पुलिस के स्वास्थ्य की चिंता भी जरुरी

विवेक कुमार पाठक
मध्यप्रदेश के सभी पुलिसकर्मियों को प्रदेश की नवगठित कमलनाथ सरकार ने साप्ताहिक अवकाश की सौगात दी है।  पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश का यह निर्णय बेहतर कानून व्यवस्था के लिए सार्थक कदम माना जा रहा है। लंबे समय से पुलिसकर्मियों और उनके परिवारों के बीच से अवकाश की मांग उठायी जाती रही है इसके बाबजूद इस संबंध में नीतिगत निर्णय नहीं हो रहा था। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के लिए कांग्रेस ने जो वचनपत्र तैयार किया था उसमें पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश भी एक वादा था। पुलिसकर्मियों के लिए बहुत खुशी कि बात है कि ये वादा मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पदभार संभालते ही शुरुआती फैसलों में किया। इस वादे और इसके प्रभाव के तमाम नफे नुकसान की चर्चाएं राजनैतिक दल कर सकते हैं मगर अच्छे शासन प्रशासन के लिए इसकी अपनी दीर्घकालीन उपयोगिता है। कोई भी चुनी हुई सरकार सबसे अच्छा काम तब कर सकती है जब उसका बताया हुआ काम करने वाले तन मन से स्वस्थ होने के साथ उर्जा और उत्साह से भरे हुए हों। काम की गुणवत्ता व रफतार सरकारी निर्णयों से नहीं बल्कि उसका क्रियान्वयन करने वाले सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के समर्पण और गुणपत्तापरक कामकाज से तय होती है। कार सड़क पर सरपट तभी दौड़ेगी जब इंजन की सेहत बेहतर रहे। 24 घंटे सातों दिन वाली नौकरी पुलिकर्मियों से मजबूरन काम तो करा सकती है मगर ये बेहतर कानून व्यवस्था का आधार नहीं बन सकती। अपराध और अपराधियों से जूझते पुलिसकर्मियों के जीवन में वर्दी, बंदूक, रुतबे के अलावा परिवार, मां पिता, पत्नी, बच्चे, नाते रिस्तेदार भी होते हैं मगर पुलिसकर्मी का जीवन थाना, कोतवाली, दबिश, पूछताछ और पेट्रोलिंग में ही घूमता रहता है। उसे समाज को अपराध मुक्त रखने के लिए निरंतर अपराधियों से जूझना पड़ता है। इस मजबूरी के संवाद का पुलिसकर्मी की भाषा, व्यवहार, बोलचाल, मनोदशा से लेकर मानसिक शांति तक पर विपरीत असर पड़ता है। वर्षो से आए दिन समाचार अखबारों में खबरें आती रही हैं कि पुलिस लाइन में लगे स्वास्थ्य श्विर में बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी हृदय रोग और डायबिटीज से ग्रस्त पाए गए, छुट्टी न मिलने से नाराज सिपाही ने थाने में की अनुशासहीनता, थाने में शराब पीकर पहुंचा सिपाही, थानेदार ने गृहकलेश से तंग आकर की खुदकुशी। इस तरह के तमाम समाचार पुलिसकर्मियों के जीवन के तनाव और मानसिक अशांति को समाज के सामने लाते हैं। वो सरकारी अमला जिस पर समाज में शांति बनाए रखने का जिम्मा है अगर वही मन से अशांत और तनाव में है तो ये कम गंभीर स्थिति नहीं है। परोक्ष रुप से ये रुल ऑफ लॉ के समुचित क्रियान्वयन पर ही संकट है। ऐसे गंभीर विषय पर साप्ताहिक अवकाश का नीतिगण निर्णय मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार का एक समझदारी भरा कदम है। साप्ताहिक अवकाश केवल एक सरकारी नियम भर न होकर कर्मचारी का मानव अधिकार है। दुनिया के तमाम श्रम कानून निश्चित अवधि तक श्रम के बाद विश्राम की वकालत करते हैं। 8 घंटे से अधिक लगातार श्रम  न कराने का नियम भी तर्कसम्मत और वैज्ञानिक है। बीच में अल्प विराम और अवकाश फिर से श्रम करने का वातावरण और मानस बनाता है। मप्र में पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश भी उनमें अगले 6 दिन तक काम के लिए नए उत्साह और उर्जा का संचार करेगा। मप्र की नवगठित सरकार का यह  फैसला पुलिसकर्मियां, उनके बुजुर्ग माता पिता, पत्नी बच्चों, रिस्तेदारों से लेकर प्रदेश की स्वस्थ और मजबूत कानून व्यवस्था के लिए निश्चित ही नूतन वर्ष का उपहार है।

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