चुनाव राजनीति

कांग्रेस मुक्त भारत के संकेत

-प्रवीण दुबे-
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लोकसभा चुनाव अब अंतिम चरण में हैं। चुनाव की घोषणा से लेकर अभी तक देश की राजनीति में जो कुछ घटा है वास्तव में वह अभूतपूर्व कहा जा सकता है। ऐसी तीन महत्वपूर्ण घटनाएं हैं जिसने इस चुनावों को अब तक हुए लोकसभा चुनावों से अलग और अनूठा बना दिया है। यह तीन घटनाएं हैं एक माह से भी लंबी चुनाव प्रक्रिया, मतदाताओं का रूझान क्षेत्रीय प्रत्याशी की ओर न होकर प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी पर केन्द्रित होना और तीसरा देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का अस्तित्व के लिए संघर्ष करते नजर आना। इन तीनों घटनाओं पर हम यहां बारी-बारी विश्लेषण करेंगे।
लंबी चुनाव प्रक्रिया-पैंतीस दिन लंबी चुनाव प्रक्रिया की घोषणा करके चुनाव आयोग ने चुनाव से पूर्व ही कई शंकाओं को जन्म दिया था। यह सच है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इतना ही नहीं, विविध प्रांतों की दुरुह भौगोलिक स्थितियां तथा अनेक सुरक्षा कारणों के कारण भारत में लोकसभा चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से पूर्ण कराना एक बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। लेकिन इसका मतलब यह कदापि नहीं होना चाहिए कि चुनाव के कारण एक माह से भी अधिक समय के लिए पूरे देश को राजनीति के दावानल में झोंक दिया जाए इतना ही नहीं आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण रोजमर्रा के प्रशासनिक कार्यों को रोक दिया जाए।

आश्चर्य की बात है आज हमारा देश विविध प्रकार के संसाधनों से सुसज्जित है। हमारे पास बड़ी संख्या में सुरक्षा बल मौजूद है। हमारी सरकारी मशीनरी पूर्णत: आधुनिक संसाधनों से परिपूर्ण है। आखिर क्यों देश को इतनी लंबी चुनाव प्रक्रिया के हवाले किया गया, यह न केवल देश के विकास की रफ्तार को विराम लगाने वाला कदम है, बल्कि इस निर्णय के कारण राजनीतिक माहौल में लंबे समय तक आरोप प्रत्यारोप और कटुता का माहौल भी व्याप्त हो गया है। चुनाव प्रक्रिया लंबी चलने के कारण आरोप-प्रत्यारोपों का दौर व्यक्तिगत हमलों तक जा पहुंचा है और थमने का नाम ही नहीं ले रहा। राजनैतिक विश्लेषकों की मानी जाए तो चुनाव प्रक्रिया यदि कम समय में पूर्ण करा ली जाती तो इन सारे घटनाक्रमों को टाला जा सकता था। चुनाव आयोग सहित स्वस्थ्य लोकतंत्र की स्थापना के पक्षधर सभी लोगों को इस बात पर बारीकी से विश्लेषण की आवश्यकता है कि चुनाव प्रक्रिया को कैसे जल्द से जल्द सीमित अविधि में पूर्ण कराया जाए।

