जरूरत बिहार की छवि सुधारने की

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-निर्मल रानी-

biharबिहार राज्य की गिनती देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य के रूप में की जाती है। प्राचीनकाल में शिक्षा, अध्यात्म तथा शासन व्यवस्था आदि के क्षेत्र में यह राज्य देश का सबसे समृद्ध व अग्रणी राज्य समझा जाता था। बिहार महात्मा बुद्ध, अशोक सम्राट से लेकर डॉ. राजेंद्र प्रसाद तथा जयप्रकाश नारायण जैसे महापुरुषों की कर्मस्थली रही है। आज भी यह राज्य देश को सबसे अधिक भारतीय प्रशासनिक अधिकारी तथा उच्चस्तरीय अधिकारी देने वाला राज्य गिना जाता है। यहां तक कि यदि हम मज़दूरी की भी बात करें तो भी यहां के मेहनतकश खेतिहर मज़दूरों ने कृषि व उद्योग के क्षेत्र में हरियाणा व पंजाब जैसे देश के कई राज्यों की तरक्की की इबारत लिखी है। जहां तक इन राज्यों के लोगों की योग्यता व इनकी क्षमता का प्रश्र है तो इस क्षेत्र में भी बिहार के लोग पंजाब, महाराष्ट्र तथा दिल्ली जैसे कई राज्यों में कहीं राजनीति में अपनी अग्रणी भूमिका निभाकर तो कहीं उद्योग व व्यापार क्षेत्र में अपने को स्थापित कर अपनी योग्यता व क्षमता का लोहा मनवाते देखे जा रहे हैं। परंतु इन सब विशेषताओं के बावजूद बिहार की छवि अब भी उतनी साफ-सुथरी व समृद्ध राज्य की छवि नहीं बन सकी है, जैसा कि देश के दूसरे अधिकांश राज्यों की है। बावजूद इसके कि गत् एक दशक से बिहार अपने-आप में भी अब वह बिहार नहीं रह गया है जो एक दशक पूर्व था। यानी सड़कों, बिजली और पानी जैसी आधारभूत सुविधा व कानून व्यवस्था के क्षेत्र में भी बिहार में अब काफी परिवर्तन आ चुका है। राज्य के प्रमुख राजमार्गों से लेकर स्थानीय लिंक सड़कों तक की हालत अब किसी प्रगतिशील राज्य की तरह देखी जा सकती है। बिहार में विद्युत आपूर्ति में भी क्रांतिकारी बदलाव देखा जा रहा है। राज्य के अधिकांश क्षेत्रों में 24 घंटे की विद्युत आपूर्ति के समाचार सुनाई दे रहे हैं। यह खबरें केवल शहरी क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि ग्रामीण इलाकों से भी सुनाई दे रही हैं। पीने के पानी की आपूर्ति भी पहले से कहीं बेहतर हुई है। बिहार के लोगों के प्राय: राज्य के बाहर रहकर रोज़गार में लगे होने की वजह से यहां के लोगों के रहन-सहन में भी काफी बदलाव आया है।

परंतु इन सब बातों के बावजूद अभी भी ऐसे कई समाचार इसी राज्य से कभी-कभी निकलकर आते हैं जिनसे बिहार की इस नई व साफ-सुथरी बनती हुई छवि को गहरा धक्का लगता है। उदाहरण के तौर पर इसी वर्ष मार्च महीने में राज्य में संपन्न हुई मिडिल स्कूल की परीक्षा के दौरान परीक्षार्थियों को नकल कराए जाने की जो घटना समाने आई उसने बिहार का नाम केवल राज्य या देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी कलंकित किया। खासतौर पर राज्य के एक स्कूल भवन की 4 मंजि़ला इमारत की वह फोटो देश-विदेश में तथा सोशल मीडिया में बड़े पैमाने पर प्रकाशित व प्रसारित की गई जिसमें कि उस चार मंजि़ला स्कूल भवन की दीवार पर चढ़े हुए दर्जनों लोगों को अपने-अपने रिश्तेदार व परिजन परीक्षार्थी को अथवा संबंधी या मित्र परीक्षार्थी को परीक्षा में नकल कराने हेतु पर्चियां पहुंचा कर सहायता की जा रही थी। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि यह पूरा का पूरा दृश्य परीक्षा केंद्र में ड्यूटी पर तैनात ड्यूटी मजिस्ट्रेट, शस्त्र पुलिस तथा परीक्षकों द्वारा लाचार हो कर देखा जा रहा था। नकल कराए जाने के इस चित्र की रिपोर्ट के प्रकाशित होते ही राज्य के मुख्यमंत्री नितीश कुमार तथा पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नरसिंहा रेड्डी ने तत्काल संज्ञान लिया। मुख्यमंत्री ने फौरन एक उच्च्स्तरीय मीटिंग बुलाई जिसमें राज्य के शिक्षामंत्री, गृहसचिव, शिक्षा सचिव तथा पुलिस प्रमुख के साथ बैठकर हालात की समीक्षा की तथा बिना नकल के परीक्षा संपन्न कराए जाने का स त निर्देश दिया। इसके अतिरिक्त परीक्षा केंद्रों पर नकल के दौरान तैनात पुलिस कर्मियों व ड्यूटी मजिस्ट्रेट के विरुद्ध कार्रवाई किए जाने का भी आदेश दिया। इसी प्रकार राज्य के उच्च न्यायालय ने एक अंग्रेज़ी दैनिक में प्रकाशित नकल संबंधी इस समाचार को ही जनहित याचिका मानकर राज्य के पुलिस प्रमुख को आदेश दिया कि परीक्षा केंद्रों में चल रही नकल को तत्काल रोका जाए। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश नरसिंहा रेड्डी तथा जस्टिस विकास जैन की दो सदस्यीय बैंच द्वारा दिया गया।

देश और दुनिया में तहलका मचा देने वाली बिहार की इस नकल संबंधी रिपोर्ट के विषय में मीडिया से मुखातिब होते हुए राज्य के पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडे ने बताया कि इस सिलसिले में परीक्षार्थी को नकल कराए जाने में सहयोग देने हेतु एक हज़ार से अधिक परीक्षार्थियों के अभिभावकों, रिश्तेदारों तथा नकल कराने में संलिप्त अध्यापकों को गिर तार किया गया। दो पुलिसकर्मी भी जेल भेजे गए जबकि दस को निलंबित किया गया। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने इस घटना पर खेद व्यक्त करते हुए स्वयं तत्काल यह बयान दिया कि नकल संबंधी इन समाचारों के प्रकाशित होने से बिहार की काफी बदनामी हुई है। दरअसल बिहार में नकल करने व कराने का सिलसिला कोई नया नहीं है। बिहार ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश राज्य भी परीक्षा में नकल करने कराने को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहता है। यूपी व बिहार के तो कई नेतागण भी नकलची परीक्षार्थियों के पक्ष में बयान देते तथा उनसे हमदर्दी जताते देखे व सुने जा चुके हैं। बिहार में तो ऐसी घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं जबकि दबंग नेताओं की जगह पर किसी अन्य व्यक्ति ने बैठकर परीक्षा दी हो। परंतु अपनी जान व इज़्ज़त को बचाने के डर से परीक्षा केंद्र पर तैनात कर्मचारी मूक दर्शक बने रहने को मजबूर रहते हैं। इन्हीं राज्यों से ऐसे समाचार भी सुनाई देते हैं कि नकल रोकने वाले परीक्षक अथवा ड्यूटी पर तैनात किसी कर्मचारी को नकल कराने वाले लोगों द्वारा उन्हें रोके जाने पर पिटाई कर दी गई। ज़ाहिर है ऐसे में कोई व्यक्ति चाहते हुए भी नकलबाज़ी रोक पाने में असमर्थ हो जाता है।

सवाल यह है कि जो अभिभावक यह मानसिकता रखते हैं कि उनका बच्चा नकल द्वारा परीक्षा पास कर उन्नति करेगा या शीघ्र सफलता की मंजि़लों को छू लेगा क्या उनका यह सोचना सही है? नकल कर पास हो जाना शीघ्र व समय पूर्व डिग्री प्राप्त कर लेने का कारण तो बन सकता है परंतु ज्ञान अर्जित करने का कारण कतई नहीं बन सकता। यह महज़ एक शार्टकट रास्ता तो ज़रूर हो सकता है जिससे बिना पढ़े हुए और समय पूर्व सर्टिफिकेट हासिल कर लिया जाए। परंतु इस प्रकार नकल मार कर पास होने वाला छात्र बुद्धिमानी, ज्ञान व योग्यता के क्षेत्र में उस छात्र का मुकाबला कतई नहीं कर सकता जिसने अपनी मेहनत, बुद्धिमानी तथा योग्यता के बल पर बिना नकल किए परीक्षा उत्तीर्ण की है। बिहार से आने वाले प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी आिखर उसी राज्य के वह होनहार छात्र रहे हैं जिन्होंने 24 घंटे में 16-18 घंटे पढ़ाई कर लोकसेवा आयोग जैसी मुश्किल परीक्षाएं न केवल पास की हैं बल्कि सैकड़ों के नाम लोकसेवा आयोग की मेरिट सूची में भी रहे हैं। क्या गृहसचिव तो क्या विदेश सचिव सभी महत्वपूर्ण पदों पर बिहार कैडर के अधिकारी तैनात रह चुके हैं। निश्चित रूप से इनके माता-पिता,अभिभावक या इनके मित्र मंडली के लोगों ने इन्हें इस प्रकार दीवारों पर चढक़र नकल हरगिज़ नहीं कराई होगी। आज यही लोग अपनी योग्यता व ज्ञान के बल पर बिहार का नाम पूरी दुनिया में रौशन कर रहे हैं।

राज्य के उन लोगों को जो लोग नकल करने व कराने के पक्षधर हैं तथा इस गलतफहमी का शिकार हैं कि वे नकल कराकर अपने बच्चों को शीघ्र व समय पूर्व सफलता के शिखर तक पहुंचा देंगे उन्हें यह बात भलीभांति समझ लेनी चाहिए कि नकल कर पास होने वाला छात्र आगे चलकर भी नकल करने का ही मोहताज रहेगा। यदि नकल करते हुए वह दुर्भाग्यवश डॉक्टर बन भी गया तो भी किसी मरीज़ का इलाज कर पाना उसके वश की बात नहीं है। उसके हाथों में किसी मरीज़ की जान सुरक्षित नहीं रह सकती। यदि वह नकल मार कर खुदा न वास्ता अध्यापक बन गया तो वह अपने छात्रों को सही ज्ञान नहीं दे सकता। यदि इंजीनियर बन गया तो उसके हाथों किया गया कोई भी निर्माण कार्य भरोसेमंद व सुरक्षित नहीं हो सकता। यानी नकलचियों के भरोसे पर खड़ी की गई तरक्की की कोई भी इमारत कारगर व मज़बूत नहीं हो सकती। और इसका सीधा सा अर्थ है समाज को कमज़ोर करना तथा देश को खोखला बनाना। और यदि इस प्रकार का संदेश बिहार जैसे विशाल राज्य से दिया गया है तो यह निश्चित रूप से बिहार की बदनामी का व बिहार की छवि को खराब करने का कारण है। लिहाज़ा राज्य की इस बिगड़ती छवि को ततकाल सुधारने की ज़रूरत है। तथा बिहार सहित देश के सभी राज्यों को नकल जैसे दूषित रोग से मुक्त कराए जाने की आवश्यकता है।

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