कहीं अपने होने का अर्थ ही न खो दें राहुल गांधी !

निरंजन परिहार

 

समय आ गया है जब राहुल गांधी कांग्रेस की समान संभाल लें। लेकिन राहुल हैं कि पता नहीं किस दिन का इंतजार कर रहे हैं। वक्त बीता जा रहा है। कुछ समय और निकल गया, फिर अगर वे अध्यक्ष बन भी जाएंगे, तो भी इस देश में कोई बहुत बड़ा तूफान खड़ा नहीं होनेवाला। क्योंकि तब तक कांग्रेस के फिर से खड़े होने की क्षमता ही खत्म हो जाएगी।

 

कांग्रेसी तैयार हैं। कांग्रेस भी तैयार है। लेकिन राहुल गांधी तैयार नहीं लगते। पता नहीं क्यूं। देश में कांग्रेस के लिए सफलता के रास्ते लगातार संकरे होते जा रहा है। हार पर हार हो रही है। निकट भविष्य में भी, कहीं भी जीत का कोई रास्ता बनता नहीं दिख रहा है। ज्यादा सच कहें, तो कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य में फिलहाल तो कोई बहुत उजाला नजर नहीं आ रहा है। फिर भी नेतृत्व की कमान राहुल गांधी को सौंपने के मामले में कांग्रेस संघर्ष करती हुई दिख रही है।  और राहुल गांधी हैं कि बिल्कुल अनमने से है। उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी इस तरह के फैसले बहुत आसानी से कर लेती है। आपको भले ही यह लगता हो राहुल जी कि कांग्रेस तो आखिर अपनी ही है। सो, उसकी अध्यक्षता तो कभी भी संभाल लेंगे। लेकिन सवाल यह भी है कि आखिर आपको अध्यक्ष बनने के लिए किस दिन का इंतजार है ? वक्त किसी का इंतजार नहीं करता। कांग्रेस के हाथ से देश मुट्ठी में से रेत की तरह फिसलता जा रहा है। अब भी वक्त है, जब राहुल गांधी युवा शक्ति को फिर से कांग्रेस से जोड़कर पार्टी को नए सिरे से मजबूत बनाने में सफल हो सकते हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब दूल्हा ही शादी के लिए तैयार नहीं हो, तो फिर बाराती कोई बेवकूफ नहीं हैं कि बारात में जाने की तैयारी करें।

राहुल गांधी शुरू से ही राजनीति को लेकर दुविधा में दिखते रहे हैं। वे सार्वजनिक रूप से यहां तक कह चुके हैं कि सत्ता तो जहर है। लेकिन फिर भी मनमोहन सिंह की पहली सरकार में ही मंत्री बन गए होते, तो देश चलाना सीख जाते और सत्ता का जहर पीना भी। कांग्रेस ने अगली बार फिर जब मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया था, तब भी उनको न बनाकर, राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बना दिया जाता, तो कोई कांग्रेस का क्या बिगाड़ लेता ? जब सवा सौ करोड़ लोगों का यह देश देवगौड़ाओं और गुजरालों को भी प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार कर ही लेता है, तो उन दिनों राहुल गांधी तो उनके मुकाबले देश में बहुत ताकतवर, परम पराक्रमी और सर्वशक्तिमान नेता थे। अगर बन गए होते, तो  राहुल गांधी को सत्ता संचालित करने के नुस्खों का अनुभव भी आ जाता और वे थोड़े से परिपक्व भी हो जाते। जो लोग अनुभव के मामले में अपनी इस बात से सहमत नहीं है, वे यह जान लें कि कुछ चीजों का अनुभव सिर्फ उस विशेष स्थिति को जीने से ही आता है। आखिर, कुंवारी दाई मां भले ही जीवन भर कितने भी बच्चों को जन्म दिलवा दे, मां बनने का अनुभव तो सिर्फ उन मांओं को ही होता है, जो बच्चे को नौ महीने तक पेट में लेकर घूमती हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए अगर राहुल गांधी नहीं मान रहे हैं, तो देश जानना चाहता है कि यह बात भी सामने आनी चाहिए कि आखिर उनकी दिक्कत क्या है। अब तो उनकी सरकार को गए भी तीन साल बीत गए हैं और पार्टी सड़क पर भी सिमटती जा रही है। राहुल गांधी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी स्वीकारने से लगातार बचते रहने से देश को भले ही यह विश्वास होता जा रहा है कि राहुल गांधी स्वयं नहीं चाहते। लेकिन कांग्रेसियों को पक्का भरोसा है कि राहुल गांधी एक न एक दिन जरूर कांग्रेस अध्यक्ष बनेंगे। इन ‘कभी तो लहर आएगी’ के भरोसे शांत समंदर किनारे बैठे भक्त लोगों की वजह से कांग्रेस में सत्ता के दो केंद्र बने हुए हैं। पहला कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और दूसरा पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी। पार्टी के वरिष्ठ नेता सीधे सोनिया गांधी को रिपोर्ट करते हैं और नई पीढ़ी के लोग राहुल गांधी को। राहुल के मुख्यधारा में आने से वरिष्ठ नेता अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। संभवतया इसीलिए, राजनीति के बहुत गंभीर किस्म के मामलों में राहुल गांधी को वे दूर ही रखने की सलाह देते रहे हैं। और, ऐसा अकसर होता भी है। हालांकि सार्वजनिक रूप से अकसर सोनिया गांधी पिछली सीट पर दिखती हैं और राहुल गांधी ड्राइविंग सीट पर। लेकिन हाल ही में जब राष्ट्रपति पद के लिए विपक्षी दलों से बातचीत करने का मौका आया, तो राहुल गांधी को दरकिनार कर के सोनिया गांधी फिर से मुख्यधारा की राजनीति में आ गई। इससे एक संदेश यह भी गया है कि बाकी विपक्षी दलों के नेता राहुल गांधी को कोई बहुत परिपक्व नेता नहीं मानते, इसीलिए राष्ट्रपति चुनाव की चर्चा से उनको दूर ही रखा गया। अपना मानना है कि इस प्रक्रिया में राहुल गांधी को भी शामिल करना चाहिए था। जब राष्ट्रपति पद के चुनाव में विपक्ष की जीत होनी ही नहीं है, फिर भी उनको इस प्रक्रिया से दूर रखने का कोई मतलब नहीं था। लेकिन कांग्रेस तो खुद उन्हें दूर रखकर राहुल गांधी के बारे में देश को उनके पर्पक्व न होने पर चिंतन करने का संदेश दे रही है। सन 2013 में, जब राहुल गांधी कांग्रेस के उपाध्यक्ष बने थे, तब से ही यह माना जा रहा है कि वे कभी भी कांग्रेस पार्टी की कमान अपने हाथ में ले सकते हैं। लेकिन देश को इस इंतजार में चार साल बीत गए हैं और उनके अध्यक्ष बनने की बात हर रोज परीलोक की किसी रहस्यकथा की तरह नए नए रास्तों में भटककर बार बार सर उठाते इस सवाल की अहमियत ही खत्म कर रही है।

इस सब के बावजूद राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनने में कोई दिक्कत ही नहीं है, क्योंकि राहुल गांधी को लेकर कांग्रेस के भीतर कोई विवाद नहीं हो सकता। लेकिन अध्यक्ष बनने से पहले राहुल गांधी को अपने ‘जनाधारविहीन चेहरों वाली निजी टीम’ से छुटकारा पा लेना चाहिए। यही नहीं, उनको अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और नई पीढ़ी के नेताओं के बीच संतुलन साधने में सफल होने की क्षमता भी पैदा करनी होगी। उसके साथ ही देश भर में लगातार समाप्ति की तरफ बढ़ती ही जा रही पूरी पार्टी में फिर से जोश भरकर उसकी दुर्गति रोकने की ताकत भी खुद के भीतर पैदा करनी होगी। अपना मानना है कि अगर बहुत जल्दी ऐसा नहीं होता है तो, कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों ही अपने होने के राजनीतिक अर्थ ही खो देंगे। क्या आपको भी ऐसा नहीं लगता ?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,046 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress