न्याय को सुलभ और आसान बनाने के लिए हमारे देश में समय-समय पर विधि में कुछ अच्छे परिवर्तन किए जाते रहे हैं। जिसके अन्तर्गत सीबीआई अदालतें, लोक अदालतें तथा पर्यावरण से संबंधित मामलों के लिए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम का गठन जैसे कुछ उदाहरण सामने हैं। लोकतांत्रित देश होने के कारण यहां कई बार न्याय व्याय व्यवस्था भी जनता की अदालत में कठघरे में खड़ी नजर आती है। न्यायालय के सभी फैसलों पर आम आदमी की राय एक समान हो यह जरूरी नहीं है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा हाल ही में लिए गए कुछ फैसले इन दिनों चर्चा का विषय बने हुए हैं। और चर्चा हो भी तो क्यों न, क्योंकि ज्यादातर फैसले किसी एक धर्म व सम्प्रदाय विशेष से जुडे़ हुए हैं।
एनजीटी ने हाल ही में कश्मीर में स्थित बाबा अमरनाथ की गुफा को लेकर कुछ मानक तय करते हुए फैसले सुनाए हैं। जो कि देश के बहुसंख्यक समुदाय को रास नहीं आ रहे हैं। इसके पीछे का कारण यह है कि इससे पहले भी एनजीटी एक धर्म विशेष के लोगों से संबंधित मामलों को लेकर अपने फैसले सुनाता आया है। जिसका विरोध पूरे देश में हुआ। दरअसल एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि दक्षिण कश्मीर स्थित अमरनाथ गुफा में बर्फ से बनी शिवलिंग के सामने शांति बनाए रखने की जरूरत है। एनजीटी ने अमरनाथ गुफा को मौन क्षेत्र घोषित किया है। साथ ही वहां लगी लोहे की जालियों को भी हटाने की बात कही है। इस फैसले का सीधा-सीधा मतलब है कि अब बाबा अमरनाथ के दर्शन करने जाने वाले श्रद्धालु गुफा के अंदर बम-बम भोले के जयकारे नहीं लगा सकेंगे। साथ उंची आवाज में मंत्रों का उचारण भी नहीं कर सकते। मंदिर के अंदर घंटी नहीं बजाई जा सकती। इस फैसले के पीछे का तर्क यह है कि यह सब पर्यावरण संरक्षण के लिए अति आवश्यक है।
हिन्दू संगठनों के साथ-साथ देश के ज्यादातर लोग एनजीटी के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। विश्व हिंदू परिषद ने इस आदेश का विरोध करते हुए इसे तुगलकी फतवा करार दिया था। उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर पर्यावरण संबंधी हर समस्या के लिए हिंदू जिम्मेदार नहीं है।
एनजीटी का यह कोई पहला फैसला नहीं जिसका देश में विरोध किया जा रहा हो। अभी कुछ दिन पहले ही एनजीटी ने माता बैष्णो धाम में श्रद्धालुओं के लिए खोले गए नए मार्ग पर आने-जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या निधार्रित की थी। जिसके तहत एक दिन में लगभग पचास हजार श्रद्धालु ही इस मार्ग से आ-जा सकेंगे। यहां भी पर्यावरण की दुहाई देते हुए एनजीटी ने गंदगी फैलाने वालों पर दो हजार रूपये तक का जुर्मान वसूलने की बात कही थी।
इससे थोड़े समय और पीछे जाया जाए तो भारत में सबसे बड़ा त्योहार दीपावली गुजरा है। जिस पर एनजीटी का अहम फैसला सामने आया था। हालांकि वह फैसला केवल देश की राजधानी दिल्ली व दिल्ली से सटे इलाकों के लिए था। एनजीटी ने यह कहते हुए कि दिल्ली व उससे सटे इलाके में दीपावली के त्योहार पर अत्याधिक अतिशबाजी होती है जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान होता है, पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी थी। इस फैसले पर एनजीटी का कहना था कि दिल्ली दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर है और इसी के चलते यहां अतिशबाजी की बिक्री पर रोक लगा थी। जिसके विरोध स्वरूप कई हिन्दू संगठनों ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण के द्वार पर आतिशबाजी कर अपना विरोध जताया था। एनजीटी ने यह फैसला यह सोचकर लिया था कि ताकि प्रदूषण में थोड़ी-बहुत कमी आएगी, लेकिन यह तो वही बात हुए कि बकरे के बाल काटने से उसका बोझ कम नहीं हो जाता। हालांकि एनजीटी के आदेश पर इससे पहले दिल्ली सरकार आॅड-ईवन फाॅर्मूले पर भी काम कर चुकी है। जिसका परिणाम प्रदूषण में सुधार के नाम पर कुछ खास नहीं रहा।
अब जब बात एनजीटी के फैसलों की हो रही है तो पिछले वर्ष दिल्ली के यमुना तट पर श्रीश्री रविशंकर की संस्था आर्ट आॅफ लिविंग द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम सभी को याद होगा। जो कि एनजीटी की रोक के चलते विवादों में घिर गया था। पर्यावरण के नाम पर एनजीटी एक ऐसे कार्यक्रम को रोकने के पक्ष में थी जिसमें भारतीय संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिलने जा रही थी। हालांकि तमाम विवादों के बावजूद यह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ और पूरी दुनिया के कलकारों में भारतीय मंच पर अपनी-अपनी संस्कृतियों का मंचन प्रस्तुत किया। इसके अलावा और भी कई मामले हैं जो एनजीटी के एक ही सम्प्रदाय के खिलाफ हुए फैसलों पर ध्यान केन्द्रित करने को मजबूर करते हैं। इसके अलावा और भी कई मुद्दे हैं जिन पर एनजीटी अपना फैसला सुना सकता है।
सवाल उठता है कि क्या एनजीटी द्वारा किए गए सभी फैसले गलत हैं। नहीं एनजीटी का हर फैसला गलत नहीं है, परन्तु उन फैसलों को जैसे पेश किया जाता है उससे तो यही लगता है जैसे यह सभी फैसले किसी एक सम्प्रदाय विशेष को टारगेट करते हुए लिए गए हों। दरअसल एनजीटी को पर्यावरण की चिंता होनी लाजमी है, परन्तु एनजीटी को चाहिए कि ऐसी वस्तुओं पर रोक लगाए जो पर्यावरण को अत्याधिक हानि पहुंचाती हैं। जैसे कि डीजल से चलने वाली लग्जरी कारें, अत्याधिक संख्या में इस्तेमाल हो रहे एसी, जुर्माने के नाम पर केवल धन वसूलना काफी नहीं है, बल्कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले अपराधियों को पौधा लगाने का आदेश सुनाना चाहिए। और साथ में उन हिन्दूवादी संगठनों को भी सोचने की जरूरत है कि जिसे वो गंगा मां कहते हैं वो किन कारणों से अपवित्र हो गई है और जिस वट वृक्ष की वो पूजा करते हैं उनकी तादात दिन प्रति दिन कम क्यों होती जा रही है इस पर भी विचार करने की जरूरत है। कुछ धार्मिक अज्ञानता के कारण प्राकृति को पूजने वाले लोग ही प्राकृति के दुष्मन बनते जा रहे है। इन सभी बिन्दुओं पर विचार करने की समाज के प्रत्येक व्यक्ति को जरूरत है।