घेरे को तोड़ कर उसके लिये मुक्त होने का एक ही रास्ता था कि वह मर जाती । उसने यही रास्ता चुना और आत्महत्या कर ली । दीपिका और गीतिका की थोड़े बहुत अन्तर के साथ एक ही त्रासदी थी ।
लेकिन गोपाल का अभिनन्दन किया जा रहा है । उसका जन्मदिन विज्ञापन जारी कर मनाया जा रहा है । जो अखवार दामिनी के साथ हो रहे अन्याय को शीर्षक दे रहे थे , वे अगले पृष्ठ पर गोपाल काँडा को बधाई का विज्ञापन भी छाप रहे थे । ख़ैर इस पर एतराज़ नहीं किया जा सकता । आख़िर सभी को अपना व्यवसाय चलाना है । लेकिन जब गोपाल काँडा के जन्म दिन के सार्वजनिक उत्सव पर हरियाणा के एक मंत्री शिरकत ही न करें बल्कि उसकी शान में क़सीदे भी पढ़ें तो एतराज़ होना ही चाहिये । हरियाणा के इस मंत्री शिवचरण शर्मा ने कहा कि गोपाल काँडा का जन्म दिन केवल हरियाणा और दिल्ली में ही नहीं मनाया जा रहा बल्कि जेल में भी मनाया जा रहा है । इतना ही नहीं मंत्री महोदय ने गीतिका कांड की व्याख्या भी की । उसके अनुसार इस पूरे मामले में गोपाल की ग़लती केवल इतनी रही कि उसने गीतिका को नौकरानी रख लिय था । मंत्री के अनुसार गोपाल का केस कोई बड़ी बात नहीं है । हरियाणा के मुख्य संसदीय सचिव प्रह्लाद सिंह एक क़दम और आगे बढ़ गये ।उनके अनुसार गीतिका के क़िस्से को लेकर गोपाल के बारे में जो अफ़वाहें फैल रही हैं , वे अपने आप ख़त्म हो जायेंगी । मंत्री ने एक और ख़ुलासा किया कि काँडा किसी से नहीं डरता । शिव चरण की बात ठीक है । यदि काँडा डरता होता तो गीतिका को आत्महत्या की ज़रुरत ही क्यों पड़ती ? यदि दामिनी के क़िस्से में ड्राईवर राम सिंह डरता होता तो आज दामिनी भी ज़िन्दा होती । यही तो आज की सब से बड़ी समस्या है कि न राम सिंह डरता है और न गोपाल काँडा डरता है । इनके न डरने से दामिनियों और गीतिकाओं को मरना पड़ रहा है ।
एक बात और अजीब लगती है । केन्द्र सरकार के एक और मंत्री शशि थरूर इंटरनेट पर ट्वीट करते रहते हैं । हर विषय पर अपने विचार दुनिया के लोगों को बताते रहते हैं । जब दामिनी जीवन मृत्यु से संघर्ष कर रही थी तो उन्होंने चीं चीं नहीं की । ( यदि ट्वीट का हिन्दी अनुवाद चीं चीं हो सकता हो) लेकिन अब जब दामिनी जीवन का संघर्ष हार गई तो शशि थरूर चीं चीं कर रहे हैं । उन की सबसे बड़ी चिन्ता अब यह है कि अब दामिनी का असली नाम सार्वजनिक कर दिया जाना चाहिये । उन्होंने एक और चीं चीं की । उन का कहना है कि बलात्कार को लेकर नये बनने वाले क़ानून का नाम दामिनी के असल नाम पर रखा जाये । शशि का कहना है कि इससे इस लड़की को सम्मान मिलेगा । थरूर यह सब करके किस को धोखा देना चाहते है ? दामिनी को जो सम्मान इस देश की जनता ने दे दिया है , उससे ज़्यादा सम्मान की उसे ज़रुरत नहीं है । दामिनी को अपने असली नाम के सार्वजनिक हो जाने का भी कुछ लाभ नहीं है । शशि थरूर असली समस्या से लोगों का ध्यान बँटा कर किस का भला करना चाहते हैं । दामिनी का असली सम्मान तो तब होगा जब गोपाल काँडा डरने लग जायेंगे , और उनकी शान में क़सीदे पढ़ने बाले मंत्री शिव चरण शर्मा और प्रह्लाद सिंह गीतिका की आत्महत्या को नौकरानी का छोटा सा मामला न मान कर नारी अस्मिता को चुनौती मानेंगे । शशि थरूर इस पर भी कुछ चीं चीं करेंगे या केवल दामिनी का असली नाम जानने में ही सारी सरकारी शक्ति लगा देंगे ?