
—विनय कुमार विनायक
हे हिरण्यमयी मां लक्ष्मी हिरण सरीखी
चपला चंचला चंचलता छोड़कर
स्वर्ण चांदी बनकर उतरो भारत भू पर!
कि गोधन रत्न आभूषण रुप धरो
विचरो भारत भूमि पर सत्वर निरंतर
इतनी सम्पत्ति संपदा दो विपदा हरो!
कि हर भारत जन हो सम्पन्न शुद्धाचरण
सबके लोभ मोह लालच मत्सर दुर्गुण हरो
भ्रष्टाचार का करो शमन श्री वृद्धि करो!
मां श्री लक्ष्मी नारायणी नमोस्तुते
अग्नि लौ सी कान्तिमयी मां लक्ष्मी
इस धरा पर उतरो शस्य श्यामला करो!
धन धान्य फसल बनकर
घर आंगन खेत खलिहान खमार भरो
काली अमावस्या की काल रात्रि को
कोटि कोटि प्रज्वलित दीप मालिका होकर
चिर उज्जवल निर्मल कंचन वरण करो!
हे मां स्वर्ग से उतरो पग धरो
अम्बर से धरती पर स्वर्ण किरण
औषधि बनकर उतरो हर्षित करो
समुद्र कन्या समुद्र की निधि लेकर
मेघ बनकर भारत भूमि पर बरसो!