जीवन का अधूरापन

मुझे याद है प्रिय
शादी के बाद तुम
दूर-बहुत दूर थी
मैं तुम्हारे वियोग में
दो साल तक
अकेला रहा हॅू।
बड़ी शिद्दत के
बाद तुम आयी थी
तुम्हारे साथ रहते
तब दिशायें मुझे
काॅटती थी और
तुम अपनी धुन में
मुझसे विलग थी।
तुम्हारा पास होना
अक्सर मुझे बताता
जैसे जमीन-आसमान
गले मिलने को है।
मैंने महसूस किया
दिशायें दूर बहुत दूर
असीम तक पहुंच गयी है।
तुम मेरे साथ थी
पर दूर इतनी थी
जैसे चान्द आसमान में।
मेरी दुनिया सिमट कर
तुम्हारे ईर्द गिर्द थी
तुम रास्ते को दूर
बहुत दूर बनाती रही
मैं हर राह को
तुम्हारे लिये छोटी करता रहा।
मैं हर दिशा को
तुम्हारे आसपास
तुम्हारे कदमों में लाया
मैं तुम्हारी-मेरी दुनिया को
एक सुन्दर आँगन बनाता रहा।
तुम्हारी बातों का
तुम्हारे जज्बातों का
तुम ही मतलब समझती थी
मेरी बातें और जज्बात
तुम्हारे लिये बेमतलब थे।
मेरे मन की व्यथा
मेरे दिल की प्यास
तुम अपने कदमों में
रोंधती रही मैं सहता गया।
तुम्हारा मस्तिष्क
अवरोधित रहा है बातों से
तुम अज्ञेय रही हो जज्बातों से
मैं प्रेम की पराकाष्ठा को
जीना चाहता था
तुमसे प्रेम करता था
पीव न प्रेम कर सका
न ही जी सका
बाधा हमेशा से
तुम रही हो, तुम्हारा
अवसादित मन रहा है
तुम अब भी अवसाद से
मुक्ति पाने के परामर्श
परामर्शदाता के बतायें
उपायों को अपनाकर
सालों से अवसाद में हो।
सिरफिरेपन में प्रेम नहीं
वासना की लपटों में
सुलग रहे हम दोनों के बीच
एक अधूरापन आज भी जिंदा है।

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