भारतीय रेल का काला अध्याय:‘द बर्निंग ट्रेन्स’

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निर्मल रानी

भारतीय रेल जहां विश्वस्तरीय रेल प्रतिस्पर्धा में शामिल होकर तीव्रगति वाली बुलेट ट्रेन चलाने की तैयारी में जुटी हुई है वहीं यहां आए दिन किसी न किसी कारणवश होने वाली रेल दुर्घटनाएं भारतीय रेल विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई हैं। हालांकि भिन्न-भिन्न रेल दुर्घटनाएं भिन्न-भिन्न कारणों के चलते होती हैं। कभी तकनीकी खराबियों के चलते,कभी मौसम के कारण तो कभी रेल कर्मचारियों की लापरवाही अथवा भूलवश। परंतु इनमें सबसे चिंतनीय समझी जाने वाली दुर्घटना चलती ट्रेन में आग लगने के कारण होती है। हमारे देश में ‘द बर्निंग ट्रेन’ शीर्षक कभी-कभी अख़बारों की सुर्ख़ीयां बनते रहते हैं। यह स्थिति न केवल भारतीय रेल यात्रियों में रेल यात्रा के प्रति अविश्वास की भावना पैदा करती है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसी दुर्घटनाओं के चलते देश की छवि धूमिल होती है। यहां तक कि चलती हुई रेलगाडिय़ों में आग की ख़बर सुनकर विदेशी पर्यटन भी प्रभावित होता है। आखर क्या कारण है कि भारतीय रेल विभाग ऐसी रेल दुर्घटनाओं को रोक पाने में असफल रहता है? कहीं यह रेल को आग से बचाने की नीतियों में कमी का परिणाम तो नहीं? या फिर रेल कर्मचारियों की लापरवाही व अनदेखी का नतीजा हैं ऐसी दुर्घटनाएं? आख़िर कितना बड़ा दुर्भाग्य है उन रेल यात्रियों का जो अपने गंतव्य पर सुरक्षित पहुंचने के बजाए रेल के डिब्बे में चिता के रूप में परिवर्तित हो जाएं और वह भी वातानुकूलित जैसे सुरक्षित व आरामदेह समझी जाने वाली बोगी के भीतर?

भारत में रेलगाडिय़ों में आग लगने के इतिहास में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण व बहुचर्चित ट्रेन हादसा 2002 का साबरमती एक्सप्रेस में हुआ वह हादसा है जिसे देश गोधरा कांड ने नाम से जानता है। इस हादसे का भारतीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ रहा है यह भी पूरा देश देख रहा है। इस हादसे को लेकर हालाँकि कई विवाद है। कुछ का मत है कि ज्वलनशील पदार्थ बोगी के भीतर रखा था तो कुछ लोगों का मानना है कि उग्र भीड़ द्वारा बाहर से ज्वलनशील पदार्थ ट्रेन की बोगी पर फेंके गए। और उसके बाद बोगी को आग लगा दी गई। परिणामस्वरूप 58 यात्री जीवित ही अग्रि की भेंट चढ़ गए। इस हादसे के हिंसक,सांप्रदायिक व राजनैतिक पक्षों पर नज़र डालने के बजाए यदि हम इसके तकनीकी पक्षों पर नज़र डालें तो हम यही देखते हैं कि चाहे आग भीतर से लगाई गई हो अथवा बाहर से पैट्रोल छिडक़ कर बोगी को जानबूझ कर अग्रि के हवाले करने की कोशिश की गई हो, बोगी के निर्माण में प्रयुक्त ज्वलनशील सामग्री के प्रयोग के कारण दोनों ही परिस्थितियों में आग को फैलने का मौक़ा मिला। गोया यदि बोगी का निर्मण फ़ायर प्रूफ़ सामग्री से किया जाए तो बोगी में आग को तेज़ी से फैलना रोका जा सकता है। परंतु रेल मंत्रालय ने भारतीय रेलवे स्टेशन के भीतरी हिस्से में, प्लेटफ़ार्म पर तथा चलती ट्रेन में बीड़ी-सिगरेट व माचिस अदि की बिक्री व इस्तेमाल पर रोक लगा कर ट्रेन में आग लगने की घटना को रोकने की कोशिश कर डाली। जो रेल विभाग कुछ वर्ष पूर्व तक रेल के सभी डिब्बों में व सभी केबिन में एशट्रे की सुविधा उपलब्ध कराता था उसने पूरे भारत की रेलगाडिय़ों से एशट्रे निकलवा ली तथा यह आदेश जारी कर दिया कि चलती ट्रेन,स्टेशन व प्लेटफार्म पर सिगरेट पीना व बेचना अपराध है। सवाल यह है कि इस आदेश के बाद आख़िर फिर क्यों पिछले दिनों बैंगलोर-नांदेड़ एक्सप्रेस की वातानुकूलित बोगी में आग लग गई? तमाम तथाकथित सुरक्षा उपायों के बावजूद नांदेड़-बैंगलोर एक्सप्रेस ट्रेन में प्रात: सवा तीन बजे लगने वाली आग में 30 यात्री कैसे अपनी जानें गंवा बैठे?

