हैती में तबाही का तांडव रच गया मैथ्यू

0
149

mathewप्रमोद भार्गव

कैरिबियाई सागर से उठे तूफान मैथ्यू ने हैती, बहामांस, डोमिनिक रिपब्लिक और क्यूबा में तबाही मचाने के बाद अमेरिका में पहुंचकर फ्लोरिडा , जार्जिया, दक्षिण तथा उत्तर कैरोलिना जैसे इलाकों को चपेट में ले लिया है। कैरिबियाई सागर में पचास साल के भीतर उठने वाले तूफानों में यह सबसे भीषण और विनाशकारी तूफान है। हालांकि फ्लोरिडा के तट पर पहुंचते ही 235 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आगे बढ़ने वाला मैथ्यू कमजोर जरूर पड़ने लगा है, लेकिन इसकी गति सौ किलोमीटर से नीचे नहीं आ जाती तब तक इसकी आक्रामकता और खतरा बना रहेगा। मैथ्यू से अमेरिका में 6 और हैती में 878 मौते हुई हैं। हैती में 30 हजार घर ध्वस्त हो गए हैं। 90 प्रतिशत क्षेत्र इसकी चपेट में हैं। हैती का जेरेमी शहर पूरी तरह बर्बाद हो गया है। तेज हवाओं और भारी बारिश से ध्वस्त हुए घरों का मालवा शहर में चारों तरफ बिखरा पड़ा है। फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गई हैं, नतीजतन अकाल के हालात उत्पन्न हो गए हैं। 30 लाख से ज्यादा लोग सुरक्षित स्थलों पर पहुंचा दिए हैं। अमेरिका को 5200 उड़ानें मैथ्यू के कारण रद्द करनी पड़ी हैं और 15 लाख घरों में अंधेरा छा गया है। अमेरिका के चार प्रांतों में भयंकर बर्बादी हुई है।
दुनिया की महाशक्ति माना जाने वाला देश अमेरिका एक बार फिर मैथ्यू तूफान की चपेट में है। इसके पहले शैतानी सैंडी तूफान ने अमेरिका में भारी तबाही मचाई थी। साफ है, हम विज्ञान और तकनीकी रूप से चाहे जितने सक्षम हो लें, अंततः प्राकृतिक आपदाओं के समक्ष लाचार ही हैं। सैंडी का कहर 17 राज्यों में बरपा था। 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली बर्फीली हवाओं और 14 फीट उंची समुद्री लहरों ने चंद घंटों में पांच करोड़ लोगों को आफत में डाल दिया था।
इन प्राकृतिक प्रकोपों को क्या मानें, बढ़ते वैशिवक तापमान के कारण जलवायु परिर्वतन का संकेत अथवा यह रौद्र रूप प्रकृति के कालच्रक की स्वाभाविक प्रक्रिया है या मनुष्य द्वारा प्रकति से किए गए अतिरिक्त खिलवाड़ का दुष्परिणाम ! इसके बीच एकाएक कोई विभाजक रेखा खींचना मुश्किल है। लेकिन बीते चार साल के भीतर अमेरिका, ब्रजील, आॅंस्ट्रे्रलिया, सिडनी, फिलीपींस, हैती और श्रीलंका में जिस तरह से तूफान, बाढ़, भूकंप, भूस्खलन, धूल के बंवडर और कोहरे के जो भयावह मंजर देखने में आ रहे हैं, इनकी पृष्ठभूमि में प्रकृति से किया गया कोई न कोई तो अन्याय जरूर अंतर्निहित है। इस भायवहता का आकलन करने वाले जलवायु विषेशज्ञों का तो यहां तक कहना है कि आपदाओं के ये तांडव योरूप, एशिया और अफी्रका के एक बड़े भू भाग की मानव आबादियों को रहने लायक ही नहीं रहने देंगे। लिहाजा अपने मूल निवास स्थलों से इतनी बड़ी तदाद में विस्थापन व पलायपन होगा कि एक नई वैश्विक समस्या ‘पर्यावरण शरणार्थी’ के खड़ी होने की आशंका है। क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में इंसानी बस्तियों को प्राकृतिक आपदाओं के चलते एक साथ उजड़ना नहीं पड़ा है। यह संकट श्हरीकरण की देन भी माना जा रहा है। इस बदलाव के व्यापक असर के चलते खाद्यान्न उत्पादन में भी कमी आएगी। अकेले एशिया में बद्रहाल हो जाने वाली कृषि को बहाल करने के लिए हरेक साल करीब पांच अरब डाॅंलर का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ेगा। बावजूद दुनिया के करोड़ों स्त्री, पुरुष और बच्चों को भूख व कुपोषण का अभिशाप झेलना होगा। फिलहाल तूफान के कहर ने हैती में ऐसे ही हालात बना दिए हंै।
