आसमानी रक्षा में बड़ी भारत की वायु-शक्ति

0
125


प्रमोद भार्गव

                प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिनी फ्रांस यात्रा सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। भारतीय नौसेना को उन्नत लड़ाकू विमानों 26 राफेल-एम (मैरी टाइम) और नौ सेना को तीन स्कार्पीन पनडुब्बी से सक्षम बनाने के नजरिए से खरीद के सौदे दोनों देशों की समीतियों ने तो तय कर लिए हैं,लेकिन खरीद की कीमत,तकनीक और व्यापारिक शर्तें अभी अंतिम रूप नहीं ले पाई हैं। इसलिए इस सौदे के पूर्ण होने में अभी वक्त लगेगा।हालांकि भारत की रक्षा क्रय परिषद विमानों और पनडुब्बियों की खरीद को मंजूरी दे चुकी है।दूसरी तरफ फ्रांसीसी एयर स्पेस कंपनी डसाॅल्ट एविएशन ने रक्षा मंत्रालय की विज्ञप्ती में कहा है कि फ्रांसीसी सरकार के साथ अंतर सरकारी समझौते के तहत भारतीय नौसेना के लिए संबंधित सहायक उपकरण, हथियार, सिम्युलेटर, स्पेयर पार्ट्स, चालक दल प्रशिक्षण के साथ राफेल समुद्री क्षेत्र में दुश्मन की टोह लेने वाले विमानों की खरीद को मंजूरी  दी है। भारत सरकार यह सौदा बड़ी सर्तकता और समझदारी से लेने के मूड में है,जिससे आमचुनाव में इसे विपक्ष को मुद्दा बनाकर उछालने की कोई गुंजाइश ही न रह जाए।क्योंकि फ्रांस से 2016 में जिन 36 राफेल विमानों का सौदा हुआ था, उस पर कांग्रेस व अन्य विपक्षों दलों ने विवाद खड़ा करने की बहुत कोशिश की थी।अतएव भारत ने राफेल-एम विमान का पहले सफल परीक्षण किया। जब यह विमान भारतीय नौसेना के परिचालन संबंधी आवश्यकताओं पर पूरी तरह से खरा उतरा तब इसकी खरीद को मंजूरी दी गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत और फ्रांस इस साल रणनीतिक साझेदारी की रजत जयंती मना रहे हैं। इस साझेदारी के चलते दोनों देशों के बीच ढाई दशक में रक्षा, विज्ञान, प्रौधोगिकी के साथ संस्कृति के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ा है। फ्रांस 2017 से 2021 के बीच भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा रक्षा संबंधी उपकरण आपूर्तिकर्ता देश रहा है। हालांकि भारत ने सबसे ज्यादा हथियार अमेरिका से खरीदे हैं।सब कुल मिलाकर भारत आसमानी रक्षा क्षेत्र में अत्यंत शक्तिशाली देश बनता जा रहा है।

                यह समुद्री लड़ाकू विमान नौसेना की जरूरतों के हिसाब से ही विकसित किया गया है। इसमें वे सभी आधुनिकतम समुद्री प्रणालियां संलग्न हैं, जिनसे समुद्र में दुश्मन और उसके समुद्री जल में भीतर चलने वाले उपकरणों का सुराग लगाया जा सकता है। इससे युद्धपोतों के अलावा पनडुब्बियों का पता लगाने के लिए भी उच्च तकनीकि क्षमता के रडार भी लगे हुए हैं। इन विमानों को नौसेना के विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर तैनात किया जाएगा। यह विमान पुराने विमान मिग-29 का ठोस विकल्प साबित होगा। ऐसे विमानों की तलाश में भारत लंबे समय से था। क्योंकि हिंद महासागर क्षेत्र में चीन नाजायज वर्चस्व बढ़ाने में लगा है। फ्रांस भी चीन की इस बढ़ती आक्रामकता से चिंतित था। क्योंकि चीन हिंद महासागर में अंतरराष्ट्रीय नियमों का लगातार उल्लंघन कर रहा है। जबकि फ्रांस की मंशा इस सागर को खुले और समावेशी क्षेत्र के रूप में सुरक्षित बनाए रखना है। एक तरह से इन विमानों का सौदा चीन की मनमानी के विरुद्ध भारत और फ्रांस की साझा रणनीति का हिस्सा भी बनेगा। हालांकि इन विमानों की पहली खेप आने में तीन साल का इंतजार करना होगा, क्योंकि एक साल तक तो तकनीकी और लागत संबंधी औपचारिकताएं ही पूरी होंगी। बावजूद विशेषज्ञों का कहना है कि राफेल की यह खरीद इसलिए उचित है, क्योंकि भारतीय वायुसेना राफेल के रख-रखाव से संबंधित अधोसंरचना तैयार कर चुकी है। यही नौसेना के काम आ जाएगी। इससे धन की बचत होगी।

