कुक्कुरमुत्तों की कविता

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kukurmutta डॉ. मधुसूदन

सूचना: यह व्यंग्यात्मक रचनाहै।
मनोरंजन के लिए।इसी अर्थ में
उसका स्वीकार करें।

टेढी पूँछ,एक कुक्कुरवो,
ऊंची पिछली टाँग कियो;
मसरुमवा सिंचित हुआ सारा,
सो कुक्कुरमुत्ता कहलाया।

दीक्सित हुयी सारी सैना,
सीतल सिंचित धारासै।
कुक्कुरमुत्ते बहर आयै हैं,
टोपी झाडू सज धज कै।

अक्रमण्यता अदिकार, इनको
किस्ना गीता में बोल्ल्यो है।
पर फल तो सारो मिल्नो चइए,
संविदान मैं लिख्ख्यो है।

इनका पैसासे, नरेन्दर,
डिन्नरां खा रिय्यो है।
जापान, नेपाल, भूटान,
हन्नी-मून्न पै जा रिय्यो है।

“सौ महीनो में, हो न पायो।
सौ दिना में होन्नो चइए।”
दोऊ, तीनि, मच्छरव्वा काफी
गुन् गुन् गुन् करत है।

“ये जन-तंतर, है भाया,
एक परधान काम करैगो,”
“परजा जन हक से सोवैगो,
केवल वोट ही देवैगो”

वोट दियो केजरियाको,
हिसाब माँगो नरेन्दरवा से,
ये जन्मसिद्द अदिकार इनको।
तिल्लक महाराज बी बोल्ल्या है।

झाडू के ऊप्पर टोप्पी हय ,
टोप्पी कै नीच्चू सर हय।
उस मैं कमरो खाली हय।
किराये पर चढवानो हय।

कुक्कुर-मुत्ता कै करैगा ?
सेरसिंह बन हिसाब माँगेगा।
सब्दां का-बना बना कपोतवा।
“असान्ति” दूत छोडैगा।
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गीतामें क्रिसना बोल्ल्यो हय।
“अक्रमण्येऽवादिकारस्तै।
सर्ब फलैसू सदाचन॥”
अक्रमन्यता अदिकार हमारो
पर फल सारो मिल्नो चयिए।”

गुन गुन गुन गुन
गुन गुन गुन गुन
नमः श्री केजरये नम:

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डॉ. मधुसूदन
मधुसूदनजी तकनीकी (Engineering) में एम.एस. तथा पी.एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त् की है, भारतीय अमेरिकी शोधकर्ता के रूप में मशहूर है, हिन्दी के प्रखर पुरस्कर्ता: संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती के अभ्यासी, अनेक संस्थाओं से जुडे हुए। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमरिका) आजीवन सदस्य हैं; वर्तमान में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्‍था UNIVERSITY OF MASSACHUSETTS (युनिवर्सीटी ऑफ मॅसाच्युसेटस, निर्माण अभियांत्रिकी), में प्रोफेसर हैं।

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