ये प्राकृतिक प्रकोप संकेत दे रहे हैं कि मौसम का कू्रर बदलाव ब्रह्माण्ड की कोख में अंगडाई ले रहा है। योरूप के कई देशों में तापमान असमान ढ़ंग से गिरते व चढ़ते हुए रिकाॅंर्ड किया जा रहा है। शून्य से 15 डिग्री नीचे खिसका तापमान और हिमालय व अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में 14 डिग्री सेल्सियस तक चढ़े ताप के जो आंकडं़े मौसम विज्ञानियों ने दर्ज किए हैं, वे इस बात के साफ संकेत हैं कि जलवायु परिर्वतन की आहट सुनाई देने लगी है। इसी आहट के आधार पर वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि 2055 से 2060 के बीच में हिमयुग आ सकता है, जो 45 से 65 साल तक वजूद में रहेगा। 1645 में भी हिमयुग की मार दुनिया झेल चुकी है। ऐसा हुआ तो सूरज की तपिश कम हो जाएगी। पारा गिरने लगेगा ।सूरज की यह स्थिति भी जलवायु में बड़े परिर्वतन का कारण बन सकती है। हालांकि सौर च्रक 70 साल का होता है। इस कारण इस बदली स्थिति का आकलन एकाएक करना नामुनकीन है।
यदि ये बदलाव होते हैं तो करोड़ों की तादात में लोग बेघर होंगे। विषेशज्ञों का मानना है कि दुनियाभर में 2050 तक 25 करोड़ लोगों को अपने मूल निवास स्थलो से पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। बदलाव की यह मार मालद्वीव और प्रशांत महासागर क्षेत्र के कई द्वीपों के वजूद पूरी तरह लील लेगी। इन्हीं आशंकाओं के चलते मालद्वीव की सरकार ने कुछ साल पहले समुद्र्र की तलहटी में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक सम्मेलन आयोजित किया था। जिससे औद्योगिक देश काॅर्बन उत्सर्जन में कटौती कर दुनिया को बचाएं। अन्यथा प्रदूषण और विस्थापन के संकट को झेलना मुश्किल होगा। साथ ही सुरक्षित आबादी के सामने इनके पुनर्वास की चिंता तो होगी ही, खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा भी अहम् होगी। क्योंकि इस बदलाव का असर कृषि पर भी पड़ेगा। खाद्यान्न उत्पादन में भारी कमी आएगी। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान ने योरोपीय देशों में आईं प्राकृतिक आपदाओं का आकलन करते हुए कहा है कि ऐसे ही हालात रहे तो करीब तीन करोड़ लोगों के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। भारत के विश्व प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन का कहना है, यदि धरती के तापमान में महज एक डिग्री सेल्सियस की ही वृद्धि हो जाती है तो गेहंू का उत्पादन 70 लाख टन घट सकता है।
हालांकि वैज्ञानिक इस विकटतम स्थिति में भी निराश नहीं हैं। मानव समुदायों को विपरीत हालातों में भी प्राकृतिक परिवेश हासिल करा देने की दृष्टि से प्रयत्नशील हैं। क्योंकि वैज्ञानिकों ने हाल के अनुसंधानों में पाया है कि उच्चतम ताप व निम्नतम जाड़ा झेलने के बावजूद जीवन की प्रक्रिया का क्रम जारी है। दरअसल जीव वैज्ञानिकों ने 70 डिग्रेी तक चढ़े पारे और 70 डिग्री सेल्सियस तक ही नीचे गिरे पारे के बीच सूक्ष्म जीवों की आश्चर्यजनक पड़ताल की है। अब वे इस अनुसंधान में लगे हैं कि इन जीवों में ऐसे कौनसे विलक्षण तत्व हैं, जो इतने विपरीत परिवेश में भी जीवन को गतिशील बनाए रखते हैं। लेकिन जीवन के इस रहस्य की पड़ताल कर भी ली जाए तो इसे बड़ी मानव आबादियों तक पहुंचाना कठिन है। लिहाजा मैथ्यू का शैतानी तांडव देखने के बाद जरुरी हो गया है कि प्रकृति के अंधाधुंध दोहन और औद्योगिक विकास पर अंकुश लगाने के उपायों को तरजीह दी जाए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,719 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress