महेन्द्रगढ़ ने फिर शर्मसार कर दिया

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 ललित गर्ग
महेंद्रगढ़ की सीबीएसई टॉपर रही छात्रा के साथ हुए बलात्कार की घटना ने एक बार फिर हमें शर्मसार किया है। बड़ा सवाल यह है कि लड़कियों को कुचलने की मानसिकता का तोड़ हम अब भी क्यों नहीं तलाश पा रहे हैं? क्यों नये-नये एवं सख्त कानून बन जाने के बावजूद बालिकाओं की अस्मिता एवं अस्तित्व असुरक्षित है? क्यों हमारे शहरों को ‘रेप सिटी ऑफ द वल्र्ड’ कहर जाने लगा है। आखिर कब तक बालिकाओं के साथ ये दरिन्दगीभरी एवं त्रासद घटनाएं होती रहेंगी? बालिकाओं की अस्मत का सरेआम लूटा जाना- एक घिनौना और त्रासद कालापृष्ठ है और उसने आम भारतीय को भीतर तक झकझोर दिया। 
हरियाणा में कानून एवं व्यवस्था पर सवाल तो उठ ही रहे हैं और इन सवालों को इसलिए कहीं अधिक गंभीर बना दिया है क्योंकि सीबीएसई टॉपर रही इस छात्रा की आंखों में निश्चय ही सुनहरे भविष्य के सपने पल रहे होंगे। जिस तरह का व्यभिचारी, बलात्कारी एवं यौन विकृति का समाज हम बना रहे हैं, उसमें बालिकाओं के सपने एक झटके में ही खत्म हो रहे हैं। आज देश की कोई बेटी खुद को सुरक्षित नहीं मानती। सब इसी आशंका में जीती हैं कि न जाने कब, किसके साथ कुछ गलत हो जाए। ‘पढ़े बालिकाः बढ़े बालिका’ के सरकारी नारों की धज्जियां उड़ना एक गंभीर स्थिति को बयां कर रहा है। हरियाणा सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार के सम्मुख नारी अस्मिता की सुरक्षा की बड़ी चुनौती है। बलात्कार की बढ़ती घटनाओं की कई वजहें हैं। सबसे बड़ा कारण तो बलात्कार पीड़िता को तुरंत न्याय न मिल पाना है। ऐसे मामलों के निपटारे में काफी वक्त लगता है। अव्वल तो जल्दी अपराधी पकड़े नहीं जाते, और फिर अगर उसे पकड़ लिया जाता है, तो पुलिस पर उसे छोड़ने का राजनीतिक दबाव आ जाता है। इसके बावजूद अपराधी यदि कोर्ट तक पहुंच जाए, तो कानूनी प्रक्रिया इतनी लंबी होती है कि पीड़िता के लिए न्याय का ज्यादा महत्व शायद ही रह जाता है। एक और विरोधाभासी स्थिति देखने में आ रही है कि वास्तविक रूप में घटित होने वाली इन घटनाओं की सुध लेने की बजाय फर्जी बलात्कार की घटनाओं के फर्जी मामलों की ज्यादा सुध ली जा रही हैं, जिससे दोषी व्यक्ति की जगह निर्दोष लोग कड़े एवं सख्त कानून के शिकार हो रहे हैं। ऐसी स्थितियों में अपराध करने वाले खुलेआम एक और अपराध करने की दिशा में आगे बढ़ जाते हैं।
हरियाणा बलात्कार को लेकर सुर्खियों में हैं। बेटियों के लिए वह सबसे असुरक्षित राज्य साबित हो रहा है। हरियाणा पुलिस ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 में 30 नवंबर तक बलात्कार के कुल 1238 मामले दर्ज किए गए। यानी हर दिन लगभग चार बलात्कार के मामले दर्ज हुए। हम सभी कल्पना रामराज्य की करते हैं पर रच रहे हैं महाभारत। महाभारत भी ऐसा जहां न कृष्ण है, न युधिष्ठिर और न अर्जुन। न भीष्म पितामह हैं, न कर्ण। सब धृतराष्ट्र, दुर्योधन और शकुनि बने हुए हैं। न गीता सुनाने वाला है, न सुनने वाला। बस हर कोई द्रोपदी का चीरहरण कर रहा है। सारा देश चारित्रिक संकट में है और हमारे कर्णधार देश की अस्मिता और अस्तित्व के तार-तार होने की घटनाओं को भी राजनीतिक ऐनक से देख रहे हैं आपस में लड़ रहे हैं, कहीं टांगे खींची जा रही हैं तो कहीं परस्पर आरोप-प्रत्यारोप लगाये जा रहे हैं, कहीं किसी पर दूसरी विचारधारा का होने का दोष लगाकर चरित्रहनन किया जा रहा है। जब मानसिकता दुराग्रहित है तो दुष्प्रचार ही होता है। कोई आदर्श संदेश राष्ट्र को नहीं दिया जा सकता। सत्ता-लोलुपता की नकारात्मक राजनीति हमें सदैव ही उल्ट धारणा विपथगामी की ओर ले जाती है। ऐसी राजनीति राष्ट्र के मुद्दों को विकृत कर उन्हें अतिवादी दुराग्रहों में परिवर्तित कर देती है।
अच्छे भविष्य के लिए हम बेटियों की पढ़ाई से ही सबसे ज्यादा उम्मीदें बांधते हैं।  बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारे हमारे संकल्प को बताते हैं, हमारी सदिच्छा को दिखाते हैं, भविष्य को लेकर हमारी सोच को जाहिर करते हैं, लेकिन वर्तमान की हकीकत इससे उलट है। महेन्द्रगढ की उस मेधावी छात्रा के साथ जो हुआ, वह बताता है कि लड़कियों की पढ़ाई उनके बचने की बहुत बड़ी गारंटी नहीं है। वे पढ़ाई में अपने झंडे भले ही गाड़ दें, लेकिन उन्हें आगे बढ़ने से रोकने की क्रूरताएं कई तरह की हैं। सीबीएसई की परीक्षा में टॉप बालिका की अस्मिता को नौंचने की इस घटना के बाद पुलिस प्रशासन और राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा किया जाना स्वाभाविक है। महेन्द्रगढ़ की पुलिस से कहीं-न-कहीं चूक हुई है। जब कभी ऐसी किसी खौफनाक, त्रासद एवं डरावनी घटना की अनेक दावों के बावजूद पुनरावृत्ति होती है तो यह हमारी जबावदारी पर अनेक सवाल खड़े कर देती है। आखिर वह कथित घुमंतू बदमाशों की कमर तोड़ने के साथ अपराध बहुल इलाकों की निगरानी का बुनियादी काम क्यों नहीं कर सकी?