                फ्रांस से कुल 26 राफेल-एम विमान खरीदे जाएंगे। इनकी प्रति विमान कीमत 5.5 अरब डाॅलर अर्थात 45,000 करोड़ रुपए है। अभी कीमत को अंतिम रूप दिए जाने के लिए कीमत घटाने के और प्रयास किए जा रहे हैं।ये विमान उसी डाॅसल्ट कंपनी से खरीदे गए हैं, जिससे 2016 में 36 राफेल विमान खरीदे गए थे। यह खरीद विवादित रहते हुए लोकसभा में भी चर्चित रही थी। जबकि अब इन विमानों की आपूर्ति के बाद भारत की रक्षा शक्ति बढ़ी है। राफेल-एम के सौदे में यह भी तय है कि भारत पेरिस में अपने दूतावास में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) का कार्यालय स्थापित करेगा। भारत और फ्रांस के बीच रक्षा क्षेत्र में बढ़ते सहयोग के दौरान यह काफी अहम् उपलब्धि है। यही नहीं भारत और फ्रांस अन्य देशों के फायदे के लिए अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों का सह-विकास और सह-उत्पादन करेगा। इसके लिए दोनों देश रक्षा औद्योगिक सहयोग पर एक रोडमैप अपनाने की दिश में भी काम कर रहे हैं।

                 भारत सरकार पिछले चार साल से आईएनएस विक्रांत के लिए नए लड़ाकू विमान खरीदने की योजना पर विचार कर रही थी। दो साल पहले अमेरिकी बोइंग एफ-ए-18 सुपर हार्नेट और फ्रांसीसी राफेल-एम में से किसी एक को चुनने की प्रक्रिया पर काम शुरू हो गया था। भारतीय नौसेना ने 2022 में गोवा में दोनों विमानों के परीक्षण किए। इनकी खूबियों और खामियों को लेकर गंभीर अध्यन कर एक रिपोर्ट तैयार की। इस रिपोर्ट के बाद भारतीय रक्षा विषेशज्ञों ने राफेल-एम को आईएनएस विक्रांत की जरूरतों के अनुकूल पाया, जबकि बोइंग एफ-ए 18 को लेकर विषेशज्ञों के बीच एक राय नहीं बन पाई। इसलिए राफेल एम खरीदने का रास्ता खुल गया। यह विमान 15.27 मीटर लंबा और 10.80 मीटर चैड़ा है। इसकी ऊंचाई 5.34 मीटर है। इसका कुल वजन 10,600 किलोग्राम है। यह 1912 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरेगा। 3700 किमी के व्यास में यह 50,000 फीट की ऊंचाई तक उड़ सकता है। चूंकि यह विमान पोत से उड़ान भरते हैं, इसलिए इनमें ऊंची और लंबी छलांग लगाने की क्षमता के लिए ताकतवर इंजन होना चाहिए। क्योंकि पोत पर विमान को छोटे मार्ग से उछाल मारकर उड़ान भरनी होती है। ये सब खूबियां इस विमान में हैं। 

                    याद रहे देश की रक्षा ताकत बढ़ाने की दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में फ्रांस यात्रा के दौरान फ्रांसीसी कंपनी डसाॅल्ट एविएशन से ही 36 राफेल जंगी जहाजों का सौदा किया था। यह सौदा अर्से से अधर में लटका था। इस सौदे को अंजाम तक पहुंचाने की पहल ने वायु सैनिकों को संजीवनी देकर उनका आत्मबल मजबूत करने का काम किया है। फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीधे हुई बातचीत के बाद यह सौदा अंतिम रुप ले पाया था। इस लिहाज से इस साॅैदे के दो फायदे देखने में आए थे। एक ये युद्धक विमान जल्दी से जल्दी हमारी वायुसेना के जहाजी बेड़े में शामिल हो गए। दूसरे, इस खरीद में कहीं भी दलाली की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी, क्योंकि सौदे को दोनों राष्ट्र प्रमुखों ने सीधे संवाद के जरिए अंतिम रूप दिया था। जबकि पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ.मनमोहन सिंह और रक्षा मंत्री एके एंटनी की साख ईमानदार जरूर थी, लेकिन ऐसी ईमानदारी का क्या मतलब, जो जरूरी रक्षा हथियारों को खरीदने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाए ? जबकि ईमानदारी तो व्यक्ति को साहसी बनाने का काम करती है। हालांकि रक्षा उपकरणों की खरीदी से अनेक किंतु-परंतु जुड़े होते हैं, सो इस खरीद से भी जुड़ गए थे, लेकिन कोई कमी सामने नहीं आई।

