निजता में दखलअंदाजी

1
168

केंद्रीय सूचना आयुक्तों के सातवें सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह ने सूचना का अधिकार (आरटीआर्इ) कानून के बढ़ते दुरुपयोग पर चिंता जतार्इ है। डा सिंह का मानना है कि इस कानून का गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। लोकहित के नाम पर आजकल लोग निरर्थक, बेमानी और निजी सूचनाओं की मांग कर रहे हैं, जिससे मानव संसाधन व सार्वजनिक धन का असमानुपातिक व्यय हो रहा है। साथ ही, इसके द्वारा निजता में दखलअंदाजी भी की जा रही है।

उनके अनुसार अगर सूचना का अधिकार कानून से किसी की निजता पर हमला होता है तो इस कानून के दायरे को सीमित किया जाना चाहिए। उन्होंने सूचना का अधिकार और निजता का अधिकार के बीच संतुलन बनाये रखने की जरुरत पर बल दिया। इसके बरक्स ध्यातव्य है कि निजता के मुद्दे पर अलग से अधिनियम बनाने का प्रस्ताव न्यायमूर्ति ए.पी.शाह की अध्यक्षता वाले विशेषज्ञ समूह के समक्ष विचाराधीन है।

मोटे तौर प्रधानमंत्री डा सिंह के इस बयान को सूचना का अधिकार कानून की शकित और उसके दायरे को कम या सीमित करने के प्रयास के रुप में देखा जा रहा है। इसमें दो राय नहीं है कि हाल के वर्षों में सूचना का अधिकार कानून के दुरुपयोग के मामले में इजाफा हुआ है, पर इसके साथ यह भी सत्य है कि इस कानून की वजह से बहुत सारे घोटालों का पर्दाफाश भी हुआ है।

सूचना का अधिकार अधिनियम ने पूरे देश में क्रांति लाने का काम किया है। इस कानून को मूत्र्त रुप देने के बाद से सरकारी काम-काजों में व्याप्त बहुत सारी विसंगतियों का पता चला है। सरकारी उपक्रमों में पारदर्शिता लाने के प्रति लोगों में जागरुकता आर्इ है, परन्तु इस संबंध में एक कटु सच यह भी है कि इस कानून को अमलीजामा पहनाने के दौरान अक्सर निजता में अनावश्यक हस्तक्षेप किया जाता है, जोकि लोकतंत्र के लिए घातक है। इस दृष्टिकोण से डा सिंह की चिंता जायज है।

सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के तहत आयकर का वैयकितक रिकार्ड को भी अब व्यक्तिगत सूचना की परिभाषा के दायरे में लाया गया है। सूचना आयुक्तों के अनुसार यह किसी की निजता पर हमला नहीं है। इससे कर वंचना रोकने में मदद मिलती है।

इस आलोक में ‘आधार यानि यूनिक आइडेंटिटी नंबर के प्रावधान को भी निजता पर हमले के रुप में देखा जा रहा है। इस योजना के तहत भारत के हर नागरिक की सूची तैयार की जा रही है, जिसमें उनके व्यक्तिगत सूचनाओं को समाहित किया जाएगा। इस योजना की खास बात यह है कि व्यक्तिगत विवरण को जन्म से लेकर मृत्यु तक अधतन किया जाता रहेगा। किसी की मृत्यु की स्थिति में उससे जुड़ी जानकारी को नष्ट नहीं किया जाएगा। सिर्फ उसे निषिक्रय किया जाएगा। यहाँ सवाल यह उठता है कि यदि सबकुछ सार्वजनिक कर दिया जाएगा तो व्यक्ति विशेष की निजता का क्या होगा? क्या सरकार द्वारा संकलित सूचनाओं का निजी कंपनियां गलत फायदा नहीं उठायेंगी? विज्ञापन और ठगी को अंजाम देने के लिए मोबार्इल और इंटरनेट के जरिए आम आदमी को वैसे भी प्रतिदिन ढेर सारे अनचाहे फोन एवं मेल के कारण परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। स्पष्टत: इसतरह की घटनाओं के मूल में हमारी निजी सूचनाओं का बाजार में हस्तगत होना है।