 प्रश्न है कि आखिर हम कब औरत की अस्मत को लुटने की घटना और मानसिकता पर नियंत्रण कर पायेंगे? मान्य सिद्धांत है कि आदर्श ऊपर से आते हैं, क्रांति नीचे से होती है। पर अब दोनों के अभाव में तीसरा विकल्प ‘औरत’ को ही ‘औरत’ के लिए जागना होगा। सरकार की उदासीनता एवं जनआवाज की अनदेखी भीतर-ही-भीतर एक लावा बन रही है, महाक्रांति का शंखनाद कब हो जाये, कहां नहीं जा सकता? दामिनी की घटना ने ऐसी क्रांति के दृश्य दिखायें, लगता है हम उसे भूल गये हैं। एक संस्कृत एवं सभ्य देश के लिये ऐसी क्रांति का बार-बार होना भी शर्मनाक ही कहा जायेगा।
आज जब सड़कों पर, चैराहों पर किसी न किसी की अस्मत लुट रही हो, औरतों से सामूहिक बलात्कार की अमानुषिक और दिल दहला देने वाली घटनाएं हो रही हों, इंसाफ के लिए पूरा देश उबल रहा हो और सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग जनाक्रोश को भांपने में विफल रहे हों, इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा। देश का इस तरह बार-बार घायल होना और आम आदमी की आत्मा को झकझोर कर रख देना- सरकार एवं प्रशासन की विफलता को ही उजागर करता है। जनता का क्रोध बलात्कारियों और सरकार दोनों के प्रति समान है। ऐसी विडम्बनापूर्ण घटनाओं पर जनता के आक्रोश पर सरकार और पुलिस का यह सोचना कि यह भीड़ तंत्र का तमाशा है कुछ समय बाद शांत हो जाएगा, यह भी शर्मसार करने वाली स्थिति है। हौसला रहे कि आने वाले वक्त की डोर हमारे हाथ में रहे और ऐसी ‘दुर्घटनाएं’ दुबारा ना हो।
यह घटना उस हरियाणा की है, जहां की बेटियों ने पूरे देश को गर्व करने के मौके बहुत सारे दिए हैं। पिछले दिनों हुए एशियाड खेलों में हरियाणा की लड़कियों ने देश को जितने मेडल दिलवाए, उतने तो शायद किसी और प्रदेश की लड़कियों ने नहीं दिलवाए होंगे। बात सिर्फ इतनी है कि जिस प्रदेश की लड़कियां पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवा रही हों, वहां अगर इस तरह की घटना हो रही है, तो यह एक गंभीर चुनौती है। क्योंकि हरियाणा की बेटियों ने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद समाज की दकियानूसी सोच को मात दी है। महेंद्रगढ़ की घटना ने बता दिया कि हरियाणा की बेटियों के लिए सीबीएसई की परीक्षा में टॉप करना या अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मेडल जीतना कितना भी कठिन क्यों न हो, पर समाज की पुरुषवादी सोच को बदलना उससे कहीं ज्यादा मुश्किल काम है। सवाल सिर्फ बेटियों का नहीं है, अगर हमें समाज को बचाना है, तो बेटियों को पढ़ाना होगा, उन्हें लगातार आगे बढ़ाना होगा और उनको सुरक्षित जीवन देना होगा। इसमें बाधक बनने वाले निर्मम लोगों को सजा तक पहुंचाना होगा। आज के दिन लोग कामना करें कि नारी शक्ति का सम्मान बढ़े, उसे नौंचा न जाये। समाज ‘दामिनी’ के बलिदान को न भूले और अपनी मानसिकता बदले। हर व्यक्ति एक न्यूनतम आचार संहिता से आबद्ध हो, अनुशासनबद्ध हो। जो व्यवस्था अनुशासन आधारित संहिता से नहीं बंधती, वह विघटन की सीढ़ियों से नीचे उतर जाती है।

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