                भारतीय सेना के लिए लड़ाकू विमानों की खरीद इसलिए जरूरी थी, क्योंकि हमारे लड़ाकू बेड़े में शामिल ज्यादातर विमान पुराने होने के कारण जर्जर हालत में हैं। अनेक विमानों की उड़ान अवधि समाप्त हो जाने के बावजूद उनका इस्तेमाल किया जाता रहा है। पिछले दो दशक से कोई नया विमान नहीं खरीदा गया है। इन कारणों के चलते आए दिन जेटों के दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनाएं सामने आ रही हैं। इन दुर्घटनाओं में वायु सैनिकों के बिना लड़े ही शहीद होने का सिलसिला बना हुआ है। अब राफेल विमानों की थोक खरीद के बाद दुर्घटनाओं में तो विराम लगेगा ही, हमारे सैनिक बिना लड़े शहीद भी नहीं होंगे।
          
                 सशक्त और शक्तिशाली भारत के लिए देश की तीनों सेनाओं का आधुनिकतम शस्त्रों और युद्धक हवाई-जहाजों व हेलिकॉप्टरों से सुसज्जित होना आवश्यक है। इस दृष्टि से भारत ने लद्दाख में चीन से तनातनी के चलते रूस से 33 लड़ाकू विमानों की आपात खरीद का फैसला लिया था। रूस से 12 सुखोई-30 और 21 मिग-29 विमान खरीदने के सौदे हए। इन सुपर सुखोई विमानों से 600 किमी तक मार करने वाली मिसाइलें दागी जा सकती हैं। भारत को राफेल विमान भी मिलने के बाद वायुसेना में जंगी बेड़ों की क्षमता करीब 20 प्रतिशत से अधिक हो गई है। इनमें आधुनिक तकनीक से लैस राफेल, अपाचे, सुखोई, मिग, ध्रुव और शिनूक जंगी बेड़े शामिल हुए हैं। वायुसेना ने अपनी युद्धक इकाइयों को आक्रमक बनाने के नजरिए से इसकी सरंचना में भी बदलाव किए हैं। वायुसेना के युद्ध अभियानों के लिए करीब 2000 योद्धाओं और तकनीशियनों की भर्ती की गई है। इन जांबाजो (फाइटर स्क्वाड्रन) की भर्ती से सैन्यबलों में पूर्व से तैनात अधिकारियों पर काम का दबाव भी कम होगा। इस दिशा में सेना की एकीकृत मुहिम चलाने की दृष्टि से ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ (सीडीएस) की भूमिका भी अहम् साबित हो रही है।   

            नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही रक्षा सौदों में गंभीर रुचि ली जा रही है। अमेरिका से 165 अरब रुपए के लड़ाकू हेलिकॉप्टर एवं अन्य रक्षा उपकरण खरीदने का बड़ा सौदा हुआ था। अमेरिका विमानन कंपनी बोइंग से 22 अपाचे हमलावर हेलिकॉप्टर और 15 शिनूंक भारी उद्वहन हेलिकॉप्टर खरीदा जाना देश की सुरक्षा के लिए जरूरी था। फ्रांस से 36 राफेल खरीदे गए। एक राफेल विमान की अनुमानित कीमत करीब 58,000 करोड़ रुपए है। पिछले करीब 20 साल से देश ने लड़ाकू विमानों का कोई सौदा नहीं किया था। इस वजह से वायुसेना में लड़ाकू विमानों की लगातार कमी होती जा रही थी। नतीजतन देश की हवाई सुरक्षा खतरे में पड़ी थी। हालात इतने गंभीर होते जा रहे थे कि उपलब्ध विमानों के बेड़ों की संख्या घटकर 32 के करीब पहुंच गई थी।

