डॉ. मयंक चतुर्वेदी
पश्चिम बंगाल की पहचान भारत वर्ष में अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति के लिए सदैव से रही है। देश का स्वतंत्रता आंदोलन हो या लोकतंत्र एवं सुधारवादी आन्दोलनों से जुड़ी कोई घटना एवं चर्चा, हमेशा से बंगाली जनता इसमें आगे रहती आई है। किंतु वर्तमान परिदृश्य देखकर लग रहा है कि अब बंगाल का वातावरण पहले जैसा नहीं रहा। देश का यह राज्य आज जिस तेजी से बदल रहा है, उसे देखकर लगता नहीं कि यह वही पश्चिम बंगाल है, जिसने देश की आजादी के लिए चलाए गए आंदोलन का नेतृत्व किया था। वस्तुत: वर्तमान में यह कहने की आवश्यकता इसलिए पड़ रही है, क्योंकि पं. बंगाल की मौजूदा सरकार ने आगे होकर इस तरह का काम किया है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप नहीं है। प्रजातांत्रिक मूल्यों वाले हमारे देश में किसी राज्य से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि अभिव्यक्ति को दबाने के लिए वहां की सरकार स्वयं ही आगे आ जाए, पं. बंगाल में ममता बनर्जी के राज में ऐसा ही हुआ है। सरकार ने जिस तरह एक अभिव्यक्ति से जुड़े कार्यक्रम को होने से रोका है, उसे देखकर तो फिलहाल यही प्रतीत हो रहा है कि प्रदेश सरकार सामाजिक सौहार्द्र के नाम पर किस हद तक लोकतंत्र की भावना का गला घोंटने पर आमादा है।
बलूचिस्तान एवं कश्मीर आधारित टॉक शो ‘द सागा ऑफ बलूचिस्तान’ को होने से रोकने के पीछे ममता सरकार की मंशा साफ नजर आ रही है। प्रश्न यह है कि आखिर इस टॉक शो को क्यों रोका जा रहा है ? जब सरकार मालदा जैसी हिंसक घटनाओं को रोकने में असफल रहती है ? जब सरकार बंग्लादेशी घुसपैठियों को रोकने में असफल रहती है? जब ममता की सरकार इन विदेशियों द्वारा राशन कार्ड से लेकर सभी भारतीय सुविधाएँ हासिल करने से नहीं रोक पाती है ? जब यह सरकार विदेशी धरती से इस प्रांत में संचालित होने वाली अवैध गतिविधियों को नहीं रोक पाती है ? जब ममताजी और उनकी सरकार यहाँ खुले तौर पर बसने वाली बंग्लादेशी कॉलोनी को बसने से रोक नहीं पाती हैं ? चिटफंड कंपनियों के घोटालों से लेकर भ्रष्टाचार से जुड़े तमाम मामलों को ईमानदार मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी रोक नहीं पातीं ? पश्चिम बंगाल में बसे बांग्लादेशी घुसपैठिए वहाँ पहले से बसे भारतीय नागरिकों को अपनी जनसंख्या की दम पर लगातार प्रताड़ित कर रहे हैं। लेकिन ममता बनर्जी और उनकी सरकार सब कुछ जानते हुए भी इन घुसपैठियों की मनमानी और अवैध कारोबार को चलने दे रही हैं, फिर यदि उनके राज्य में कोई संस्था या संगठन लोकतान्त्रिक ढंग से कोई टॉक शो करना चाहता है तो उसमें इस सरकार को कौन सी गलत चीज दिखाई दे रही है?
पं. बंगाल सरकार द्वारा इस कार्यक्रम पर रोक लगाने की जानकारी पाकिस्तानी मूल के लेखक, चिंतक और विश्लेषक तारिक फतेह ने स्वयं ट्वीट करके दी है। उन्होंने लिखा है कि उनके एक कार्यक्रम के आयोजन से कलकत्ता क्लब ने हाथ खड़े कर दिए हैं। क्लब की ओर से सात जनवरी को प्रस्तावित कार्यक्रम को रद्द करने के संबंध में तारिक को एक मेल मिला है। मेल में ‘द सागा ऑफ बलूचिस्तान’ नामक उक्त कार्यक्रम को रद्द करने की जो अपरिहार्य वजह बताई गई है, वह निहायत ही समझ के परे है। इसमें क्लब की ओर से कहा गया है कि एक निजी सामाजिक क्लब होने के नाते हम क्लब में सौहार्द्रपूर्ण माहौल चाहते हैं।
तारिक फतेह का कहना है कि पुलिस व पश्चिम बंगाल सरकार के दबाव के चलते ही क्लब ने इस कार्यक्रम को रद्द किया है। यहाँ बलूचिस्तान एवं कश्मीर आधारित टॉक शो का कार्यक्रम स्वाधिकार बांग्ला फाउंडेशन द्वारा आयोजित किया जाना था, जिसका मकसद महज विचारों का आदान-प्रदान था। कार्यक्रम में शामिल होने के लिए तारिक फतेह के अतिरिक्त पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान, पूर्व सैन्य अधिकारी जीडी बख्शी, कश्मीरी मूल के सुशील पंडित इत्यादि को आमंत्रण दिया गया था।
यहाँ बात इतनी भर है कि क्या फतेह साहब, आतंकवादी हैं ? वे भारत के राज्य पश्चिम बंगाल आकर विविध धर्म एवं पंथों के बीज झगड़ा करवाकर यहाँ की लोकतांत्रिक व्यवस्था को भंग करने आ रहे हैं ? या यहाँ तारिक फतेह के अलावा आरिफ मोहम्मद खान, जीडी बख्शी, सुशील पंडित एवं अन्य जैसे विद्वान और विशेषज्ञ इस चर्चा में हिस्सा लेने आ रहे थे, वे जिहादी आतंकवाद के पोषक हैं ? आखिर बलूचिस्तान पर बात करने और भारत के साथ उसकी पुरातन परंपरा को जोड़ने तथा चर्चा करने से किसे भय लग रहा है ? क्या सरकार का कोई नुमाइंदा आगे होकर बताएगा कि क्यों बंगाल की धरती से बलूच आजादी, संस्कृति और परंपराओं की बात नहीं की जा सकती ? जब स्वायत्ता एवं मानवीयता के हम पक्षधर हैं तो भारत के एक राज्य में उस विषय पर टॉक शो करने में क्या आपत्ति है ?बलूचिस्तान जो पहले से स्वतंत्र राज्य और संवैधानिक भाषा में एक स्वायत्त देश रहा हो और जिस पर पाकिस्तान धोखे से कब्जा जमा ले, उसकी स्वतंत्रता की वकालत भारत नहीं तो ओर कौन करेगा ?
वस्तुत: अपने वोट बैंक को खुश करने की इस कोशिश में ममता बनर्जी यह भूल रही हैं कि वे आग से खेल रही हैं। इस्लामी कट्टरता की यह वही आग है जो पहले से पश्चिम और मध्य एशिया में धधक रही है। इसी आग के सहारे पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियां बलूचिस्तान में चल रहे संघर्ष के साथ-साथ वहां के सामाजिक सौहार्द्र और विविधतापूर्ण सामाजिक ताने-बाने को नष्ट-भ्रष्ट करना चाहती है। इसके लिए पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियां बलूचिस्तान में तालिबान, अल कायदा और अन्य कट्टरपंथी संगठनों को बढ़ावा दे रही है। इन संगठनों के आतंकवादियों को वहां बसाया जा रहा है और इन्हें अघोषित रूप से यह निर्देश दिए गए हैं कि ये वहां इस्लामी कट्टरपंथ की आग को इतना भड़काएं कि उसमें बलूच राष्ट्रवाद की चिंगारी हमेशा के लिए दफन हो जाए।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता जी यह क्यों भूल जाती हैं कि भारत एक ऐसा देश है जो स्वयं लोक के तंत्र में विश्वास रखता है, उसने स्वयं ही जनता के शासन को अंगीकार करते हुए अपनी मूल भावना अपने संविधान में जनता का जनता के लिए जनता द्वारा शासित होने वाले शासन की घोषणा की हुई है। यदि बलूचिस्तान, कश्मीर और मानवीय सरोकारों से जुड़े अन्य विषयों की चर्चा भारत में नहीं होगी, तो फिर कहां होगी? वास्तव में जो दबाव सरकार की ओर से क्लब पर डाला गया है, उस पर जरूर मुख्यमंत्री आवास से सफाई आना चाहिए। मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी की तरफ से दी जाने वाली सफाई में यह जरूर बताया जाए कि पश्चिम बंगाल की उस धरती पर जो अब तक लोकतंत्र की संरक्षक रहती आई है, आज आखिर वे कौन से ऐसे कारण पैदा हो गए हैं जो स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति को रोकने पर यहाँ की सरकार स्वयं आमादा हो गई है।