दरअसल हमारे देश में नियम बनाने वाले अधिकारी परिस्थितियों की ज़मीनी हक़ीक़त व उसे अमल में लाए जाने की धरातलीय वास्तविकता को समझे-बूझे बिना नियम व क़ायदे बना तो देते हैं परंतु या तो वे नियम निष्प्रभावी होते हैं या उन पर ठीक ढंग से अमल ही नहीं किया जाता। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि स्वयं रेल विभाग के कर्मचारी ही ऐसे सुरक्षात्मक नियमों की धज्जियां उड़ाते देखे जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर जिस बस में सामने ही नो स्मोकिंग का निर्देश लिखा हो उसी बस का ड्राईवर ही सिग्रेट पीते नज़र आ जाएगा। इसी प्रकार रेलवे में भी तमाम कर्मचारी व अधिकारी अपनी सुविधा,आदत व ज़रूरत के अनुसार स्वयं तो चाहे सिग्रेट-बीड़ी पिएं अथवा ज्वलनशील पदार्थ लेकर चलें उन्हें तो रेलवे स्टाफ़ के नाम पर कोई रोकने-टोकने वाला नहीं परंतु साधारण यात्री से रेलवे के निर्देशों का पालन करने की उम्मीद रखी जाती है। जहां तक वातानुकूलित कोच में आग लगने का प्रश्र है तो मैंने अपनी यात्राओं के दौरान अक्सर यह देखा है कि रेलवे कर्मचारियों के अतिरिक्त कोई भी नीम-हकीम व तथाकथित तकनीशियन अथवा वातानुकूलित कोच में बिस्तर उपलब्ध कराने वाले ठेकेदार का प्रतिनिधि अपनी आवश्यकता के अनुसार जब चाहे तब एसी कोच के भीतर लगे विद्युत कंट्रोल पैनल को खोलता,छेड़ता या उसके वॉल्यूम को घटाता-बढ़ाता दिखाई देता है। आखर किसी अनाधिकृत व्यक्ति द्वारा विद्युत पैनल बॉक्स को खोलने अथवा छेडऩे की आवश्यकता ही क्या है? यदि आप भारतीय रेल के अधिकांश वातानुकूलित कोच के विद्युत कंट्रोल बॉक्स को देखें तो वे बिना किसी दरवाज़े या ताले के प्राय: खुले हुए व लावारिस पड़े दिखाई देंगे। कोई भी व्यक्ति आसानी से उनमें हाथ डालकर छेड़छाड़ कर सकता है। सवाल यह है कि इस अति संवेदनशील स्थान को सुरक्षित तथा आम यात्रियों की पहुंच से बाहर रखने की जि़म्मेदारी किसकी है?