                लड़ाकू विमान व हथियारों के ये सौदे इसलिए अहम् है, क्योंकि हमारे पड़ोसी दुश्मन देश चीन और पाकिस्तान में लड़ाकू विमान लगातार बढ़ रहे हैं। इन दोनों देशों की वायु-शक्ति की तुलना में हमारे पास कम से कम 756 लड़ाकू विमान होने चाहिए। सेना में विमान, हथियार और रक्षा उपकरणों की कमी की चिंता संसद की रक्षा संबंधी स्थाई संसदीय समिति और नियंत्रक एवं महानिरीक्षक की रिपोर्टें भी जताती रही हैं। संसदीय समिति ने तो यहां तक कहा था कि लड़ाकू जहाजी बेड़ों की संख्या में इतनी कमी पहले कभी नहीं देखी गई। यह स्थिति सैनिकों का मनोबल गिराने वाली है। गड़बड़ घोटालो में उलझी रही डॉ मनमोहन सिंह सरकार अपने 10 साल के कार्यकाल में विमान खरीदने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाई थी। दरअसल, सौदों में भ्रष्टाचार के चलते इटली की फिनमैकेनिका और उसकी सहयोगी कंपनी अगस्तावेस्तलैंड हेलिकॉप्टरों की खरीदी में पूर्व वायुसेना अध्यक्ष शशींद्रपाल त्यागी पर सीबीआई द्वारा एफआईआर दर्ज होने के बाद संप्रग सरकार ने सैन्य सामग्री खरीदने के सिलसिले में घुटने टेक दिए थे।

                 अपाचे का सौदा हाइब्रिड है। इस हेलिकॉप्टर में हथियार,रडार और इलेक्ट्रोनिक युद्ध उपकरण लगे हुए हैं। पिछले एक दशक के दौरान अमेरिकी कंपनियों ने तकरीबन 10 अरब डॉलर मूल्य के रक्षा सौदे भारत से किए हैं। इनमें पी-81 नौवहन टोही विमान,सी-130,जे सुपर,हरक्यूलियस और सी-17 ग्लोबमास्टर-3 जैसे विमानों की खरीद शामिल हैं। अपाचे एएच-64 लॉन्गबो हेलिकॉप्टर आधुनिक होने के साथ बहुलक्षीय युद्धक विमान है। यह हर मौसम और रात में भी युद्ध अभियानों में सक्रिय रहने की क्षमता रखता है। इसकी प्रमुख खूबी है कि यह एक मिनट से कम समय में 128 लक्ष्यों को चिन्हित कर सकता है और 16 लक्ष्यों पर निशाना साधता हुआ बच निकल सकने की विलक्षणता रखता है। दुश्मन के रडार पर इसका अक्श दिखाई नहीं देता। इसके संवेदी यंत्र आधुनिक हैं और इसकी मिसाइलें, जो दृश्य दिखाई दे रहा है, उससे भी आगे तक प्रहार करने की क्षमता रखती हैं। इसकी अधिकतम गति 315 किमी प्रति घंटा है। जबकि समुद्र में यही गति 240 किमी प्रति घंटा रह जाती है। यह 55 सैनिक और 12,700 किलोग्राम वजन ढो सकता है। कारगिल जैसे ऊंचाई वाली चोटियों पर भी यह हेलिकॉप्टर पहुंच सकता है। गालवन की चोटियों पर भी यह आसानी से पहुंच जाएगा। अपाचे और शिनूंक हेलिकॉप्टरों का उपयोग अफगानिस्तान और ईराक जैसे सैन्य अभियानों में बेमिशाल रहा है।

            बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद वायुसेना ने तमिलनाडू के तेंजावुर में सुखोई-30 एमकेआई के बेड़े को तैनात किया है। इस बेड़े में सुखोई विमानों को 2.5 टन की हवा से हवा में मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइलों से लैस किया हुआ है। ये मिसाइलें 300 किलोमीटर की दूरी तक अचूक निशाना साधने में सक्षम हैं। इस एक बेड़े में 18 लड़ाकू विमान होते हैं। पिछले कुछ सालों में वायुसेना ने युद्धक क्षमताओं को बढ़ाते हुए हवा से हवा में और हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों व अन्य घातक हथियारों की क्षमता बढ़ाई है। इनमें बेहतर मारक क्षमता वाले स्पाइस 2000 बम और स्ट्रम अटाका नाम की एंटी-गाइडेड मिसाइलें शामिल हैं। 

             बहरहाल लड़ाकू विमानों एवं हथियारों की आश्चर्यजनक कमी से जूझ रही वायुसेना को ये विमान एवं हथियार  आक्सीजन साबित हो रहे हैं। तमाम शंका-कुशंकाओं के बावजूद ये विमान खरीदना इसलिए जरूरी थे, क्योंकि हमारे लड़ाकू बेड़े में शामिल ज्यादातर विमान पुराने होने के कारण जर्जर हालत में आ गए थे। अनेक विमानों की उड़ान अवधि समाप्त होने को है और पिछले 20 साल से कोई नया विमान नहीं खरीदा गया है। सोवियत रूस से 1960 और 70 के दशक में खरीदे गए मिग-21 और मिग-27 विमानों के तीन बेड़ों को भी सेवामुक्त कर दिया गया है। उम्र पूरी हो जाने के कारण ज्यादातर विमान उड़ान भरने की अवधि के करीब होने के कारण आए दिन दुर्घटनाग्रस्त हो रहे थे। इन दुर्घटनाओं के चलते बहादुर वायु-सैनिकों को बिना लड़े ही शहीद होना पड़ रहा था।

                1978 में जब जागुआर विमानों का बेड़ा ब्रिटेन से खरीदा गया था, तब ब्रिटेन ने हमारी लाचारी का फायदा उठाते हुए हमें ऐसे जंगी जागुआर बेचे थे, जिनका प्रयोग ब्रिटिश वायुसेना पहले से ही कर रही थी। राफेल भी फ्रांस द्वारा प्रयोग में लाए गए विमान हैं। दरअसल, हरेक सरकार परावलंबन के चलते ऐसी ही लाचारियों के बीच रक्षा सौदे करने को मजबूर होती है। लिहाजा जब तक हम विमान निर्माण के क्षेत्र में स्वावलंबी नहीं होंगे, लाचारी के समझौतों की मजबूरी झेलते रहेंगे। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि हम चीन की तुलना में कम सैन्य क्षमता वाले देश हैं। हालांकि हमारी सैनिक संख्या चीन से ज्यादा हैं। ग्लोबल फायर पॉवर डॉट कॉम के मुताबिक भारत के पास लगभग 34,62,500 सैनिक हैं, जबकि चीन के पास 26,93,300 हैं।
                 हकीकत तो यह है कि मोदी सरकार को अब लाचारियों से भरी विमान खरीदों के स्थायी समाधान तलाशने की जरूरत है, जो पारदर्शी नीतियों का पालन करने वाली हो। साथ ही एचएएल एवं डीआरडीओ जैसी संस्थाओं का आधुनीकिकरण और स्वेदेशीकरण किया जाना नितांत जरूरी है। फिलहाल हमारे यहां हल्के युद्धक विमान और आधुनिकतम हल्के किस्म के हेलीकॉप्टर बनाए जा रहे हैं। टाटा कंपनी सी-130 मॉडल के विमानों के पुर्जे भारत में बनाकर दूसरे देशों में निर्यात कर रही है।  जब ऐसा संभव है तो हम अपने ही देश के लिए शक्तिशाली युद्धक विमानों का निर्माण क्यों नहीं कर सकते ?  एचएएल भारतीय कंपनियों को उपकरण व पुर्जे बनाने का लाइंसेंस देकर इस दिशा में उल्लेखनीय पहल कर सकती है। हालांकि हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा स्वदेशी तकनीक से ध्रुव नाम का हेलिकॉप्टर बनाया जा रहा है। ध्रुव हल्का बहुउद्देश्यीय हेलिकॉप्टर है। इसे थल, जल और नभ तीनों सेनाएं उपयोग में ले रही हैं। जरूरत पड़ने पर यह लड़ाकू विमान के साथ मालवाहक और एंबुलैंस के रूप में भी काम आता है। इसकी विशेषता है कि यह हवा में डॉल्फिन की तरह गोता लगा सकता है, यू आकार में मुड़ सकता है और खड़े रूप में भी तीर की भांति उड़ान भर सकता है। बावजूद यह मिसाइल दागने और बड़ी मात्रा में हथियार ले जाने में समर्थ नहीं है। हालांकि रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की मात्रा शत-प्रतिशत कर देने से ये संभावनाएं बढ़ने की उम्मीद है। यदि भविष्य में ऐसा होता है तो हमारी उत्पादन क्षमता बढ़ेगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ यानी स्वदेशीकरण का जो स्वप्न है, उसके साकार होने की उम्मीद भी बढ़ जाएगी। यह सब मोदी है तो मुमकिन है।


प्रमोद भार्गव

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here