जाहिर है धीरे-धीरे हम अपनी निजता को खोते जा रहे हैं। इस काम को बड़ी चालाकी से कभी राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर, कभी यूनिक आइडेंटिटी नंबर के बहाने, तो कभी सूचना का अधिकार अधिनियम की आड़ में अंजाम दिया जा रहा है। बाजार की ताकत हमारे घर सहित हमारे निजी पलों में भी सेंध लगा रहा है। आपकी मोबार्इल संख्या, आपका जन्मदिन, आपके बच्चों का नाम और बैंक में चल रहे खातों की संख्या का विवरण जाने कब आपके हाथ से फिसल करके बाजार में चला जाता है, आपको इसका अहसास तक नहीं होता है।

राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, सूचना का अधिकार कानून और आधार के जरिए सरकार आम आदमी के निजी पलों में घुसपैठ कर चुकी है। कारपोरेट सेक्टर भी विज्ञापन, मोबार्इल और इंटरनेट की सहायता से आम नागरिकों की निजी सूचनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा है।

 

इस परिप्रेक्ष्य में चाहे डी.एन.ए. बैंक बनाया जाए या यूनिक आइडेंटिटी नंबर के माध्यम से नागरिकों पर नजर रखी जाए, इसतरह की कवायद तभी प्रभावी होगी, जब उसके अनुपालन में कोर्इ चूक न हो। केवल पश्चिमी देशों के तौर-तरीकों की नकल से ऐसा संभव नहीं है।

सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सूचना जरुर उपलब्ध करवायी जाए, किंतु इसके साथ इस बात का ध्यान रखा जाए कि इससे किसी की निजता प्रभावित न हो। अभी तक निजता के अधिकार को संसद ने संहिताबद्ध नहीं किया है। लिहाजा संसद को चाहिए कि निजता के अधिकार को संहिताबद्ध करे। निजता का मामला सांस्कृतिक रुप से परिभाषित मुद्दा है। इसका अर्थ कदापि यह नहीं है कि इसके दुरुपयोग को प्रोत्साहन दिया जाए।

सरकार और कारपोरेट सेक्टर के इन कदमों से किनका भला होगा, यह मुद्दा निषिचत रुप से सवालों के घेरे में है? कुछ तो आम आदमी का अपना रहे। हर मामले में सरकार का हस्तक्षेप उचित नहीं है। हमारे देश में शासन की संकल्पना लोकतांत्रिक है न कि तानाशाही

Previous articleआओ बनाए बच्चों को क्रेटिव
Next articleताकतवर मैडीशन : मेडीटेशन
श्री सतीश सिंह वर्तमान में स्टेट बैंक समूह में एक अधिकारी के रुप में दिल्ली में कार्यरत हैं और विगत दो वर्षों से स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। 1995 से जून 2000 तक मुख्यधारा की पत्रकारिता में भी इनकी सक्रिय भागीदारी रही है। श्री सिंह दैनिक हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण इत्यादि अख़बारों के लिए काम कर चुके हैं।

1 COMMENT

  1. निजता के प्रति चिंता एक सीमा तक उचित है लेकिन जिनके हाथों में देश का वर्तमान व भविष्य हो उनकी निजता देश व समाज हित से बड़ी नहीं हो सकती. वाड्रा द्वारा भूमि अर्जित करना निजी विषय है लेकिन इसमें हुआ घोटाला क्या जनहित से नहीं जुड़ा है? इसी प्रकार पिछले दो वर्षों में जितने घोटाले और महाघोटाले हुए हैं वो सभी किसी न किसी की निजता को प्रभावित करते हैं. लेकिन व्यापक जनहित के सामने निजता का तर्क छोटा रह जाता है. यदि प्रधान मंत्री द्वारा व्यक्त चिंताएं और शाशन में इस सम्बन्ध में चल रही सक्रियता से सूचना के अधिकार कानून का क्षेत्र सीमित किया गया तो इस कानून का कोई अर्थ ही नहीं रह जायेगा.वैसे भी जहाँ नितांत व्यक्तिगत जानकारी का प्रश्न होता है तो वहां जन सूचना अधिकारी द्वारा सम्बंधित व्यक्ति से उससे सम्बंधित जानकारी दिए जाने से पूर्व पात्र लिखकर अनुमति लेने की व्यवस्था इस अधिनियम में है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,677 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress