कालेधन की जंग का ब्रह्मास्त्र

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प्रमोद भार्गव
नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के समय से ही आतंकवाद, कालाधन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लगातार लड़ाई लड़ते दिख रहे है। उन्होंने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी कालाधन वसूलने के लिए कठोर कदम उठाने की बातें कहीं थीं। इस जंग में मोदी ने 500 और 1000 के नोट बंद करने का फैसला लेकर ब्रह्मास्त्र के रूप में अपना अंतिम अस्त्र छोड़ दिया है। इससे एक साथ जाली नोट के गोरखधंधे और आतंकवाद का वित्त पोशण तो प्रभावित होगा ही मादक द्रव माफिया, भ्रष्टाचारी और हवाला करोबारी भी एकाएक संकट का सामना करंेगे। भवन और भूमि की जहां दरें गिरेंगी, वहीं सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात की कीमतें उछाल मार सकती हैं। इस फैसले की मार इसलिए ज्यादा पड़ने वाली है, क्योंकि यह इतने गोपनीय ढंग से लागू किया गया है कि किसी को कानोकान खबर नहीं लगी है। तय है, कई लाख करोड़ रुपए एक झटके में रद्दी में बदलने वाले हैं। इस अहम् फैसले का सबसे ज्यादा फायदा आम आदमी को होने वाला है, क्योंकि इससे घर व उपभोक्ता वस्तुएं सस्ती होने वाली हैं।
अर्थव्यवस्था की मामूली समझ रखने वाला व्यक्ति भी जानता है कि इस ऐलान से पहले, बाजार में मुद्रा का प्रसार ज्यादा था, जबकि वस्तुएं व सेवाएं सीमित थीं। कालाधन बाहर आने के बाद अर्थव्यवस्था वास्तविक रूप में तरल होगी। वित्त मंत्रालय ने भी बताया है कि 2011 से 2016 के बीच अर्थव्यवस्था का दायरा बढ़ा, जबकि 1000 रुपए के नोटों के प्रयोग में 109 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो गई थी। इससे साफ है कि धन की आपूर्ती भरपूर थी। इस कारण महंगाई भी आसमान छू रही थी। अब इस पहल से महंगाई पर लगाम लगेगी। बाजार में 1000 की मुद्रा सबसे ज्यादा चलन में थी। 1000 के जाली नोट भी बड़ी संख्या में चलन में थे। आतंकवाद और नक्सलवाद को भी 1000 और 500 के जाली नोटों से बढ़ावा मिल रहा था। जाली नोट और कालाधन ही इन्हें हथियार मुहैया कराने का काम कर रहे थे। इसीलिए 1000 का नया नोट जारी नहीं किया जा रहा है। अलबत्ता 2000 का नया नोट जारी किया गया है। साफ है, आर्थिक आतंकवाद के खिलाफ यह बड़ा कदम है।
नरेन्द्र मोदी ने इन नोटों को बंद करने का ऐलान करते हुए कहा है कि भ्रष्टाचार, जाली नोट और आतंकवाद ऐसे नासूर हैं जो देश को विकास की दौड़ में पीछे धकेल रहे हैं। ये देश और समाज को अंदर ही अंदर खोखला कर रहे हैं। दरअसल ये बुराईयां राष्ट्रिय अर्थव्यवस्था को क्शति पहुंचाने का काम कर रहीं थीं। इसीलिए मोदी इस दिशा में सुधार के लिए सत्ता में आने के बाद से ही प्रयत्नशील दिखाई दिए हैं। इन प्रयासों के फलस्वरूप कालाधन बाहर तो आया लेकिन उतनी मात्रा में नहीं आया जितनी अपेक्शा थी। 30 सितंबर को समाप्त आय घोषणा योजना (आईडीएस) के तहत 64,275 लोगों ने 65,250 करोड़ रुपए कालेधन के रूप में उजागार किए हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह जानकारी देते हुए कहा था कि जैसे-जैसे आॅनलाइन और दस्तावेजों के आधार पर जमा की गई जानकारियां एकत्रित होंगी, उसके नतीजे आने पर यह राशि और भी बढ़ सकती है। इस राशि पर 45 प्रतिशत कर एवं जुर्माना लगाने के बाद सरकार को 29,362 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं। इस राशि को संचित निधि में रखा जाएगा और जरूरत पड़ने पर इसका उपयोग जन-कल्याणकारी योजनाओं में होगा।
मोदी ने ‘मन की बात‘ कार्यक्रम में भी कालेधन के कुबेरों को चेतावनी दी थी कि 30 सितंबर तक कालाधन घोषित नहीं किया तो कठोर कार्यवाही की जाएगी। यह चेतावनी इसलिए देनी पड़ी थी, क्योंकि बार-बार चेताने और कालाधन वापसी के दो कानून वजूद में लाने के बावजूद धन उजागार नहीं हो रहा था। इस नाते एक तो ‘कालाधन अघोषित विदेशी आय एवं जायदाद और आस्ति विधेयक-2015‘ को संसद के दोनों सदनों से पारित कराया था। दूसरे देश के भीतर कालाधन उत्सर्जित न हो,इस हेतु ‘बेनामी लेनदेन;निशेधद्ध विधेयक को मंत्रीमण्डल ने मंजूरी दी थी। ये दोनों विधेयक इसलिए एक दूसरे के पूरक हैं, क्योंकि एक तो आय से अधिक काली कमाई देश में पैदा करने के स्रोत उपलब्ध हैं, दूसरे इस कमाई को सुरक्षित रखने की सुविधा विदेशी बैंकों में हासिल है। लिहाजा कालाधन फलता-फूलता रहा है। इन दोनों कानूनों के वजूद में आने से यह उम्मीद जगी थी कि कालेधन पर कालांतर में लगाम लगेगी, किंतु पर्याप्त कामयाबी नहीं मिली थी, इसलिए 1000 और 500 के नोटों को बंद करना पड़ा। सबकुल मिलाकर मोदी सरकार यह जताने में सफल रही कि वह कालेधन की वापसी के लिए प्रतिबद्ध है। क्योंकि इस सरकार ने षपथ-ग्राहण के बाद केंद्रीय-मंत्रीमडल की पहली बैठक में ही विषेश जांच दल के गठन का फैसला ले लिया था। हालांकि यह पहल सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर की गई थी। लेकिन यही निर्देश न्यायालय संप्रग सरकार को भी देती रही थी, बावजूद वह एसआईटी के गठन को टालती रही थी। इसके बाद राजग सरकार ने 8 ऐसे धन-कुबेरों के नाम भी उजागर किए, जिनका कालाधन विदेशी बैंकों में जमा है।
हालांकि अचानक नोट बंद किए जाने से तमाम चुनौतियां पेशआएंगी। बैंकों और डाकघरों का कामकाज बढेगा और लोगों को जमा करने अथवा बदलने के लिए लंबी लंबी कतारें लगेंगी, लेकिन यह आपाधापी कुछ दिनों के बाद शांत हो जाएगी। काला धन देश की अर्थव्यवस्था को दीमक की तरह चाटने में लगा था, इसलिए इस पर प्रतिबंध के उपाय जरूरी थे। हमारे यहां काला धन दो तरह से उत्सर्जित होता है। एक कर चोरी के रूप में जमा होता है और दूसरा अवैध तरीकों मसलन भ्रष्टाचार जैसे दुराचरणों से उत्पन्न होता है। आतंक से जुड़ी कई ऐसी आतंकी घटनाएं भी देखने में आई हैं जिन्हें भारतीय अधिकारियों ने भ्रश्ट आचरण बरतकर अंजाम तक पहुंचाया है। कुछ समय पहले ही जोधपुर और पाकिस्तान दूतावास में भारतीय नागरिक जासूसी करते पकड़े गए हैं। साफ है इनमें कालेधन की भूमिका अहम रही है। इसलिए यह फैसला अप्रत्याषित रूप से आम आदमी के लिए तत्काल परेशानियां उत्पन्न करने वाला जरूर दिखाई दे रहा है लेकिन इसके दीर्घकालिक परिणाम देश हित में रहेंगे। भ्रष्टाचार और कालाधन गरीबी बनाए रखने का काम भी कर रहे है। गरीबी हटाने में ये सबसे बडी बाधाएं हैं। लोक कल्याणकारी योजनाओं में जो धन मिलता है उसका एक बडा प्रतिशत भ्रष्टाचार के हवाले हो जाता है। यही कारण है कि अब तक जितने भी छोटे बडे कर्मचारी व अधिकारियों के यहां छापे डाले गए हैं, नगदी के रूप में करोडों रुपए बरामद हुए हैं। यह राशि 1000 और 500 के नोटों में ही बरामद हुई है। अब इन नोटों पर रोक लगने के बाद जिन घरों में भ्रष्टाचार से अर्जित राशि डंप पडी हुई है। उसके बदले नए नोटों के रूप में अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। इसीलिए इस कार्यवाही को मोदी की ऐसी सर्जिकल स्ट्राईक कहा जा रहा है, जो भ्रष्टाचार की बडे पैमाने पर शल्यक्रिया करेगी। इसीलिए मोदी ने कहा है कि आओ इस आर्थिक शुचिता के पर्व को मिलकर मनाएं।
मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान विभिन्न उपायों से अब तक कुल अघोषित आय के रूप में 1,40,741 करोड़ रुपए का कालाधन सामने आया है। अब यह जो नोटों पर रोक लगाकर अर्थव्यवस्था को तरल और पारदर्षी बनाने का उपाय किया गया है। उससे कालांतर में कई लाख करोड रुपए भारतीय अर्थव्यवस्था को गतिशीलता देने वाले हैं। इस रोक से एक फायदा यह भी होगा कि भविश्य में लोग नगदी उतनी ही रखेंगे जितनी रोजमर्रा के लिए जरूरत पडती है। साथ ही अब बैंक के जरिए लेनदेन भी बढेगा। हालांकि एक आशंका यह जताई जा रही है कि 500 और 2000 के जो नए नोट चलन में आ रहे हैं, वे फिर भविष्य में काले धन की समस्या को उपजाने का काम करेंगे। इस आशंका के चलते यह ध्यान रखना होगा कि देश के भीतर उपजने वाले काले धन को बंद करने के लिए एक डेढदशक बाद बड़े नोटों को बंद करने का सिलसिला जारी रहे। इससे काले धन की अर्थव्यवस्था पनपने ही नहीं पाएगी। इसका बडा फायदा 2017 की शुरूआत में जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, उनमें कालेधन का उपयोग लगभग खत्म हो जाएगा। इससे वोट खरीदने और पेड न्यूज पर अंकुष लगेगा। आम आदमी भी दमदारी से चुनाव लडने की स्थिति में आ सकता है।
प्रमोद भार्गव

 

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