चीन में भी भारत की ही तरह कई स्तर की रेलगाडिय़ां चलती हैं। इनमें केवल तीव्रगति की बुलेट ट्रेन ही अकेली ऐसी ट्रेन व्यवस्था है जिसमें सिग्रेट पीने की सख्त पाबंदी है। ऐसा केवल इसीलिए है कि बोगी का निर्माण प्लास्टिक फ़ाईबर जैसे हल्के व ज्वलनशील सामग्री से किया गया है। इन रेलगाडिय़ों में लगे कैमरे तथा धुएं की पहचान करने वाली मशीन बुलेट ट्रेन में यात्रियों पर पूरी नज़र रखती हैं। परिणामस्वरूप इन तीव्रगामी रेलगाडिय़ों में कोई भी व्यक्ति सिगरेट पीता व जलाता नहीं दिखाई देता। परंतु अन्य सुपरफ़ास्ट व एक्सप्रेस अथवा पैसंजर रेलगाडिय़ों में सिगरेट पीने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। यही नहीं बल्कि वातानुकूलित व अन्य एक्सप्रेस गाडिय़ों में प्रत्येक दो डिब्बों के बीच एक विशेष क्षेत्र बनाया गया है जिसे ‘स्मोकिंग ज़ोन’ का नाम दिया गया है। इस स्मोकिंग ज़ोन में चीन के रेल विभाग द्वारा न केवल एशट्रे उपलब्ध कराई गई है बल्कि सिगरेट जलाने हेतु लाईटर भी बोगी की दीवारों पर लगाकर रखे गए हैं। इस विशेष स्मोकिंग ज़ोन को पूरी तरह एल्यूमीनियम की मोटी शीट द्वारा अग्रि रोधक तरीके से बनाया गया है। चलती ट्रेन में जब किसी यात्री की सिगरेट पीने की इच्छा होती है तो वह यात्री अपनी जगह से उठकर स्मोकिंग ज़ोन में जाकर रेल विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए लाईटर व एशट्रे का प्रयोग करते हुए सिगरेट पीने का अपनी शौक़ पूरा कर सकता है। इस विशेष ज़ोन के अतिरिक्त यात्रियों के प्रयोग में आने वाले अन्य क्षेत्र बेहद साफ़-सुथरे,क़ालीन व मैट से सुसज्जित रहते हैं। कोई भी यात्री अपनी जगह पर बैठकर सिगरेट पीता नज़र नहीं आता।

इसी प्रकार एसी के कंट्रोल पैनल अथवा स्विच बोर्ड आदि सभी कुछ ताले में बंद कर सुरक्षित रखे जाते हैं। और रेल विभाग के कर्मचारी इनकी चाबियों को अपने पास रखते हैं। चीन में प्रत्येक ट्रेन के साथ एक प्रमुख व्यक्ति जिसे चीफ़ ऑफ़ द ट्रेन कहते हैं वह पूरी रेल यात्रा के दौरान न केवल रेल यात्रियों बल्कि ट्रेन पर ड्यूटी पर चलने वाले रेल कर्मचारियों की चौकसी अथवा लापरवाही पर भी पूरी नज़र रखता है। इसी प्रकार चीन के बड़े से बड़े रेलवे स्टेशन के प्लेटफ़ार्म पर भारी मात्रा में एशट्रे उपलब्ध कराए गए हैं तथा स्टेशन के बाहरी भाग में सिगरेट व लाईटर की तमाम दुकानें लगी देखी जा सकती हैं। पंरतु हमारे देश के क़ाबिल रेल अधिकारियों ने आंख मूंदकर केवल ट्रेन में सिगरेट पीने पर प्रतिबंध लगाकर रेलवे को अग्रि से बचाने संबंधी अपनी जि़म्मेदारियों की इतिश्री कर ली है। भारतीय रेल विभाग द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार ट्रेन में आग पकडऩे के मुख्य स्त्रोत स्टोव, अंगीठी,गैस सिलेंडर, कैरोसिन तेल,पैट्रोल,आतिशबाज़ी आदि का सवारी डिब्बों में लाना ले जाना है। इसके अतिरिक्त कागज़, लकड़ी व पैट्रोल जैसे ज्वलनशील पदार्थ का सवारी डिब्बों में प्रयोग करना व जलती हुई माचिस की तीलियां व सिगरेट के जलते हुए टुकड़े को लापरवाही से फेंकना अथवा विद्युत शॉर्ट सर्किट के कारण या फिर पैट्रोल अथवा गैस के पास खुली अग्रि के प्रयोग के चलते अथवा इनके पास धुएं के भर जाने के कारण भारतीय रेल में अग्रि कांड होने का कारण बताया जाता है।

जबकि हक़ीक़त इस से कुछ और आगे की है। भारतीय रेल को यदि स्वयं को विश्वस्तरीय रेल कहलाना है तो आधे-अधूरे व खोखले नियम बनाने व आधारहीन दिशा निर्देश जारी करने के बजाए आग लगने के ज़मीनी कारणों को समझने की ज़रूरत है। केवल इश्तिहार लगा देने मात्र से रेल दुर्घटनाएं नहीं रुकने वाली। भारतीय रेल को इस दिशा में बोगी के निर्माण में फ़ायर प्रूफ़ सामग्री प्रयुक्त करने सहित तमाम दूसरे रचनात्मक, कठोर व धरातलीय क़दम उठाने की ज़रूरत है।

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