प्रत्याशी के जगह प्रधानमंत्री केन्द्रित चुनाव-

भारतीय संविधान में देश के मतदाता को अपना सांसद चुनने का अधिकार है। इसके लिए देश में 542 लोकसभा क्षेत्रों का निर्धारण किया गया है। पहली बार देश में जो माहौल दिखाई दे रहा है उसे देखकर साफतौर पर यह कहा जा सकता है कि भारतीय मतदाता सांसद के लिए नहीं बल्कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए मतदान कर रहा है। वास्तव में यह अभूतपूर्व घटना है और अब तक हुए लोकसभा चुनावों से हटकर कही जा सकती है। यह ठीक उसी प्रकार है जैसा कि अमेरिका के राष्ट्रपति पद के चुनाव में देखने को मिलती है। वहां का मतदाता सीधे राष्ट्रपति का चुनाव करता है। भारत में जो कुछ दिखाई दे रहा है वहां अमेरिका से केवल इतना अंतर है कि यहां का मतदाता मानसिक के आधार पर साफतौर से भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के पक्ष में दिख रहा है। उसे इस बात से कोई मतलब नहीं दिखाई दे रहा कि उसके संसदीय क्षेत्र से कौन प्रत्याशी मैदान में है। यही वजह है कि चुनाव प्रचार के दौरान जहां मोदी की रैलियों में अभूतपूर्व जनसैलाव उमड़ रहा है वहीं उनके समर्थक देश में मोदी की लहर, मोदी की सुनामी और मोदी का तूफान जैसी शब्दावली का जमकर उपयोग कर रहे हैं। भारत के चुनावी इतिहास पर नजर डाली जाए तो कई चेहरे ऐसे आए जिन्होंने मतदाताओं के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी इनमें अटल बिहारी वाजपेयी, पं. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी जैसे नाम लिए जा सकते हैं लेकिन इस बार नरेन्द्र मोदी का जो जादू पूरे देश में दिखाई दे रहा है, वैसा किसी अन्य नेता का दिखाई नहीं दिया।

कांग्रेस के सामने अस्तित्व का संकट

सवा सौ साल से अधिक पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस आज बुरे दौर से गुजर रही है। एक समय पूरे देश पर एक छत्र राज करने वाली इस पार्टी के पांव उखड़ते से नजर आ रहे हैं। देश के सर्वाधिक सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे कई प्रांतों में इस पार्टी की हालत बेहद खराब कही जा सकती है। पांच माह पूर्व हुए चार राज्यों के विधानसभा में इस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। इस हार से उत्साहित भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने -कांग्रेस मुक्त भारत- का नारा बुलंद करके सनसनी फैला दी थी।
जिस समय नरेन्द्र मोदी ने यह कहा था, कांग्रेस सहित देश के तमाम राजनैतिक विश्लेषकों ने इसे मोदी की गर्वोक्ति करार दिया था। आज देश चुनावी दौर से गुजर रहा है और जिस प्रकार का कांग्रेस विरोध दिखाई दे रहा है उसे देख आज वे लोग सकते में है। राहुल गांधी की फ्लॉप सभाएं, फ्लॉप रोड शो, सोनिया गांधी का घटता प्रभाव तथा मनमोहन सिंह जैसे नेताओं का चुनाव प्रचार से गायब रहना, साफ तौर पर यह संकेत दे रहा है कि देश की जनता कांग्रेस से ऊब चुकी है। उसने यह मान लिया है कि बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, असुरक्षा और देश का पूरी दुनिया में गिरता मान-सम्मान के लिए अगर कोई दोषी है तो वह कांग्रेस है।

ऐसा लगता है कि देशभर में 400 से अधिक रैलियां करने वाले नरेन्द्र मोदी जनता के मन में यह विश्वास पैदा करने में कामयाब हो गए हैं कि देश पर सर्वाधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस सदैव देशवासियों के साथ छल-कपट करती रही है। यही कारण है कि आज देशभर में मोदी का बोलबाला है और कांग्रेस मुक्त भारत का नारा साकार होता दिखाई दे रहा है।

अब तक हुए किसी भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता खासकर गांधी-नेहरू परिवार इतना असहाय, असहज और असमंजस में दिखाई नहीं दिया जैसा कि दिखाई दे रहा है। देश ही नहीं पूरी दुनिया इस बात को महसूस कर रही है कि भारत व्यवस्था परिवर्तन के मुहाने पर खड़ा है। बात यहीं समाप्त नहीं होती जो माहौल दिख रहा है वह यह भी संकेत दे रहा है कि इस बार देश की जनता न केवल व्यवस्था परिवर्तन की मानसिकता में है बल्कि वह बहुत कुछ बदलने की सोच रही है। जनता को देख ऐसा लग रहा है कि देश में एक ऐसी वैचारिक क्रांति की लहर है जिसमें न केवल कांग्रेस बल्कि वह सब कुछ समाप्त होने वाला है जो इस देश को नुकसान पहुंचाता रहा है।